Tuesday, March 27, 2012

Murli [27-03-2012]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें इस दु:ख के लोक से निकाल सुख के धाम में ले जाने, धाम पवित्र स्थान को कहा जाता है''
प्रश्न: यह बेहद का खेल किन दो शब्दों के आधार पर बना हुआ है?
उत्तर: ''वर्सा और श्राप'' बाप सुख का वर्सा देते, रावण दु:ख का श्राप देता, यह बेहद की बात है। देवी-देवता धर्म वाले बाप से वर्सा लेते हैं। आधाकल्प के बाद फिर रावण श्राप देता है। तुम बच्चों को अब स्मृति आई कि हम निराकारी दुनिया में रहते थे फिर सुख का पार्ट बजाया। हम सो देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें, अब ब्राह्मण बन देवता बनते हैं।
गीत:- ओम् नमो शिवाए.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस अन्तिम जन्म में राम की मत पर चलना है। कभी भी राम की शरण छोड़ रावण की शरण में जाकर बाप की निंदा नहीं करानी है।
2) सजाओं से छूटने के लिए योगी बन विकर्म विनाश करने हैं। पवित्र दुनिया में चलने के लिए पवित्र जरूर बनना है।
वरदान: सर्व विकारों के अंश का भी त्याग कर सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले नम्बरवन विजयी भव
सम्पूर्ण पवित्र वह है जिसमें अपवित्रता का अंश-मात्र भी न हो। पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। यह पर्सनैलिटी ही सेवा में सहज सफलता दिलाती है। लेकिन यदि एक भी विकार का अंश है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे पवित्रता के साथ सुख-शान्ति है, ऐसे अपवित्रता के साथ पांचों विकारों का गहरा संबंध है, इसलिए एक भी विकार का अंश न रहे तब नम्बरवन विजयी बनेंगे।
स्लोगन: हिम्मत का एक कदम रखो तो हजार गुणा मदद मिल जायेगी।