Sweet children, in order to receive love from the Father, sit in soul consciousness. Remain in the happiness that you are receiving your inheritance of heaven from the Father.
Question:
What incognito effort do you Brahmins make at the confluence age in order to change into angels?
Answer:
You Brahmins have to make the incognito effort to remain pure. At the confluence age, you children of Brahma are brothers and sisters. Brothers and sisters cannot have impure vision for one another. Husband and wife, even while living together, consider yourselves to be a Brahma Kumar and Brahma Kumari. By having this awareness, you become completely pure and you then become angels.
Essence for Dharna:
1. Churn the ocean of knowledge and speak on the topic of how Brahma becomes Vishnu. Keep your intellect busy churning knowledge.
2. In order to claim a royal status, together with having knowledge and yoga, also do the service of making others equal to you. Make your vision very pure.
Blessing:
May you uplift even those who defame you, the same as the Father does and do service with good wishes.
Just as the Father uplifts those who defame Him, similarly, no matter what type of soul is in front of you, transform that soul with your attitude of mercy and your good wishes; this is true service. Just as scientists are able to make things grow in sand, similarly, be merciful and, with the power of silence, uplift those who defame you and transform the land. Any type of soul can be transformed by your self-transformation and your good wishes, because you having good wishes definitely enables you to achieve success
Slogan:
Churning knowledge is the basis of remaining constantly happy.
Om Shanti
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Tuesday, June 30, 2015
Monday, June 29, 2015
मुरली 30 जून 2015
मीठे बच्चे - बाप का प्यार लेना हो तो आत्म-अभिमानी होकर बैठो, बाप से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं, इस खुशी में रहो”
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम ब्राह्मण से फरिश्ता बनने के लिये कौन-सी गुप्त मेहनत करते हो?
उत्तर:
तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई- बहन हो, भाई-बहन की गन्दी दृष्टि रह नहीं सकती। स्त्री-पुरूष साथ रहते दोनों अपने को बी.के. समझते हो। इस स्मृति से जब पूरा पवित्र बनो तब फ़रिश्ता बन सकेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विचार सागर मंथन कर “ब्रह्मा सो विष्णु” कैसे बनते हैं, इस टॉपिक पर सुनाना है। बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखना है।
2) राजाई पद प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग के साथ-साथ आपसमान बनाने की सर्विस भी करनी है। अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध बनानी है।
वरदान:
शुभ भावना से सेवा करने वाले बाप समान अपकारियों पर भी उपकारी भव!
जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं, ऐसे आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर दो-यही है सच्ची सेवा। जैसे साइन्स वाले रेत में भी खेती पैदा कर देते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से रहमदिल बन अपकारियों पर भी उपकार कर धरनी को परिवर्तन करो। स्व परिवर्तन से, शुभ भावना से कैसी भी आत्मा परिवर्तन हो जायेगी क्योंकि शुभ भावना सफलता अवश्य प्राप्त कराती है।
स्लोगन:
ज्ञान का सिमरण करना ही सदा हर्षित रहने का आधार है।
ओम् शांति ।
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30-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप का प्यार लेना हो तो आत्म-अभिमानी होकर बैठो, बाप से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं, इस खुशी में रहो”
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम ब्राह्मण से फरिश्ता बनने के लिये कौन-सी गुप्त मेहनत करते हो?
उत्तर:
तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई- बहन हो, भाई-बहन की गन्दी दृष्टि रह नहीं सकती। स्त्री-पुरूष साथ रहते दोनों अपने को बी.के. समझते हो। इस स्मृति से जब पूरा पवित्र बनो तब फ़रिश्ता बन सकेंगे।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझकर यहाँ बैठना है। यह राज़ तुम बच्चों को भी समझाना है। आत्म-अभिमानी होकर बैठेंगे तो बाप के साथ प्यार रहेगा। बाबा हमको राजयोग सिखलाते हैं। बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह याद सारा दिन बुद्धि में रहे-इसमें ही मेहनत है। यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं तो खुशी का पारा डल हो जाता है। बाबा सावधान करते हैं कि बच्चे देही-अभिमानी होकर बैठो। अपने को आत्मा समझो। अभी आत्माओं और परमात्मा का मेला है ना। मेला लगा था, कब लगा था? जरूर कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर ही लगा होगा। आज बच्चों को टॉपिक पर समझाते हैं। तुमको टॉपिक तो जरूर लेनी है। ऊंच ते ऊंच है भगवान फिर नीचे आओ तो ब्रह्मा- विष्णु-शंकर। बाप और देवतायें। मनुष्यों को यह पता नहीं है शिव और ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का सम्बन्ध क्या है? किसी को भी उन्हों की जीवन कहानी का पता नहीं है। त्रिमूर्ति का चित्र नामीग्रामी है। यह तीनों हैं देवतायें। सिर्फ 3 का धर्म थोड़ेही होता है। धर्म तो बड़ा होता है, डीटी धर्म। यह है सूक्ष्मवतन वासी, ऊपर में है शिवबाबा। मुख्य है ब्रह्मा और विष्णु। अभी बाप समझाते हैं तुमको टॉपिक देनी है-ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। जैसे तुम कहते हो हम शूद्र सो ब्राह्मण, ब्राह्मण सो देवता, वैसे इनका भी है, पहले-पहले ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। यह तो है रांग। हो भी नहीं सकता। तो इस टॉपिक पर अच्छी रीति समझाना है, कोई कहते हैं परमात्मा कृष्ण के तन में आये हैं। अगर कृष्ण में आये फिर तो ब्रह्मा का पार्ट खत्म हो जाता है। कृष्ण तो है सतयुग का पहला प्रिन्स। वहाँ पतित हो कैसे सकते, जिनको आकर पावन बनायें। बिल्कुल ही गलत है। यह बातें भी महारथी सर्विसएबुल बच्चे ही समझते हैं। बाकी तो किसकी बुद्धि में बैठता ही नहीं है। यह टॉपिक तो बहुत फर्स्टक्लास है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। उनकी जीवन कहानी बतलाते हैं क्योंकि इनका कनेक्शन है। शुरू ही ऐसे करना है। ब्रह्मा सो विष्णु एक सेकण्ड में। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 84 जन्म लगते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। अभी तुम हो ब्राह्मण कुल के। प्रजापिता ब्रह्मा का ब्राह्मण कुल कहाँ गया? प्रजापिता ब्रह्मा की तो नई दुनिया चाहिए ना। नई दुनिया है सतयुग। वहाँ तो प्रजापिता है नहीं। कलियुग में भी प्रजापिता हो नहीं सकता। वह हैं संगमयुग पर। तुम अभी संगम पर हो। शूद्र से तुम ब्राह्मण बने हो। बाप ने ब्रह्मा को एडाप्ट किया है। शिवबाबा ने इनको कैसे रचा, यह कोई नहीं जानते हैं। त्रिमूर्ति में रचता शिव का चित्र ही नहीं है, तो मालूम कैसे पड़े कि ऊंच ते ऊंच भगवान है। बाकी सब हैं उनकी रचना। यह है ब्राह्मण सम्प्रदाय तो जरूर प्रजापिता चाहिए। कलियुग में तो हो न सके। सतयुग में भी नहीं। गाया जाता है ब्राह्मण देवी- देवताए नम:। अब ब्राह्मण कहाँ के हैं? प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ का है? जरूर संगमयुग का कहेंगे। यह है पुरूषोत्तम संगम युग। इस संगमयुग का कोई भी शास्त्रों में वर्णन नहीं है। महाभारत लड़ाई भी संगम पर लगी है, न कि सतयुग या कलियुग में। पाण्डव और कौरव, यह हैं संगम पर। तुम पाण्डव संगमयुगी हो, तो कौरव कलियुगी हैं। गीता में भी भगवानुवाच है ना। तुम हो पाण्डव दैवी सम्प्रदाय। तुम रूहानी पण्डे बनते हो। तुम्हारी है रूहानी यात्रा, जो तुम बुद्धि से करते हो।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। याद की यात्रा पर रहो। जिस्मानी यात्रा में तीर्थों आदि पर जाकर फिर लौट आते हैं। वह आधाकल्प चलती है। यह संगमयुग की यात्रा एक ही बार की है। तुम जाकर मृत्युलोक में वापिस नहीं आयेंगे। पवित्र बन फिर तुमको पवित्र दुनिया में आना है इसलिए तुम अब पवित्र बन रहे हो। तुम जानते हो अभी हम ब्राह्मण सम्प्रदाय के हैं। फिर दैवी सम्प्रदाय, विष्णु सम्प्रदाय बनते हैं। सतयुग में देवी-देवतायें विष्णु सम्प्रदाय हैं। वहाँ चतुर्भुज की प्रतिमा रहती है, जिससे मालूम पड़ता है यह विष्णु सम्प्रदाय हैं। यहाँ प्रतिमा है रावण की, तो रावण सम्प्रदाय हैं। तो यह टॉपिक रखने से मनुष्य वण्डर खायेंगे। अब तुम देवता बनने के लिए राजयोग सीख रहे हो। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण, तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो। एडाप्ट किये हुए हो। ब्राह्मण भी यहाँ हैं फिर देवता भी यहाँ बनेंगे। डिनायस्टी यहाँ ही होती है। डिनायस्टी राजाई को कहा जाता है। विष्णु की डिनायस्टी है। ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं कहेंगे। डिनायस्टी में राजाई चलती है। एक पिछाड़ी दूसरा फिर तीसरा। अभी तुम जानते हो हम हैं ब्राह्मण कुल भूषण। फिर देवता बनते हैं। ब्राह्मण सो विष्णु कुल में, विष्णु कुल से आते हैं क्षत्रिय चन्द्रवंशी कुल में, फिर वैश्य कुल में फिर शूद्र कुल में। फिर ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। अर्थ कितना क्लीयर है। चित्रों में क्या-क्या दिखाते हैं। हम ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के मालिक बनते हैं। इसमें मूँझना नहीं चाहिए। बाबा जो एसे (निबंध) देते हैं उस पर फिर विचार सागर मंथन करना चाहिए-किसको कैसे समझायें, जो मनुष्य वण्डर खायें कि यह इनकी समझानी तो बहुत अच्छी है। सिवाए ज्ञान सागर और तो कोई समझा न सके। विचार सागर मंथन कर फिर बैठ लिखना चाहिए। फिर पढ़ो तो ख्याल में आयेगा। यह-यह अक्षर एड करने चाहिए। बाबा भी पहले-पहले मुरली लिखकर तुमको हाथ में दे देते थे। फिर सुनाते थे। यहाँ तो तुम घर में बाबा के साथ रहते हो। अब तो तुमको बाहर में जाकर सुनाना पड़ता है, यह टॉपिक बड़ी वन्डरफुल है, ब्रह्मा सो विष्णु, इनको कोई नहीं जानते। विष्णु की नाभी से ब्रह्मा दिखाते हैं। जैसे गांधी की नाभी से नेहरू। परन्तु डिनायस्टी तो चाहिए ना। ब्राह्मण कुल में राजाई नहीं है, ब्राह्मण सम्प्रदाय सो बनते हैं डीटी डिनायस्टी। फिर चन्द्रवंशी डिनायस्टी में जायेंगे फिर वैश्य डिनायस्टी। ऐसे हर एक डिनायस्टी चलती है ना। सतयुग है वाइसलेस वर्ल्ड, कलियुग है विशश वर्ल्ड। यह दो अक्षर भी कोई की बुद्धि में नहीं हैं। नहीं तो यह जरूर बुद्धि में होने चाहिए कि विशश से वाइसलेस कैसे बनते हैं। मनुष्य न वाइसलेस को जानते हैं, न विशश को। तुमको समझाया जाता है, देवतायें वाइसलेस हैं। ऐसे कभी नहीं सुना कि ब्राह्मण वाइसलेस हैं। नई दुनिया है वाइसलेस, पुरानी दुनिया है विशश। तो जरूर संगमयुग दिखाना पड़े। इसका किसको भी पता नहीं है। पुरूषोत्तम मास मनाते हैं ना। वह 3 वर्ष बाद एक मास मनाते हैं। तुम्हारा 5 हज़ार वर्ष बाद एक संगमयुग आता है। मनुष्य आत्मा और परमात्मा को यथार्थ नहीं जानते हैं सिर्फ कह देते हैं चमकता है-अज़ब सितारा। बस जैसे दिखाते हैं, रामकृष्ण परमहंस का चेला विवेकानंद कहता था मैं गुरू के सामने बैठा था, गुरू का भी ध्यान तो करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। ध्यान की तो बात ही नहीं, गुरू तो याद है ही। खास बैठ करवे याद करने से याद आयेगा क्या। उनकी गुरू में भावना थी कि यह भगवान है तो देखा कि उनकी आत्मा निकल मेरे में लीन हो गई। उनकी आत्मा कहाँ जाकर बैठी फिर क्या हुआ, कुछ भी वर्णन नहीं, बस। खुश हुआ हमको भगवान का साक्षात्कार हुआ। भगवान क्या है, वह नहीं जानते। बाप समझाते हैं सीढ़ी के चित्र पर तुम समझाओ। यह है भक्ति मार्ग। तुम जानते हो एक है भक्ति की बोट (नांव), दूसरी है ज्ञान की। ज्ञान अलग, भक्ति अलग है। बाबा कहते हैं हमने तुमको कल्प पहले ज्ञान दिया था, विश्व का मालिक बनाया था। अब तुम कहाँ हो। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है, कैसे और डिनायस्टी आती, कैसे झाड़ बढ़ता है। जैसे गुलदस्ता होता है ना। यह सृष्टि रूपी झाड़ भी फूलदान है। बीच में तुम्हारा धर्म फिर इनसे और 3 धर्म निकलते हैं फिर उनसे वृद्धि होती जाती है। तो इस झाड़ को भी याद करना है। कितनी टाल-टालियां आदि निकलती रहती हैं। पिछाड़ी में आने वाले का मान भी हो जाता है। बड़ का झाड़ होता है ना, थुर है नहीं। बाकी सारा झाड़ खड़ा है। देवी-देवता धर्म भी खत्म हुआ पड़ा है। बिल्कुल सड़ गया है। भारतवासी अपने धर्म को बिल्कुल नहीं जानते और सब अपने धर्म को जानते हैं, यह कहते हम धर्म को मानते ही नहीं। मुख्य है ही 4 धर्म। बाकी छोटे-छोटे तो अनेक हैं। इस झाड़ और सृष्टि चक्र को तुम अभी जानते हो। देवी-देवता धर्म का नाम ही गुम कर दिया है। फिर बाप उसकी स्थापना कर बाकी सब धर्म का विनाश कर देते हैं। गोले के चित्र पर भी जरूर ले जाना चाहिए। यह सतयुग, यह कलियुग। कलियुग में कितने धर्म हैं, सतयुग में है एक धर्म। एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश कौन करता होगा? भगवान भी जरूर किसके द्वारा तो करायेंगे ना। बाप कहते हैं ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ। ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के देवता बनते हैं।
