Thursday, December 18, 2014

Murli-18/12/2014-Hindi

18-12-14 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन “मीठे बच्चे - बाप का मददगार बन इस आइरन एजड पहाड़ को गोल्डन एजड बनाना है, पुरूषार्थ कर नई दुनिया के लिए फर्स्टक्सास सीट रिजर्व करानी है” प्रश्न:-    बाप की फर्ज़- अदाई क्या है? कौन- सा फर्ज़ पूरा करने के लिए संगम पर बाप को आना पड़ता है? उत्तर:- बीमार और दु :खी बच्चों को सुखी बनाना, माया के फंदे से निकाल घनेरे सुख देना-यह बाप की फर्ज़- अदाई है, जो संगम पर ही बाप पूरी करते हैं । बाबा कहते-मैं आया हूँ तुम सबका मर्ज मिटाने, सब पर कृपा करने । अब पुरूषार्थ कर 21 जन्मों के लिए अपनी ऊंची तकदीर बना लो । गीत:- भोलेनाथ से निराला....... ओम् शान्ति | भोलानाथ शिव भगवानुवाच-ब्रह्मा मुख कमल से बाप कहते हैं-यह वैराइटी भिन्न-भिन्न धर्मों का मनुष्य सृष्टि झाड़ है ना । इस कल्प वृक्ष अथवा सृष्टि के आदि-मध्य- अन्त का राज़ बच्चों को समझा रहा हूँ । गीत में भी इनकी महिमा है । शिवबाबा का जन्म यहाँ है, बाप कहते हैं मैं आया हूँ भारत में । मनुष्य यह नहीं जानते कि शिवबाबा कब पधारे थे? क्योंकि गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है । द्वापर की तो बात ही नहीं । बाप समझाते हैं-बच्चे, 5 हज़ार वर्ष पहले भी मैंने आकर के यह ज्ञान दिया था । इस झाड़ से सभी को मालूम पड़ जाता है । झाड़ को अच्छी रीति देखो । सतयुग में बरोबर देवी-देवताओं का राज्य था, त्रेता में राम-सीता का है । बाबा आदि-मध्य- अन्त का राज़ बतलाते हैं । बच्चे पूछते हैं-बाबा, हम माया के फंदे में कब फँसे? बाबा कहते हैं द्वापर से । नम्बरवार फिर दूसरे धर्म आते हैं । तो हिसाब लगाने से समझ सकते हैं कि इस दुनिया में हम फिर से कब आयेंगे? शिवबाबा कहते हैं मैं 5 हज़ार वर्ष बाद आया हूँ, संगम पर अपना फर्ज़ निभाने । सभी जो भी मनुष्य मात्र हैं, सभी दु :खी हैं, उनमें भी खास भारतवासी । ड्रामा अनुसार भारत को ही मैं सुखी बनाता हूँ । बाप का फर्ज़ होता है बच्चे बीमार पड़ें तो उनकी दवा दर्मल करना । यह है बहुत बड़ी बीमारी । सभी बीमारियों का मूल ये 5 विकार हैं । बच्चे पूछते हैं यह कब से शुरू हुए? द्वापर से । रावण की बात समझानी है । रावण को कोई देखा नहीं जाता । बुद्धि से समझा जाता है । बाप को भी बुद्धि से जाना जाता है । आत्मा मन-बुद्धि सहित है । आत्मा जानती है कि हमारा बाप परमात्मा है । दु :ख-सुख, लेप-छेप में आत्मा आती है । जब शरीर है तो आत्मा को दु :ख होता है । ऐसे नहीं कहते कि मुझ परमात्मा को दु :खी मत करो | बाप भी समझाते हैं कि मेरा भी पार्ट है, कल्प-कल्प संगम पर आकर मैं पार्ट बजाता हूँ । जिन बच्चों को मैंने सुख में भेजा था, वह दु :खी बन पड़े हैं इसलिए फिर ड्रामा अनुसार मुझे आना पड़ता है । बाकी कच्छ- मच्छ अवतार यह बातें हैं नहीं । कहते हैं परशुराम ने कुल्हाड़ा ले क्षत्रियों को मारा । यह सब हैं दन्त कथायें । तो अब बाप समझाते हैं मुझे याद करो । यह है जगत अम्बा और जगत पिता । मदर और फादर कन्ट्री कहते हैं ना । भारतवासी याद भी करते हैं-तुम मात- पिता.... तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे तो बरोबर मिल रहे हैं । फिर जो जितना पुरूषार्थ करेंगे । जैसे बाइसकोप में जाते है, फर्स्टक्लास का रिजर्वेशन कराते हैं ना | बाप भी कहते हैं चाहे सूर्यवंशी, चाहे चन्द्रवंशी में सीट रिजर्व कराओ, जितना जो पुरूषार्थ करे उतना पद पा सकते हैं । तो सब मर्ज मिटाने बाप आये हैं । रावण ने सबको बहुत दु :ख दिया है । कोई भी मनुष्य, मनुष्य की गति-सद्गति कर न सके । यह है ही कलियुग का अन्त । गुरू लोग शरीर छोड़ते हैं फिर यहाँ ही पुनर्जन्म लेते हैं । तो फिर वह ओरों की क्या सद्गति करेंगे! क्या इतने सभी अनेक गुरू मिलकर पतित सृष्टि को पावन बनायेंगे? गोवर्धन पर्वत कहते हैं ना । यह मातायें इस आइरन एजड पहाड़ को गोल्डन एजड बनाती हैं । गोवर्धन की फिर पूजा भी करते हैं, वह है तत्व पूजा । सन्यासी भी ब्रह्म अथवा तत्व को याद करते हैं । समझते हैं वही परमात्मा है, ब्रह्म भगवान है । बाप कहते हैं यह तो भ्रम है । ब्रह्माण्ड में तो आत्मायें अण्डे मिसल रहती हैं, निराकारी झाड़ भी दिखाया गया है । हर एक का अपना- अपना सेक्सन है । इस झाड़ का फाउन्डेशन है- भारत का सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी घराना । फिर वृद्धि होती है । मुख्य है 4 धर्म । तो हिसाब करना चाहिए-कौन-कौन से धर्म कब आते हैं? जैसे गुरूनानक 500 वर्ष पहले आये । ऐसे तो नहीं सिक्ख लोग कोई 84 जन्म का पार्ट बजाते हैं । बाप कहते हैं 84 जन्म सिर्फ तुम आलराउन्डर ब्राह्मणों के हैं । बाबा ने समझाया है कि तुम्हारा ही आलराउन्ड पार्ट है । ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तुम बनते हो । जो पहले देवी-देवता बनते हैं वही सारा चक्र लगाते हैं । बाप कहते हैं तुमने वेद-शास्त्र तो बहुत सुने । अभी यह सुनो और जज करो कि शास्त्र राइट हैं या गुरू लोग राइट हैं या जो बाप सुनाते हैं वह राइट है? बाप को कहते ही हैं टुथ । मैं सच बतलाता हूँ जिससे सतयुग बन जाता है और द्वापर से लेकर तुम झूठ सुनते आये हो तो उससे नर्क बन पड़ा है । बाप कहते हैं-मैं तुम्हारा गुलाम हूँ, भक्ति मार्ग में तुम गाते आये हो-मैं गुलाम, मैं गुलाम तेरा... अभी मैं तुम बच्चों की सेवा में आया हूँ । बाप को निराकारी, निरहंकारी गाया जाता है । तो बाप कहते हैं मेरा फर्ज़ है तुम बच्चों को सदा सुखी बनाना । गीत में भी है अगम-निगम का भेद खोले.... बाकी डमरू आदि बजाने की कोई बात नहीं है । यह तो आदि- मध्य- अन्त का सारा समाचार सुनाते हैं । बाबा कहते हैं तुम सभी बच्चे एक्टर्स हो, मैं इस समय करनकरावनहार हूँ । मैं इनसे (ब्रह्मा से) स्थापना करवाता हूँ । बाकी गीता में जो कुछ लिखा हुआ है, वह तो है नहीं । अभी तो प्रैक्टिकल बात है ना । बच्चों को यह सहज ज्ञान और सहज योग सिखलाता हूँ, योग लगवाता हूँ । कहा है ना योग लगवाने वाले, झोली भरने वाले, मर्ज मिटाने वाले । गीता का भी पूरा अर्थ समझाते हैं । योग सिखलाता हूँ और सिखलवाता भी हूँ । बच्चे योग सीखकर फिर ओरों को सिखलाते हैं ना । कहते हैं योग से हमारी ज्योत जगाने वाले... ऐसे गीत भी कोई घर में बैठकर सुने तो सारा ही ज्ञान बुद्धि में चक्र लगायेगा । बाप की याद से वर्से का भी नशा चढ़ेगा । सिर्फ परमात्मा वा भगवान कहने से मुख मीठा नहीं होता । बाबा माना ही वर्सा । अब तुम बच्चे बाबा से आदि-मध्य- अन्त का ज्ञान सुनकर फिर ओरों को सुनाते हो, इसे ही शंखध्वनि कहा जाता है । तुमको कोई पुस्तक आदि हाथ में नहीं है । बच्चों को सिर्फ धारणा करनी होती है । तुम हो सच्चे रूहानी ब्राह्मण, रूहानी बाप के बच्चे । सच्ची गीता से भारत स्वर्ग बनता है । वह तो सिर्फ कथायें बैठ बनाई हैं । तुम सब पार्वतियाँ हो, तुमको यह अमरकथा सुना रहा हूँ । तुम सब द्रोपदियाँ हो । वहाँ कोई नंगन होते नहीं । कहते हैं तब बच्चे कैसे पैदा होंगे? अरे, हैं ही निर्विकारी तो विकार की बात कैसे हो सकती । तुम समझ नहीं सकेंगे कि योगबल से बच्चे कैसे पैदा होंगे! तुम आरग्यु करेंगे । परन्तु यह तो शास्त्रों की बातें हैं ना । वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया । यह है विकारी दुनिया । मैं जानता हूँ ड्रामा अनुसार माया फिर तुमको दु .खी करेगी । मैं कल्प-कल्प अपना फर्ज़ पालन करने आता हूँ । जानते हैं कल्प पहले वाले सिकीलधे ही आकर अपना वर्सा लेंगे । आसार भी दिखाते हैं । यह वही महाभारत लड़ाई है । तुम्हें फिर से देवी-देवता अथवा स्वर्ग का मालिक बनने का पुरूषार्थ करना है । इसमें स्थूल लडाई की कोई बात नहीं है । न असुरोँ व देवताओं की लड़ाई ही हुई है । वहाँ तो माया ही नहीं जो लड़ाये । आधाकल्प न कोई लड़ाई, न कोई भी बीमारी, न दु :ख- अशान्ति । अरे, वहाँ तो सदैव सुख, बहार ही बहार रहती है । हास्पिटल होती नहीं, बाकी स्कूल में पढ़ना तो होता ही है । अब तुम हर एक यहाँ से वर्सा ले जाते हो । मनुष्य पढ़ाई से अपने पैर पर खड़े हो जाते हैं । इस पर कहानी भी है-कोई ने पूछा तुम किसका खाती हो? तो कहा हम अपनी तकदीर का खाती हैं | वह होती है हद की तकदीर । अभी तुम अपनी बेहद की तकदीर बनाते हो जो 21 जन्म फिर अपना ही राज्य भाग्य भोगते हो । यह है बेहद के सुख का वर्सा, अब तुम बच्चे कन्ट्रास्ट को अच्छी रीति जानते हो, भारत कितना सुखी था । अब क्या हाल है! जिन्होंने कल्प पहले राज्य- भाग्य लिया होगा वही अब लेंगे । ऐसे भी नहीं कि जो ड्रामा में होगा वो मिलेगा, फिर तो भूख मर जायेंगे । यह ड्रामा का राज़ पूरा समझना है । शास्त्रों में कोई ने कितनी आयु, कोई ने कितनी लिख दी है । अनेकानेक मत-मतान्तर हैं । कोई फिर कहते हैं हम तो सदा सुखी हैं ही । अरे, तुम कभी बीमार नहीं होते हो? वह तो कहते हैं रोग आदि तो शरीर को होता है, आत्मा निर्लेप है । अरे, चोट आदि लगती है तो दु :ख आत्मा को होता है ना-यह बड़ी समझने की बातें हैं । यह स्कूल है, एक ही टीचर पढ़ते हैं । नॉलेज एक ही है । एम ऑबजेक्ट एक ही है, नर से नारायण बनने की । जो नापास होंगे वह चन्द्रवंशी में चले जायेंगे । जब देवतायें थे तो क्षत्रिय नहीं, जब क्षत्रिय थे तो वैश्य नहीं, जब वैश्य थे तो शूद्र नहीं । यह सब समझने की बातें