Friday, December 19, 2014

Murli-20/12/2014-Hindi

20-12-14   प्रातः मुरली ओम् शान्ति   “बापदादा”   मधुबन   “मीठे बच्चे - यह पढ़ाई जो बाप पढ़ाते हैं, इसमें अथाह कमाई है, इसलिए पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते रहो, लिंक कभी न टूटे”    प्रश्न:-    जो विनाशकाले विपरीत बुद्धि है, उन्हें तुम्हारी किस बात पर हँसी आती है? उत्तर:- तुम जब कहते हो अभी विनाश काल नजदीक है, तो उन्हें हँसी आती हैं । तुम जानते हो बाप यहॉ बैठे तो नहीं रहेंगे, बाप की कटी है पावन बनाना । जब पावन बन जायेंगे तो यह पुरानी दुनिया विनाश होगी, नई आयेगी । यह लड़ाई है ही विनाश के लिए । तुम देवता बनते हो तो इस कलियुगी छी-छी सृष्टि पर आ नहीं सकते ।   ओम् शान्ति | रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं । बच्चे समझते हैं हम बहुत बेसमझ बन गये थे । माया रावण ने बेसमझ बना दिया था । यह भी बच्चे समझते हैं कि बाप को जरूर आना ही है, जबकि नई सृष्टि स्थापन होनी है । तीन चित्र भी हैं - ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना, शंकर द्वारा विनाश क्योंकि करनकरावनहार तो बाप है ना । एक ही है जो करता है और कराता है । पहले किसका नाम आयेगा? जो करता है फिर जिस द्वारा कराते हैं । करनकरावनहार कहा जाता है ना । ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना कराते हैं । यह भी बच्चे जानते हैं हमारी जो नई दुनिया है, जो हम स्थापन कर रहे हैं, इसका नाम ही है देवी-देवताओं की दुनिया । सतयुग में ही देवी-देवता होते हैं । किसी और को देवी-देवता नहीं कहा जाता । वहाँ मनुष्य होते नहीं । है ही एक देवी-देवता धर्म, दूसरा कोई धर्म ही नहीं । अभी तुम बच्चे स्मृति में आये हो कि बरोबर हम देवी-देवता थे, निशानियाँ भी हैं । इस्लामी, बौद्धी, क्रिस्चियन आदि सबकी अपनी- अपनी निशानी है । हमारा जब राज्य था तो और कोई नहीं था । अभी फिर और सभी धर्म हैं, हमारा देवता धर्म है नहीं । गीता में अक्षर बड़े अच्छे- अच्छे हैं परन्तु कोई समझ नहीं सकते । बाप कहते हैं विनाश काले विप्रीत बुद्धि और विनाश काले प्रीत बुद्धि । विनाश तो इस समय ही होना है । बाप आते भी हैं संगमयुग पर, जबकि चेंज होती है । बाप तुम बच्चों को बदले में सब कुछ नया देते हैं । वह सोनार भी है, धोबी भी है, बड़ा व्यापारी भी है । बिरला ही कोई बाप से व्यापार करे । इस व्यापार में तो अथाह फायदा है । पढ़ाई में फायदा बहुत होता है । महिमा भी की जाती है कि पढ़ाई कमाई है, वह भी जन्म-जन्मान्तर के लिए कमाई है । तो ऐसी पढ़ाई अच्छी रीति पढ़नी चाहिए ना और पढ़ाता भी बहुत सहज हूँ । सिर्फ एक हफ्ता समझकर फिर भल कहाँ भी चले जाओ, तुम्हारे पास पढ़ाई आती रहेगी अर्थात् मुरली मिलती रहेगी तो फिर कभी लिंक नहीं टूटेगी । यह है आत्माओं की परमात्मा के साथ लिंक । गीता में भी यह अक्षर है विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती, प्रीत बुद्धि विजयन्ती । तुम जानते हो इस समय मनुष्य एक-दो को काटते-मारते रहते हैं । इन जैसा क्रोध वा विकार और कोई में होता नहीं । यह भी गायन है कि