Wednesday, July 15, 2015

मुरली 16 जुलाई 2015

“मीठे बच्चे - इस बेहद नाटक में तुम वन्डरफुल एक्टर हो, यह अनादि नाटक है, इसमें कुछ भी बदली नहीं हो सकता”

प्रश्न:

बुद्धिवान, दूरादेशी बच्चे ही किस गुह्य राज़ को समझ सकते हैं?

उत्तर:

मूलवतन से लेकर सारे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का जो गुह्य राज़ है, वह दूरादेशी बच्चे ही समझ सकते हैं, बीज और झाड़ का सारा ज्ञान उनकी बुद्धि में रहता है। वह जानते हैं-इस बेहद के नाटक में आत्मा रूपी एक्टर जो यह चोला पहनकर पार्ट बजा रही है, इसे सतयुग से लेकर कलियुग तक पार्ट बजाना है। कोई भी एक्टर बीच में वापिस जा नहीं सकता।

गीत:
तूने रात गँवाई.......

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) बुद्धि को ज्ञान चिन्तन में बिजी रखने की आदत डालनी है। जब भी समय मिले एकान्त में जाकर विचार सागर मंथन करना है। बाप को याद कर सच्ची कमाई जमा करनी है।

2) दूरादेशी बनकर इस बेहद के नाटक को यथार्थ रीति समझना है। सभी पार्टधारियों के पार्ट को साक्षी होकर देखना है।

वरदान:

हर सेकण्ड और संकल्प को अमूल्य रीति से व्यतीत करने वाले अमूल्य रत्न भव!

संगमयुग के एक सेकण्ड की भी बहुत बड़ी वैल्यु है। जैसे एक का लाख गुणा बनता है वैसे यदि एक सेकण्ड भी व्यर्थ जाता है तो लाख गुणा व्यर्थ जाता है-इसलिए इतना अटेन्शन रखो तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा। अभी तो कोई हिसाब लेने वाला नहीं है लेकिन थोड़े समय के बाद पश्चाताप होगा क्योंकि इस समय की बहुत वैल्यु है। जो अपने हर सेकण्ड, हर संकल्प को अमूल्य रीति से व्यतीत करते हैं वही अमूल्य रत्न बनते हैं।

स्लोगन:

