Friday, August 21, 2015

मुरली 22 अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं इस वेश्यालय को शिवालय बनाने। तुम्हारा कर्तव्य है - वेश्याओं को भी ईश्वरीय सन्देश दे उनका भी कल्याण करना”

प्रश्न:

कौन-से बच्चे अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं?

उत्तर:

जो किसी भी कारण से मुरली (पढ़ाई) मिस करते हैं, वह अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। कई बच्चे तो आपस में रूठ जाने के कारण क्लास में ही नहीं आते। कोई न कोई बहाना बनाकर घर में ही सो जाते हैं, इससे वे अपना ही नुकसान करते हैं क्योंकि बाबा तो रोज़ कोई न कोई नई युक्तियाँ बताते रहते हैं, सुनेंगे ही नहीं तो अमल में कैसे लायेंगे।

धारणा के लिए मुख्य सार:

सर्विस में बहुत-बहुत फुर्त बनना है। जितना समय मिले एकान्त में बैठ बाप को याद करना है। पढ़ाई का शौक रखना है। पढ़ाई से रूठना नहीं है।

अपनी चलन बहुत-बहुत रॉयल रखनी है, बस अब घर जाना है, पुरानी दुनिया खत्म होनी है इसलिए मोह की रगें तोड़ देनी हैं। वानप्रस्थ (वाणी से परे) अवस्था में रहने का अभ्यास करना है। अधमों का भी उद्धार करने की सेवा करनी है।

वरदान:

पास विद आनर बनने के लिए पुरूषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल रखने वाले यथार्थ योगी भव!

वर्तमान समय के प्रमाण पुरूषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल चाहिए तब अन्त में पास विद आनर बन सकेंगे क्योंकि उस समय की परिस्थितियां बुद्धि में अनेक संकल्प लाने वाली होंगी, उस समय सब संकल्पों से परे एक संकल्प में स्थित होने का अभ्यास चाहिए। जिस समय विस्तार में बिखरी हुई बुद्धि हो उस समय स्टॉप करने की प्रैक्टिस चाहिए। स्टॉप करना और होना। जितना समय चाहें उतना समय बुद्धि को एक संकल्प में स्थित कर लें-यही है यथार्थ योग।

स्लोगन:

आप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट हो इसलिए अलमस्त नहीं हो सकते। सर्वेन्ट माना सदा सेवा पर उपस्थित।