संगम पर तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई-बहन हो। गन्दी दृष्टि भाई-बहन की रह नहीं सकती। स्त्री-पुरूष दोनों अपने को बी.के. समझते हैं। इसमें बड़ी मेहनत है। स्त्री-पुरूष की कशिश ऐसी है जो बस, हाथ लगाने के बिगर रह नहीं सकते। यहाँ भाई-बहन को हाथ तो लगाना ही नहीं है, नहीं तो पाप की फीलिंग आती है। हम बी.के. हैं, यह भूल जाते हैं तो फिर खत्म हो जाते हैं। इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है। भल युगल हो रहते हैं किसको क्या पता, वह खुद जानते हैं हम बी.के. हैं, फ़रिश्ते हैं। हाथ लगाना नहीं है। ऐसे करते-करते सूक्ष्मवतन वासी फ़रिश्ते बन जायेंगे। नहीं तो फ़रिश्ता बन नहीं सकते। फ़रिश्ता बनना है तो पवित्र रहना पड़े। ऐसी जोड़ी निकले तो नम्बरवन जाए। कहते हैं दादा ने तो सब अनुभव किया, पिछाड़ी में करके सन्यास किया है, बहुत मेहनत तो उनको है जो जोड़ा बन जाते हैं। फिर उसमें ज्ञान और योग भी चाहिए। बहुतों को आपसमान बनायें तब बड़ा राजा बनें। सिर्फ एक बात तो नहीं है ना। बाप कहते हैं तुम शिवबाबा को याद करो। यह है प्रजापिता। बहुत ऐसे भी हैं जो कहते हैं हमारा काम तो शिवबाबा से है। हम ब्रह्मा को याद ही क्यों करें! उनको पत्र ही क्यों लिखें! ऐसे भी हैं। तुमको याद करना है शिवबाबा को इसलिए बाबा फोटो आदि भी नहीं देते हैं। इनमें शिवबाबा आता है, यह तो देहधारी है ना। अभी तो तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है। वह अपने को ईश्वर कहते हैं फिर उनसे क्या मिलता है, कितना घाटा पड़ा है भारतवासियों को। एकदम भारतवासियों ने देवाला मारा है। प्रजा से भीख मांगते रहते हैं। 10-20 वर्ष का लोन लेते हैं फिर देना थोड़ेही है। लेने वाले, देने वाले दोनों ही खत्म हो जायेंगे। खेल ही खत्म हो जाना है। अनेक मुसीबतें सिर पर हैं। देवाला, बीमारियां आदि बहुत हैं। कोई साहूकारों के पास रख देते हैं और वह देवाला मार देते हैं तो गरीबों को कितना दु:ख होता है। कदम-कदम पर दु:ख ही दु:ख है। अचानक बैठे-बैठे मर जाते हैं। यह है ही मृत्युलोक। अमरलोक में तुम अभी जा रहे हो। अमरपुरी के बादशाह बनते हो। अमरनाथ तुम पार्वतियों को सच्ची-सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं। तुम जानते हो अमर बाबा है, उनसे हम अमरकथा सुन रहे हैं। अब अमरलोक जाना है। इस समय तुम हो संगमयुग पर। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विचार सागर मंथन कर “ब्रह्मा सो विष्णु” कैसे बनते हैं, इस टॉपिक पर सुनाना है। बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखना है।
2) राजाई पद प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग के साथ-साथ आपसमान बनाने की सर्विस भी करनी है। अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध बनानी है।
वरदान:
शुभ भावना से सेवा करने वाले बाप समान अपकारियों पर भी उपकारी भव!
जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं, ऐसे आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर दो-यही है सच्ची सेवा। जैसे साइन्स वाले रेत में भी खेती पैदा कर देते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से रहमदिल बन अपकारियों पर भी उपकार कर धरनी को परिवर्तन करो। स्व परिवर्तन से, शुभ भावना से कैसी भी आत्मा परिवर्तन हो जायेगी क्योंकि शुभ भावना सफलता अवश्य प्राप्त कराती है।
स्लोगन:
ज्ञान का सिमरण करना ही सदा हर्षित रहने का आधार है।
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम ब्राह्मण से फरिश्ता बनने के लिये कौन-सी गुप्त मेहनत करते हो?
उत्तर:
तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई- बहन हो, भाई-बहन की गन्दी दृष्टि रह नहीं सकती। स्त्री-पुरूष साथ रहते दोनों अपने को बी.के. समझते हो। इस स्मृति से जब पूरा पवित्र बनो तब फ़रिश्ता बन सकेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विचार सागर मंथन कर “ब्रह्मा सो विष्णु” कैसे बनते हैं, इस टॉपिक पर सुनाना है। बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखना है।
2) राजाई पद प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग के साथ-साथ आपसमान बनाने की सर्विस भी करनी है। अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध बनानी है।
वरदान:
शुभ भावना से सेवा करने वाले बाप समान अपकारियों पर भी उपकारी भव!
जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं, ऐसे आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर दो-यही है सच्ची सेवा। जैसे साइन्स वाले रेत में भी खेती पैदा कर देते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से रहमदिल बन अपकारियों पर भी उपकार कर धरनी को परिवर्तन करो। स्व परिवर्तन से, शुभ भावना से कैसी भी आत्मा परिवर्तन हो जायेगी क्योंकि शुभ भावना सफलता अवश्य प्राप्त कराती है।
स्लोगन:
ज्ञान का सिमरण करना ही सदा हर्षित रहने का आधार है।
ओम् शांति ।
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30-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप का प्यार लेना हो तो आत्म-अभिमानी होकर बैठो, बाप से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं, इस खुशी में रहो”
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम ब्राह्मण से फरिश्ता बनने के लिये कौन-सी गुप्त मेहनत करते हो?
उत्तर:
तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई- बहन हो, भाई-बहन की गन्दी दृष्टि रह नहीं सकती। स्त्री-पुरूष साथ रहते दोनों अपने को बी.के. समझते हो। इस स्मृति से जब पूरा पवित्र बनो तब फ़रिश्ता बन सकेंगे।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझकर यहाँ बैठना है। यह राज़ तुम बच्चों को भी समझाना है। आत्म-अभिमानी होकर बैठेंगे तो बाप के साथ प्यार रहेगा। बाबा हमको राजयोग सिखलाते हैं। बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। यह याद सारा दिन बुद्धि में रहे-इसमें ही मेहनत है। यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं तो खुशी का पारा डल हो जाता है। बाबा सावधान करते हैं कि बच्चे देही-अभिमानी होकर बैठो। अपने को आत्मा समझो। अभी आत्माओं और परमात्मा का मेला है ना। मेला लगा था, कब लगा था? जरूर कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर ही लगा होगा। आज बच्चों को टॉपिक पर समझाते हैं। तुमको टॉपिक तो जरूर लेनी है। ऊंच ते ऊंच है भगवान फिर नीचे आओ तो ब्रह्मा- विष्णु-शंकर। बाप और देवतायें। मनुष्यों को यह पता नहीं है शिव और ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का सम्बन्ध क्या है? किसी को भी उन्हों की जीवन कहानी का पता नहीं है। त्रिमूर्ति का चित्र नामीग्रामी है। यह तीनों हैं देवतायें। सिर्फ 3 का धर्म थोड़ेही होता है। धर्म तो बड़ा होता है, डीटी धर्म। यह है सूक्ष्मवतन वासी, ऊपर में है शिवबाबा। मुख्य है ब्रह्मा और विष्णु। अभी बाप समझाते हैं तुमको टॉपिक देनी है-ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। जैसे तुम कहते हो हम शूद्र सो ब्राह्मण, ब्राह्मण सो देवता, वैसे इनका भी है, पहले-पहले ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। यह तो है रांग। हो भी नहीं सकता। तो इस टॉपिक पर अच्छी रीति समझाना है, कोई कहते हैं परमात्मा कृष्ण के तन में आये हैं। अगर कृष्ण में आये फिर तो ब्रह्मा का पार्ट खत्म हो जाता है। कृष्ण तो है सतयुग का पहला प्रिन्स। वहाँ पतित हो कैसे सकते, जिनको आकर पावन बनायें। बिल्कुल ही गलत है। यह बातें भी महारथी सर्विसएबुल बच्चे ही समझते हैं। बाकी तो किसकी बुद्धि में बैठता ही नहीं है। यह टॉपिक तो बहुत फर्स्टक्लास है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। उनकी जीवन कहानी बतलाते हैं क्योंकि इनका कनेक्शन है। शुरू ही ऐसे करना है। ब्रह्मा सो विष्णु एक सेकण्ड में। विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 84 जन्म लगते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं। अभी तुम हो ब्राह्मण कुल के। प्रजापिता ब्रह्मा का ब्राह्मण कुल कहाँ गया? प्रजापिता ब्रह्मा की तो नई दुनिया चाहिए ना। नई दुनिया है सतयुग। वहाँ तो प्रजापिता है नहीं। कलियुग में भी प्रजापिता हो नहीं सकता। वह हैं संगमयुग पर। तुम अभी संगम पर हो। शूद्र से तुम ब्राह्मण बने हो। बाप ने ब्रह्मा को एडाप्ट किया है। शिवबाबा ने इनको कैसे रचा, यह कोई नहीं जानते हैं। त्रिमूर्ति में रचता शिव का चित्र ही नहीं है, तो मालूम कैसे पड़े कि ऊंच ते ऊंच भगवान है। बाकी सब हैं उनकी रचना। यह है ब्राह्मण सम्प्रदाय तो जरूर प्रजापिता चाहिए। कलियुग में तो हो न सके। सतयुग में भी नहीं। गाया जाता है ब्राह्मण देवी- देवताए नम:। अब ब्राह्मण कहाँ के हैं? प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ का है? जरूर संगमयुग का कहेंगे। यह है पुरूषोत्तम संगम युग। इस संगमयुग का कोई भी शास्त्रों में वर्णन नहीं है। महाभारत लड़ाई भी संगम पर लगी है, न कि सतयुग या कलियुग में। पाण्डव और कौरव, यह हैं संगम पर। तुम पाण्डव संगमयुगी हो, तो कौरव कलियुगी हैं। गीता में भी भगवानुवाच है ना। तुम हो पाण्डव दैवी सम्प्रदाय। तुम रूहानी पण्डे बनते हो। तुम्हारी है रूहानी यात्रा, जो तुम बुद्धि से करते हो।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। याद की यात्रा पर रहो। जिस्मानी यात्रा में तीर्थों आदि पर जाकर फिर लौट आते हैं। वह आधाकल्प चलती है। यह संगमयुग की यात्रा एक ही बार की है। तुम जाकर मृत्युलोक में वापिस नहीं आयेंगे। पवित्र बन फिर तुमको पवित्र दुनिया में आना है इसलिए तुम अब पवित्र बन रहे हो। तुम जानते हो अभी हम ब्राह्मण सम्प्रदाय के हैं। फिर दैवी सम्प्रदाय, विष्णु सम्प्रदाय बनते हैं। सतयुग में देवी-देवतायें विष्णु सम्प्रदाय हैं। वहाँ चतुर्भुज की प्रतिमा रहती है, जिससे मालूम पड़ता है यह विष्णु सम्प्रदाय हैं। यहाँ प्रतिमा है रावण की, तो रावण सम्प्रदाय हैं। तो यह टॉपिक रखने से मनुष्य वण्डर खायेंगे। अब तुम देवता बनने के लिए राजयोग सीख रहे हो। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण, तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो। एडाप्ट किये हुए हो। ब्राह्मण भी यहाँ हैं फिर देवता भी यहाँ बनेंगे। डिनायस्टी यहाँ ही होती है। डिनायस्टी राजाई को कहा जाता है। विष्णु की डिनायस्टी है। ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं कहेंगे। डिनायस्टी में राजाई चलती है। एक पिछाड़ी दूसरा फिर तीसरा। अभी तुम जानते हो हम हैं ब्राह्मण कुल भूषण। फिर देवता बनते हैं। ब्राह्मण सो विष्णु कुल में, विष्णु कुल से आते हैं क्षत्रिय चन्द्रवंशी कुल में, फिर वैश्य कुल में फिर शूद्र कुल में। फिर ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। अर्थ कितना क्लीयर है। चित्रों में क्या-क्या दिखाते हैं। हम ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के मालिक बनते हैं। इसमें मूँझना नहीं चाहिए। बाबा जो एसे (निबंध) देते हैं उस पर फिर विचार सागर मंथन करना चाहिए-किसको कैसे समझायें, जो मनुष्य वण्डर खायें कि यह इनकी समझानी तो बहुत अच्छी है। सिवाए ज्ञान सागर और तो कोई समझा न सके। विचार सागर मंथन कर फिर बैठ लिखना चाहिए। फिर पढ़ो तो ख्याल में आयेगा। यह-यह अक्षर एड करने चाहिए। बाबा भी पहले-पहले मुरली लिखकर तुमको हाथ में दे देते थे। फिर सुनाते थे। यहाँ तो तुम घर में बाबा के साथ रहते हो। अब तो तुमको बाहर में जाकर सुनाना पड़ता है, यह टॉपिक बड़ी वन्डरफुल है, ब्रह्मा सो विष्णु, इनको कोई नहीं जानते। विष्णु की नाभी से ब्रह्मा दिखाते हैं। जैसे गांधी की नाभी से नेहरू। परन्तु डिनायस्टी तो चाहिए ना। ब्राह्मण कुल में राजाई नहीं है, ब्राह्मण सम्प्रदाय सो बनते हैं डीटी डिनायस्टी। फिर चन्द्रवंशी डिनायस्टी में जायेंगे फिर वैश्य डिनायस्टी। ऐसे हर एक डिनायस्टी चलती है ना। सतयुग है वाइसलेस वर्ल्ड, कलियुग है विशश वर्ल्ड। यह दो अक्षर भी कोई की बुद्धि में नहीं हैं। नहीं तो यह जरूर बुद्धि में होने चाहिए कि विशश से वाइसलेस कैसे बनते हैं। मनुष्य न वाइसलेस को जानते हैं, न विशश को। तुमको समझाया जाता है, देवतायें वाइसलेस हैं। ऐसे कभी नहीं सुना कि ब्राह्मण वाइसलेस हैं। नई दुनिया है वाइसलेस, पुरानी दुनिया है विशश। तो जरूर संगमयुग दिखाना पड़े। इसका किसको भी पता नहीं है। पुरूषोत्तम मास मनाते हैं ना। वह 3 वर्ष बाद एक मास मनाते हैं। तुम्हारा 5 हज़ार वर्ष बाद एक संगमयुग आता है। मनुष्य आत्मा और परमात्मा को यथार्थ नहीं जानते हैं सिर्फ कह देते हैं चमकता है-अज़ब सितारा। बस जैसे दिखाते हैं, रामकृष्ण परमहंस का चेला विवेकानंद कहता था मैं गुरू के सामने बैठा था, गुरू का भी ध्यान तो करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। ध्यान की तो बात ही नहीं, गुरू तो याद है ही। खास बैठ करवे याद करने से याद आयेगा क्या। उनकी गुरू में भावना थी कि यह भगवान है तो देखा कि उनकी आत्मा निकल मेरे में लीन हो गई। उनकी आत्मा कहाँ जाकर बैठी फिर क्या हुआ, कुछ भी वर्णन नहीं, बस। खुश हुआ हमको भगवान का साक्षात्कार हुआ। भगवान क्या है, वह नहीं जानते। बाप समझाते हैं सीढ़ी के चित्र पर तुम समझाओ। यह है भक्ति मार्ग। तुम जानते हो एक है भक्ति की बोट (नांव), दूसरी है ज्ञान की। ज्ञान अलग, भक्ति अलग है। बाबा कहते हैं हमने तुमको कल्प पहले ज्ञान दिया था, विश्व का मालिक बनाया था। अब तुम कहाँ हो। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है, कैसे और डिनायस्टी आती, कैसे झाड़ बढ़ता है। जैसे गुलदस्ता होता है ना। यह सृष्टि रूपी झाड़ भी फूलदान है। बीच में तुम्हारा धर्म फिर इनसे और 3 धर्म निकलते हैं फिर उनसे वृद्धि होती जाती है। तो इस झाड़ को भी याद करना है। कितनी टाल-टालियां आदि निकलती रहती हैं। पिछाड़ी में आने वाले का मान भी हो जाता है। बड़ का झाड़ होता है ना, थुर है नहीं। बाकी सारा झाड़ खड़ा है। देवी-देवता धर्म भी खत्म हुआ पड़ा है। बिल्कुल सड़ गया है। भारतवासी अपने धर्म को बिल्कुल नहीं जानते और सब अपने धर्म को जानते हैं, यह कहते हम धर्म को मानते ही नहीं। मुख्य है ही 4 धर्म। बाकी छोटे-छोटे तो अनेक हैं। इस झाड़ और सृष्टि चक्र को तुम अभी जानते हो। देवी-देवता धर्म का नाम ही गुम कर दिया है। फिर बाप उसकी स्थापना कर बाकी सब धर्म का विनाश कर देते हैं। गोले के चित्र पर भी जरूर ले जाना चाहिए। यह सतयुग, यह कलियुग। कलियुग में कितने धर्म हैं, सतयुग में है एक धर्म। एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश कौन करता होगा? भगवान भी जरूर किसके द्वारा तो करायेंगे ना। बाप कहते हैं ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ। ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के देवता बनते हैं।
संगम पर तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई-बहन हो। गन्दी दृष्टि भाई-बहन की रह नहीं सकती। स्त्री-पुरूष दोनों अपने को बी.के. समझते हैं। इसमें बड़ी मेहनत है। स्त्री-पुरूष की कशिश ऐसी है जो बस, हाथ लगाने के बिगर रह नहीं सकते। यहाँ भाई-बहन को हाथ तो लगाना ही नहीं है, नहीं तो पाप की फीलिंग आती है। हम बी.के. हैं, यह भूल जाते हैं तो फिर खत्म हो जाते हैं। इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है। भल युगल हो रहते हैं किसको क्या पता, वह खुद जानते हैं हम बी.के. हैं, फ़रिश्ते हैं। हाथ लगाना नहीं है। ऐसे करते-करते सूक्ष्मवतन वासी फ़रिश्ते बन जायेंगे। नहीं तो फ़रिश्ता बन नहीं सकते। फ़रिश्ता बनना है तो पवित्र रहना पड़े। ऐसी जोड़ी निकले तो नम्बरवन जाए। कहते हैं दादा ने तो सब अनुभव किया, पिछाड़ी में करके सन्यास किया है, बहुत मेहनत तो उनको है जो जोड़ा बन जाते हैं। फिर उसमें ज्ञान और योग भी चाहिए। बहुतों को आपसमान बनायें तब बड़ा राजा बनें। सिर्फ एक बात तो नहीं है ना। बाप कहते हैं तुम शिवबाबा को याद करो। यह है प्रजापिता। बहुत ऐसे भी हैं जो कहते हैं हमारा काम तो शिवबाबा से है। हम ब्रह्मा को याद ही क्यों करें! उनको पत्र ही क्यों लिखें! ऐसे भी हैं। तुमको याद करना है शिवबाबा को इसलिए बाबा फोटो आदि भी नहीं देते हैं। इनमें शिवबाबा आता है, यह तो देहधारी है ना। अभी तो तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है। वह अपने को ईश्वर कहते हैं फिर उनसे क्या मिलता है, कितना घाटा पड़ा है भारतवासियों को। एकदम भारतवासियों ने देवाला मारा है। प्रजा से भीख मांगते रहते हैं। 10-20 वर्ष का लोन लेते हैं फिर देना थोड़ेही है। लेने वाले, देने वाले दोनों ही खत्म हो जायेंगे। खेल ही खत्म हो जाना है। अनेक मुसीबतें सिर पर हैं। देवाला, बीमारियां आदि बहुत हैं। कोई साहूकारों के पास रख देते हैं और वह देवाला मार देते हैं तो गरीबों को कितना दु:ख होता है। कदम-कदम पर दु:ख ही दु:ख है। अचानक बैठे-बैठे मर जाते हैं। यह है ही मृत्युलोक। अमरलोक में तुम अभी जा रहे हो। अमरपुरी के बादशाह बनते हो। अमरनाथ तुम पार्वतियों को सच्ची-सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं। तुम जानते हो अमर बाबा है, उनसे हम अमरकथा सुन रहे हैं। अब अमरलोक जाना है। इस समय तुम हो संगमयुग पर। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) विचार सागर मंथन कर “ब्रह्मा सो विष्णु” कैसे बनते हैं, इस टॉपिक पर सुनाना है। बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखना है।
2) राजाई पद प्राप्त करने के लिए ज्ञान और योग के साथ-साथ आपसमान बनाने की सर्विस भी करनी है। अपनी दृष्टि बहुत शुद्ध बनानी है।
वरदान:
शुभ भावना से सेवा करने वाले बाप समान अपकारियों पर भी उपकारी भव!
जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं, ऐसे आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर दो-यही है सच्ची सेवा। जैसे साइन्स वाले रेत में भी खेती पैदा कर देते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से रहमदिल बन अपकारियों पर भी उपकार कर धरनी को परिवर्तन करो। स्व परिवर्तन से, शुभ भावना से कैसी भी आत्मा परिवर्तन हो जायेगी क्योंकि शुभ भावना सफलता अवश्य प्राप्त कराती है।
स्लोगन:
ज्ञान का सिमरण करना ही सदा हर्षित रहने का आधार है।
Murli 29 June 2015
Sweet children, you have now become God’s children. Therefore, there should be no devilish traits in you. Make progress, not mistakes.
Question:
What faith and intoxication do you Brahmin children of the confluence age have?
Answer:
We children have the faith and intoxication that we now belong to God’s community. We are becoming residents of heaven, the masters of the world. We are being transferred at the confluence age. From being devilish children, we have become Godly children and are to become residents of heaven for 21 births. There is nothing greater than this.
Essence for Dharna:
1. Control your physical organs with the power of yoga in such a way that no mischief remains. There is very little time left. Therefore, make effort very well and become a conqueror of Maya.
2. Remain introverted and imbibe the knowledge that the Father gives you. Never become like salt water with each other. Definitely send the Father news of your welfare.
Blessing:
May you be spiritually merciful and give extra power to weak, disheartened and powerless souls.
Children who are spiritually merciful will become great donors and fill with hope those who are completely hopeless. They make weak souls strong. Donations are always given to those who are poor and without support. Be spiritually merciful and great donors for subject quality souls who are weak, disheartened and powerless. Do not be great donors for one another; you are co-operative companions, a brotherhood, equal effort-makers, so give co-operation, not donations.
Slogan:
Stay constantly in the elevated company of the one Father and you will not be influenced by the colour of anyone else’s company.
Om Shanti
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Question:
What faith and intoxication do you Brahmin children of the confluence age have?
Answer:
We children have the faith and intoxication that we now belong to God’s community. We are becoming residents of heaven, the masters of the world. We are being transferred at the confluence age. From being devilish children, we have become Godly children and are to become residents of heaven for 21 births. There is nothing greater than this.
Essence for Dharna:
1. Control your physical organs with the power of yoga in such a way that no mischief remains. There is very little time left. Therefore, make effort very well and become a conqueror of Maya.
2. Remain introverted and imbibe the knowledge that the Father gives you. Never become like salt water with each other. Definitely send the Father news of your welfare.
Blessing:
May you be spiritually merciful and give extra power to weak, disheartened and powerless souls.
Children who are spiritually merciful will become great donors and fill with hope those who are completely hopeless. They make weak souls strong. Donations are always given to those who are poor and without support. Be spiritually merciful and great donors for subject quality souls who are weak, disheartened and powerless. Do not be great donors for one another; you are co-operative companions, a brotherhood, equal effort-makers, so give co-operation, not donations.
Slogan:
Stay constantly in the elevated company of the one Father and you will not be influenced by the colour of anyone else’s company.
Om Shanti
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मुरली 29 जून 2015
“मीठे बच्चे - अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, गफ़लत नहीं करनी है”
प्रश्न:
आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है?
उत्तर:
हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ कर मायाजीत बनना है।
2) बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैराफत का समाचार जरूर देना है।
वरदान:
निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल देने वाले रूहानी रहमदिल भव!
जो रूहानी रहमदिल बच्चे हैं-वह महादानी बन बिल्कुल होपलेस केस में होप पैदा कर देते हैं। निर्बल को बलवान बना देते हैं। दान सदा गरीब को, बेसहारे को दिया जाता है। तो जो निर्बल दिलशिकस्त, असमर्थ प्रजा क्वालिटी की आत्मायें हैं उनके प्रति रूहानी रहमदिल बन महादानी बनो। आपस में एक दूसरे के प्रति महादानी नहीं। वह तो सहयोगी साथी हो, भाई भाई हो, हमशरीक पुरुषार्थी हो, सहयोग दो, दान नहीं।
स्लोगन:
सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो और किसी के संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता।
ओम् शांति ।
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29-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, गफ़लत नहीं करनी है”
प्रश्न:
आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है?
