मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - शिवबाबा के सिवाए तुम्हारा यहाँ कुछ भी नहीं, इसलिए इस देह के भान से भी दूर खाली बेगर होना है, बेगर ही प्रिन्स बनेंगे''
प्रश्न:- ड्रामा की यथार्थ नॉलेज कौन-से ख्यालात समाप्त कर देती है?
उत्तर:- यह बीमारी क्यों आई, ऐसा नहीं करते तो ऐसा नहीं होता, यह विघ्न क्यों पड़ा.... बंधन क्यों आया.... यह सब ख्यालात ड्रामा की यथार्थ नॉलेज से समाप्त हो जाते हैं क्योंकि ड्रामा अनुसार जो होना था वही हुआ, कल्प पहले भी हुआ था। पुराना शरीर है इसे चत्तियां भी लगनी ही है इसलिए कोई ख्यालात चल नहीं सकते।
गीत:- हमें उन राहों पर चलना है........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसा कोई कर्म नही करना है जिसके पीछे ख्याल चले, तोबा-तोबा (पश्चाताप्) करना पड़े। झूठ नहीं बोलना है। सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
2) भारत को स्वर्ग बनाने में अपनी एक-एक कौड़ी सफल करनी है। ब्रह्मा बाप समान सरेन्डर हो ट्रस्टी बनकर रहना है।
वरदान:- सर्व हदों पर विजय प्राप्त कर कर्मातीत स्वरूप का अनुभव करने वाले विजयी रत्न भव
इस पढ़ाई की चारों सबजेक्ट का मूल सार है ``बेहद''। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित हो मरजीवा बनते हो और लास्ट में हद के रिश्तों से परे फरिश्ता बनते हो। जो सभी हदों पर विजय प्राप्त कर बेहद स्वरूप में स्थित हो, बेहद सेवाधारी बनते हैं वही विजयी रत्न बन जाते और अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं।
स्लोगन:- स्वयं को बदलने की भावना हो तो संगठन में सफलता मिलती रहेगी।
प्रश्न:- ड्रामा की यथार्थ नॉलेज कौन-से ख्यालात समाप्त कर देती है?
उत्तर:- यह बीमारी क्यों आई, ऐसा नहीं करते तो ऐसा नहीं होता, यह विघ्न क्यों पड़ा.... बंधन क्यों आया.... यह सब ख्यालात ड्रामा की यथार्थ नॉलेज से समाप्त हो जाते हैं क्योंकि ड्रामा अनुसार जो होना था वही हुआ, कल्प पहले भी हुआ था। पुराना शरीर है इसे चत्तियां भी लगनी ही है इसलिए कोई ख्यालात चल नहीं सकते।
गीत:- हमें उन राहों पर चलना है........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसा कोई कर्म नही करना है जिसके पीछे ख्याल चले, तोबा-तोबा (पश्चाताप्) करना पड़े। झूठ नहीं बोलना है। सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
2) भारत को स्वर्ग बनाने में अपनी एक-एक कौड़ी सफल करनी है। ब्रह्मा बाप समान सरेन्डर हो ट्रस्टी बनकर रहना है।
वरदान:- सर्व हदों पर विजय प्राप्त कर कर्मातीत स्वरूप का अनुभव करने वाले विजयी रत्न भव
इस पढ़ाई की चारों सबजेक्ट का मूल सार है ``बेहद''। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित हो मरजीवा बनते हो और लास्ट में हद के रिश्तों से परे फरिश्ता बनते हो। जो सभी हदों पर विजय प्राप्त कर बेहद स्वरूप में स्थित हो, बेहद सेवाधारी बनते हैं वही विजयी रत्न बन जाते और अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं।
स्लोगन:- स्वयं को बदलने की भावना हो तो संगठन में सफलता मिलती रहेगी।