Saturday, October 4, 2014

Murli-(4/10/2014)-Hindi

04-10-14          प्रातः मुरली         ओम् शान्ति        “बापदादा”          मधुबन   “मीठे बच्चे - बाप की याद के साथ-साथ ज्ञान धन से सम्पन्न बनो, बुद्धि में सारा ज्ञान घूमता रहे तब अपार खुशी रहेगी, सृष्टि चक्र के ज्ञान से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे”                                 प्रश्न:-    किन बच्चों (मनुष्यों) की प्रीत बाप से नहीं हो सकती है? उत्तर:- जो रौरव नर्क में रहने वाले विकारों से प्रीत करते हैं, ऐसे मनुष्यों की प्रीत बाप से नहीं हो सकती । तुम बच्चों ने बाप को पहचाना है इसलिए तुम्हारी बाप से प्रीत है ।   प्रश्न:-    किसे सतयुग में आने का हुक्म ही नहीं है? उत्तर:- बाप को भी सतयुग में आना नहीं हैं तो वहाँ काल भी नहीं आ सकता है । जैसे रावण को सतयुग में आने का हुक्म नहीं, ऐसे बाबा कहते बच्चे मुझे भी सतयुग में आने का हुक्म नहीं । बाबा तो तुम्हें सुखधाम का लायक बनाकर घर चले जाते हैं, उन्हें भी लिमिट मिली हुई है ।   ओम् शान्ति | रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं । रूहानी बच्चे याद की यात्रा में बैठे हुए हो? अन्दर में यह ज्ञान हैं ना कि हम आत्मायें याद की यात्रा पर हैं । यात्रा अक्षर तो जरूर दिल में आना चाहिए । जैसे वह यात्रा करते हैं हरिद्वार, अमरनाथ जाने की । यात्रा पूरी की फिर लौट आते हैं । यहाँ फिर तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम जाते हैं शान्तिधाम । बाप ने आकर हाथ पकड़ा है । हाथ पकड़कर पार ले जाना होता है ना । कहते भी हैं हाथ पकड़ लो क्योंकि विषय सागर में पड़े ;हैं । अब तुम शिवबाबा को याद करो और घर को याद करो । अन्दर में यह आना चाहिए कि हम जा रहे हैं । इसमें मुख से कुछ बोलना भी नहीं है । अन्दर में सिर्फ याद रहे-बाबा आया हुआ है लेने लिए । याद की यात्रा पर जरूर रहना है । इस याद की यात्रा से ही तुम्हारे पाप कटने हैं, तब ही फिर उस मंजिल पर पहुँचेंगे । कितना क्लीयर बाप समझाते हैं । जैसे छोटे बच्चों को पढ़ाया जाता है ना । सदैव बुद्धि में हो कि हम बाबा को याद करते जा रहे हैं । बाप का काम ही है पावन बनाकर पावन दुनिया में ले जाना । बच्चों को ले जाते हैं । आत्मा को ही यात्रा करनी है । हम आत्माओं को बाप को याद कर घर जाना है । घर पहुँचेंगे फिर बाप का काम पूरा हुआ । बाप आते ही हैं पतित से पावन बनाकर घर ले जाने । पढ़ाई तो यहाँ ही पढ़ते हैं । भल घूमो फिरो, कोई भी काम-काज करो, बुद्धि में यह याद रहे । योग अक्षर में यात्रा सिद्ध नहीं होती है । योग सन्यासियों का है । वह तो सब हैं मनुष्यों की मत । आधाकल्प तुम मनुष्य मत पर चले हो । आधाकल्प दैवी मत पर चले थे । अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत । योग अक्षर नहीं कहो, याद की यात्रा कहो । आत्मा को यह यात्रा करनी है । वह होती है जिस्मानी यात्रा, शरीर के साथ जाते हैं । इसमें तो शरीर का काम ही नहीं । आत्मा जानती है, हम आत्माओं का वह स्वीट घर है । बाप हमको शिक्षा दे रहे हैं जिससे हम पावन बनेंगे । याद करते-करते तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है । यह है यात्रा । हम बाप की याद में बैठते हैं क्योंकि बाबा के पास ही घर जाना है । बाप आते ही हैं पावन बनाने । सो तो पावन दुनिया में