Tuesday, March 24, 2015

मुरली 25 मार्च 2015

“मीठे बच्चे-अब वापिस घर जाना है इसलिए देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल एक बाप को याद करो, यही है सच्ची गीता का सार” प्रश्न:- तुम बच्चों का सहज पुरूषार्थ क्या है? उत्तर:- बाप कहते हैं तुम बिल्कुल चुप रहो, चुप रहने से ही बाप का वर्सा ले लेंगे। बाप को याद करना है, सृष्टि चक्र को फिराना है। बाप की याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, आयु बड़ी होगी और चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे-यही है सहज पुरूषार्थ। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) यह एक-एक अविनाशी ज्ञान का रत्न लाखों-करोड़ों रूपयों का है, इन्हें दान कर कदम-कदम पर पदमों की कमाई जमा करनी है। आप समान बनाकर ऊंच पद पाना है। 2) विकर्मों से बचने के लिए देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करना है। मन्सा में कभी बुरे संकल्प आयें तो उन्हें रोकना है। अच्छे संकल्प चलाने हैं। कर्मेन्द्रियों से कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करना है। वरदान:- बाप द्वारा सफलता का तिलक प्राप्त करने वाले सदा आज्ञाकारी, दिलख्तनशीन भव! भाग्य विधाता बाप रोज अमृतवेले अपने आज्ञाकारी बच्चों को सफलता का तिलक लगाते हैं। आज्ञाकारी ब्राह्मण बच्चे कभी मेहनत वा मुश्किल शब्द मुख से तो क्या संकल्प में भी नहीं ला सकते हैं। वह सहजयोगी बन जाते हैं इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनो लेकिन सदा दिलतख्तनशीन बनो, रहमदिल बनो। अहम भाव और वहम भाव को समाप्त करो। स्लोगन:- विश्व परिवर्तन की डेट नहीं सोचो, स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो। ओम् शांति ।