Wednesday, March 28, 2012

Murli [28-03-2012]-Hindi

मुरली सार :- ''मीठे बच्चे - तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे ईश्वरीय सेवा में लगाकर सफल करो, कॉलेज कम हॉस्पिटल खोलते जाओ''
प्रश्न: तुम बच्चों का शिवबाबा से कौन सा एक सम्बन्ध बहुत रमणीक और गुह्य है?
उत्तर: तुम कहते हो शिवबाबा हमारा बाप भी है तो बच्चा भी है, परन्तु बाप सो फिर बच्चा कैसे है, यह बहुत रमणीक और गुह्य बात है। तुम उन्हें बालक भी समझते हो क्योंकि उन पर पूरा बलिहार जाते हो। सारा वर्सा पहले तुम उनको देते हो। जो शिवबाबा को अपना वारिस बनाते हैं, वही 21 जन्मों का वर्सा पाते हैं। यह बच्चा (शिवबाबा) कहता है कि मुझे तुम्हारा धन नहीं चाहिए। तुम सिर्फ श्रीमत पर चलो तो तुम्हें बादशाही मिल जायेगी।
गीत:- माता ओ माता.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अब रावण की मत छोड़ श्रीमत पर चलना है और सब संग तोड़ एक बाप के संग जोड़ना है।
2) निश्चयबुद्धि बन पढ़ाई जरूर पढ़नी है। किसी भी विघ्न से बाप का हाथ नहीं छोड़ना है। योग से तन्दरुस्ती और पढ़ाई से राजाई लेनी है।
वरदान: देह-अंहकार वा अभिमान के सूक्ष्म अंश का भी त्याग करने वाले आकारी सो निराकारी भव
कईयों का मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है लेकिन देह के संबंध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है-उसका अभिमान अर्थात् अंहकार, नशा, रोब - ये सूक्ष्म देह-अभिमान है। तो यह अभिमान कभी भी आकारी फरिश्ता वा निराकारी बनने नहीं देगा, इसलिए इसके अंश मात्र का भी त्याग करो तो सहज ही आकारी सो निराकारी बन सकेंगे।
स्लोगन: समय पर सहयोगी बनो तो पदमगुणा रिटर्न मिल जायेगा।