हैं । माताओं के लिए भी अति सहज है । एक ही इप्तहान है । ऐसे भी मत समझो कि देरी से आने वाले कैसे पढ़ेंगे । लेकिन अभी तो नये तीखे जा रहे हैं । प्रैक्टिकल में है । बाकी माया रावण का कोई रूप नहीं, कहेंगे इनमें काम का भूत है, बाकी रावण का कोई बुत वा शरीर तो है नहीं । अच्छा, सभी बातों का सैक्रीन है मन्मनाभव । कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे । बाप गाइड बनकर आते हैं । बाबा कहते-बच्चे, मैं तो सन्मुख तुम बच्चों को पढ़ा रहा हूँ । कल्प-कल्प अपनी फर्ज़- अदाई पालन करता हूँ । पारलौकिक बाप कहते हैं मैं अपना फर्ज़ बजाने आया हूँ-तुम बच्चों की मदद से । मदद देंगे तब तो तुम भी पद पायेंगे । मैं कितना बड़ा बाप हूँ । कितना बड़ा यज्ञ रचा है । ब्रह्मा की मुख वंशावली तुम सभी ब्राह्मण-ब्राह्मणियां भाई-बहन हो । जब भाई-बहिन बनें तो स्त्री-पुरूष की दृष्टि बदल जाए । बाप कहते हैं इस ब्राह्मण कुल को कलंकित नहीं करना, पवित्र रहने की युक्तियां हैं । मनुष्य कहते हैं यह कैसे होगा? ऐसे हो नहीं सकता, इकट्ठे रहें और आग न लगे! बाबा कहते हैं बीच में ज्ञान तलवार होने से कभी आग नहीं लग सकती, परन्तु जबकि दोनों मन्मनाभव रहें, शिवबाबा को याद करते रहें, अपने को ब्राह्मण समझें । मनुष्य तो इन बातों को नहीं समझने कारण हंगामा मचाते हैं, यह गालियाँ भी खानी पड़ती हैं । कृष्ण को थोड़ेही कोई गाली दे सकते । कृष्ण ऐसे आ जाए तो विलायत आदि से एकदम एरोप्लेन में भाग आयें, भीड़ मच जाए । भारत में पता नहीं क्या हो जाए । अच्छा, आज भोग है - यह है पियरघर और वह है ससुरघर । संगम पर मुलाकात होती है । कोई-कोई इनको जादू समझते हैं । बाबा ने समझाया है कि यह साक्षात्कार क्या है? भक्ति मार्ग में कैसे साक्षात्कार होते हैं, इनमें संशयबुद्धि नहीं होना है । यह रस्म-रिवाज है । शिवबाबा का भण्डारा है तो उनको याद कर भोग लगाना चाहिए । योग में रहना तो अच्छा ही है । बाबा की याद रहेगी । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते । धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. स्वयं को ब्रह्मा मुख वंशावली समझकर पक्का पवित्र ब्राह्मण बनना है । कभी अपने इस ब्राह्मण कुल को कलंकित नहीं करना है । 2. बाप समान निराकारी, निरहंकारी बन अपनी फर्ज़- अदाई पूरी करनी है । रूहानी सेवा पर तत्पर रहना है । वरदान:- प्रत्यक्षफल द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले निःस्वार्थ सेवाधारी भव ! सतयुग में संगम के कर्म का फल मिलेगा लेकिन यहाँ बाप का बनने से प्रत्यक्ष फल वर्से के रूप में मिलता है । सेवा की और सेवा करने के साथ-साथ खुशी मिली । जो याद में रहकर, निःस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं उन्हें सेवा का प्रत्यक्ष फल अवश्य मिलता है । प्रत्यक्षफल ही ताजा फल है जो एवरहेल्दी बना देता है । योगयुक्त, यथार्थ सेवा का फल है खुशी, अतीन्द्रिय सुख और डबल लाइट की अनुभूति । स्लोगन:-  विशेष आत्मा वह है जो अपनी चलन द्वारा रूहानी रायॅल्टी की झलक और फलक का अनुभव कराये । ओम् शान्ति |