Tuesday, August 18, 2015

मुरली 19 अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - श्रीमत पर चल सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बताओ, सारा दिन यही धन्धा करते रहो”

प्रश्न:

बाप ने कौन-सी सूक्ष्म बातें सुनाई हैं जो बहुत समझने की हैं?

उत्तर:

सतयुग अमरलोक है, वहाँ आत्मा एक चोला बदल दूसरा लेती है लेकिन मृत्यु का नाम नहीं इसलिए उसे मृत्युलोक नहीं कहा जाता। 2. शिवबाबा की बेहद रचना है, ब्रह्मा की रचना इस समय सिर्फ तुम ब्राह्मण हो। त्रिमूर्ति शिव कहेंगे, त्रिमूर्ति ब्रह्मा नहीं। यह सब बहुत सूक्ष्म बातें बाप ने सुनाई हैं। ऐसी-ऐसी बातों पर विचार कर बुद्धि के लिए स्वयं ही भोजन तैयार करना है।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) हम ब्रह्मा की नई रचना आपस में भाई-बहन हैं, यह अन्दर समझना है किसी को कहने की दरकार नहीं। सदा इसी खुशी में रहना है कि हमें शिवबाबा पढ़ाते हैं।

2) खान-पान के हंगामें में जास्ती नहीं जाना है। हबच (लालच) छोड़ बेहद बादशाही के सुखों को याद करना है।

वरदान:

हर खजाने को बाप के डायरेक्शन प्रमाण कार्य में लगाने वाले ऑनेस्ट वा ईमानदार भव!

ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार उसे कहा जाता है जो बाप के प्राप्त खजानों को बाप के डायरेक्शन बिना किसी भी कार्य में नहीं लगाये। अगर समय, वाणी, कर्म, श्वांस वा संकल्प परमत या संगदोष में व्यर्थ तरफ गंवाते हो, स्वचिंतन के बजाए परचिंतन करते हो, स्वमान की बजाए किसी भी प्रकार के अभिमान में आते हो, श्रीमत के बदले मनमत के आधार पर चलते हो तो ऑनेस्ट नहीं कहेंगे। यह सब खजाने विश्व कल्याण के लिए मिले हैं, तो उसी में ही लगाना, यही है ऑनेस्ट बनना।

स्लोगन:

