Tuesday, August 4, 2015

मुरली 05 अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हारा ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर वापस घर ले जाने, फिर राजाई में भेज देंगे तो अपार खुशी में रहो, एक बाप से ही प्यार करो”

प्रश्न:

अपनी धारणा को मजबूत (पक्का) बनाने का आधार क्या है?

उत्तर:

अपनी धारणा को मजबूत बनाने के लिए सदैव यह पक्का करो कि आज के दिन जो पास हुआ अच्छा हुआ फिर कल्प के बाद होगा। जो कुछ हुआ कल्प पहले भी ऐसे हुआ था, नथिंग न्यु। यह लड़ाई भी 5 हज़ार वर्ष पहले लगी थी, फिर लगेगी जरूर। इस भंभोर का विनाश होना ही है...... ऐसे हर पल ड्रामा की स्मृति में रहो तो धारणा मजबूत होती जाये।

गीतः

दूरदेश का रहने वाला.........


धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अभी हर कर्म ज्ञानयुक्त करना है, पात्र को ही दान देना है। पाप आत्माओं से अब कोई पैसे आदि की लेन-देन नहीं करनी है। योगबल से सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।

2) अपार खुशी में रहने के लिए अपने आपसे बातें करनी है-बाबा, आप आये हैं हमें अपार खुशी का खज़ाना देने, आप हमारी झोली भर रहे हैं, आपके साथ पहले हम शान्तिधाम जायेंगे फिर अपनी राजधानी में आयेंगे.......।

वरदान:

पुराने संस्कारों का अग्नि संस्कार करने वाले सच्चे मरजीवा भव!

जैसे मरने के बाद शरीर का संस्कार करते हैं तो नाम रूप समाप्त हो जाता है ऐसे आप बच्चे जब मरजीवा बनते हो तो शरीर भल वही है लेकिन पुराने संस्कारों, स्मृतियों वा स्वभावों का संस्कार कर देते हो। संस्कार किया हुआ मनुष्य फिर से सामने आये तो उसको भूत कहा जाता है। ऐसे यहाँ भी यदि कोई संस्कार किये हुए संस्कार जागृत हो जाते हैं तो यह भी माया के भूत हैं। इन भूतों का भगाओ, इनका वर्णन भी नहीं करो।

स्लोगन:

कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए, कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते रहो।