उत्तर:
हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, अक्सर करके मनुष्य शान्ति को पसन्द करते हैं। घर में अगर बच्चों की खिट-खिट है, तो अशान्ति रहती है। अशान्ति से दु:ख भासता है। शान्ति से सुख भासता है। यहाँ तुम बच्चे बैठे हो, तुमको सच्ची शान्ति है। तुमको कहा गया है बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। आत्मा में जो आधाकल्प से अशान्ति है, वह निकलनी है शान्ति के सागर बाप को याद करने से। तुमको शान्ति का वर्सा मिल रहा है। यह भी तुम जानते हो शान्ति की दुनिया और अशान्ति की दुनिया बिल्कुल अलग है। आसुरी दुनिया, ईश्वरीय दुनिया, सतयुग, कलियुग किसको कहा जाता है, यह कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते। तुम कहेंगे हम भी नहीं जानते थे। भल कितने भी पोजीशन वाले थे। पैसे वाले को पोजीशन वाला कहा जाता है। गरीब और साहूकार समझ तो सकते हैं ना। वैसे तुम भी समझ सकते हो बरोबर ईश्वरीय औलाद और आसुरी औलाद। अभी तुम मीठे बच्चे समझते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं। यह पक्का निश्चय है ना। तुम ब्राह्मण समझते हो हम ईश्वरीय सम्प्रदाय स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। हरदम वह खुशी रहनी चाहिए। बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति से समझते हैं। सतयुग में हैं ईश्वरीय सम्प्रदाय। कलियुग में हैं आसुरी सम्प्रदाय। पुरूषोत्तम संगमयुग पर आसुरी सम्प्रदाय बदली होती है। अभी हम शिवबाबा की औलाद बने हैं। बीच में भूल गये थे। अभी फिर इस समय जाना है कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं। वहाँ सतयुग में कोई अपने को ईश्वरीय औलाद नहीं कहलाते। वहाँ हैं दैवी औलाद। इनके पहले हम आसुरी औलाद थे। अभी ईश्वरीय औलाद बने हैं। हम ब्राह्मण बी.के. हैं। रचना है एक बाप की। तुम सब भाई-बहन हो और ईश्वरीय औलाद हो। तुम जानते हो बाबा से राज्य मिल रहा है। भविष्य में जाकर हम दैवी स्वराज्य पायेंगे, सुखी होंगे। बरोबर सतयुग है सुख का धाम, कलियुग है दु:खधाम। यह सिर्फ तुम संगमयुगी ब्राह्मण जानते हो। आत्मा ही ईश्वरीय औलाद है। यह भी जानते हो बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। वह रचता है ना। नर्क का क्रियेटर तो नहीं है। उनको कौन याद करेंगे। तुम मीठे-मीठे बच्चे जानते हो-बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। वह हमारा बहुत मीठा बाप है। हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनाते हैं, इससे भारी वस्तु कोई होती नहीं। यह समझ रखनी चाहिए। हम ईश्वरीय औलाद हैं, तो हमारे में कोई आसुरी अवगुण होना नहीं चाहिए। अपनी उन्नति करनी है। समय बाकी थोड़ा है, इसमें गफ़लत नहीं करनी चाहिए। भूल न जाओ। देखते हो बाप सम्मुख बैठा है, जिनकी हम औलाद हैं। हम ईश्वर बाप से पढ़ रहे हैं दैवी औलाद बनने के लिए, तो कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। बाप आये ही हैं सबको ले जाने। जितना-जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। अज्ञान में जैसे कन्या की सगाई होती है तो याद बिल्कुल छप जाती है। बच्चा पैदा हुआ और याद छप जाती है। यह याद तो स्वर्ग में भी छप जाती, नर्क में भी छप जाती। बच्चा कहेगा यह हमारा बाप है, अब यह तो है बेहद का बाप। जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है तो उनकी याद छप जानी चाहिए। बाप से हम भविष्य 21 जन्मों का फिर से वर्सा ले रहे हैं। बुद्धि में वर्सा ही याद है।
यह भी जानते हो मरना तो सबको है। एक भी रहने का नहीं है जो भी डियरेस्ट से डियरेस्ट (प्यारा से प्यारा) है, सब चले जायेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि यह पुरानी दुनिया अब गई कि गई। उसके जाने के पहले पूरा पुरूषार्थ करना है। जबकि ईश्वरीय औलाद हैं तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते रहते हैं-बच्चे, अपना जीवन हीरे जैसा बनाओ। वह है डीटी वर्ल्ड, यह है डेविल वर्ल्ड। सतयुग में कितना अथाह सुख रहता है। वह बाप ही देते हैं। यहाँ तुम बाप के पास आये हो। यहाँ बैठ तो नहीं जायेंगे। ऐसे तो नहीं सब इकट्ठे रहेंगे क्योंकि बेहद बच्चे हैं। यहाँ तुम बहुत उमंग से आते हो। हम जाते हैं बेहद के बाप पास। हम ईश्वरीय औलाद हैं। गॉड फादर के बच्चे हैं, तो हम क्यों न स्वर्ग में होने चाहिए। गॉड फादर तो स्वर्ग रचते हैं ना। अब तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। जानते हो हेविनली गॉड फादर हमको हेविन के लायक बना रहे हैं। कल्प-कल्प बाद बनाते हैं। एक भी मनुष्य नहीं जिसको यह पता हो कि हम एक्टर हैं। गॉड फादर के बच्चे फिर हम दु:खी क्यों हैं! आपस में लड़ते क्यों हैं! हम आत्मायें सब ब्रदर्स हैं ना। ब्रदर्स आपस में कैसे लड़ते रहते हैं। लड़कर खत्म हो जायेंगे। यहाँ हम बाप से वर्सा ले रहे हैं। ब्रदर्स को आपस में कभी लून-पानी नहीं होना चाहिए। यहाँ तो बाप से भी लून-पानी होते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे लून-पानी हो जाते हैं। माया कितनी जबरदस्त है। जो अच्छे- अच्छे बच्चे हैं वह बाप को याद तो पड़ते हैं। बाप का कितना लव है बच्चों पर। बाप को तो सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं जिसको याद करें। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। तुम्हारी बुद्धि इधर-उधर जाती है। धन्धे आदि में भी बुद्धि जाती है। हमारे लिए तो कोई धन्धा आदि भी नहीं है। तुम अनेक बच्चों के अनेक धन्धे हैं। हमारा तो एक ही धन्धा है। हम आये ही हैं बच्चों को स्वर्ग का वारिस बनाने। बेहद के बाप की प्रापर्टा सिर्फ तुम बच्चे हो। गॉड फादर है ना। सभी आत्मायें उनकी प्रापर्टा हैं। माया ने छी-छी बना दिया है। अब गुल-गुल बनाते हैं बाप। बाप कहते हैं मेरे तो तुम ही हो। तुम्हारे ऊपर हमारा मोह भी है। चिट्ठी नहीं लिखते हो तो ओना हो जाता है। अच्छे-अच्छे बच्चों की चिट्ठी नहीं आती है। अच्छे-अच्छे बच्चों को एकदम माया खत्म कर देती है। जरूर देह-अभिमान है। बाप कहते रहते हैं अपनी खुशखैराफत लिखो। बाबा बच्चों से पूछते हैं बच्चे तुमको माया हैरान तो नहीं करती है? बहादुर बन माया पर जीत पहन रहे हो ना! तुम युद्ध के मैदान में हो ना। कर्मेन्द्रियां ऐसे वश करनी चाहिए जो कुछ भी चंचलता न हो। सतयुग में सब कर्मेन्द्रियां वश में रहती हैं। कर्मेन्द्रियों की कोई चंचलता नहीं होती है। न मुख की, न हाथ की, न कान की..... कोई भी चंचलता की बात नहीं होती। वहाँ कोई भी गन्द की ची॰ज होती नहीं। यहाँ योगबल से कर्मेन्द्रियों पर जीत पाते हो। बाप कहते हैं कोई भी गन्दी बात नहीं। कर्मेन्द्रियों को वश करना है। अच्छी रीति पुरूषार्थ करना है। टाइम बहुत थोड़ा है। गायन भी है बहुत गई थोड़ी रही। अभी थोड़ी रहती जाती है। नया मकान बनता रहता है तो बुद्धि में रहता है ना-बाकी थोड़ा समय है। अभी यह तैयार हो जायेगा, बाकी यह थोड़ा काम है। वह है हद की बात, यह है बेहद की बात। यह भी बच्चों को समझाया गया है उन्हों का है साइंस बल, तुम्हारा है साइलेन्स बल। है उनका भी बुद्धि बल, तुम्हारा भी बुद्धि बल। साइंस की कितनी इन्वेन्शन निकालते रहते हैं। अभी तो ऐसे बाम्ब्स बनाते रहते हैं जो कहते हैं वहाँ बैठे-बैठे छोड़ेंगे तो सारा शहर खत्म हो जायेगा। फिर यह सेनायें, एरोप्लेन आदि भी काम में नहीं आयेंगे। तो वह है साइंस बुद्धि। तुम्हारी है साइलेन्स बुद्धि। वह विनाश के लिए निमित्त बने हुए हैं। तुम अविनाशी पद पाने के लिए निमित्त बने हो। यह भी समझने की बुद्धि चाहिए ना।
तुम बच्चे समझ सकते हो - बाप कितना सहज रास्ता बताते हैं। भल कितनी भी अहिल्यायें, कुब्जायें हो, सिर्फ दो अक्षर याद करने हैं - बाप और वर्सा। फिर जितना जो याद करे। और संग तोड़ एक बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मैं जब अपने घर परमधाम में था तो भक्ति मार्ग में तुम पुकारते थे-बाबा आप आयेंगे तो हम सब कुछ कुर्बान करेंगे। यह हुए जैसे करनीघोर, करनीघोर को पुराना सामान दिया जाता है। तुम बाप को क्या देंगे? इनको (ब्रह्मा को) तो नहीं देते हो ना। इसने भी सब कुछ दे दिया। यह थोड़ेही यहाँ बैठ महल बनायेंगे। यह सब कुछ शिवबाबा के लिए है। उनके डायरेक्शन से कर रहे हैं। वह करनकरावनहार है, डायरेक्शन देते रहते हैं। बच्चे कहते हैं बाबा आप हमारे लिए एक ही हो। आपके लिए तो बहुत बच्चे हैं। बाबा फिर कहते हमारे लिए सिर्फ तुम बच्चे हो। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। कितने देह के सम्बन्धियों की याद रहती है। मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं जितना हो सके बाप को याद करो और सबको भुलाते जाओ। स्वर्ग की राजाई का मक्खन तुमको मिलता है। ज़रा ख्याल तो करो, कैसे यह खेल की रचना है। तुम सिर्फ बाप को याद करते हो और स्वदर्शन चक्रधारी बनने से चक्रवर्ता राजा बनते हो। अभी तुम बच्चे प्रैक्टिकल में अनुभवी हो। मनुष्य तो समझते हैं भक्ति परम्परा से चली आई है। विकार भी परम्परा से चले आये हैं। इन लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण को भी तो बच्चे थे ना। अरे हाँ, बच्चे क्यों नहीं थे परन्तु उन्हों को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ हैं सम्पूर्ण विकारी। एक-दो को गालियाँ देते रहते हैं। अब तुम बच्चों को बाप श्री श्री की श्रीमत मिलती है। तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं। अगर बाप का कहना नहीं मानेंगे तो फिर थोड़ेही बनेंगे। अब मानो न मानो। सपूत बच्चे तो फौरन मानेंगे। पूरी मदद नहीं देते हैं तो अपने को घाटा डालते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। कितना पुरूषार्थ कराता हूँ। कितना खुशी में ले आते हैं। बाप से पूरा वर्सा लेने में ही माया गफ़लत कराती है। परन्तु तुम्हें उस फन्दे में नहीं फँसना है। माया से ही लड़ाई होती है। बहुत बड़े-बड़े तूफान आयेंगे। उसमें भी वारिसों पर जास्ती माया वार करेगी। रूसतम से रूसतम हो लड़ेगी। जैसे वैद्य दवाई देते हैं तो बीमारी सारी बाहर निकल आती है। यहाँ भी मेरे बनेंगे तो फिर सबकी याद आने लग पड़ेगी। तूफान आयेंगे, इसमें लाइन क्लीयर चाहिए। हम पहले पवित्र थे फिर आधाकल्प अपवित्र बनें। अब फिर वापिस जाना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। याद करते-करते तुम घर चले जायेंगे, इसमें बिल्कुल अन्तर्मुखता चाहिए। नॉलेज भी आत्मा में धारण होती है ना। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा का ज्ञान भी परमात्मा बाप ही आकर देते हैं। इतना भारी ज्ञान तुम लेते हो विश्व का मालिक बनने के लिए। मुझे तुम कहते ही हो- पतित-पावन, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर। जो मेरे पास है वह तुमको सब देता हूँ। बाकी सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी नहीं देता हूँ। उसके बदले फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। साक्षात्कार में कुछ है नहीं। मुख्य है पढ़ाई। पढ़ाई से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है। मीरा की भेंट में तुम अपने सुख की भेंट करो। वह तो कलियुग में थी, दीदार किया फिर क्या। भक्ति की माला ही अलग है। ज्ञान मार्ग की माला अलग है। रावण की राजाई अलग, तुम्हारी राजाई अलग। उनको दिन, उनको रात कहा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ कर मायाजीत बनना है।
2) बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैराफत का समाचार जरूर देना है।
वरदान:
निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल देने वाले रूहानी रहमदिल भव!
जो रूहानी रहमदिल बच्चे हैं-वह महादानी बन बिल्कुल होपलेस केस में होप पैदा कर देते हैं। निर्बल को बलवान बना देते हैं। दान सदा गरीब को, बेसहारे को दिया जाता है। तो जो निर्बल दिलशिकस्त, असमर्थ प्रजा क्वालिटी की आत्मायें हैं उनके प्रति रूहानी रहमदिल बन महादानी बनो। आपस में एक दूसरे के प्रति महादानी नहीं। वह तो सहयोगी साथी हो, भाई भाई हो, हमशरीक पुरुषार्थी हो, सहयोग दो, दान नहीं।
स्लोगन:
सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो और किसी के संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता।
प्रश्न:
आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है?
उत्तर:
हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ कर मायाजीत बनना है।
2) बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैराफत का समाचार जरूर देना है।
वरदान:
निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल देने वाले रूहानी रहमदिल भव!
