मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - देह-अभिमान आसुरी कैरेक्टर है, उसे बदल दैवी कैरेक्टर्स
प्रश्न:- हर एक आत्मा अपने पाप कर्मों की सज़ा कैसे भोगती है, उससे बचने का साधन क्या है?
उत्तर:- हर एक अपने पापों की सज़ा एक तो गर्भ जेल में भोगते हैं, दूसरा रावण की जेल
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करके अपनी स्थिति खराब नहीं करनी है।
2) देही-अभिमानी बनने का पूरा पुरूषार्थ करना है, किसी की भी निंदा नहीं करनी है।
वरदान:- श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाले सर्व के सहयोगी भव
योग का अर्थ है श्रेष्ठ स्मृति में रहना। मैं श्रेष्ठ आत्मा श्रेष्ठ बाप की सन्तान हूँ, जब ऐसी स्मृति
स्लोगन:- अचल स्थिति के आसन पर बैठने से ही राज्य का सिंहासन मिलेगा।
धारण करो तो रावण की जेल से छूट जायेंगे''
प्रश्न:- हर एक आत्मा अपने पाप कर्मों की सज़ा कैसे भोगती है, उससे बचने का साधन क्या है?
उत्तर:- हर एक अपने पापों की सज़ा एक तो गर्भ जेल में भोगते हैं, दूसरा रावण की जेल
में अनेक प्रकार के दु:ख उठाते हैं। बाबा आया है तुम बच्चों को इन जेलों से छुड़ाने।
इनसे बचने के लिए सिविलाइज्ड बनो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कभी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करके अपनी स्थिति खराब नहीं करनी है।
अन्दर में सफाई रखनी है। झूठी बातें सुनकर अन्दर में जलना नहीं है, ईश्वरीय मत ले लेनी है।
2) देही-अभिमानी बनने का पूरा पुरूषार्थ करना है, किसी की भी निंदा नहीं करनी है।
फायदा, नुकसान और इज्जत को ध्यान में रखते हुए क्रिमिनल आई को खत्म करना है।
बाप जो सुनाते हैं उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकालना नहीं है।
वरदान:- श्रेष्ठ स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ वायुमण्डल बनाने वाले सर्व के सहयोगी भव
योग का अर्थ है श्रेष्ठ स्मृति में रहना। मैं श्रेष्ठ आत्मा श्रेष्ठ बाप की सन्तान हूँ, जब ऐसी स्मृति
रहती है तो स्थिति श्रेष्ठ हो जाती है। श्रेष्ठ स्थिति से श्रेष्ठ वायुमण्डल स्वत: बनता है जो अनेक
आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। जहाँ भी आप आत्मायें योग में रहकर कर्म
करती हो वहाँ का वातावरण, वायुमण्डल औरों को भी सहयोग देता है। ऐसी सहयोगी
आत्मायें बाप को और विश्व को प्रिय हो जाती हैं।
स्लोगन:- अचल स्थिति के आसन पर बैठने से ही राज्य का सिंहासन मिलेगा।