जाना ही है । बाप पावन बनाते हैं फिर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तुम पावन दुनिया में जायेंगे । यह ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए । हम याद की यात्रा पर हैं । हम को इस मृत्युलोक में लौट कर नहीं आना है । बाबा का काम है हमको घर तक पहुँचाना । बाबा रास्ता बता देते हैं अभी तुम तो मृत्युलोक में हो फिर अमरलोक नई दुनिया में होंगे । बाप लायक बनाकर ही छोड़ते हैं । सुखधाम में बाप नहीं ले जायेंगे । इनकी लिमिट हो जाती है घर तक पहुँचाना । यह सारा ज्ञान बुद्धि में रहना चाहिए । सिर्फ बाप को याद नहीं करना चाहिए, साथ में ज्ञान भी चाहिए । ज्ञान से तुम धन कमाते हो ना । इस सृष्टि चक्र की नॉलेज से तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो । बुद्धि में यह ज्ञान है, इसमें चक्र लगाया है । फिर हम घर जायेंगे फिर नये सिर चक्र शुरू होगा । यह सारा ज्ञान बुद्धि में रहे तब खुशी का पारा चढ़े । बाप को भी याद करना है, शान्तिधाम, सुखधाम को भी याद करना है । 84 का चक्र अगर याद नहीं करेंगे तो चक्रवर्ती राजा कैसे बनेंगे । सिर्फ एक को याद करना तो सन्यासियों का काम है क्योंकि वह इनको जानते नहीं है । ब्रह्म को ही याद करते हैं । बाप तो अच्छी रीति बच्चों को समझाते हैं । याद करते-करते ही तुम्हारे पाप कट जाने हैं । पहले तो घर जाना है, यह है रूहानी यात्रा । गायन भी है चारों तरफ लगाये फेरे फिर भी हरदम दूर रहे अर्थात् बाप से दूर रहे । जिस बाप से बेहद का वर्सा मिलना है उनको तो जानते ही नहीं । कितने चक्र लगाये हैं । हर वर्ष भी कई यात्रा करते हैं । पैसे बहुत होते हैं तो यात्रा का शौक रहता है । यह तो तुम्हारी है रूहानी यात्रा । तुम्हारे लिए नई दुनिया बन जायेगी फिर तो नई दुनिया में ही आने वाले हो, जिसको अमरलोक कहा जाता हैं । वहाँ काल होता नहीं जो किसको ले जाये । काल को हुक्म ही नहीं हैं नई दुनिया में आने का । रावण की तो यह पुरानी दुनिया है ना । तुम बुलाते भी यहाँ हो । बाप कहते हैं मैं पुरानी दुनिया में पुराने शरीर में आता हूँ । मुझे भी नई दुनिया में आने का हुक्म नहीं । मैं तो पतितों को ही पावन बनाने आता हूँ । तुम पावन बन फिर औरों को भी पावन बनाते हो । सन्यासी तो भाग जाते हैं । एकदम गुम हो जाते हैं । पता ही नहीं पड़ता है, कहाँ चला गया क्योंकि वह ड्रेस ही बदल लेते हैं । जैसे एक्टर्स रूप बदलते हैं । कभी मेल से फीमेल बन जाते हैं, कभी फीमेल से मेल बन जाते हैं । यह भी रूप बदलते हैं । सतयुग में थोड़े ही ऐसी बातें होंगी । बाप कहते हैं हम आते हैं नई दुनिया बनाने । आधाकल्प तुम बच्चे राज्य करते हो फिर ड्रामा प्लैन अनुसार द्वापर शुरू होता है, देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं, उन्हों के बहुत गन्दे चित्र भी जगन्नाथपुरी में हैं । जगन्नाथ का मन्दिर है । यूँ तो उनकी राजधानी थी जो खुद विश्व के मालिक थे । वह फिर मन्दिर में जाकर बन्द हुआ, उनको काला दिखाते हैं । इस जगत नाथ के मन्दिर पर तुम बहुत समझा सकते हो । और कोई इनका अर्थ समझा नहीं सकते । देवता ही पूज्य से पुजारी बनते हैं । वह लोग तो हर बात में भगवान के लिए कह देते आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । आप ही सुख देते हो, आप ही दुःख देते हो । बाप कहते हैं मैं तो किसको दु:ख देता ही नहीं हूँ । यह तो समझ की बात है । बच्चा जन्मा तो खुशी होगी, बच्चा मरा तो रोने लग पड़ेंगे । कहेंगे भगवान ने दुःख दिया । अरे, यह अल्पकाल का सुख-दुःख तुमको रावणराज्य में ही मिलता है । मेरे राज्य में दुःख की बात नहीं होती । सतयुग को कहा जाता है अमरलोक । इनका नाम ही है मृत्युलोक । अकाले मर पड़ते हैं । वहाँ तो बहुत खुशियाँ मनाते हैं, आयु भी बड़ी रहती है । बड़ी में बड़ी आयु 150 वर्ष की होती है । यहाँ भी कभी-कभी ऐसे कोई की होती है परन्तु यहाँ तो स्वर्ग नहीं है ना । कोई शरीर को बहुत सम्भाल से रखते हैं तो आयु बड़ी भी हो जाती है फिर बच्चे भी कितने हो जाते है । परिवार बढ़ता जाता है, वृद्धि जल्दी होती है । जैसे झाड़ से टाल-टालियां निकलती हैं-50 टालियां और उनसे और 50 निकलेंगी, कितना वृद्धि को पाते हैं । यहाँ भी ऐसे हैं इसलिए इनका मिसाल बड़ के झाड़ से देते हैं । सारा झाड़ खडा है, फाउण्डेशन है नहीं । यहाँ भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं । कोई को पता ही नहीं देवतायें कब थे, वह तो लाखों वर्ष कह देते हैं । आगे तुम कभी ख्याल भी नहीं करते थे । बाप ही आकर यह सब बातें समझाते हैं । तुम अभी बाप को भी जान गये हो और सारे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, ड्यूरेशन आदि सबको जान गये हो । नई दुनिया से पुरानी, पुरानी से नई कैसे बनती हैं, यह कोई नहीं जानते । अभी तुम बच्चे याद की यात्रा में बैठते हो । यह यात्रा तो तुम्हारी नित्य चलनी है । घूमो फिरो परन्तु इस याद की यात्रा में रहो । यह ह रूहानी यात्रा । तुम जानते हो भक्ति मार्ग में हम भी उन यात्राओं पर जाते थे । बहुत बार यात्रा की होगी जो पक्के भक्त होंगे । बाबा ने समझाया है एक शिव की भक्ति करना, यह है अव्यभिचारी भक्ति । फिर देवताओं की होती है, फिर 5 तत्वों की भक्ति करते हैं । देवताओं की भक्ति फिर भी अच्छी है क्योंकि उन्हों का शरीर फिर भी सतोप्रधान है, मनुष्यों का शरीर तो पतित है ना । वह तो पावन हैं फिर द्वापर से लेकर सब पतित बन पड़े हैं । नीचे गिरते आते हैं । सीढ़ी का चित्र तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है समझाने का । जिन की भी कहानी बताते हैं ना । यह सब दृष्टान्त आदि इस समय के ही हैं । सब तुम्हारे ऊपर ही बने हुए हैं । भ्रमरी का मिसाल भी तुम्हारा है जो कीड़ों को आप समान ब्राह्मण बनाते हो । यहाँ के ही सब दृष्टान्त हैं । तुम बच्चे पहले जिस्मानी यात्रा करते थे । अभी फिर बाप द्वारा रूहानी यात्रा सीखते हो । यह तो पढ़ाई है ना । भक्ति में देखो क्या-क्या करते हैं । सबके आगे माथा टेकते रहते हैं, एक के भी आक्यूपेशन को नहीं जानते । हिसाब किया जाता है ना । सबसे जास्ती जन्म कौन लेते हैं फिर कम होते जाते हैं । यह ज्ञान भी अभी तुमको मिलता है । तुम समझते हो बरोबर स्वर्ग था । भारतवासी तो इतने पत्थर बुद्धि बने हैं, उनसे पूछो स्वर्ग कब था तो लाखों वर्ष कह देंगे । अभी तुम बच्चे जानते हो हम विश्व के मालिक थे, कितने सुखी थे अब फिर हमको बेगर टू प्रिन्स बनना है । दुनिया नई से पुरानी होती है ना । तो बाप कहते हैं - मेहनत करो । यह भी जानते हैं माया घड़ी-घड़ी भुला देती है । बाप समझाते हैं बुद्धि में सदैव यह याद रखो हम जा रहे हैं, हमारा इस पुरानी दुनिया से लंगर उठा हुआ है । नईया उस पार जानी है । गाते हैं ना नईया हमारी पार ले