Monday, January 5, 2015

Murli-6/1/2015-Hindi

मुरली 06 जनवरी 2015 “मीठे बच्चे - ज्ञान की धारणा के साथ-साथ सतयुगी राजाई के लिए याद और पवित्रता का बल भी जमा करो”    प्रश्न:-    अभी तुम बच्चों के पुरूषार्थ का क्या लक्ष्य होना चाहिए? उत्तर:- सदा खुशी में रहना, बहुत-बहुत मीठा बनना, सबको प्रेम से चलाना.... यही तुम्हारे पुरूषार्थ का लक्ष्य हो । इसी से तुम सर्वगुण सम्पन्न 16 कला समूर्ण बनेंगे । प्रश्न:-    जिनके कर्म श्रेष्ठ हैं, उनकी निशानी क्या होगी? उत्तर:- उनके द्वारा किसी को भी दु :ख नहीं पहुँचेगा । जैसे बाप दु :ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे श्रेष्ठ कर्म करने वाले भी दु :ख हर्ता सुख कर्ता होंगे । गीत:-    छोड़ भी दे आकाश सिंहासन  धारणा के लिए मुख्य सार:- 1. बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज ओर वर्से को स्मृति में रख सदैव हर्षित रहना । ज्ञान और योग है तो सर्विस में तत्पर रहना है ।  2. सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना है । इन देवताओं जैसा मीठा बनना है । अपार खुशी में रहना है । रूहानी टीचर बन ज्ञान का दान करना है ।   वरदान:- होपलेस में भी होप पैदा करने वाले सच्चे परोपकारी, सन्तुष्टमणी भव !    त्रिकालदर्शी बन हर आत्मा की कमजोरी को परखते हुए, उनकी कमजोरी को स्वयं में धारण करने या वर्णन करने के बजाए कमजोरी रूपी कांटे को कल्याणकारी स्वरूप से समाप्त कर देना, कांटे को फूल बना देना, स्वयं भी सन्तुष्टमणी के समान सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना, जिसके प्रति सब निराशा दिखायें, ऐसे व्यक्ति वा ऐसी स्थिति में सदा के लिए आशा के दीपक जगाना अर्थात् दिलशिकस्त को शक्तिवान बना देना-ऐसा श्रेष्ठ कर्तव्य चलता रहे तो परोपकारी, सन्तुष्टमणि का वरदान प्राप्त हो जायेगा ।   स्लोगन:-  परीक्षा के समय प्रतिज्ञा याद आये तब प्रत्यक्षता होगी ।      अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए देह, सम्बन्ध वा पदार्थ का कोई भी लगाव नीचे न लाये । जो वायदा है यह तन, मन, धन सब तेरा तो लगाव कैसे हो सकता! फरिश्ता बनने के लिए यह प्रैक्टिकल अभ्यास करो कि यह सब सेवा अर्थ है, अमानत है, मैं ट्रस्टी हूँ।ओम् शांति |