ओम् शांति ।

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05-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हारा ज्ञान रत्नों से श्रृंगार कर वापस घर ले जाने, फिर राजाई में भेज देंगे तो अपार खुशी में रहो, एक बाप से ही प्यार करो”  
प्रश्न:
अपनी धारणा को मजबूत (पक्का) बनाने का आधार क्या है?
उत्तर:
अपनी धारणा को मजबूत बनाने के लिए सदैव यह पक्का करो कि आज के दिन जो पास हुआ अच्छा हुआ फिर कल्प के बाद होगा। जो कुछ हुआ कल्प पहले भी ऐसे हुआ था, नथिंग न्यु। यह लड़ाई भी 5 हज़ार वर्ष पहले लगी थी, फिर लगेगी जरूर। इस भंभोर का विनाश होना ही है...... ऐसे हर पल ड्रामा की स्मृति में रहो तो धारणा मजबूत होती जाये।
गीतः
दूरदेश का रहने वाला.........  
ओम् शान्ति।
बच्चे पहले भी दूरदेश से पराये देश में आये हैं। अब इस पराये देश में दु:खी हैं इसलिए पुकारते हैं अपने देश घर ले चलो। तुम्हारी पुकार है ना। बहुत समय से याद करते आये हो तो बाप भी खुशी से आता है। जानते हैं मैं जाता हूँ बच्चों के पास। जो बच्चे काम चिता पर बैठ जल गये हैं उन्हों को अपने घर भी ले आऊं और फिर राजाई में भेज दूँ। उसके लिए ज्ञान से श्रृंगार भी करूँ। बच्चे भी बाप से जास्ती खुश होने चाहिए। बाप जबकि आये हैं तो उनका बन जाना चाहिए। उनको बहुत लव करना चाहिए। बाबा रोज़ समझाते हैं, आत्मा बात करती है ना। बाबा 5 हज़ार वर्ष बाद ड्रामा अनुसार आप आये हैं, हमको बहुत खुशी का खज़ाना मिल रहा है। बाबा आप हमारी झोली भर रहे हैं, हमको अपने घर शान्तिधाम में ले चलते हैं फिर राजधानी में भेज देंगे। कितनी अपार खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं हमको इस पराई राजधानी में ही आना है। बाप का बड़ा मीठा और वन्डरफुल पार्ट है। खास जबकि इस पराये देश में आये हैं। यह बातें तुम अभी ही समझते हो फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। वहाँ दरकार ही नहीं रहती। बाबा कहते हैं तुम कितने बेसमझ बन गये हो। ड्रामा का एक्टर होते हुए भी बाप को नहीं जानते! जो बाप ही करनकरावनहार है, क्या करते क्या कराते-यह भूल गये हो। सारी पुरानी दुनिया को हेविन बनाने आते हैं और ज्ञान देते हैं। वह ज्ञान का सागर है तो जरूर ज्ञान देने का कर्तव्य करेंगे ना। फिर तुमसे कराते भी हैं कि औरों को भी मैसेज दो कि बाप सबके लिए कहते हैं कि अब देह का भान छोड़ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। मैं श्रीमत देता हूँ। पाप आत्मायें तो सब हैं। इस समय सारा झाड़ तमोप्रधान, जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है। जैसे बांस के जंगल को आग लग जाती है तो एकदम सारा ही जलकर खत्म हो जाता। जंगल में पानी कहाँ से आयेगा जो आग को बुझावें। यह जो भी पुरानी दुनिया है उनको आग लग जायेगी। बाप कहते हैं-नथिंग न्यु। बाप अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स देते रहते हैं जो नोट करनी चाहिए। बाप ने समझाया है और धर्म स्थापक सिर्फ अपना धर्म स्थापन करने आते हैं, उनको पैगम्बर वा मैसेन्जर आदि कुछ भी नहीं कह सकते। यह भी बड़ा युक्ति से लिखना है। शिवबाबा बच्चों को समझा रहे हैं-बच्चे तो सब हैं ऑल ब्रदर्स। तो हर एक चित्र में, हर एक लिखत में यह जरूर लिखना है-शिवबाबा ऐसे समझाते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, मैं आकर सतयुगी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ, जिसमें 100 प्रतिशत सुख-शान्ति-पवित्रता सब है इसलिए उनको हेविन कहा जाता है। वहाँ दु:ख का नाम नहीं है। बाकी जो भी सब धर्म हैं उन सबका विनाश कराने निमित्त बनता हूँ। सतयुग में होता ही एक धर्म है। वह है नई दुनिया। पुरानी दुनिया को खत्म कराता हूँ। ऐसा धन्धा तो और कोई नहीं करते हैं। कहा जाता है शंकर द्वारा विनाश। विष्णु भी लक्ष्मी-नारायण ही हैं। प्रजापिता ब्रह्मा भी तो यहाँ है। यही पतित से पावन फरिश्ता बनते हैं इसलिए फिर ब्रह्मा देवता कहा जाता है। जिससे देवी-देवता धर्म स्थापन होता है। यह बाबा भी देवी-देवता धर्म का पहला प्रिन्स बनता है। तो ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश। चित्र तो देने पड़े ना। समझाने के लिए यह चित्र बनाये हैं। इनके अर्थ का कोई को भी पता नहीं है। स्वदर्शन चक्रधारी