Friday, March 13, 2015

मुरली 14 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों को सुख-चैन की दुनिया में ले चलने, चैन है ही शान्न्तिधाम और सुखधाम में” प्रश्न:- इस युद्ध के मैदान में माया सबसे पहला वार किस बात पर करती है? उत्तर:- निश्चय पर। चलते-चलते निश्चय तोड़ देती है इसलिए हार खा लेते हैं। यदि पक्का निश्चय रहे कि बाप जो सबका दु:ख हरकर सुख देने वाला है, वही हमें श्रीमत दे रहे हैं, आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुना रहे हैं, तो कभी माया से हार नहीं हो सकती। गीत:- इस पाप की दुनिया से.......... धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) नष्टोमोहा बन बाप को याद करना है। कुटुम्ब परिवार में रहते विश्व का मालिक बनने लिए मेहनत करनी है। अवगुणों को छोड़ते जाना है। 2) अपनी ऐसी चलन रखनी है जो सब देखकर फालो करें। कोई भी विकार अन्दर न रहे, यह जांच करनी है। वरदान:- रोब के अंश का भी त्याग करने वाले स्वमानधारी पुण्य आत्मा भव ! स्वमानधारी बच्चे सभी को मान देने वाले दाता होते हैं। दाता अर्थात् रहमदिल। उनमें कभी किसी भी आत्मा के प्रति संकल्प मात्र भी रोब नहीं रहता। यह ऐसा क्यों? ऐसा नहीं करना चाहिए, होना नहीं चाहिए, ज्ञान यह कहता है क्या...यह भी सूक्ष्म रोब का अंश है। लेकिन स्वमानधारी पुण्य आत्मायें गिरे हुए को उठायेंगी, सहयोगी बनायेंगी वह कभी यह संकल्प भी नहीं कर सकती कि यह तो अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं, करेंगे तो जरूर पायेंगे.. इन्हें गिरना ही चाहिए...। ऐसे संकल्प आप बच्चों के नहीं हो सकते। स्लोगन:- सन्तुष्टता और प्रसन्नता की विशेषता ही उड़ती कला का अनुभव कराती है। ओम् शांति ।