Monday, July 7, 2014

Murli-[7-7-2014]-Hindi

मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - बाप समान रहमदिल और कल्याणकारी बनो, समझदार 
वह जो खुद भी पुरूषार्थ करे और दूसरों को भी कराये'' 

प्रश्न:- तुम बच्चे अपनी पढ़ाई से कौन-सी चेकिंग कर सकते हो, तुम्हारा पुरूषार्थ क्या है? 
उत्तर:- पढ़ाई से तुम चेकिंग कर सकते हो कि हम उत्तम पार्ट बजा रहे हैं या मध्यम या 
कनिष्ट। सबसे उत्तम पार्ट उनका कहेंगे जो दूसरों को भी उत्तम बनाते हैं अर्थात् सर्विस 
कर ब्राह्मणों की वृद्धि करते हैं। तुम्हारा पुरूषार्थ है पुरानी जुत्ती उतार नई जुत्ती लेने का। 
जब आत्मा पवित्र बनें तब उसे नई पवित्र जुत्ती (शरीर) मिले। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 

1) ज्ञान और योग से अपनी बुद्धि को रिफाइन बनाना है। बाप को भूलने की भूल कभी 
नहीं करनी है। आशिक बन माशूक को याद करना है। 

2) बन्धनमुक्त बन आप समान बनाने की सेवा करनी है। ऊंच पद पाने का पुरूषार्थ 
करना है। पुरूषार्थ में कभी दिलशिकस्त नहीं बनना है। 

वरदान:- विकारों रूपी जहरीले सांपों को गले की माला बनाने वाले शंकर समान तपस्वीमूर्त भव
 
यह पांच विकार जो लोगों के लिए जहरीले सांप हैं, यह सांप आप योगी वा प्रयोगी आत्मा 
के गले की माला बन जाते हैं। यह आप ब्राह्मणों वा ब्रह्मा बाप के अशरीरी तपस्वी शंकर 
स्वरूप का यादगार आज तक भी पूजा जाता है। दूसरा - यह सांप खुशी में नांचने की 
स्टेज बन जाते हैं - यह स्थिति स्टेज के रूप में दिखाते हैं। तो जब विकारों पर ऐसी 
विजय हो तब कहेंगे तपस्वीमूर्त, प्रयोगी आत्मा। 

स्लोगन:- जिनका स्वभाव मीठा, शान्तचित है उस पर क्रोध का भूत वार नहीं कर सकता।