Thursday, April 17, 2014

Murli-[17-4-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - तुम्हारा यह जीवन देवताओं से भी उत्तम है, क्योंकि तुम अभी 
रचयिता और रचना को यथार्थ जानकर आस्तिक बने हो'' 

प्रश्न:- संगमयुगी ईश्वरीय परिवार की विशेषता क्या है, जो सारे कल्प में नहीं होगी? 
उत्तर:- इसी समय स्वयं ईश्वर बाप बनकर तुम बच्चों को सम्भालते हैं, टीचर बनकर पढ़ाते 
हैं और सतगुरू बनकर तुम्हें गुल-गुल (फूल) बनाकर साथ ले जाते हैं। सतयुग में दैवी परिवार 
होगा लेकिन ऐसा ईश्वरीय परिवार नहीं हो सकता। तुम बच्चे अभी बेहद के सन्यासी भी हो, 
राजयोगी भी हो। राजाई के लिए पढ़ रहे हो। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) सारी दुनिया अब कब्रदाखिल होनी है, विनाश सामने है, इसलिए कोई से भी सम्बन्ध 
नहीं रखना है। अन्तकाल में एक बाप ही याद रहे। 

2) श्याम से सुन्दर, पतित से पावन बनने का यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, यही समय है 
उत्तम पुरूष बनने का, सदा इसी स्मृति में रह स्वयं को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है। 

वरदान:- ईश्वरीय सेवा द्वारा वैराइटी मेवा प्राप्त करने वाली अधिकारी आत्मा भव 

कहा जाता है ``करो सेवा तो मिले मेवा''। ईश्वरीय ज्ञान देना ही ईश्वरीय सेवा है जो यह सेवा 
करते हैं उन्हें अतीन्द्रिय सुख का, शक्तियों का, खुशी का वैराइटी मेवा मिलता है। आप ब्राह्मण 
ही इसके अधिकारी हो क्योंकि आपका काम ही है ईश्वरीय पढ़ाई पढ़ना और पढ़ाना, जिससे 
ईश्वर के बन जाएं। तो ऐसी ईश्वरीय सेवा करने से ईश्वरीय फल के अधिकारी बन गये - 
इसी नशे में रहो। 

स्लोगन:- बाप के साथ रहकर कर्म करो तो डबल लाइट रहेंगे।