जो सदा योगयुक्त हैं वो सहयोग का अनुभव करते विजयी बन जाते हैं।


ओम् शांति ।

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16-07-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - इस बेहद नाटक में तुम वन्डरफुल एक्टर हो, यह अनादि नाटक है, इसमें कुछ भी बदली नहीं हो सकता”   
प्रश्न:
बुद्धिवान, दूरादेशी बच्चे ही किस गुह्य राज़ को समझ सकते हैं?
उत्तर:
मूलवतन से लेकर सारे ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का जो गुह्य राज़ है, वह दूरादेशी बच्चे ही समझ सकते हैं, बीज और झाड़ का सारा ज्ञान उनकी बुद्धि में रहता है। वह जानते हैं-इस बेहद के नाटक में आत्मा रूपी एक्टर जो यह चोला पहनकर पार्ट बजा रही है, इसे सतयुग से लेकर कलियुग तक पार्ट बजाना है। कोई भी एक्टर बीच में वापिस जा नहीं सकता।
गीत:
तूने रात गँवाई.......  
ओम् शान्ति।
यह गीत बच्चों ने सुना। अब इसमें कोई अक्षर राइट भी हैं, तो रांग भी हैं। सुख में तो सिमरण किया नहीं जाता। दु:ख को भी आना है जरूर। दु:ख हो तब तो सुख देने के लिए बाप को आना पड़े। मीठे-मीठे बच्चों को मालूम है, अभी हम सुखधाम के लिए पढ़ रहे हैं। शान्तिधाम और सुखधाम। पहले मुक्ति फिर होती है जीवनमुक्ति। शान्तिधाम घर है, वहाँ कोई पार्ट नहीं बजाया जाता। एक्टर्स घर में चले जाते हैं, वहाँ कोई पार्ट नहीं बजाते। पार्ट स्टेज पर बजाया जाता है। यह भी स्टेज है। जैसे हद का नाटक होता है वैसे यह बेहद का नाटक है। इनके आदि-मध्य-अन्त का राज़ सिवाए बाप के कोई और समझा न सके। वास्तव में यह यात्रा अथवा युद्ध अक्षर सिर्फ समझाने में काम में लाते हैं। बाकी इसमें युद्ध आदि कुछ है नहीं। यात्रा भी अक्षर है। बाकी है तो याद। याद करते-करते पावन बन जायेंगे। यह यात्रा पूरी भी यहाँ ही होगी। कहाँ जाना नहीं है। बच्चों को समझाया जाता है पावन बनकर अपने घर जाना है। अपवित्र तो जा न सकें। अपने को आत्मा समझना है। मुझ आत्मा में सारे चक्र का पार्ट है। अभी वह पार्ट पूरा हुआ है। बाप राय देते हैं बहुत सहज, मुझे याद करो। बाकी बैठे तो यहाँ ही हो। कहाँ जाते नहीं हो। बाप आकर कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। युद्ध कोई है नहीं। अपने को तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाना है। माया पर जीत पानी है। बच्चे जानते हैं 84 का चक्र पूरा होना है, भारत सतोप्रधान था। उसमें जरूर मनुष्य ही होंगे। जमीन थोड़ेही बदलेगी। अभी तुम जानते हो हम सतोप्रधान थे फिर तमोप्रधान बने अब फिर सतोप्रधान बनना है। मनुष्य पुकारते भी हैं कि आकर हमको पतित से पावन बनाओ। परन्तु वह कौन है, कैसे आते हैं, कुछ नहीं जानते। अभी बाबा ने तुम्हें समझदार बनाया है। कितना ऊंच मर्तबा तुम पाते हो। वहाँ के गरीब भी बहुत ऊंच हैं, यहाँ के साहूकारों से। भल कितने भी बड़े-बड़े राजायें थे, धन बहुत था परन्तु हैं तो विकारी ना। इनसे वहाँ की साधारण प्रजा भी बहुत ऊंच बनती है। बाबा फर्क बतलाते हैं। रावण का परछाया आने से पतित बन जाते हैं। निर्विकारी देवताओं के आगे अपने को पतित कह माथा जाकर टेकते हैं। बाप यहाँ आते हैं तो फट से ऊंच चढ़ा देते हैं। सेकण्ड की बात है। अभी बाप ने तीसरा नेत्र दिया है ज्ञान का। तुम बच्चे दूरादेशी बन जाते हो। ऊपर मूलवतन से लेकर सारे ड्रामा का चक्र तुम्हारी बुद्धि में याद है। जैसे हद का ड्रामा देखकर फिर आए सुनाते हैं ना-क्या-क्या देखा। बुद्धि में भरा हुआ है, जो वर्णन करते हैं। आत्मा में भरकर आते हैं फिर आकर डिलेवरी करते हैं। यह फिर हैं बेहद की बातें। तुम बच्चों की बुद्धि में इस बेहद ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ रहना चाहिए। जो रिपीट होता रहता है। उस हद के नाटक में तो एक एक्टर निकल जाता है तो फिर बदले में दूसरा आ सकता है। कोई बीमार हुआ तो उनके बदले फिर दूसरा एड कर देंगे। यह तो चैतन्य ड्रामा है, इसमें ज़रा भी अदली-बदली नहीं हो सकती। तुम बच्चे जानते हो हम आत्मा हैं। यह शरीर रूपी चोला है, जो पहनकर हम बहुरूपी पार्ट बजाते हैं। नाम, रूप, देश, फीचर्स बदलते जाते हैं। एक्टर्स को अपनी एक्ट का तो मालूम होता है ना। बाप बच्चों को यह चक्र का राज़ तो समझाते रहते हैं। सतयुग से लेकर कलियुग तक आते हैं फिर जाते हैं फिर नये सिर आकर पार्ट बजाते हैं। इनकी डिटेल समझाने में टाइम लगता है। बीज में भल नॉलेज है फिर भी समझाने में टाइम तो लगता है ना। तुम्हारी बुद्धि में सारा बीज और झाड़ का राज़ है, सो भी जो अच्छे बुद्धिवान हैं, वही समझते हैं कि इसका बीज ऊपर में हैं। इनकी उत्पत्त