जाओ । कब पार जानी है, वह जानते नहीं हैं । तो मुख्य है याद की यात्रा । बाप के साथ वर्सा भी याद आना चाहिए । बच्चे बालिग होते हैं तो बाप का वर्सा ही बुद्धि में रहता है । तुम तो बड़े हो ही । आत्मा झट जान लेती है, यह बात तो बरोबर है । बेहद के बाप का वर्सा है ही स्वर्ग । बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं तो बाप की श्रीमत पर चलना पड़े । बाप कहते हैं पवित्र जरूर बनना है । पवित्रता के कारण ही झगड़े होते है । वह तो बिल्कुल ही जैसे रौरव नर्क में पड़े हैं । और ही जास्ती विकारों में गिरने लग पड़ते हैं इसलिए बाप से प्रीत रख नहीं सकते हैं । विनाश काले विपरीत बुद्धि है ना । बाप आते ही हैं प्रीत बुद्धि बनाने । बहुत हैं जिनकी रिंचक भी प्रीत बुद्धि नहीं हैं । कभी बाप को याद भी नहीं करते हैं । शिवबाबा को जानते ही नहीं हैं, मानते ही नहीं हैं । माया का पूरा ग्रहण लगा हुआ है । याद की यात्रा बिल्कुल ही नहीं । बाप मेहनत तो कराते हैं, यह भी जानते हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी यहाँ स्थापन हो रही है । सतयुग-त्रेता में कोई भी धर्म स्थापन होते नहीं । राम कोई धर्म स्थापन नहीं करते । यह तो स्थापना करने वाले बाप द्वारा यह बनते हैं । और धर्म स्थापक और बाप के धर्म स्थापना में रात-दिन का फर्क है । बाप आते ही हैं संगम पर जब कि दुनिया को बदलना है । बाप कहते हैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ? उन्होंने फिर युगे-युगे अक्षर रांग लिख दिया है । आधाकल्प भक्तिमार्ग भी चलना ही है । तो बाप कहते हैं बच्चे इन बातों को भूलो मत । यह कहते हैं बाबा हम आपको भूल जाते हैं । अरे, बाप को तो जानवर भी नहीं भूलते हैं । तुम क्यों भूलते हो? अपने को आत्मा नहीं समझते हो! देह- अभिमानी बनने से ही तुम बाप को भूलते हो । अब जैसे बाप समझाते हैं, वैसे तुम बच्चों को भी टेव (आदत) रखनी चाहिए । भभके से बात करनी चाहिए । ऐसे नहीं, बड़े आदमी के आगे तुम फंक हो जाओ । तुम कुमारियाँ ही बड़े-बड़े विद्वान, पण्डितों के आगे जाती हो तो तुम्हें निडर हो समझाना है । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमोर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।   धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. बुद्धि में सदैव याद रहे कि हम जा रहे हैं, हमारी नईया का लंगर इस पुरानी दुनिया से उठ चुका है । हम हैं रूहानी यात्रा पर । यही यात्रा करनी और करानी है ।   2. किसी भी बड़े आदमी के सामने निर्भयता (भभके) से बात करनी है, फंक नहीं होना है । देही-अभिमानी बनकर समझाने की आदत डालनी है ।   वरदान:- अल्पकाल के सहारे के किनारे को छोड़ एक बाप को सहारा बनाने वाले यथार्थ पुरुषार्थी भव !     पुरुषार्थ का अर्थ यह नहीं है कि एक बार की गलती बार-बार करते रहो और पुरुषार्थ को अपना सहारा बना लो । यथार्थ पुरुषार्थी अर्थात् पुरुष बन रथ द्वारा कार्य कराने वाले । अभी अल्पकाल के सहारे के किनारे छोड़ दो । कई बच्चे बाप के बजाए हद के किनारों को सहारा बना लेते हैं । चाहे अपने स्वभाव- संस्कारों को, चाहे परिस्थितियों को. .यह सब अल्पकाल के सहारे दिखावा-मात्र, धोखेबाज हैं । एक बाप का सहारा ही छत्रछाया है ।   स्लोगन:-  नॉलेजफुल वह है जो माया को दूर से ही पहचान कर स्वयं को समर्थ बना ले ।      ओम् शान्ति |