आपोजीशन माया से करनी है दैवी परिवार से नहीं।




ओम् शांति ।

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19-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - श्रीमत पर चल सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति पाने का रास्ता बताओ, सारा दिन यही धन्धा करते रहो”   
प्रश्न:
बाप ने कौन-सी सूक्ष्म बातें सुनाई हैं जो बहुत समझने की हैं?
उत्तर:
सतयुग अमरलोक है, वहाँ आत्मा एक चोला बदल दूसरा लेती है लेकिन मृत्यु का नाम नहीं इसलिए उसे मृत्युलोक नहीं कहा जाता। 2. शिवबाबा की बेहद रचना है, ब्रह्मा की रचना इस समय सिर्फ तुम ब्राह्मण हो। त्रिमूर्ति शिव कहेंगे, त्रिमूर्ति ब्रह्मा नहीं। यह सब बहुत सूक्ष्म बातें बाप ने सुनाई हैं। ऐसी-ऐसी बातों पर विचार कर बुद्धि के लिए स्वयं ही भोजन तैयार करना है।
ओम् शान्ति।
त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच। अब वो लोग त्रिमूर्ति ब्रह्मा कहते हैं। बाप कहते हैं-त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच। त्रिमूर्ति ब्रह्मा भगवानुवाच नहीं कहते। तुम त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच कह सकते हो। वो लोग तो शिव-शंकर कह मिला देते हैं। यह तो सीधा है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा के बदले त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच। मनुष्य तो कह देते-शंकर आंख खोलते हैं तो विनाश हो जाता है। यह सब बुद्धि से काम लिया जाता है। तीन का ही मुख्य पार्ट है। ब्रह्मा और विष्णु का तो बड़ा पार्ट है 84 जन्मों का। विष्णु का और प्रजापिता ब्रह्मा का अर्थ भी समझा है, पार्ट है इन तीन का। ब्रह्मा का तो नाम गाया हुआ है आदि देव, एडम। प्रजापिता का मन्दिर भी है। यह है विष्णु का अथवा कृष्ण का अन्तिम 84 वां जन्म, जिसका नाम ब्रह्मा रखा है। सिद्ध तो करना ही है-ब्रह्मा और विष्णु। अब ब्रह्मा को तो एडाप्टेड कहेंगे। यह दोनों बच्चे हैं शिव के। वास्तव में बच्चा एक है। हिसाब करेंगे तो ब्रह्मा है शिव का बच्चा। बाप और दादा। विष्णु का नाम ही नहीं आता। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा स्थापना कर रहे हैं। विष्णु द्वारा स्थापना नहीं कराते। शिव के भी बच्चे हैं, ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। विष्णु के बच्चे नहीं कह सकते। न लक्ष्मी-नारायण को ही बहुत बच्चे हो सकते हैं। यह है बुद्धि के लिए भोजन। आपेही भोजन बनाना चाहिए। सबसे जास्ती पार्ट कहेंगे विष्णु का। 84 जन्मों का विराट रूप भी विष्णु का दिखाते हैं, न कि ब्रह्मा का। विराट रूप विष्णु का ही बनाते हैं क्योंकि पहले-पहले प्रजापिता ब्रह्मा का नाम धरते हैं। ब्रह्मा का तो बहुत थोड़ा पार्ट है इसलिए विराट रूप विष्णु का दिखाते हैं। चतुर्भुज भी विष्णु का बना देते। वास्तव में यह अलंकार तो तुम्हारे हैं। यह भी बड़ी समझने की बातें हैं। कोई मनुष्य समझा न सके। बाप नये-नये तरीके से समझाते रहते हैं। बाप कहते हैं त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच राइट है ना। विष्णु, ब्रह्मा और शिव। इसमें भी प्रजापिता ब्रह्मा ही बच्चा है। विष्णु को बच्चा नहीं कहेंगे। भल क्रियेशन कहते हैं परन्तु रचना तो ब्रह्मा की होगी ना। जो फिर भिन्न नाम रूप लेती है। मुख्य पार्ट तो उनका है। ब्रह्मा का पार्ट भी बहुत थोड़ा है इस समय का। विष्णु का कितना समय राज्य है! सारे झाड़ का बीज रूप है शिवबाबा। उनकी रचना को सालिग्राम कहेंगे। ब्रह्मा की रचना को ब्राह्मण-ब्राह्मणियां कहेंगे। अब जितनी शिव की रचना है उतनी ब्रह्मा की नहीं। शिव की रचना तो बहुत है। सभी आत्मायें उनकी औलाद हैं। ब्रह्मा की रचना तो सिर्फ तुम ब्राह्मण ही बनते हो। हद में आ गये ना। शिवबाबा की है बेहद की रचना - सभी आत्मायें। बेहद की आत्माओं का कल्याण करते हैं। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना करते हैं। तुम ब्राह्मण ही जाकर स्वर्गवासी बनेंगे। और तो कोई को स्वर्गवासी नहीं कहेंगे, निर्वाणवासी अथवा शान्तिधाम वासी तो सब बनते हैं। सबसे ऊंच सर्विस शिवबाबा की होती है। सभी आत्माओं को ले जाते हैं। सभी का पार्ट अलग-अलग है। शिवबाबा भी कहते हैं मेरा पार्ट अलग है। सबका हिसाब-किताब चुक्तू कराए तुमको पतित से पावन बनाए ले जाता हूँ। तुम यहाँ मेहनत कर रहे हो पावन बनने के लिए। दूसरे सब कयामत के समय हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे। फिर मुक्तिधाम में बैठे रहेंगे। सृष्टि का चक्र तो फिरना है।

