Thursday, March 12, 2015

मुरली 13 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - खुशी जैसी खुराक नहीं, तुम खुशी में चलते फिरते पैदल करते बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे” प्रश्न:- कोई भी कर्म विकर्म न बने उसकी युक्ति क्या है? उत्तर:- विकर्मों से बचने का साधन है श्रीमत। बाप की जो पहली श्रीमत है कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इस श्रीमत पर चलो तो तुम विकर्माजीत बन जायेंगे। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए रहमदिल बन पढ़ना और पढ़ाना है। कभी भी किसी आदत के वश हो अपना रजिस्टर खराब नहीं करना है। 2) मनुष्य से देवता बनने के लिए मुख्य है पवित्रता इसलिए कभी भी पतित बन अपनी बुद्धि को मलीन नहीं करना है। ऐसा कर्म न हो जो दिल अन्दर खाती रहे, पश्चाताप करना पड़े। वरदान:- आदि रत्न की स्मृति से अपने जीवन का मूल्य जानने वाले सदा समर्थ भव ! जैसे ब्रह्मा आदि देव है, ऐसे ब्रह्माकुमार, कुमारियां भी आदि रत्न हैं। आदि देव के बच्चे मास्टर आदि देव हैं। आदि रत्न समझने से ही अपने जीवन के मूल्य को जान सकेंगे क्योंकि आदि रत्न अर्थात् प्रभू के रत्न, ईश्वरीय रत्न- तो कितनी वैल्यु हो गई इसलिए सदा अपने को आदि देव के बच्चे मास्टर आदि देव, आदि रत्न समझकर हर कार्य करो तो समर्थ भव का वरदान मिल जायेगा। कुछ भी व्यर्थ जा नहीं सकता। स्लोगन:- ज्ञानी तू आत्मा वह है जो धोखा खाने से पहले परखकर स्वयं को बचा ले। ओम् शांति