द्रोपदी ने पुकारा । बाप ने समझाया है तुम सब द्रोपदियाँ हो । भगवानुवाच, बाप कहते हैं-बच्चे, अब विकार में नहीं जाओ । मैं तुमको स्वर्ग में ले चलता हूँ, तुम सिर्फ मुझ बाप को याद करो । अब विनाशकाल है ना, किसकी भी सुनते नहीं, लड़ते ही रहते हैं । कितना उनको कहते हैं शान्त रहो, परन्तु शान्त रहते नहीं । अपने बच्चों आदि से बिछुड़कर लड़ाई के मैदान में जाते हैं । कितने मनुष्य मरते ही रहते हैं । मनुष्य की कोई वैल्यु नहीं । अगर वैल्यु है, महिमा है तो इन देवी-देवताओं की । अभी तुम यह बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो । तुम्हारी महिमा वास्तव में इन देवताओं से भी जास्ती है । तुमको अभी बाप पढ़ा रहे हैं । कितनी ऊँच पढ़ाई है । पढ़ने वाले बहुत जन्मों के अन्त में बिल्कुल ही तमोप्रधान है । मैं तो सदैव सतोप्रधान ही हूँ । बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों का ओबीडियंट सर्वेंट बनकर आया हूँ । विचार करो हम कितने छी-छी बन गये हैं । बाप ही हमको वाह-वाह बनाते हैं । भगवान बैठ मनुष्यों को पढ़ाकर कितना ऊंच बनाते हैं । बाप खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में तुम सबको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने आया हूँ । अभी तुमको पढ़ा रहा हूँ । बाप कहते हैं मैंने तुमको स्वर्गवासी बनाया फिर तुम नर्कवासी कैसे बने, किसने बनाया 7 गायन भी है विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती । प्रीत बुद्धि विजयन्ती । फिर जितना-जितना प्रीत बुद्धि रहेंगे अर्थात् बहुत याद करेंगे, उतना तुम्हारा ही फायदा हैं । लड़ाई का मैदान है ना । कोई भी यह नहीं जानते हैं कि गीता में कौन-सी युद्ध बताई है । उन्होंने तो फिर कौरवों और पाण्डवों की युद्ध दिखाई है । कौरव सम्प्रदाय, पाण्डव सम्प्रदाय भी है परन्तु युद्ध तो कोई है नहीं । पाण्डव उनको कहा जाता है जो बाप को जानते हैं । बाप से प्रीत बुद्धि है । कौरव उनको कहा जाता जो बाप से विप्रीत बुद्धि हैं । अक्षर तो बहुत अच्छे- अच्छे समझने लायक हैं । अभी हैं संगमयुग । तुम बच्चे जानते हो नई दुनिया की स्थापना हो रही है । बुद्धि से काम लेना है । अभी दुनिया कितनी बड़ी है । सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य होंगे । छोटा झाड़ होगा ना । वह झाड़ फिर बड़ा होता है । मनुष्य सृष्टि रूपी यह उल्टा झाड़ कैसे है, यह भी कोई समझते नहीं हैं । इनको कल्प वृक्ष कहा जाता है । वृक्ष का नॉलेज भी चाहिए ना? और वृक्षों का नॉलेज तो बहुत-बहुत इजी है, झट बता देंगे । इस वृक्ष का नॉलेज भी ऐसा इजी है परन्तु यह है ह्युमन वृक्ष । मनुष्यों को अपने वृक्ष का पता ही नहीं पड़ता है । कहते भी हैं गॉड इज क्रियेटर, तो जरूर चैतन्य है ना । बाप सत है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है । उनमें कौन-सा ज्ञान है, यह भी कोई नहीं समझते हैं । बाप ही बीज रूप, चैतन्य है । उनसे ही सारी रचना होती है । तो बाप बैठ समझाते हैं, मनुष्यों को अपने झाड़ का पता नहीं है, और झाड़ों को तो अच्छी रीति जानते हैं । झाड़ का बीज अगर चैतन्य होता