Friday, March 27, 2015

मुरली 28 मार्च 2015

“मीठे बच्चे - तुम्हें इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर से जीते जी मरकर घर जाना है, इसलिए देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो” प्रश्न:- अच्छे-अच्छे पुरुषार्थी बच्चों की निशानी क्या होगी? उत्तर:- जो अच्छे पुरुषार्थी हैं वह सवेरे-सवेरे उठकर देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। वह एक बाप को याद करने का पुरूषार्थ करेंगे। उन्हें लक्ष्य रहता कि और कोई देहधारी याद न आये, निरन्तर बाप और 84 के चक्र की याद रहे। यह भी अहो सौभाग्य कहेंगे। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा से अपना सब हिसाब चुक्तू करना है। पावन बनने का पुरूषार्थ करना है। इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझना है। 2) इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी याद नहीं करना है। कर्मयोगी बनना है। सदा हार्षित रहने का अभ्यास करना है। कभी भी रोना नहीं है। वरदान:- प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहने वाले निरन्तर योगी भव! निरन्तर योगी बनने का सहज साधन है-प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना। पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप। जो आत्मिक रूप में स्थित रहता है वह सदा न्यारा और बाप का प्यारा बन जाता है। कुछ भी करेगा लेकिन यह महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है। तो प्रवृत्ति में रहते आत्मिक रूप में रहने से सब खेल की तरह सहज अनुभव होगा। बंधन नहीं लगेगा। सिर्फ स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति की एडीशन करो तो हाईजम्प लगा लेंगे। स्लोगन:- बुद्धि की महीनता अथवा आत्मा का हल्कापन ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। ओम् शांति ।