तुम बच्चे ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण बन फिर देवता बन जाते हो। तुम ब्राह्मण श्रीमत पर सेवा करते हो। सिर्फ मनुष्यों को रास्ता बताते हो-मुक्ति और जीवनमुक्ति को पाना है तो ऐसे पा सकते हो। दोनों चाबी हाथ में हैं। यह भी जानते हो कौन-कौन मुक्ति में, कौन-कौन जीवनमुक्ति में जायेंगे। तुम्हारा सारा दिन यही धंधा है। कोई अनाज आदि का धन्धा करते हैं तो बुद्धि में सारा दिन वही रहता है। तुम्हारा धन्धा है रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानना और किसको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना। जो इस धर्म के होंगे वह निकल आयेंगे। ऐसे बहुत धर्म के हैं जो बदल नहीं सकते। कई बौद्ध धर्म को मानते हैं क्योंकि देवी-देवता धर्म तो प्राय: लोप है ना। एक भी ऐसा नहीं जो कहे हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं।

देवताओं के चित्र काम में आते हैं, आत्मा तो अविनाशी है, वह कभी मरती नहीं। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेकर पार्ट बजाती है। उनको मृत्युलोक नहीं कहा जाता। वह है ही अमरलोक। चोला सिर्फ बदलती है। यह बातें बड़ी सूक्ष्म समझने की हैं। मुट्टा (थोक) नहीं है। जैसे शादी होती है तो किनको रेज़गारी, किनको मुट्टा देते हैं। कोई सब दिखाकर देते हैं, कोई बन्द पेटी ही देते हैं। किस्म-किस्म के होते हैं। तुमको तो वर्सा मिलता है मुट्टा, क्योंकि तुम सब ब्राइड्स हो। बाप है ब्राइडग्रुम। तुम बच्चों को श्रृंगार कर विश्व की बादशाही मुट्टे में देते हैं। विश्व का मालिक तुम बनते हो। मुख्य बात है याद की। ज्ञान तो बहुत सहज है। भल है तो सिर्फ अल्फ को याद करना। परन्तु विचार किया जाता है याद ही झट खिसक जाती है। बहुत करके कहते हैं बाबा याद भूल जाती है। तुम किसको भी समझाओ तो हमेशा याद अक्षर बोलो। योग अक्षर रांग है। टीचर को स्टूडेन्ट की याद रहती है। फादर है सुप्रीम सोल। तुम आत्मा सुप्रीम नहीं हो। तुम हो पतित। अब बाप को याद करो। टीचर को, बाप को, गुरू को याद किया जाता है। गुरू लोग बैठ शास्त्र सुनायेंगे, मन्त्र देंगे। बाबा का मन्त्र एक ही है-मनमनाभव। फिर क्या होगा? मध्याजी भव। तुम विष्णुपुरी में चले जायेंगे। तुम सब तो राजा-रानी नहीं बनेंगे। राजा-रानी और प्रजा होती है। तो मुख्य है त्रिमूर्ति। शिवबाबा के बाद है ब्रह्मा जो फिर मनुष्य सृष्टि अर्थात् ब्राह्मण रचते हैं। ब्राह्मणों को बैठ फिर पढ़ाते हैं। यह नई बात है ना। तुम ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ बहन-भाई ठहरे। बुढ़े भी कहेंगे हम भाई-बहन हैं। यह अन्दर में समझना है। किसको फालतू ऐसे कहना नहीं है। भगवान ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रची तो भाई-बहन हुए ना। जबकि एक प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हैं, यह समझने की बातें हैं। तुम बच्चों को तो बड़ी खुशी होनी चाहिए - हमको पढ़ाते कौन हैं? शिवबाबा। त्रिमूर्ति शिव। ब्रह्मा का भी बहुत थोड़ा समय पार्ट है। विष्णु का सतयुगी राजधानी में 8 जन्म पार्ट चलता है। ब्रह्मा का तो एक ही जन्म का पार्ट है। विष्णु का पार्ट बड़ा कहेंगे। त्रिमूर्ति शिव है मुख्य। फिर आता है ब्रह्मा का पार्ट जो तुम बच्चों को विष्णुपुरी का मालिक बनाते हैं। ब्रह्मा से ब्राह्मण सो फिर देवता बनते हैं। तो यह हो गया अलौकिक फादर। थोड़ा समय यह फादर है जिसको अब मानते हैं। आदि देव, आदम और बीबी। इनके बिगर सृष्टि कैसे रचेंगे। आदि देव और आदि देवी है ना। ब्रह्मा का पार्ट भी सिर्फ संगम समय का है। देवताओं का पार्ट तो फिर भी बहुत चलता है। देवतायें भी सिर्फ सतयुग में कहेंगे। त्रेता में क्षत्रिय कहा जाता। यह बड़ी गुह्य-गुह्य प्वाइंट्स मिलती हैं। सब तो एक ही समय वर्णन नहीं कर सकते। वह त्रिमूर्ति ब्रह्मा कहते हैं। शिव को उड़ा दिया है। हम फिर त्रिमूर्ति शिव कहते हैं। यह चित्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग के। प्रजा रचते हैं ब्रह्मा द्वारा फिर तुम देवता बनते हो। विनाश के समय नैचुरल कैलेमिटीज भी आती है। विनाश तो होना ही है, कलियुग के बाद फिर सतयुग होगा। इतने सब शरीरों का विनाश तो होना ही है। सब कुछ प्रैक्टिकल में चाहिए ना। सिर्फ आंख खोलने से थोड़ेही हो सकता। जब स्वर्ग गुम होता है तो उस समय भी अर्थक्वेक आदि होती हैं। तो क्या उस समय भी शंकर आंख ऐसे मीचते हैं। गाते हैं ना द्वारिका अथवा लंका पानी के नीचे चली गई।

