Thursday, April 2, 2015

मुरली 02 अप्रैल 2015

“मीठे बच्चे - तुम्हारा प्यार विनाशी शरीरों से नहीं होना चाहिए, एक विदेही से प्यार करो, देह को देखते हुए नहीं देखो” प्रश्न:- बुद्धि को स्वच्छ बनाने का पुरूषार्थ क्या है? स्वच्छ बुद्धि की निशानी क्या होगी? उत्तर:- देही-अभिमानी बनने से ही बुद्धि स्वच्छ बनती है। ऐसे देही-अभिमानी बच्चे अपने को आत्मा समझ एक बाप को प्यार करेंगे। बाप से ही सुनेंगे। लेकिन जो मूढ़मती हैं वह देह को प्यार करते हैं, देह को ही श्रृंगारते रहते हैं। धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) किसी भी देहधारी को अपना आधार नहीं बनाना है। शरीरों से प्रीत नहीं रखनी है। दिल की प्रीत एक बाप से रखनी है। किसी के नाम-रूप में नहीं फँसना है। 2) याद का चार्ट शौक से रखना है, इसमें सुस्त नहीं बनना है। चार्ट में देखना है-मेरी बुद्धि किसके तरफ जाती है? कितना टाइम वेस्ट करते हैं? सुख देने वाला बाप कितना समय याद रहता है? वरदान:- मस्तक द्वारा सन्तुष्टता के चमक की झलक दिखाने वाले साक्षात्कारमूर्त भव! जो सदा सन्तुष्ट रहते हैं, उनके मस्तक से सन्तुष्टता की झलक सदा चमकती रहती है, उन्हें कोई भी उदास आत्मा यदि देख लेती है तो वह भी खुश हो जाती है, उसकी उदासी मिट जाती है। जिनके पास सन्तुष्टता की खुशी का खजाना है उनके पीछे स्वत: ही सब आकर्षित होते हैं। उनका खुशी का चेहरा चैतन्य बोर्ड बन जाता है जो अनेक आत्माओं को बनाने वाले का परिचय देता है। तो ऐसी सन्तुष्ट रहने और सर्व को सन्तुष्ट करने वाली सन्तुष्ट मणियां बनो जिससे अनेकों को साक्षात्कार हो। स्लोगन:- चोट लगाने वाले का काम है चोट लगाना और आपका काम है अपने को बचा लेना। ओम् शांति