जो रूहानी रहमदिल बच्चे हैं-वह महादानी बन बिल्कुल होपलेस केस में होप पैदा कर देते हैं। निर्बल को बलवान बना देते हैं। दान सदा गरीब को, बेसहारे को दिया जाता है। तो जो निर्बल दिलशिकस्त, असमर्थ प्रजा क्वालिटी की आत्मायें हैं उनके प्रति रूहानी रहमदिल बन महादानी बनो। आपस में एक दूसरे के प्रति महादानी नहीं। वह तो सहयोगी साथी हो, भाई भाई हो, हमशरीक पुरुषार्थी हो, सहयोग दो, दान नहीं।
स्लोगन:
सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो और किसी के संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता।
ओम् शांति ।
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29-06-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो, तुम्हारे में कोई आसुरी गुण नहीं होने चाहिए, अपनी उन्नति करनी है, गफ़लत नहीं करनी है”
प्रश्न:
आप संगमयुगी ब्राह्मण बच्चों को कौन-सा निश्चय और नशा है?
उत्तर:
हम बच्चों को निश्चय और नशा है कि अभी हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं। हम स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। संगम पर हम ट्रांसफर हो रहे हैं। आसुरी औलाद से ईश्वरीय औलाद बन 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनते हैं, इससे भारी कोई वस्तु होती नहीं।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, अक्सर करके मनुष्य शान्ति को पसन्द करते हैं। घर में अगर बच्चों की खिट-खिट है, तो अशान्ति रहती है। अशान्ति से दु:ख भासता है। शान्ति से सुख भासता है। यहाँ तुम बच्चे बैठे हो, तुमको सच्ची शान्ति है। तुमको कहा गया है बाप को याद करो। अपने को आत्मा समझो। आत्मा में जो आधाकल्प से अशान्ति है, वह निकलनी है शान्ति के सागर बाप को याद करने से। तुमको शान्ति का वर्सा मिल रहा है। यह भी तुम जानते हो शान्ति की दुनिया और अशान्ति की दुनिया बिल्कुल अलग है। आसुरी दुनिया, ईश्वरीय दुनिया, सतयुग, कलियुग किसको कहा जाता है, यह कोई मनुष्य मात्र नहीं जानते। तुम कहेंगे हम भी नहीं जानते थे। भल कितने भी पोजीशन वाले थे। पैसे वाले को पोजीशन वाला कहा जाता है। गरीब और साहूकार समझ तो सकते हैं ना। वैसे तुम भी समझ सकते हो बरोबर ईश्वरीय औलाद और आसुरी औलाद। अभी तुम मीठे बच्चे समझते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं। यह पक्का निश्चय है ना। तुम ब्राह्मण समझते हो हम ईश्वरीय सम्प्रदाय स्वर्गवासी विश्व के मालिक बन रहे हैं। हरदम वह खुशी रहनी चाहिए। बहुत थोड़े हैं जो यथार्थ रीति से समझते हैं। सतयुग में हैं ईश्वरीय सम्प्रदाय। कलियुग में हैं आसुरी सम्प्रदाय। पुरूषोत्तम संगमयुग पर आसुरी सम्प्रदाय बदली होती है। अभी हम शिवबाबा की औलाद बने हैं। बीच में भूल गये थे। अभी फिर इस समय जाना है कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं। वहाँ सतयुग में कोई अपने को ईश्वरीय औलाद नहीं कहलाते। वहाँ हैं दैवी औलाद। इनके पहले हम आसुरी औलाद थे। अभी ईश्वरीय औलाद बने हैं। हम ब्राह्मण बी.के. हैं। रचना है एक बाप की। तुम सब भाई-बहन हो और ईश्वरीय औलाद हो। तुम जानते हो बाबा से राज्य मिल रहा है। भविष्य में जाकर हम दैवी स्वराज्य पायेंगे, सुखी होंगे। बरोबर सतयुग है सुख का धाम, कलियुग है दु:खधाम। यह सिर्फ तुम संगमयुगी ब्राह्मण जानते हो। आत्मा ही ईश्वरीय औलाद है। यह भी जानते हो बाबा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। वह रचता है ना। नर्क का क्रियेटर तो नहीं है। उनको कौन याद करेंगे। तुम मीठे-मीठे बच्चे जानते हो-बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। वह हमारा बहुत मीठा बाप है। हमको 21 जन्मों के लिए स्वर्गवासी बनाते हैं, इससे भारी वस्तु कोई होती नहीं। यह समझ रखनी चाहिए। हम ईश्वरीय औलाद हैं, तो हमारे में कोई आसुरी अवगुण होना नहीं चाहिए। अपनी उन्नति करनी है। समय बाकी थोड़ा है, इसमें गफ़लत नहीं करनी चाहिए। भूल न जाओ। देखते हो बाप सम्मुख बैठा है, जिनकी हम औलाद हैं। हम ईश्वर बाप से पढ़ रहे हैं दैवी औलाद बनने के लिए, तो कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। बाप आये ही हैं सबको ले जाने। जितना-जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे। अज्ञान में जैसे कन्या की सगाई होती है तो याद बिल्कुल छप जाती है। बच्चा पैदा हुआ और याद छप जाती है। यह याद तो स्वर्ग में भी छप जाती, नर्क में भी छप जाती। बच्चा कहेगा यह हमारा बाप है, अब यह तो है बेहद का बाप। जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है तो उनकी याद छप जानी चाहिए। बाप से हम भविष्य 21 जन्मों का फिर से वर्सा ले रहे हैं। बुद्धि में वर्सा ही याद है।
यह भी जानते हो मरना तो सबको है। एक भी रहने का नहीं है जो भी डियरेस्ट से डियरेस्ट (प्यारा से प्यारा) है, सब चले जायेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो कि यह पुरानी दुनिया अब गई कि गई। उसके जाने के पहले पूरा पुरूषार्थ करना है। जबकि ईश्वरीय औलाद हैं तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते रहते हैं-बच्चे, अपना जीवन हीरे जैसा बनाओ। वह है डीटी वर्ल्ड, यह है डेविल वर्ल्ड। सतयुग में कितना अथाह सुख रहता है। वह बाप ही देते हैं। यहाँ तुम बाप के पास आये हो। यहाँ बैठ तो नहीं जायेंगे। ऐसे तो नहीं सब इकट्ठे रहेंगे क्योंकि बेहद बच्चे हैं। यहाँ तुम बहुत उमंग से आते हो। हम जाते हैं बेहद के बाप पास। हम ईश्वरीय औलाद हैं। गॉड फादर के बच्चे हैं, तो हम क्यों न स्वर्ग में होने चाहिए। गॉड फादर तो स्वर्ग रचते हैं ना। अब तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है। जानते हो हेविनली गॉड फादर हमको हेविन के लायक बना रहे हैं। कल्प-कल्प बाद बनाते हैं। एक भी मनुष्य नहीं जिसको यह पता हो कि हम एक्टर हैं। गॉड फादर के बच्चे फिर हम दु:खी क्यों हैं! आपस में लड़ते क्यों हैं! हम आत्मायें सब ब्रदर्स हैं ना। ब्रदर्स आपस में कैसे लड़ते रहते हैं। लड़कर खत्म हो जायेंगे। यहाँ हम बाप से वर्सा ले रहे हैं। ब्रदर्स को आपस में कभी लून-पानी नहीं होना चाहिए। यहाँ तो बाप से भी लून-पानी होते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे लून-पानी हो जाते हैं। माया कितनी जबरदस्त है। जो अच्छे- अच्छे बच्चे हैं वह बाप को याद तो पड़ते हैं। बाप का कितना लव है बच्चों पर। बाप को तो सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं जिसको याद करें। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। तुम्हारी बुद्धि इधर-उधर जाती है। धन्धे आदि में भी बुद्धि जाती है। हमारे लिए तो कोई धन्धा आदि भी नहीं है। तुम अनेक बच्चों के अनेक धन्धे हैं। हमारा तो एक ही धन्धा है। हम आये ही हैं बच्चों को स्वर्ग का वारिस बनाने। बेहद के बाप की प्रापर्टा सिर्फ तुम बच्चे हो। गॉड फादर है ना। सभी आत्मायें उनकी प्रापर्टा हैं। माया ने छी-छी बना दिया है। अब गुल-गुल बनाते हैं बाप। बाप कहते हैं मेरे तो तुम ही हो। तुम्हारे ऊपर हमारा मोह भी है। चिट्ठी नहीं लिखते हो तो ओना हो जाता है। अच्छे-अच्छे बच्चों की चिट्ठी नहीं आती है। अच्छे-अच्छे बच्चों को एकदम माया खत्म कर देती है। जरूर देह-अभिमान है। बाप कहते रहते हैं अपनी खुशखैराफत लिखो। बाबा बच्चों से पूछते हैं बच्चे तुमको माया हैरान तो नहीं करती है? बहादुर बन माया पर जीत पहन रहे हो ना! तुम युद्ध के मैदान में हो ना। कर्मेन्द्रियां ऐसे वश करनी चाहिए जो कुछ भी चंचलता न हो। सतयुग में सब कर्मेन्द्रियां वश में रहती हैं। कर्मेन्द्रियों की कोई चंचलता नहीं होती है। न मुख की, न हाथ की, न कान की..... कोई भी चंचलता की बात नहीं होती। वहाँ कोई भी गन्द की ची॰ज होती नहीं। यहाँ योगबल से कर्मेन्द्रियों पर जीत पाते हो। बाप कहते हैं कोई भी गन्दी बात नहीं। कर्मेन्द्रियों को वश करना है। अच्छी रीति पुरूषार्थ करना है। टाइम बहुत थोड़ा है। गायन भी है बहुत गई थोड़ी रही। अभी थोड़ी रहती जाती है। नया मकान बनता रहता है तो बुद्धि में रहता है ना-बाकी थोड़ा समय है। अभी यह तैयार हो जायेगा, बाकी यह थोड़ा काम है। वह है हद की बात, यह है बेहद की बात। यह भी बच्चों को समझाया गया है उन्हों का है साइंस बल, तुम्हारा है साइलेन्स बल। है उनका भी बुद्धि बल, तुम्हारा भी बुद्धि बल। साइंस की कितनी इन्वेन्शन निकालते रहते हैं। अभी तो ऐसे बाम्ब्स बनाते रहते हैं जो कहते हैं वहाँ बैठे-बैठे छोड़ेंगे तो सारा शहर खत्म हो जायेगा। फिर यह सेनायें, एरोप्लेन आदि भी काम में नहीं आयेंगे। तो वह है साइंस बुद्धि। तुम्हारी है साइलेन्स बुद्धि। वह विनाश के लिए निमित्त बने हुए हैं। तुम अविनाशी पद पाने के लिए निमित्त बने हो। यह भी समझने की बुद्धि चाहिए ना।
तुम बच्चे समझ सकते हो - बाप कितना सहज रास्ता बताते हैं। भल कितनी भी अहिल्यायें, कुब्जायें हो, सिर्फ दो अक्षर याद करने हैं - बाप और वर्सा। फिर जितना जो याद करे। और संग तोड़ एक बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मैं जब अपने घर परमधाम में था तो भक्ति मार्ग में तुम पुकारते थे-बाबा आप आयेंगे तो हम सब कुछ कुर्बान करेंगे। यह हुए जैसे करनीघोर, करनीघोर को पुराना सामान दिया जाता है। तुम बाप को क्या देंगे? इनको (ब्रह्मा को) तो नहीं देते हो ना। इसने भी सब कुछ दे दिया। यह थोड़ेही यहाँ बैठ महल बनायेंगे। यह सब कुछ शिवबाबा के लिए है। उनके डायरेक्शन से कर रहे हैं। वह करनकरावनहार है, डायरेक्शन देते रहते हैं। बच्चे कहते हैं बाबा आप हमारे लिए एक ही हो। आपके लिए तो बहुत बच्चे हैं। बाबा फिर कहते हमारे लिए सिर्फ तुम बच्चे हो। तुम्हारे लिए तो बहुत हैं। कितने देह के सम्बन्धियों की याद रहती है। मीठे-मीठे बच्चों को बाप कहते हैं जितना हो सके बाप को याद करो और सबको भुलाते जाओ। स्वर्ग की राजाई का मक्खन तुमको मिलता है। ज़रा ख्याल तो करो, कैसे यह खेल की रचना है। तुम सिर्फ बाप को याद करते हो और स्वदर्शन चक्रधारी बनने से चक्रवर्ता राजा बनते हो। अभी तुम बच्चे प्रैक्टिकल में अनुभवी हो। मनुष्य तो समझते हैं भक्ति परम्परा से चली आई है। विकार भी परम्परा से चले आये हैं। इन लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण को भी तो बच्चे थे ना। अरे हाँ, बच्चे क्यों नहीं थे परन्तु उन्हों को कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ हैं सम्पूर्ण विकारी। एक-दो को गालियाँ देते रहते हैं। अब तुम बच्चों को बाप श्री श्री की श्रीमत मिलती है। तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं। अगर बाप का कहना नहीं मानेंगे तो फिर थोड़ेही बनेंगे। अब मानो न मानो। सपूत बच्चे तो फौरन मानेंगे। पूरी मदद नहीं देते हैं तो अपने को घाटा डालते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ। कितना पुरूषार्थ कराता हूँ। कितना खुशी में ले आते हैं। बाप से पूरा वर्सा लेने में ही माया गफ़लत कराती है। परन्तु तुम्हें उस फन्दे में नहीं फँसना है। माया से ही लड़ाई होती है। बहुत बड़े-बड़े तूफान आयेंगे। उसमें भी वारिसों पर जास्ती माया वार करेगी। रूसतम से रूसतम हो लड़ेगी। जैसे वैद्य दवाई देते हैं तो बीमारी सारी बाहर निकल आती है। यहाँ भी मेरे बनेंगे तो फिर सबकी याद आने लग पड़ेगी। तूफान आयेंगे, इसमें लाइन क्लीयर चाहिए। हम पहले पवित्र थे फिर आधाकल्प अपवित्र बनें। अब फिर वापिस जाना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। याद करते-करते तुम घर चले जायेंगे, इसमें बिल्कुल अन्तर्मुखता चाहिए। नॉलेज भी आत्मा में धारण होती है ना। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा का ज्ञान भी परमात्मा बाप ही आकर देते हैं। इतना भारी ज्ञान तुम लेते हो विश्व का मालिक बनने के लिए। मुझे तुम कहते ही हो- पतित-पावन, ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर। जो मेरे पास है वह तुमको सब देता हूँ। बाकी सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी नहीं देता हूँ। उसके बदले फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। साक्षात्कार में कुछ है नहीं। मुख्य है पढ़ाई। पढ़ाई से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है। मीरा की भेंट में तुम अपने सुख की भेंट करो। वह तो कलियुग में थी, दीदार किया फिर क्या। भक्ति की माला ही अलग है। ज्ञान मार्ग की माला अलग है। रावण की राजाई अलग, तुम्हारी राजाई अलग। उनको दिन, उनको रात कहा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद के बल से अपनी कर्मेन्द्रियाँ ऐसी वश करनी है जो कोई भी चंचलता न रहे। टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए अच्छी रीति पुरूषार्थ कर मायाजीत बनना है।
2) बाप जो ज्ञान देते हैं उसे अन्तर्मुखी बन धारण करना है। कभी भी आपस में लून-पानी नहीं होना है। बाप को अपनी खुशखैराफत का समाचार जरूर देना है।
वरदान:
निर्बल, दिलशिकस्त, असमर्थ आत्मा को एकस्ट्रा बल देने वाले रूहानी रहमदिल भव!
