मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - बाजोली का खेल याद करो, इस खेल में सारे चक्र का, ब्रह्मा
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) वृक्षपति बाप से सुख-शान्ति-पवित्रता का वर्सा लेने के लिए अपने आपको अकालमूर्त्त
2) बाप से सच्ची कथा सुनकर दूसरों को सुनानी है। मायाजीत बनने के लिए आपसमान
वरदान:- हर श्रेष्ठ संकल्प को कर्म में लाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव
मास्टर सर्वशक्तिमान माना संकल्प और कर्म समान हो। अगर संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो
स्लोगन:- ज्ञानी तू आत्मा बच्चों में क्रोध है तो इससे बाप के नाम की ग्लानी होती है।
और ब्राह्मणों का राज़ समाया हुआ है''
प्रश्न:- संगमयुग पर बाप से कौन-सा वर्सा सभी बच्चों को प्राप्त होता है?
उत्तर:- ईश्वरीय बुद्धि का। ईश्वर में जो गुण हैं वह हमें वर्से में देते हैं। हमारी बुद्धि हीरे
उत्तर:- ईश्वरीय बुद्धि का। ईश्वर में जो गुण हैं वह हमें वर्से में देते हैं। हमारी बुद्धि हीरे
जैसी पारस बन रही है। अभी हम ब्राह्मण बन बाप से बहुत भारी खजाना ले रहे हैं,
सर्व गुणों से अपनी झोली भर रहे हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) वृक्षपति बाप से सुख-शान्ति-पवित्रता का वर्सा लेने के लिए अपने आपको अकालमूर्त्त
आत्मा समझ बाप को याद करना है। ईश्वरीय बुद्धि बनानी है।
2) बाप से सच्ची कथा सुनकर दूसरों को सुनानी है। मायाजीत बनने के लिए आपसमान
बनाने की सेवा करनी है, बुद्धि में रहे हम कल्प-कल्प के विजयी हैं, बाप हमारे साथ है।
वरदान:- हर श्रेष्ठ संकल्प को कर्म में लाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव
मास्टर सर्वशक्तिमान माना संकल्प और कर्म समान हो। अगर संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो
और कर्म संकल्प प्रमाण न हो तो मास्टर सर्वशक्तिमान नहीं कहेंगे। तो चेक करो जो
श्रेष्ठ संकल्प करते हैं वो कर्म तक आते हैं या नहीं। मास्टर सर्वशक्तिमान की निशानी
है कि जो शक्ति जिस समय आवश्यक हो वो शक्ति कार्य में आये। स्थूल और सूक्ष्म
सब शक्तियां इतना कन्ट्रोल में हो जो जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो
उसे काम में लगा सकें।
स्लोगन:- ज्ञानी तू आत्मा बच्चों में क्रोध है तो इससे बाप के नाम की ग्लानी होती है।