का भी समझाया-परमपिता परमात्मा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। उनमें सारा ज्ञान है तो स्वदर्शन चक्रधारी ठहरे ना। जानते हैं हम ही यह ज्ञान सुनाते हैं। बाबा तो ऐसे नहीं कहेंगे कि मुझे कमल फूल समान बनना है। सतयुग में तुम कमल फूल समान ही रहते हो। सन्यासियों के लिए यह नहीं कहेंगे। वह तो जंगल में चले जाते हैं। बाप भी कहते हैं पहले वह पवित्र सतोप्रधान होते हैं। भारत को थमाते हैं, पवित्रता के बल से। भारत जैसा पवित्र देश कोई होता ही नहीं। जैसे बाप की महिमा है वैसे भारत की भी महिमा है। भारत हेविन था, यह लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे फिर कहाँ गये। यह अभी तुम जानते हो और किसकी बुद्धि में थोड़ेही होगा कि यह देवतायें ही 84 जन्म ले फिर पुजारी बनते हैं। अभी तुमको सारा ज्ञान है, हम अभी पूज्य देवी-देवता बनते हैं फिर पुजारी मनुष्य बनेंगे। मनुष्य तो मनुष्य ही होता है। यह जो चित्र किस्म-किस्म के बनाते हैं, ऐसे कोई मनुष्य होते नहीं। यह सब भक्ति मार्ग के ढेर चित्र हैं। तुम्हारा ज्ञान तो है गुप्त। यह ज्ञान सब नहीं लेंगे। जो इस देवी-देवता धर्म के पत्ते होंगे वही लेंगे। बाकी जो औरों को मानने वाले हैं वह सुनेंगे नहीं। जो शिव और देवताओं की भक्ति करते हैं वही आयेंगे। पहले-पहले मेरी भी पूजा करते हैं फिर पुजारी बन अपनी भी पूजा करते हैं। तो अब खुशी होती है कि हम पूज्य से पुजारी बने, अब फिर पूज्य बनते हैं। कितनी खुशियाँ मनाते हैं। यहाँ तो अल्पकाल के लिए खुशी मनाते हैं। वहाँ तो तुमको सदैव खुशी रहती है। दीपमाला आदि लक्ष्मी को बुलाने के लिए नहीं होती है। दीपमाला होती है कारोनेशन पर। बाकी इस समय जो उत्सव मनाये जाते हैं वह वहाँ होते नहीं। वहाँ तो सुख ही सुख है। यह एक ही समय है जबकि तुम आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। यह सब प्वाइंट्स लिखो। सन्यासियों का है हठयोग। यह है राजयोग। बाबा कहते हैं एक-एक पेज में जहाँ-तहाँ शिवबाबा का नाम जरूर हो। शिवबाबा हम बच्चों को समझाते हैं। निराकार आत्मायें अब साकार में बैठी हैं। तो बाप भी साकार में समझायेंगे ना। वह कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। शिव भगवानुवाच बच्चों प्रति। खुद यहाँ प्रेजन्ट है ना। मुख्य- मुख्य प्वाइंट किताब में ऐसी क्लीयर लिखी हुई हो जो पढ़ने से आपेही ज्ञान आ जाए। शिव भगवानुवाच होने से पढ़ने में मज़ा आ जायेगा। यह बुद्धि का काम है ना। बाबा भी शरीर का लोन लेकर फिर सुनाते हैं ना, इनकी आत्मा भी सुनती है। बच्चों को नशा बहुत रहना चाहिए। बाप पर बहुत लव होना चाहिए। यह तो उनका रथ है, यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। इनमें प्रवेश किया है। ब्रह्मा द्वारा यह ब्राह्मण बनते हैं फिर मनुष्य से देवता बनते हैं। चित्र कितना क्लीयर है। भल अपना भी चित्र दो ऊपर में वा बाजू में डबल सिरताज वाला। योगबल से हम ऐसे बनते हैं। ऊपर में शिवबाबा। उनको याद करते-करते मनुष्य से देवता बन जाते हैं। बिल्कुल क्लीयर है। रंगीन चित्र का किताब ऐसा हो जो मनुष्य देखकर खुश हो जाएं। उनसे फिर कुछ हल्के भी छपा सकते हो गरीबों के लिए। बड़े से छोटा, छोटे से छोटा कर सकते हो, रहस्य उसमें आ जाए। गीता के भगवान वाला चित्र है मुख्य। उस गीता पर कृष्ण का चित्र, उस गीता पर त्रिमूर्ति का चित्र होने से मनुष्यों को समझाने में सहज होता है। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण यहाँ हैं। प्रजापिता ब्रह्मा सूक्ष्मवतन में तो हो नहीं सकता। कहते हैं ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: अब देवता कौन ठहरे! देवतायें तो यहाँ राज्य करते थे। डिटीज्म तो है ना। तो यह सब अच्छी रीति समझाना पड़ता है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा दोनों यहाँ हैं। चित्र है तो समझाया जा सकता है। पहले-पहले अल्फ को सिद्ध करो तो सब बातें सिद्ध हो जायेंगी। प्वाइंट्स तो बहुत हैं और सब धर्म स्थापन करने आते हैं। बाप तो स्थापना और विनाश दोनों कराते हैं। होता है सब ड्रामा अनुसार ही। ब्रह्मा बोल सकते, विष्णु बोल सकते हैं? सूक्ष्मवतन में क्या बोलेंगे। यह सब समझने की बातें हैं। यहाँ तुम समझकर फिर ट्रांसफर होते हो, ऊपर क्लास में। कमरा ही दूसरा मिलता है। मूलवतन में कोई बैठ तो नहीं जाना है। फिर वहाँ से नम्बरवार आना होता है। पहले-पहले मूल बात एक ही है उस पर ज़ोर देना चाहिए। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। यह सेमीनार आदि भी ऐसे ही कल्प पहले हुए थे। ऐसी प्वाइंट्स निकली थी। आज का दिन जो पास हुआ अच्छा हुआ फिर कल्प बाद ऐसे ही होगा। ऐसे-ऐसे अपनी धारणा करते पक्के होते जाओ। बाबा ने कहा था मैगज़ीन में भी डालो-यह लड़ाई लगी, नथिंग न्यु। 5 हज़ार वर्ष पहले भी ऐसे हुआ था। यह बातें तुम ही समझते हो। बाहर वाले समझ न सके। सिर्फ कहेंगे बातें तो वन्डरफुल हैं। अच्छा, कभी जाकर समझ लेंगे। शिव भगवानुवाच बच्चों प्रति। ऐसे-ऐसे अक्षर होंगे तो आकर समझेंगे भी। नाम लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। प्रजापिता ब्रह्मा से ही ब्राह्मण रचते हैं। ब्राह्मण देवी-देवता नम: कहते हैं ना। कौन से ब्राह्मण? तुम ब्राह्मणों को भी समझा सकते हो ब्रह्मा की औलाद कौन हैं? प्रजापिता ब्रह्मा के इतने बच्चे हैं, तो जरूर यहाँ एडाप्ट होते होंगे। जो अपने कुल के होंगे वह अच्छी रीति समझेंगे। तुम तो बाप के बच्चे हो गये। बाप ब्रह्मा को भी एडाप्ट करते हैं। नहीं तो शरीर वाली चीज़ आई कहाँ से। ब्राह्मण इन बातों को समझेंगे, सन्यासी नहीं समझेंगे। अजमेर में ब्राह्मण होते हैं और हरिद्वार में सन्यासी ही सन्यासी हैं। पण्डे ब्राह्मण होते हैं। परन्तु वह तो भूखे होते हैं। बोलो तुम अभी जिस्मानी पण्डे हो। अब रूहानी पण्डे बनो। तुम्हारा भी नाम पण्डा है। पाण्डव सेना को भी समझते नहीं हैं। बाबा है पाण्डवों का सिरमौर। कहते हैं हे बच्चे मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और चले जायेंगे अपने घर। फिर बड़ी यात्रा होगी अमरपुरी की। मूलवतन की कितनी बड़ी यात्रा होगी। सबकी सब आत्मायें जायेंगी। जैसे मक्कड़ों का झुण्ड जाता है ना। मक्खियों की भी रानी भागती है तो उनके पिछाड़ी सब भागते हैं। वन्डर है ना। सब आत्मायें भी मच्छरों मिसल जायेंगी। शिव की बरात है ना। तुम सब हो ब्राइड्स। मैं ब्राइडग्रूम आया हूँ सबको ले जाने। तुम छी-छी हो गये हो इसलिए श्रृंगार कर साथ ले जाऊंगा। जो श्रृंगार नहीं करेंगे तो सज़ा खायेंगे। जाना तो है ही। काशी कलवट में भी मनुष्य मरते हैं तो सेकण्ड में कितनी सज़ायें भोग लेते हैं। मनुष्य चिल्लाते रहते हैं। यह भी ऐसे है, समझते हैं हम जैसेकि जन्म-जन्मान्तर का दु:ख सज़ा भोग रहा हूँ। वह दु:ख की फीलिंग ऐसी होती है। जन्म-जन्मान्तर के पापों की सज़ा मिलती है। जितनी सज़ायें खायेंगे उतना पद कम हो जायेगा इसलिए बाबा कहते हैं योगबल से हिसाब-किताब चुक्तू करो। याद से जमा करते जाओ। नॉलेज तो बहुत सहज है। अब हर कर्म ज्ञानयुक्त करना है। दान भी पात्र को देना है। पाप आत्माओं को देने से फिर देने वाले पर भी उसका असर पड़ जाता है। वह भी पाप आत्मायें बन जाते हैं। ऐसे को कभी नहीं देना चाहिए, जो उस पैसे से जाकर फिर कोई पाप आदि करें। पाप आत्माओं को देने वाले तो दुनिया में बहुत बैठे हैं। अब तुमको तो ऐसा नहीं करना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अभी हर कर्म ज्ञानयुक्त करना है, पात्र को ही दान देना है। पाप आत्माओं से अब कोई पैसे आदि की लेन-देन नहीं करनी है। योगबल से सब पुराने हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।
2) अपार खुशी में रहने के लिए अपने आपसे बातें करनी है-बाबा, आप आये हैं हमें अपार खुशी का खज़ाना देने, आप हमारी झोली भर रहे हैं, आपके साथ पहले हम शान्तिधाम जायेंगे फिर अपनी राजधानी में आयेंगे.......।
वरदान:
पुराने संस्कारों का अग्नि संस्कार करने वाले सच्चे मरजीवा भव!   
जैसे मरने के बाद शरीर का संस्कार करते हैं तो नाम रूप समाप्त हो जाता है ऐसे आप बच्चे जब मरजीवा बनते हो तो शरीर भल वही है लेकिन पुराने संस्कारों, स्मृतियों वा स्वभावों का संस्कार कर देते हो। संस्कार किया हुआ मनुष्य फिर से सामने आये तो उसको भूत कहा जाता है। ऐसे यहाँ भी यदि कोई संस्कार किये हुए संस्कार जागृत हो जाते हैं तो यह भी माया के भूत हैं। इन भूतों का भगाओ, इनका वर्णन भी नहीं करो।
स्लोगन:
कर्मभोग का वर्णन करने के बजाए, कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते रहो।