तो बतलाता ना परन्तु वह तो है जड़ । तो अब तुम बच्चे ही रचता और रचना के राज़ को जानते हो । यह सत है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है । चैतन्य में तो बातचीत कर सकते हैं ना । मनुष्य का तन सबसे ऊँच अमूल्य गाया गया है । इनका मूल्य कथन नहीं कर सकते । बाप आकर आत्माओं को समझाते हैं । तुम रूप भी हो, बसन्त भी हो । बाप है ज्ञान का सागर । उनसे तुमको रत्न मिलते हैं । यह ज्ञान रत्न हैं, जिन रत्नों से वह रत्न भी तुमको ढेर मिल जाते हैं । लक्ष्मी-नारायण के पास देखो कितने रत्न हैं । हीरे-जवाहरों के महलों में रहते हैं । नाम ही है स्वर्ग, जिसके तुम मालिक बनने वाले हो । कोई गरीब को अचानक बड़ी लॉटरी मिलती है तो पागल हो जाते हैं ना । बाप भी कहते हैं तुमको विश्व की बादशाही मिलती है तो माया कितना आपोजीशन करती है । तुमको आगे चल पता पड़ेगा कि माया कितने अच्छे- अच्छे बच्चों को भी हप कर लेती है । एकदम खा लेती है । तुमने सर्प को देखा है-मेंढक को कैसे पकड़ता है, जैसे गज को ग्राह हप करते हैं । सर्प मेंढक को एकदम सारे का सारा हप कर लेता है । माया भी ऐसी है, बच्चों को जीते जी पकड़कर एकदम खत्म कर देती है जो फिर कभी बाप का नाम भी नहीं लेते हैं । योगबल की ताकत तुम्हारे में बहुत कम है । सारा मदार योगबल पर है । जैसे सर्प मेंढक को हप करता है, तुम बच्चे भी सारी बादशाही को हप करते हो । सारे विश्व की बादशाही तुम सेकण्ड में ले लेंगे । बाप कितना सहज युक्ति बताते हैं । कोई हथियार आदि नहीं । बाप ज्ञान-योग के अस्र-शस्त्र देते हैं । उन्होंने फिर स्थूल हथियार आदि दे दिये हैं । तुम बच्चे इस समय कहते हो-हम क्या से क्या बन गये थे! जो चाहे सो कहो, हम ऐसे थे जरूर । भल थे तो मनुष्य ही परन्तु गुण और अवगुण तो होते हैं ना । देवताओं में दैवीगुण हैं इसलिए उन्हों की महिमा गाते हैं- आप सर्वगुण सम्पन्न..... हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाही । इस समय सारी दुनिया ही निर्गुण हैं अर्थात् एक भी देवताई गुण नहीं है । बाप जो गुण सिखलाने वाला है, उनको ही नहीं जानते इसलिए कहा जाता विनाश काले विप्रीत बुद्धि । अब विनाश तो होना ही है संगमयुग पर । जबकि पुरानी दुनिया विनाश होती है और नई दुनिया स्थापन होती है । इनको कहा जाता है विनाश काल । यह है अन्तिम विनाश फिर आधाकल्प कोई लड़ाई आदि होती ही नहीं । मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है । विनाश काले विप्रीत बुद्धि है तो जरूर पुरानी दुनिया का विनाश होगा ना । इस पुरानी दुनिया में कितनी आपदायें हैं । मरते ही रहते हैं । बाप इस समय की हालत बतलाते हैं । फर्क तो बहुत है ना । आज भारत का यह हाल है, कल भारत क्या होगा? आज यह है, कल तुम कहाँ होंगे? तुम जानते हो पहले नई दुनिया कितनी छोटी थी । वहाँ तो महलों में कितने हीरे-जवाहर आदि होते हैं । भक्ति मार्ग में भी तुम्हारा मन्दिर कोई कम थोड़ेही होता है । सिर्फ कोई एक सोमनाथ का मन्दिर थोड़ेही होगा । एक कोई बनायेगा तो उनको देख और भी बनायेंगे । एक सोमनाथ मन्दिर से ही कितना लूटा है । फिर बैठ अपना यादगार बनाया