Sunday, January 18, 2015
मुरली 19 जनवरी 2015
“मीठे बच्चे - योग, अग्नि के समान है, जिसमें तुम्हारे पाप जल जाते हैं, आत्मा सतोप्रधान बन जाती है इसलिए एक बाप की याद में (योग में) रहो”
प्रश्न:-
पुण्य आत्मा बनने वाले बच्चों को किस बात का बहुत-बहुत ध्यान रखना है?
उत्तर:-
पैसा दान किसे देना है, इस बात पर पूरा ध्यान रखना है । अगर किसको पैसा दिया और उसने जाकर शराब आदि पिया, बुरे कर्म किये तो उसका पाप तुम्हारे ऊपर आ जायेगा । तुम्हें पाप आत्माओं से अब लेन-देन नहीं करनी है । यहाँ तो तुम्हें पुण्य आत्मा बनना है ।
गीत:-
न वह हमसे जुदा होंगे..
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. अब मुसाफिरी पूरी हुई, वापस घर जाना है इसलिए इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रख बुद्धियोग बाप की याद में ऊपर लटकाना है ।
2. संगमयुग पर बाप ने जो यज्ञ रचा है, इस यज्ञ की सम्भाल करने के लिए सच्चा-सच्चा पवित्र ब्राह्मण बनना है । काम काज करते बाप की याद में रहना है ।
वरदान:-
वाह ड्रामा वाह की स्मृति से अनेकों की सेवा करने वाले सदा खुशनुम: भव !
इस ड्रामा की कोई भी सीन देखते हुए वाह ड्रामा वाह की स्मृति रहे तो कभी भी घबरायेंगे नहीं क्योंकि ड्रामा का ज्ञान मिला कि वर्तमान समय कल्याणकारी युग है, इसमें जो भी दृश्य सामने आता है उसमें कल्याण भरा हुआ है । वर्तमान में कल्याण दिखाई न भी दे लेकिन भविष्य में समाया हुआ कल्याण प्रत्यक्ष हो जायेगा-तो वाह ड्रामा वाह की स्मृति से सदा खुशनुम:रहेंगे, पुरूषार्थ में कभी भी उदासी नहीं आयेगी । स्वत: ही आप द्वारा अनेको की सेवा होती रहेगी ।
स्लोगन:-
शान्ति की शक्ति ही मन्सा सेवा का सहज साधन है । जहाँ शान्ति की शक्ति है वहाँ सन्तुष्टता है ।
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क
ब्राह्मणों की भाषा आपस ने अव्यक्त भाव की होनी चाहिए । किसी की सुनी हुई गलती को संकल्प में भी न तो स्वीकार करना है, न कराना है । संगठन में विशेष अव्यक्त अनुभवों की आपस में लेन-देन करनी है ।