अब बाप समझाते हैं - मैं आया हूँ पत्थरबुद्धियों को पारसबुद्धि बनाने। मनुष्य पुकारते हैं-हे पतित-पावन आओ, आकर पावन दुनिया बनाओ। परन्तु यह नहीं समझते हैं कि अभी कलियुग है इसके बाद सतयुग आयेगा। तुम बच्चों को खुशी में नाचना चाहिए। बैरिस्टर आदि इम्तहान पास करते हैं तो अन्दर में ख्याल करते हैं ना-हम पैसे कमायेंगे, फिर मकान बनायेंगे। यह करेंगे। तो तुम अभी सच्ची कमाई कर रहे हो। स्वर्ग में तुमको सब कुछ नया माल मिलेगा। ख्याल करो सोमनाथ का मन्दिर क्या था! एक मन्दिर तो नहीं होगा। उस मन्दिर को 2500 वर्ष हुआ। बनाने में टाइम तो लगा होगा। पूजा की होगी उसके बाद फिर वह लूटकर ले गये। फौरन तो नहीं आये होंगे। बहुत मन्दिर होंगे। पूजा के लिए बैठ मन्दिर बनाये हैं। अभी तुम जानते हो बाप को याद करते-करते हम गोल्डन एज में चले जायेंगे। आत्मा पवित्र बन जायेगी। मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत बिगर काम नहीं चलेगा। गाया भी जाता है-सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। परन्तु ऐसे थोड़ेही मिल जाती है, यह समझा जाता है-बच्चे बनेंगे तो मिलेगी जरूर। तुम अभी मेहनत कर रहे हो मुक्तिधाम में जाने के लिए। बाप की याद में रहना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन बाप तुम बच्चों को रिफाइन बुद्धि बनाते हैं। बाप कहते हैं तुमको बहुत-बहुत गुह्य बातें सुनाता हूँ। आगे थोड़ेही यह सुनाया था कि आत्मा भी बिन्दी है, परमात्मा भी बिन्दी है। कहेंगे पहले क्यों नहीं यह बताया। ड्रामा में नहीं था। पहले ही तुमको यह सुनायें तो तुम समझ न सको। धीरे-धीरे समझाते रहते हैं। यह है रावण राज्य।

