मुरली सार:- “मीठे बच्चे - अभी तुम्हारी सब आशायें पूरी होती है, पेट भर जाता है,
प्रश्न:- अभी तुम बच्चे भक्ति तो नहीं करते हो लेकिन भक्त जरूर हो - कैसे?
उत्तर:- जब तक देह-अभिमान है तब तक भक्त हो। तुम ज्ञानी बनने के लिए पढ़ रहे
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. ऐसा तृप्त और विशालबुद्धि बनना है जो किसी में भी आंख न डूबे। दिल में कोई
2. शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते खुशी का पारा सदा चढ़ा रहे। बाप और वर्सा याद रहे।
वरदान:- त्रिकालदर्शी बन दिव्य बुद्धि के वरदान को कार्य में लगाने वाले सफलता सम्पन्न भव
बापदादा ने हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान दिया है। दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप को,
स्लोगन:- सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करने वाले ही परमानन्द का अनुभव कर सकते हैं।
बाप आये हैं तुम्हें तृप्त आत्मा बनाने’’
प्रश्न:- अभी तुम बच्चे भक्ति तो नहीं करते हो लेकिन भक्त जरूर हो - कैसे?
उत्तर:- जब तक देह-अभिमान है तब तक भक्त हो। तुम ज्ञानी बनने के लिए पढ़ रहे
हो। जब इम्तहान पास करेंगे, कर्मातीत बन जायेंगे तब सम्पूर्ण ज्ञानी कहेंगे। फिर
पढ़ने की दरकार नहीं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. ऐसा तृप्त और विशालबुद्धि बनना है जो किसी में भी आंख न डूबे। दिल में कोई
भी आश न रहे क्योंकि यह सब विनाश होना है।
2. शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते खुशी का पारा सदा चढ़ा रहे। बाप और वर्सा याद रहे।
बुद्धि हद से निकल सदा बेहद में रहे।
वरदान:- त्रिकालदर्शी बन दिव्य बुद्धि के वरदान को कार्य में लगाने वाले सफलता सम्पन्न भव
बापदादा ने हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान दिया है। दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप को,
अपने आपको और तीनों कालों को स्पष्ट जान सकते हो। सर्वशक्तियों को धारण कर
सकते हो। दिव्य बुद्धि वाली आत्मा कोई भी संकल्प को कर्म वा वाणी में लाने के
पहले हर बोल वा कर्म के तीनों काल जानकर प्रैक्टिकल में आती है। उनके आगे
पास्ट और फ्युचर भी इतना स्पष्ट होता है जितना प्रेजन्ट स्पष्ट है। ऐसे दिव्य बुद्धि
वाले त्रिकालदर्शी होने के कारण सदा सफलता सम्पन्न बन जाते हैं।
स्लोगन:- सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करने वाले ही परमानन्द का अनुभव कर सकते हैं।