Monday, July 28, 2014

Murli-[28-7-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - इस शरीर को न देख आत्मा को देखो, अपने को आत्मा समझ आत्मा 
से बात करो, इस अवस्था को जमाना है, यही ऊंची मंज़िल है'' 

प्रश्न:- तुम बच्चे बाप के साथ ऊपर (घर में) कब जायेंगे? 
उत्तर:- जब अपवित्रता की मात्रा रिंचक भी नहीं रहेगी। जैसे बाप प्योर है ऐसे तुम बच्चे भी प्योर बनेंगे 
तब ऊपर जा सकेंगे। अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख हो। ज्ञान सागर से ज्ञान सुन-सुन कर जब फुल 
हो जायेंगे, बाप को नॉलेज से खाली कर देंगे फिर वह भी शान्त हो जायेंगे और तुम बच्चे भी शान्तिधाम 
में चले जायेंगे। वहाँ ज्ञान टपकना बंद हो जाता। सब कुछ दे दिया फिर उनका पार्ट है साइलेन्स का। 

धारणा के लिए मुख्य सार :- 

1) याद की मेहनत और ज्ञान की धारणा से कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरूषार्थ करना है। ज्ञान सागर 
की सम्पूर्ण नॉलेज स्वयं में धारण करनी है। 

2) आत्मा में जो खाद पड़ी है उसे निकाल सम्पूर्ण वाइसलेस बनना है। रिंचक मात्र भी अपवित्रता का अंश 
न रहे। हम आत्मा भाई-भाई हैं...... यह अभ्यास करना है। 

वरदान:- ब्राह्मण जीवन में सर्व खजानों को सफल कर सदा प्राप्ति सम्पन्न बनने वाले सन्तुष्टमणि भव 

ब्राह्मण जीवन का सबसे बड़े से बड़ा खजाना है सन्तुष्ट रहना। जहाँ सर्व प्राप्तियां हैं वहाँ सन्तुष्टता है और जहाँ 
सन्तुष्टता है वहाँ सब कुछ है। जो सन्तुष्टता के रत्न हैं वह सब प्राप्ति स्वरूप हैं, उनका गीत है पाना था वह पा 
लिया... ऐसे सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनने की विधि है - मिले हुए सर्व खजानों को यूज़ करना क्योंकि जितना 
सफल करेंगे उतना खजाने बढ़ते जायेंगे। 

स्लोगन:- होलीहंस उन्हें कहा जाता जो सदा अच्छाई रूपी मोती ही चुगते हैं, अवगुण रूपी कंकड़ नहीं।