जो रूहानी रहमदिल बच्चे हैं-वह महादानी बन बिल्कुल होपलेस केस में होप पैदा कर देते हैं। निर्बल को बलवान बना देते हैं। दान सदा गरीब को, बेसहारे को दिया जाता है। तो जो निर्बल दिलशिकस्त, असमर्थ प्रजा क्वालिटी की आत्मायें हैं उनके प्रति रूहानी रहमदिल बन महादानी बनो। आपस में एक दूसरे के प्रति महादानी नहीं। वह तो सहयोगी साथी हो, भाई भाई हो, हमशरीक पुरुषार्थी हो, सहयोग दो, दान नहीं।
स्लोगन:
सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो और किसी के संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता।
Sunday, June 28, 2015
Murli 28 June 2015
“The gathering of those who bring light to the world”
Blessing:
May you be as unshakeable and immovable as Angad and overcome adverse situations with your knowledge-full stage.
In the kingdom of Ravan, no adverse situation or person should be able to shake you even slightly, even in your thoughts. Become those who are blessed with the blessing of being unshakeable and immovable in this way\, because any obstacle that comes doesn’t simply come to make you fall, but to make you strong. Those who are knowledge-full never become confused on seeing the paper. Maya can come in any form, but you have to keep the fire of yoga ignited and stay in your knowledge-full stage. All obstacles will then automatically finish and you will be able to remain stable in an unshakeable and immovable stage.
Slogan:
When you have accumulated the treasures of pure thoughts, your time will then not be wasted in wasteful thoughts.
Om Shanti
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Blessing:
May you be as unshakeable and immovable as Angad and overcome adverse situations with your knowledge-full stage.
In the kingdom of Ravan, no adverse situation or person should be able to shake you even slightly, even in your thoughts. Become those who are blessed with the blessing of being unshakeable and immovable in this way\, because any obstacle that comes doesn’t simply come to make you fall, but to make you strong. Those who are knowledge-full never become confused on seeing the paper. Maya can come in any form, but you have to keep the fire of yoga ignited and stay in your knowledge-full stage. All obstacles will then automatically finish and you will be able to remain stable in an unshakeable and immovable stage.
Slogan:
When you have accumulated the treasures of pure thoughts, your time will then not be wasted in wasteful thoughts.
Om Shanti
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मुरली 28 जून 2015
जहान को रोशन करने वालों की महफिल
वरदान:
नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव!
रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल- अडोल भव के वरदानी बनो क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नॉलेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है-लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नॉलेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।
स्लोगन:
शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।
ओम् शांति ।
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28-06-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:24-12-79 मधुबन
जहान को रोशन करने वालों की महफिल
आज बापदादा हरेक बच्चे को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कि हरेक बच्चा कितनी श्रेष्ठ आत्मा है। हरेक बच्चा जहान का नूर है अर्थात् नूरे-जहान है। बाप-दादा के भी नयनों के सितारे हैं। बच्चों को नयनों पर बिठाकर ही चलते हैं अर्थात् नयनों में समाये हुए हैं। नयनों की महिमा बहुत गाई हुई है। अगर नयन नहीं तो मानव-जीवन के लिए जहान नहीं। जैसे शरीर में नयनों का महत्व है ऐसे तुम हरेक बच्चे जहान के नूर हो। आप नूरे-जहान के बिना भी जहान का कोई मूल्य नहीं। जहान के नूर अपनी इस स्थिति पर स्थित होते हैं तो जहान भी सुखमय बन जाता है, श्रेष्ठ बन जाता है। और जहान के नूर अपनी श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं तो जहान भी असार संसार बन जाता है। इतना आप सबके ऊपर आधार है। जैसे कहावत है आप जागे तो संसार जागा, आप सोये तो संसार सोया। ऐसे संसार के आधार मूर्त हो। आपकी चढ़ती कला से सर्व की चढ़ती का सम्बन्ध है। आपकी गिरती कला से विश्व की गिरती कला का सम्बन्ध है। इतनी जिम्मेवारी हरेक के ऊपर है। ऐसे समझ करके चलते हो? ऐसी स्मृति रहती है? बाप-दादा हरेक बच्चे की वर्तमान स्थिति को देखते हैं। हरेक जहान का नूर कहाँ तक जग को रोशन कर रहे हैं। आँखों को ही जीवन की ज्योति कहते हैं। आप सब जग की ज्योति हो। अगर जग की ज्योति स्वयं ही हिलती रहेगी तो जग का क्या हाल होगा। यहाँ भी यह हद की लाइट नहीं जलती या हिलती है तो क्या महसूस करते हो? क्या उस समय अच्छा लगता है? ऐसे ही अगर आप जहान की ज्योति हलचल में आती हो तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होता होगा?
जहान के सितारे वा जहान के नूर, आप सबके ऊपर सबकी नज़र है। सबको इंतज़ार है। किस बात का? भक्ति मार्ग में एक शंकर के लिए कह दिया है कि आँख खोली और परिवर्तन हो गया लेकिन यह गायन आप शिववंशी नूरे जहान का है। यह जहान की आँखें जब अपनी सम्पूर्ण स्टेज तक पहुँचेंगी अर्थात् सम्पूर्णता की आँख खोलेंगी तो सेकेण्ड में परिवर्तन हो जायेगा। तो जहान के नूर, बताओ, सम्पूर्णता की आँख कब खोलेंगे? आँख खोली तो अब भी है लेकिन अभी बीच- बीच में माया की धूल पड़ जाती है तो आँखें हिलती रहती हैं। जैसे स्थूल आँखों में भी धूल पड़ जाती है तो आँख का क्या हाल होता है। एकाग्र रीति से दृष्टि नहीं दे सकेंगे। सारा विश्व आप जहान के आँखों की एक सेकेण्ड की दृष्टि लेने के लिए इंतज़ार में है कि कब हमारे इष्ट देवों वा देवियों की हमारे ऊपर दृष्टि पड़ेगी, जो हम नज़र से निहाल हो जायेंगे। ऐसे नज़र से निहाल करने वाले अगर स्वयं अपनी आँख मलते रहेंगे तो नज़र से निहाल कैसे करेंगे। नज़र से निहाल होने वालों की लम्बी क्यू है इसलिए सदा सम्पूर्णता की आँख खुली रहे। बापदादा जहान के नूरों का वन्डरफुल दृश्य देखते हैं। जहान के नूर भी अपने नयनों को एकाग्र नहीं रख सकते। कोई निहाल करते-करते हल्के से झुटके भी खा लेते हैं। अब झुटके वाले नज़र से निहाल कैसे करेंगे। संकल्पों का घुटका ही झुटका है। आपके भक्त आपको देख रहे हैं और दर्शनीय मूर्त झुटके खा रहे हैं। तो भक्तों का क्या हाल होगा इसलिए आँखों का मलना और झुटका खाना बन्द करना पड़े तब दर्शनीय मूर्त बन सकते हो।
अमृतवेले जहान के नूर को बाप-दादा देखते हैं कि जहान के नूर हिल रहे हैं या एकाग्र हैं। अनेक प्रकार की रूप रेखायें देखते हैं। वह तो आप सब जानते हो ना? वर्णन भी क्या करें। बीती सो-बीती। अब से अपने महत्व को जान, कर्तव्य को जान सदा जागती ज्योति बनकर रहो। सेकेण्ड में स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर सकते हो। इसकी प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। जैसे पुरानी दुनिया का दृष्टान्त देते हैं। आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो सकते हो?
चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हों फिर भी सेकेण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ। फुलस्टॉप लगाना आता है? पुलस्टॉप लगाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। क्वेश्चन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा। तो वर्तमान समय हलचल बढ़ने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा। एक तरफ प्रकृति का विकाराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अन्त होने के कारण अति विकराल रूप होगा। अपना लास्ट वार आ॰जमाने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकार। चौथी तरफ क्या होगा? पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेंगे। संस्कार का स्वरूप क्या होगा? किसी के पास कर्मभोग के रूप में आयेंगे, किसी के पास कर्म सम्बन्ध के बन्धन के रूप में आयेंगे। किसी के पास व्यर्थ संकल्प के रूप में आयेंगे। किसी के पास विशेष अलबेलेपन और आलस्य के रूप में आयेंगे। ऐसे चारों ओर का हलचल का वातावरण होगा। राज्य सत्ता, धर्म सत्ता, विज्ञान सत्ता और अनेक प्रकार के बाहुबल सब अपनी सत्ताओं की हलचल में होंगे। ऐसे समय पर फुलस्टॉप लगाना आयेगा या क्वेश्चन मार्क सामने आयेगा? क्या होगा? इतनी समेटने की शक्ति अनुभव करते हो? देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। प्रकृति की हलचल देख प्रकृतिपति बन प्रकृति को शान्त करो। अपने फुलस्टाप की स्टेज से प्रकृति की हलचल को स्टाप करो। तमोगुणी से सतोगुणी स्टेज में परिवर्तन करो। ऐसा अभ्यास है? ऐसे समय का आह्वान कर रहे हो ना? समेटने की शक्ति अपने पास जमा करो। इसके लिए विशेष अभ्यास चाहिए। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। इन तीनों स्टेजेस में स्थित रहना इतना सहज हो जाए, जैसे साकार रूप में सहज ही स्थित हो जाते हो वैसे आकारी और निराकारी स्थिति भी मेरी स्थिति है, तो अपनी स्थिति में स्थित होना तो सहज होना चाहिए। जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो ऐसे यह स्वरूप की स्थिति परिवर्तन कर सको। साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ। तो फरिश्तेपन की ड्रेस सेकेण्ड में धारण कर लो। ड्रेस चेन्ज करना नहीं आता? ऐसे अभ्यास बहुत समय से चाहिए तब ऐसे समय पर पास हो जायेंगे। समझा, समय की गति कितनी विकराल रूप लेने वाली है। ऐसे समय के लिए एवररेडी हो ना? या डेट बतायेंगे तब तैयार होंगे। डेट का मालूम होने से सोल कान्सेस के बजाए डेट कान्सेस हो जायेंगे। फिर फुल पास हो नहीं सकेंगे इसलिए डेट बताई नहीं जायेगी लेकिन डेट स्वयं ही आप सबको टच होगी। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इन आँखों के आगे कोई दृश्य देखते हो तो कितना स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे इनएडवान्स भविष्य स्पष्ट रूप में अनुभव करेंगे। लेकिन इसके लिए जहान के नूरों की आँखें सदा खुली रहें। अगर माया की धूल होगी तो स्पष्ट देख नहीं सकेंगे। समझा, क्या अभ्यास करना है? ड्रेस बदली करने का अभ्यास करो।
आज मधुबन में तीन नदियों का संगम हैं। देहली, यू.पी. और फारेन। त्रिवेणी का संगम है। आज सागर गंगा में नहाने आये हैं। बाप तो गंगाओं को ही आगे करेंगे। तीनों ही नदियाँ अपनी-अपनी रफ्तार से पावन बनाने की सेवा में लगी हैं। हरेक की महिमा एक दूसरे से महान है क्योंकि फॉरेन से आवाज़ निकलना है। देहली में राजधानी बननी है और यू.पी. में यादगार बनने हैं। तो तीनों का महत्व अपना-अपना श्रेष्ठ हुआ ना। फॉरेन का आवाज़ अभी शुरू होने वाला है और देहली की पुरानी गद्दी अभी हिलने वाली है। और यू.पी. के भक्त सब अपने इष्ट देवों को ढूँढ भक्ति का फल लेने के लिए तड़प रहे हैं। भक्त भी तैयार हो रहे हैं अपने इष्ट देवों से मिलने के लिए। अभी मास्टर भगवान तैयार हो जाओ तो दर्शन का पर्दा खुले। दर्शन का पर्दा है - समय। अब तीनों ही अपने कार्य की वृद्धि में तीव्रता लाओ। वह आवाज़ जल्दी पहुँचावें, वह राजधानी जल्दी तैयार करें और वह भक्तों की प्यास जल्दी पूर्ण करें तब जय-जयकार हो जायेगी। समझा, तीनों नदियों को क्या करना है। फॉरेन को फौरन करना है। फॉरेन वालों ने पुरूषार्थ अच्छा किया है। गहने तो तैयार कर लिए हैं। अभी क्या करना है? अभी ज़ेवरों के बीच हीरे लगाने हैं। हीरो तथा हीरोइन पार्ट बजाने वाले। अच्छा, यू.पी. क्या करेगी? जैसे यू.पी. में गली-गली में मन्दिर हैं ऐसे यू.पी. में गली-गली में सेवाकेन्द्र हों तब भक्ति और ज्ञान का मुकाबला होगा। भक्ति, ज्ञान के आगे नमस्कार करेगी। देहली क्या करेगी? जमुना के किनारे पर अभी राजयोग महल बनेंगे तब जमुना के किनारे पर फिर महल बनेंगे। अभी राजयोग प्लेस बनाओ फिर पैलेस बनेंगे। फाउन्डेशन तो अभी डालना है ना। अभी राजयोग भवन बनेगा। यू.पी. को धर्म युद्ध का खेल दिखाना चाहिए। सुनाया ना, अभी तो सिर्फ धर्म नेताएं जो ऊंची ऑखे करके सामना करते थे, अभी आँखें नीचे की हैं। लेकिन अब सिर झुकाना है। अब आप लोगों की स्टेज पर आते हैं। लेकिन अपनी स्टेज पर आपको चीफ गेस्ट कर बुलावें तब कहेंगे कि सिर झुकाया है। अच्छा!