है । तो दीवारों में पत्थर आदि लगाते हैं । इन पत्थरों की क्या वैल्यु होगी? इतने छोटे-से हीरे का भी कितना दाम है । बाबा जौहरी था, एक रत्ती का हीरा होता था, 90 रूपया रत्ती । अभी तो उसकी कीमत हजारों रूपया है । मिलते भी नहीं । बहुत वैल्यु बढ़ गई है । इस समय विलायत आदि तरफ धन बहुत है, परन्तु सतयुग के आगे यह कुछ भी नहीं है । अब बाप कहते हैं विनाश काले विप्रीत बुद्धि है । तुम कहते हो विनाश समीप है तो मनुष्य हँसते हैं । बाप कहते हैं मैं कितना समय बैठा रहूँगा, मुझे कोई यहाँ मजा आता है क्या? मैं तो न सुखी, न दु :खी होता हूँ । मेरे ऊपर ड्यूटी है पावन बनाने की । तुम यह थे, अब यह बन गये हो, फिर तुमको ऐसा ऊँच बनाता हूँ । तुम जानते हो हम फिर वह बनने वाले हैं । अब तुमको यह समझ आई है, हम इस दैवी घराने के भाती थे । राजाई थी । फिर ऐसे अपनी राजाई गँवाई । फिर और- और आने लगे । अब यह चक्र पूरा होता है । अभी तुम समझते हो लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं है । यह लड़ाई है ही विनाश की, उस तरफ तो बहुत आराम से मरेंगे । कोई तकलीफ नहीं होगी । हॉस्पिटल्स आदि ही नहीं होंगे । कौन बैठ सेवा करेंगे और रोयेंगे । वहाँ तो यह रस्म ही नहीं । उन्हों की मौत सहज होती है । यहाँ तो दुखी होकर मरते हैं क्योंकि तुमने सुख बहुत उठाया है तो दु :ख भी तुमको देखना है । खून की नदी यहाँ ही बहेंगी । वह समझते हैं यह लड़ाई फिर शान्त हो जायेगी परन्तु शान्त तो होनी नहीं है । मिरूआ मौत मलूका शिकार । तुम देवता बनते हो, फिर कलियुगी छी-छी सृष्टि पर तो तुम आ नहीं सकते । गीता में भी है भगवानुवाच, विनाश भी देखो, स्थापना देखो । साक्षात्कार हुआ ना! यह साक्षात्कार सब अन्त में होंगे - फलाने-फलाने यह बनते हैं फिर उस समय रोयेंगे, बहुत पछतायेंगे, सजा खायेंगे, नसीब कूटेंगे । लेकिन कर क्या सकेंगे? यह तो 21 जन्मों की लॉटरी है । स्मृति तो आती है ना । साक्षात्कार बिगर किसको सजा नहीं मिल सकती है । ट्रिब्युनल बैठती है ना । अच्छा!     मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।   धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. स्वयं में ज्ञान रत्न धारण कर रूप-बसन्त बनना है । ज्ञान रत्नों से विश्व के बादशाही की लॉटरी लेनी है ।  2. इस विनाश काल में बाप से प्रीत रख एक की ही याद में रहना है । ऐसा कोई कर्म नहीं करना हैं जो अन्त समय में पछताना पड़े या नसीब कूटना पड़े ।   वरदान:- सदा स्नेही बन उड़ती कला का वरदान प्राप्त करने वाले निश्चित विजयी, निश्चिंत भव !    स्नेही बच्चों को बापदादा द्वारा उड़ती कला का वरदान मिल जाता है । उड़ती कला द्वारा सेकण्ड में बापदादा के पास पहुच जाओ तो कैसे भी स्वरूप में आई हुई माया आपको छू नहीं सकेगी । परमात्म छत्रछाया के अन्दर माया की छाया भी नहीं आ सकती । स्नेह, मेहनत को मनोरंजन में परिवर्तन कर देता है । स्नेह हर कर्म में निश्चित विजयी स्थिति का अनुभव कराता है, स्नेही बच्चे हर समय निश्चिन्त रहते हैं ।   स्लोगन:-  नथिंग न्यू की स्मृति से सदा अचल रहो तो खुशी में नाचते रहेंगे ।      ओम् शान्ति |