Saturday, January 3, 2015

Murli-4/1/2015-Hindi

04-01-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त बापदादा” रिवाइज 16-01-79 मधुबन “तिलक, ताज और तख्तधारी बनने की युक्तियां” जैसे सूर्य के आगे बादल आने से सूर्य छिप जाता है ऐसे बार-बार माया के बादलों के कारण कई बच्चे ज्ञान सूर्य से किनारे हो सूर्य को पाने के लिए प्रयत्न करते रहते । कब सन्मुख कब किनारे, इसी खेल में लगे हुए हैं । साथ-साथ बच्चे नटखट होने के कारण बाप के याद की गोदी से निकल माया की धूल में देह- अभिमान की स्मृति रूपी मिट्टी में खेलते हैं । ज्ञान रत्नों से खेलने के बजाए मिट्टी में खेलते हैं । बाप बार-बार मिट्टी से किनारा कराते लेकिन नटखट संस्कारों के कारण फिर भी मैले बन जाते । कोई-कोई बच्चे अल्पकाल के सुखों के आकर्षणमय वस्तुओं की आकर्षण में आकर उन ही वस्तुओं में इतने बिजी हो जाते जो समय और अविनाशी प्राप्ति उतना समय भूल जाती है । स्वयं को ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हो - ज्ञान स्वरूप अर्थात् कहना, सोचना और करना समान हो, सदा समर्थ हो । ज्ञानी तू आत्मा का हर कर्म समर्थ बाप समान, संस्कार गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान हो । तो समर्थ स्टेज पर स्थित होने वाले यह व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते । सदा मिलन के खेल में बिजी रहते, बाप से मिलन मनाना और औरों को बाप समान बनाना । सदा संकल्प और सेकेण्ड के भी ट्रस्टी समझने वाले, 'एक बाप मेरा और नहीं कोई मेरा' ऐसे बेहद के समर्थ संकल्प वाले, सदा विश्व कल्याण के संकल्प में बिजी रहने वाले, बाप समान समर्थ संस्कार वाले, व्यर्थ को बाप के साथ से सदा के लिए विदाई देने वाले, ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को बाप की बार-बार बधाई हो ओम् शान्ति । वरदान:- बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाने वाले त्यागी वा श्रेष्ठ भाग्यशाली आत्मा भव ! जैसे भविष्य में विश्व महाराजन दाता होंगे । ऐसे अभी से दातापन के संस्कार इमर्ज करो । किसी से कोई सैलवेशन लेकरके फिर सैलवेशन दें-ऐसा संकल्प में भी न हो-इसे ही कहा जाता है बेगर टू प्रिन्स । स्वयं लेने की इच्छा वाले नहीं । इस अल्पकाल की इच्छा से बेगर । ऐसा बेगर ही सम्पन्न मूर्त है । जो अभी बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाते हैं उन्हें कहा जाता है सदा त्यागी वा श्रेष्ठ भाग्यशाली । त्याग से सदाकाल का भाग्य स्वत:बन जाता है । स्लोगन:- सदा हर्षित रहने के लिए साक्षीपन की सीट पर दृष्टा बनकर हर खेल देखो ।