रावण राज्य में सब देह-अभिमानी बन जाते हैं। सतयुग में होते हैं आत्म-अभिमानी। अपने को आत्मा जानते हैं। हमारा शरीर बड़ा हुआ है, अब यह छोड़कर फिर छोटा लेना है। आत्मा का शरीर पहले छोटा होता है फिर बड़ा होता है। यहाँ तो कोई की कितनी आयु, कोई की कितनी। कोई की अकाले मृत्यु हो जाती है। कोई-कोई की 125 वर्ष की भी आयु होती है। तो बाप समझाते हैं तुमको खुशी बहुत होनी चाहिए - बाप से वर्सा लेने की। गन्धर्वा विवाह किया यह कोई खुशी की बात नहीं, यह तो कम॰जोरी है। कुमारी अगर कहे हम पवित्र रहना चाहते हैं तो कोई मार थोड़ेही सकते हैं। ज्ञान कम है तो डरते हैं। छोटी कुमारी को भी अगर कोई मारे, खून आदि निकले तो पुलिस में रिपोर्ट करे तो उसकी भी सज़ा मिल सकती है। जानवर को भी अगर कोई मारते हैं तो उन पर केस होता है, दण्ड पड़ता है। तुम बच्चों को भी मार नहीं सकते। कुमार को भी मार नहीं सकते। वह तो अपना कमा सकते हैं। शरीर निर्वाह कर सकते हैं। पेट कोई जास्ती नहीं खाता है-एक मनुष्य का पेट 4-5 रूपया, एक मनुष्य का पेट 400-500 रूपया। पैसा बहुत है तो हबच हो जाती है। गरीबों को पैसे ही नहीं तो हबच भी नहीं। वह सूखी रोटी में ही खुश होते हैं। बच्चों को जास्ती खान-पान के हंगामें में भी नहीं जाना चाहिए। खाने का शौक नहीं रहना चाहिए।

तुम जानते हो वहाँ हमें क्या नहीं मिलेगा! बेहद की बादशाही, बेहद का सुख मिलता है। वहाँ कोई बीमारी आदि होती नहीं। हेल्थ वेल्थ हैप्पीनेस सब रहता है। बुढ़ापा भी वहाँ बहुत अच्छा रहता। खुशी रहती है। कोई प्रकार की तकलीफ नहीं रहती है। प्रजा भी ऐसी बनती है। परन्तु ऐसे भी नहीं-अच्छा, प्रजा तो प्रजा ही सही। फिर तो ऐसे होंगे जैसे यहाँ के भील। सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण बनना है तो फिर इतना पुरूषार्थ करना चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम ब्रह्मा की नई रचना आपस में भाई-बहन हैं, यह अन्दर समझना है किसी को कहने की दरकार नहीं। सदा इसी खुशी में रहना है कि हमें शिवबाबा पढ़ाते हैं।
2) खान-पान के हंगामें में जास्ती नहीं जाना है। हबच (लालच) छोड़ बेहद बादशाही के सुखों को याद करना है।
वरदान:
हर खजाने को बाप के डायरेक्शन प्रमाण कार्य में लगाने वाले ऑनेस्ट वा ईमानदार भव!   
ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार उसे कहा जाता है जो बाप के प्राप्त खजानों को बाप के डायरेक्शन बिना किसी भी कार्य में नहीं लगाये। अगर समय, वाणी, कर्म, श्वांस वा संकल्प परमत या संगदोष में व्यर्थ तरफ गंवाते हो, स्वचिंतन के बजाए परचिंतन करते हो, स्वमान की बजाए किसी भी प्रकार के अभिमान में आते हो, श्रीमत के बदले मनमत के आधार पर चलते हो तो ऑनेस्ट नहीं कहेंगे। यह सब खजाने विश्व कल्याण के लिए मिले हैं, तो उसी में ही लगाना, यही है ऑनेस्ट बनना।
स्लोगन:
आपोजीशन माया से करनी है दैवी परिवार से नहीं।