Sunday, May 17, 2015

मुरली 18 मई 2015

“मीठे बच्चे - निश्चय ज्ञान योग से बैठता, साक्षात्कार से नहीं। साक्षात्कार की ड्रामा में नूँध है, बाकी उससे किसी का कल्याण नहीं होता” प्रश्न:- बाप कौन-सी ताकत नहीं दिखाते लेकिन बाप के पास जादूगरी अवश्य है? उत्तर:- मनुष्य समझते हैं भगवान तो ताकतमंद है, वह मरे हुए को भी जिंदा कर सकते हैं, परन्तु बाबा कहते यह ताकत मैं नहीं दिखाता। बाकी कोई नौधा भक्ति करते हैं तो उन्हें साक्षात्कार करा देता हूँ। यह भी ड्रामा में नूँध है। साक्षात्कार कराने की जादूगरी बाप के पास है इसलिए कई बच्चों को घर बैठे भी ब्रह्मा वा श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हो जाता है। गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे............ धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) इस एक अन्तिम जन्म में बाप के डायरेक्शन पर चल घर गृहस्थ में रहते पवित्र रहना है। इसमें बहादुरी दिखानी है। 2) श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ कर्म करने हैं। वाणी से परे जाना है, जो कुछ पढ़ा वा सुना है उसे भूल बाप को याद करना है। वरदान:- याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा चढ़ती कला का अनुभव करने वाले राज्य अधिकारी भव ! याद और सेवा का बैलेन्स है तो हर कदम में चढ़ती कला का अनुभव करते रहेंगे। हर संकल्प में सेवा हो तो व्यर्थ से छूट जायेंगे। सेवा जीवन का एक अंग बन जाए, जैसे शरीर में सब अंग जरूरी हैं वैसे ब्राह्मण जीवन का विशेष अंग सेवा है। बहुत सेवा का चांस मिलना, स्थान मिलना, संग मिलना यह भी भाग्य की निशानी है। ऐसे सेवा का गोल्डन चांस लेने वाले ही राज्य अधिकारी बनते हैं। स्लोगन:- परमात्म प्यार की पालना का स्वरूप है-सहजयोगी जीवन। ओम् शांति ।