बाप-दादा के सर्व संकल्पों को पूर्ण करने वाले, श्रेष्ठ शुभ आशाओं के दीपक, सदा फुल स्टॉप लगाने वाले, सदा एवररेडी बहुत समय के अभ्यासी, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन करने वाले, त्रिवेणी नदियों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से:-
ज्ञानी तू आत्माओं का विशेष कर्तव्य है - भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना सभी आत्माओं को यह अनुभव करा रहे हो कि सिवाए बाप की नॉलेज के और जो भी नॉलेज है वह बिना रस के है अर्थात् कोई रस नहीं हैं? यह अनुभव करें कि हम क्या कर रहे हैं और यह क्या पा रहे हैं। हम सुनने वाले वो सुनाने वाले हैं, भटकने वाले हैं और यह पाने वाले हैं। जब ऐसा अनुभव करें तब जय-जयकार हो। जितना आप सेवा के अर्थ निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माएं सर्व अनुभवों के रस में रहेंगी उतना वह अपने को नीरस अनुभव करेंगे। तो क्या समझते हो? अभी उनको ऐसा संकल्प आता है कि यह मक्खन खाने वाले हैं और हम सभी छाछ पीने वाले हैं?
जैसे सुनाया कि गली-गली में मन्दिर के बजाए राजयोग केन्द्र हों, अनुभव केन्द्र हो। भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना यही ज्ञानी-तू-आत्माओं का विशेष कर्तव्य है। कब बनेगा ज्ञान स्थान? जब भक्ति से वैराग्य आ जाए तब ज्ञान का बीज पड़े। ऐसा अपनी मन्सा सेवा से भी वातावरण बनाओ जो यह अनुभव करें कि भक्ति से मिला कुछ नहीं। ऐसा उपराम हो जाएं तब फिर ज्ञान का बीज सहज पड़ेगा। इसके लिए कौन-सा साधन अपनाना पड़े? इसके लिए जो नामीग्रामी हैं और उनमें से भी जो स्नेह वाली आत्माएं हैं, एक हैं स्वार्थ वाली और एक हैं स्नेह वाली। स्नेह वाली आत्माओं को समीप लाते रहो। बार-बार स्नेह मिलन के सम्पर्क से उनको नजदीक लायेंगे तो उन द्वारा अनेकों का कल्याण होगा। पहले आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी फिर वह स्वयं ही अपना संगठन बढ़ाते जायेंगे। जैसे फॉरेन से आवाज़ निकलेगा प्रत्यक्षता का, वैसे धर्म-स्थानों से यह आवाज़ निकले कि भक्ति होते भी कुछ और चाहिए। भक्ति से जो चाहना थी, वह पूर्ण नहीं हो रही है - क्यों? यह क्वेश्चन उठे तो यह क्वेश्चन ही प्रत्यक्षता करेगा। जैसे अभी धर्म-नेताओं में यह हलचल है कि आखिर भी धर्म में फूट क्यों होती जा रही है, टुकड़े-टुकड़े क्यों होते जा रहे हैं? मन में यह उलझन तो उत्पन्न हुई है लेकिन इस उलझन का ठिकाना मालूम पड़े - यह नहीं हुआ है। यह समझते हैं कि हमें जो करना चाहिए वह नहीं हो रहा है। लेकिन यह होना चाहिए, ऐसा नहीं उठता। भक्ति का फल क्यों नही मिल रहा है? भक्ति में जो होना चाहिए वह क्यों नहीं हो रहा है? जब ऐसे क्वेश्चन उठेंगे तभी नजदीक आयेंगे, ढूँढेंगे। भक्तों के ऊपर तरस आता है? भक्त हैं तो भोले ना। भोलों पर तरस जरूर पड़ता है। अभी संगठित रूप में दृढ़ संकल्प रखो कि भक्तों को, भोलों को ठिकाना जरूर दिखाना है। तब नम्बरवन बन सकेंगे।
(विदेशी बच्चों को क्रिसमस की मुबारक)सभी किसमिस जैसे मीठे-मीठे बच्चों को नये साल की नई उमंगें और नये खुशी की तरंगों से भरपूर खुशी की मुबारक हो। सारा वर्ष ऐसे सदा साथ का अनुभव करेंगे। यह क्रिसमस का दिन सदा के लिए बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने का वरदान लिए हुए लाया है। कम्बाइन्ड भव। जैसे आज के दिन दो-दो मिलकर डान्स करते हो ना, वैसे सारा वर्ष बाप और आप खुशी में नाचते रहेंगे। सर्वशक्तियों की पैकेट बाप-दादा सौगात दे रहे हैं। मास्टर सर्वशक्तिमान बन सदा माया जीत रहने की बड़े-से-बड़ी सौगात है। अच्छा।
वरदान:
नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव!
रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल- अडोल भव के वरदानी बनो क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नॉलेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है-लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नॉलेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।
स्लोगन:
शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।
वरदान:
नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव!
रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल- अडोल भव के वरदानी बनो क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नॉलेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है-लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नॉलेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।
स्लोगन:
शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।
ओम् शांति ।
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28-06-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:24-12-79 मधुबन
जहान को रोशन करने वालों की महफिल
आज बापदादा हरेक बच्चे को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कि हरेक बच्चा कितनी श्रेष्ठ आत्मा है। हरेक बच्चा जहान का नूर है अर्थात् नूरे-जहान है। बाप-दादा के भी नयनों के सितारे हैं। बच्चों को नयनों पर बिठाकर ही चलते हैं अर्थात् नयनों में समाये हुए हैं। नयनों की महिमा बहुत गाई हुई है। अगर नयन नहीं तो मानव-जीवन के लिए जहान नहीं। जैसे शरीर में नयनों का महत्व है ऐसे तुम हरेक बच्चे जहान के नूर हो। आप नूरे-जहान के बिना भी जहान का कोई मूल्य नहीं। जहान के नूर अपनी इस स्थिति पर स्थित होते हैं तो जहान भी सुखमय बन जाता है, श्रेष्ठ बन जाता है। और जहान के नूर अपनी श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं तो जहान भी असार संसार बन जाता है। इतना आप सबके ऊपर आधार है। जैसे कहावत है आप जागे तो संसार जागा, आप सोये तो संसार सोया। ऐसे संसार के आधार मूर्त हो। आपकी चढ़ती कला से सर्व की चढ़ती का सम्बन्ध है। आपकी गिरती कला से विश्व की गिरती कला का सम्बन्ध है। इतनी जिम्मेवारी हरेक के ऊपर है। ऐसे समझ करके चलते हो? ऐसी स्मृति रहती है? बाप-दादा हरेक बच्चे की वर्तमान स्थिति को देखते हैं। हरेक जहान का नूर कहाँ तक जग को रोशन कर रहे हैं। आँखों को ही जीवन की ज्योति कहते हैं। आप सब जग की ज्योति हो। अगर जग की ज्योति स्वयं ही हिलती रहेगी तो जग का क्या हाल होगा। यहाँ भी यह हद की लाइट नहीं जलती या हिलती है तो क्या महसूस करते हो? क्या उस समय अच्छा लगता है? ऐसे ही अगर आप जहान की ज्योति हलचल में आती हो तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होता होगा?
जहान के सितारे वा जहान के नूर, आप सबके ऊपर सबकी नज़र है। सबको इंतज़ार है। किस बात का? भक्ति मार्ग में एक शंकर के लिए कह दिया है कि आँख खोली और परिवर्तन हो गया लेकिन यह गायन आप शिववंशी नूरे जहान का है। यह जहान की आँखें जब अपनी सम्पूर्ण स्टेज तक पहुँचेंगी अर्थात् सम्पूर्णता की आँख खोलेंगी तो सेकेण्ड में परिवर्तन हो जायेगा। तो जहान के नूर, बताओ, सम्पूर्णता की आँख कब खोलेंगे? आँख खोली तो अब भी है लेकिन अभी बीच- बीच में माया की धूल पड़ जाती है तो आँखें हिलती रहती हैं। जैसे स्थूल आँखों में भी धूल पड़ जाती है तो आँख का क्या हाल होता है। एकाग्र रीति से दृष्टि नहीं दे सकेंगे। सारा विश्व आप जहान के आँखों की एक सेकेण्ड की दृष्टि लेने के लिए इंतज़ार में है कि कब हमारे इष्ट देवों वा देवियों की हमारे ऊपर दृष्टि पड़ेगी, जो हम नज़र से निहाल हो जायेंगे। ऐसे नज़र से निहाल करने वाले अगर स्वयं अपनी आँख मलते रहेंगे तो नज़र से निहाल कैसे करेंगे। नज़र से निहाल होने वालों की लम्बी क्यू है इसलिए सदा सम्पूर्णता की आँख खुली रहे। बापदादा जहान के नूरों का वन्डरफुल दृश्य देखते हैं। जहान के नूर भी अपने नयनों को एकाग्र नहीं रख सकते। कोई निहाल करते-करते हल्के से झुटके भी खा लेते हैं। अब झुटके वाले नज़र से निहाल कैसे करेंगे। संकल्पों का घुटका ही झुटका है। आपके भक्त आपको देख रहे हैं और दर्शनीय मूर्त झुटके खा रहे हैं। तो भक्तों का क्या हाल होगा इसलिए आँखों का मलना और झुटका खाना बन्द करना पड़े तब दर्शनीय मूर्त बन सकते हो।
अमृतवेले जहान के नूर को बाप-दादा देखते हैं कि जहान के नूर हिल रहे हैं या एकाग्र हैं। अनेक प्रकार की रूप रेखायें देखते हैं। वह तो आप सब जानते हो ना? वर्णन भी क्या करें। बीती सो-बीती। अब से अपने महत्व को जान, कर्तव्य को जान सदा जागती ज्योति बनकर रहो। सेकेण्ड में स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर सकते हो। इसकी प्रैक्टिस करो अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। जैसे पुरानी दुनिया का दृष्टान्त देते हैं। आपकी रचना कछुआ सेकेण्ड में सब अंग समेट लेता है। समेटने की शक्ति रचना में भी है। आप मास्टर रचता समेटने की शक्ति के आधार से सेकेण्ड में सर्व संकल्पों को समाकर एक संकल्प में सेकेण्ड में स्थित हो सकते हो?
चारों ओर की हलचल की परिस्थितियाँ हों फिर भी सेकेण्ड में हलचल होते हुए भी अचल बन जाओ। फुलस्टॉप लगाना आता है? पुलस्टॉप लगाने में कितना समय लगता है? फुलस्टॉप लगाना इतना सहज होता है जो बच्चा भी लगा सकता है। क्वेश्चन मार्क नहीं लगा सकेगा, लेकिन फुलस्टॉप लगा सकेगा। तो वर्तमान समय हलचल बढ़ने का समय है। लेकिन प्रकृति की हलचल और प्रकृतिपति का अचल होना। अब तो प्रकृति भी छोटे-छोटे पेपर ले रही है लेकिन फाइनल पेपर में पाँचों तत्वों का विकराल रूप होगा। एक तरफ प्रकृति का विकाराल रूप, दूसरी तरफ पाँचों ही विकारों का अन्त होने के कारण अति विकराल रूप होगा। अपना लास्ट वार आ॰जमाने वाले होंगे। तीसरी तरफ सर्व आत्माओं के भिन्न-भिन्न रूप होंगे। एक तरफ तमोगुणी आत्माओं का वार, दूसरी तरफ भक्त आत्माओं की भिन्न-भिन्न पुकार। चौथी तरफ क्या होगा? पुराने संस्कार। लास्ट समय वह भी अपना चान्स लेंगे। एक बार आकर फिर सदा के लिए विदाई लेंगे। संस्कार का स्वरूप क्या होगा? किसी के पास कर्मभोग के रूप में आयेंगे, किसी के पास कर्म सम्बन्ध के बन्धन के रूप में आयेंगे। किसी के पास व्यर्थ संकल्प के रूप में आयेंगे। किसी के पास विशेष अलबेलेपन और आलस्य के रूप में आयेंगे। ऐसे चारों ओर का हलचल का वातावरण होगा। राज्य सत्ता, धर्म सत्ता, विज्ञान सत्ता और अनेक प्रकार के बाहुबल सब अपनी सत्ताओं की हलचल में होंगे। ऐसे समय पर फुलस्टॉप लगाना आयेगा या क्वेश्चन मार्क सामने आयेगा? क्या होगा? इतनी समेटने की शक्ति अनुभव करते हो? देखते हुए न देखो, सुनते हुए न सुनो। प्रकृति की हलचल देख प्रकृतिपति बन प्रकृति को शान्त करो। अपने फुलस्टाप की स्टेज से प्रकृति की हलचल को स्टाप करो। तमोगुणी से सतोगुणी स्टेज में परिवर्तन करो। ऐसा अभ्यास है? ऐसे समय का आह्वान कर रहे हो ना? समेटने की शक्ति अपने पास जमा करो। इसके लिए विशेष अभ्यास चाहिए। अभी-अभी साकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। इन तीनों स्टेजेस में स्थित रहना इतना सहज हो जाए, जैसे साकार रूप में सहज ही स्थित हो जाते हो वैसे आकारी और निराकारी स्थिति भी मेरी स्थिति है, तो अपनी स्थिति में स्थित होना तो सहज होना चाहिए। जैसे साकार रूप में एक ड्रेस चेन्ज कर दूसरी ड्रेस धारण करते हो ऐसे यह स्वरूप की स्थिति परिवर्तन कर सको। साकार स्वरूप की स्मृति को छोड़ आकारी फरिश्ता स्वरूप बन जाओ। तो फरिश्तेपन की ड्रेस सेकेण्ड में धारण कर लो। ड्रेस चेन्ज करना नहीं आता? ऐसे अभ्यास बहुत समय से चाहिए तब ऐसे समय पर पास हो जायेंगे। समझा, समय की गति कितनी विकराल रूप लेने वाली है। ऐसे समय के लिए एवररेडी हो ना? या डेट बतायेंगे तब तैयार होंगे। डेट का मालूम होने से सोल कान्सेस के बजाए डेट कान्सेस हो जायेंगे। फिर फुल पास हो नहीं सकेंगे इसलिए डेट बताई नहीं जायेगी लेकिन डेट स्वयं ही आप सबको टच होगी। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे इन आँखों के आगे कोई दृश्य देखते हो तो कितना स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे इनएडवान्स भविष्य स्पष्ट रूप में अनुभव करेंगे। लेकिन इसके लिए जहान के नूरों की आँखें सदा खुली रहें। अगर माया की धूल होगी तो स्पष्ट देख नहीं सकेंगे। समझा, क्या अभ्यास करना है? ड्रेस बदली करने का अभ्यास करो।
आज मधुबन में तीन नदियों का संगम हैं। देहली, यू.पी. और फारेन। त्रिवेणी का संगम है। आज सागर गंगा में नहाने आये हैं। बाप तो गंगाओं को ही आगे करेंगे। तीनों ही नदियाँ अपनी-अपनी रफ्तार से पावन बनाने की सेवा में लगी हैं। हरेक की महिमा एक दूसरे से महान है क्योंकि फॉरेन से आवाज़ निकलना है। देहली में राजधानी बननी है और यू.पी. में यादगार बनने हैं। तो तीनों का महत्व अपना-अपना श्रेष्ठ हुआ ना। फॉरेन का आवाज़ अभी शुरू होने वाला है और देहली की पुरानी गद्दी अभी हिलने वाली है। और यू.पी. के भक्त सब अपने इष्ट देवों को ढूँढ भक्ति का फल लेने के लिए तड़प रहे हैं। भक्त भी तैयार हो रहे हैं अपने इष्ट देवों से मिलने के लिए। अभी मास्टर भगवान तैयार हो जाओ तो दर्शन का पर्दा खुले। दर्शन का पर्दा है - समय। अब तीनों ही अपने कार्य की वृद्धि में तीव्रता लाओ। वह आवाज़ जल्दी पहुँचावें, वह राजधानी जल्दी तैयार करें और वह भक्तों की प्यास जल्दी पूर्ण करें तब जय-जयकार हो जायेगी। समझा, तीनों नदियों को क्या करना है। फॉरेन को फौरन करना है। फॉरेन वालों ने पुरूषार्थ अच्छा किया है। गहने तो तैयार कर लिए हैं। अभी क्या करना है? अभी ज़ेवरों के बीच हीरे लगाने हैं। हीरो तथा हीरोइन पार्ट बजाने वाले। अच्छा, यू.पी. क्या करेगी? जैसे यू.पी. में गली-गली में मन्दिर हैं ऐसे यू.पी. में गली-गली में सेवाकेन्द्र हों तब भक्ति और ज्ञान का मुकाबला होगा। भक्ति, ज्ञान के आगे नमस्कार करेगी। देहली क्या करेगी? जमुना के किनारे पर अभी राजयोग महल बनेंगे तब जमुना के किनारे पर फिर महल बनेंगे। अभी राजयोग प्लेस बनाओ फिर पैलेस बनेंगे। फाउन्डेशन तो अभी डालना है ना। अभी राजयोग भवन बनेगा। यू.पी. को धर्म युद्ध का खेल दिखाना चाहिए। सुनाया ना, अभी तो सिर्फ धर्म नेताएं जो ऊंची ऑखे करके सामना करते थे, अभी आँखें नीचे की हैं। लेकिन अब सिर झुकाना है। अब आप लोगों की स्टेज पर आते हैं। लेकिन अपनी स्टेज पर आपको चीफ गेस्ट कर बुलावें तब कहेंगे कि सिर झुकाया है। अच्छा!
बाप-दादा के सर्व संकल्पों को पूर्ण करने वाले, श्रेष्ठ शुभ आशाओं के दीपक, सदा फुल स्टॉप लगाने वाले, सदा एवररेडी बहुत समय के अभ्यासी, स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन करने वाले, त्रिवेणी नदियों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से:-
ज्ञानी तू आत्माओं का विशेष कर्तव्य है - भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना सभी आत्माओं को यह अनुभव करा रहे हो कि सिवाए बाप की नॉलेज के और जो भी नॉलेज है वह बिना रस के है अर्थात् कोई रस नहीं हैं? यह अनुभव करें कि हम क्या कर रहे हैं और यह क्या पा रहे हैं। हम सुनने वाले वो सुनाने वाले हैं, भटकने वाले हैं और यह पाने वाले हैं। जब ऐसा अनुभव करें तब जय-जयकार हो। जितना आप सेवा के अर्थ निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माएं सर्व अनुभवों के रस में रहेंगी उतना वह अपने को नीरस अनुभव करेंगे। तो क्या समझते हो? अभी उनको ऐसा संकल्प आता है कि यह मक्खन खाने वाले हैं और हम सभी छाछ पीने वाले हैं?
जैसे सुनाया कि गली-गली में मन्दिर के बजाए राजयोग केन्द्र हों, अनुभव केन्द्र हो। भक्ति-स्थान को ज्ञान-स्थान बनाना यही ज्ञानी-तू-आत्माओं का विशेष कर्तव्य है। कब बनेगा ज्ञान स्थान? जब भक्ति से वैराग्य आ जाए तब ज्ञान का बीज पड़े। ऐसा अपनी मन्सा सेवा से भी वातावरण बनाओ जो यह अनुभव करें कि भक्ति से मिला कुछ नहीं। ऐसा उपराम हो जाएं तब फिर ज्ञान का बीज सहज पड़ेगा। इसके लिए कौन-सा साधन अपनाना पड़े? इसके लिए जो नामीग्रामी हैं और उनमें से भी जो स्नेह वाली आत्माएं हैं, एक हैं स्वार्थ वाली और एक हैं स्नेह वाली। स्नेह वाली आत्माओं को समीप लाते रहो। बार-बार स्नेह मिलन के सम्पर्क से उनको नजदीक लायेंगे तो उन द्वारा अनेकों का कल्याण होगा। पहले आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी फिर वह स्वयं ही अपना संगठन बढ़ाते जायेंगे। जैसे फॉरेन से आवाज़ निकलेगा प्रत्यक्षता का, वैसे धर्म-स्थानों से यह आवाज़ निकले कि भक्ति होते भी कुछ और चाहिए। भक्ति से जो चाहना थी, वह पूर्ण नहीं हो रही है - क्यों? यह क्वेश्चन उठे तो यह क्वेश्चन ही प्रत्यक्षता करेगा। जैसे अभी धर्म-नेताओं में यह हलचल है कि आखिर भी धर्म में फूट क्यों होती जा रही है, टुकड़े-टुकड़े क्यों होते जा रहे हैं? मन में यह उलझन तो उत्पन्न हुई है लेकिन इस उलझन का ठिकाना मालूम पड़े - यह नहीं हुआ है। यह समझते हैं कि हमें जो करना चाहिए वह नहीं हो रहा है। लेकिन यह होना चाहिए, ऐसा नहीं उठता। भक्ति का फल क्यों नही मिल रहा है? भक्ति में जो होना चाहिए वह क्यों नहीं हो रहा है? जब ऐसे क्वेश्चन उठेंगे तभी नजदीक आयेंगे, ढूँढेंगे। भक्तों के ऊपर तरस आता है? भक्त हैं तो भोले ना। भोलों पर तरस जरूर पड़ता है। अभी संगठित रूप में दृढ़ संकल्प रखो कि भक्तों को, भोलों को ठिकाना जरूर दिखाना है। तब नम्बरवन बन सकेंगे।
(विदेशी बच्चों को क्रिसमस की मुबारक)सभी किसमिस जैसे मीठे-मीठे बच्चों को नये साल की नई उमंगें और नये खुशी की तरंगों से भरपूर खुशी की मुबारक हो। सारा वर्ष ऐसे सदा साथ का अनुभव करेंगे। यह क्रिसमस का दिन सदा के लिए बाप के साथ कम्बाइन्ड रहने का वरदान लिए हुए लाया है। कम्बाइन्ड भव। जैसे आज के दिन दो-दो मिलकर डान्स करते हो ना, वैसे सारा वर्ष बाप और आप खुशी में नाचते रहेंगे। सर्वशक्तियों की पैकेट बाप-दादा सौगात दे रहे हैं। मास्टर सर्वशक्तिमान बन सदा माया जीत रहने की बड़े-से-बड़ी सौगात है। अच्छा।
वरदान:
नॉलेजफुल स्थिति द्वारा परिस्थितियों को पार करने वाले अंगद समान अचल-अडोल भव!
रावण राज्य की कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति जरा भी संकल्प रूप में भी हिला न सके। ऐसे अचल- अडोल भव के वरदानी बनो क्योंकि कोई भी विघ्न गिराने के लिए नहीं, मजबूत बनाने के लिए आता है। नॉलेजफुल कभी पेपर को देखकर कनफ्यूज नहीं होते। माया किसी भी रूप में आ सकती है-लेकिन आप योगाग्नि जगाकर रखो, नॉलेजफुल स्थिति में रहो तो सब विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे और आप अचल अडोल स्थिति में स्थित रहेंगे।
स्लोगन:
शुद्ध संकल्प का खजाना जमा हो तो व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं जायेगा।
Saturday, June 27, 2015
Murli 27 June 2015
Sweet children, God Rudra, Himself, has created this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Sacrifice everything you have into it because you now have to return home.
Question:
What wonderful game takes place at the confluence age?
Answer:
Devils create obstacles in the sacrificial fire that God has created. This wonderful game only takes place at the confluence age. At no other time throughout the whole cycle is this type of sacrificial fire created. This is the sacrificial fire in which the horse is sacrificed to attain self- sovereignty. It is in this that obstacles are created.
Essence for Dharna:
1. Earn a true income and create your fortune for 21 births. There is no guarantee for your body. Therefore do not waste any chances.
2. Become a destroyer of attachment and sacrifice everything you have into the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Surrender yourself and look after everything as a trustee. Follow the example of the corporeal father.
Blessing:
May you practise on yourself and claim a certificate for serving through the mind with your powerful stage.
In order to give the world the blessing of light and might, make the atmosphere powerful by practising on yourself at amrit vela and you will receive a certificate of serving through your mind. In the last moments, you have to do the service of taking souls beyond with your drishti by serving through the mind and of transforming their attitudes with your own attitude. You have to make everyone powerful with your elevated awareness. When you have the practice of giving such light and might, the atmosphere will become free from obstacles and this fortress will become strong.
Slogan:
A sensible person is one who does three types of service – through thoughts,words and deeds - at the same time.
Om Shanti
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Question:
What wonderful game takes place at the confluence age?
Answer:
Devils create obstacles in the sacrificial fire that God has created. This wonderful game only takes place at the confluence age. At no other time throughout the whole cycle is this type of sacrificial fire created. This is the sacrificial fire in which the horse is sacrificed to attain self- sovereignty. It is in this that obstacles are created.
Essence for Dharna:
1. Earn a true income and create your fortune for 21 births. There is no guarantee for your body. Therefore do not waste any chances.
2. Become a destroyer of attachment and sacrifice everything you have into the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Surrender yourself and look after everything as a trustee. Follow the example of the corporeal father.
Blessing:
May you practise on yourself and claim a certificate for serving through the mind with your powerful stage.
In order to give the world the blessing of light and might, make the atmosphere powerful by practising on yourself at amrit vela and you will receive a certificate of serving through your mind. In the last moments, you have to do the service of taking souls beyond with your drishti by serving through the mind and of transforming their attitudes with your own attitude. You have to make everyone powerful with your elevated awareness. When you have the practice of giving such light and might, the atmosphere will become free from obstacles and this fortress will become strong.
Slogan:
A sensible person is one who does three types of service – through thoughts,words and deeds - at the same time.
Om Shanti
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