ओम् शांति ।

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22-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं इस वेश्यालय को शिवालय बनाने। तुम्हारा कर्तव्य है - वेश्याओं को भी ईश्वरीय सन्देश दे उनका भी कल्याण करना”   
प्रश्न:
कौन-से बच्चे अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं?
उत्तर:
जो किसी भी कारण से मुरली (पढ़ाई) मिस करते हैं, वह अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। कई बच्चे तो आपस में रूठ जाने के कारण क्लास में ही नहीं आते। कोई न कोई बहाना बनाकर घर में ही सो जाते हैं, इससे वे अपना ही नुकसान करते हैं क्योंकि बाबा तो रोज़ कोई न कोई नई युक्तियाँ बताते रहते हैं, सुनेंगे ही नहीं तो अमल में कैसे लायेंगे।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे यह तो जानते हैं कि अभी हम विश्व के मालिक बनने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हैं। भल माया भी भुला देती है। कोई-कोई को तो सारा दिन भुला देती है। कभी याद ही नहीं करते जो खुशी भी हो। हमको भगवान पढ़ाते हैं यह भी भूल जाते हैं। भूल जाने के कारण फिर कोई सर्विस नहीं कर सकते। रात को बाबा ने समझाया-अधम ते अधम जो वेश्यायें हैं उनकी सर्विस करनी चाहिए। वेश्याओं के लिए तुम एलान करो कि तुम बाप के इस ज्ञान को धारण करने से स्वर्ग के विश्व की महारानी बन सकती हो, साहूकार लोग नहीं बन सकते। जो जानते हैं, पढ़े लिखे हैं वह प्रबन्ध करेंगे, उन्हों को ज्ञान देने का, तो बिचारी बहुत खुश होंगी क्योंकि वह भी अबलायें हैं, उनको तुम समझा सकते हो। युक्तियाँ तो बहुत ही बाप समझाते रहते हैं। बोलो, तुम ही ऊंच ते ऊंच, नीच ते नीच बनी हो। तुम्हारे नाम से ही भारत वेश्यालय बना है। फिर तुम शिवालय में जा सकती हो-यह पुरूषार्थ करने से। तुम अभी पैसे के लिए कितना गंदा काम करती हो। अब यह छोड़ो। ऐसा समझाने से वह बहुत खुश होंगी। तुमको कोई रोक नहीं सकते। यह तो अच्छी बात है ना। गरीबों का है ही भगवान। पैसे के कारण बहुत गंदा काम करती हैं। उन्हों का जैसे धन्धा चलता है। अभी बच्चे कहते हैं हम युक्तियाँ निकालेंगे, सर्विस वृद्धि को कैसे पाये। कोई बच्चे कोई न कोई बात में रूठ भी पड़ते हैं। पढ़ाई भी छोड़ देते हैं। यह नहीं समझते कि हम नहीं पढ़ेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे। रूठकर बैठ जाते हैं। फलानी ने यह कहा, ऐसे कहा इसलिए आते नहीं। हफ्ते में एक बार मुश्किल आते हैं। बाबा तो मुरलियों में कभी क्या राय, कभी क्या राय देते रहते हैं। मुरली सुनना तो चाहिए ना। क्लास में जब आयेंगे तो सुनेंगे। ऐसे बहुत हैं, कारण-अकारणे बहाना बनाए सो जायेंगे। अच्छा, आज नहीं जाते हैं। अरे, बाबा ऐसी अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स सुनाते हैं। सर्विस करेंगे तो ऊंच पद भी पायेंगे। यह तो है पढ़ाई। बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी आदि में शास्त्र बहुत पढ़ते हैं। दूसरा कोई धन्धा नहीं होगा तो बस शास्त्र कण्ठ कर सतसंग शुरू कर देते हैं। उनमें उद्देश्य आदि तो कुछ है नहीं। इस पढ़ाई से तो सबका बेड़ा पार होता है। तो तुम बच्चों को ऐसे-ऐसे अधम की सर्विस करनी है। साहूकार लोग जब देखेंगे यहाँ ऐसे-ऐसे आते हैं तो उनके आने की दिल नहीं होगी। देह-अभिमान है ना। उनको लज्जा आयेगी। अच्छा, तो उनका एक अलग स्कूल खोल लो। वह पढ़ाई तो है पाई पैसे की, शरीर निर्वाह अर्थ। यह तो है 21 जन्मों के लिए। कितनों का कल्याण हो जायेगा। अक्सर करके मातायें भी पूछती हैं कि बाबा घर में गीता पाठशाला खोलें? उन्हों को ईश्वरीय सेवा का शौक रहता है। पुरूष लोग तो इधर-उधर क्लब आदि में घूमते रहते हैं। साहूकारों के लिये तो यहाँ ही स्वर्ग है। कितने फैशन आदि करते रहते हैं। लेकिन देवताओं की तो नैचुरल ब्युटी देखो कैसी है। कितना फ़र्क है। वैसे यहाँ तुमको सच सुनाया जाता है तो कितने थोड़े आते हैं। सो भी गरीब। उस तरफ झट चले जाते हैं। वहाँ भी श्रृंगार आदि करके जाते हैं। गुरू लोग सगाई भी कराते हैं। यहाँ किसकी सगाई कराई जाती है तो भी बचाने के लिए। काम चिता पर चढ़ने से बच जाए। ज्ञान चिता पर बैठ पदम् भाग्यशाली बन जाएं। माँ-बाप को कहते हैं यह बरबादी का धंधा छोड़ चलो स्वर्ग में। तो कहते हैं क्या करें, यह दुनिया वाले हमारे ऊपर बिगड़ेंगे कि कुल का नाम बदनाम करते हैं। शादी न कराना कायदे के बरखिलाफ है। लोक लाज, कुल की मर्यादा छोड़ते नहीं हैं। भक्ति मार्ग में गाते हैं-मेरा तो एक, दूसरा न कोई। मीरा के भी गीत हैं। फीमेल्स में नम्बरवन भक्तिन मीरा, मेल्स में नारद गाया हुआ है। नारद की भी कहानी है ना। तुमको कोई नया आदमी कहे-मैं लक्ष्मी को वर सकता हूँ। तो बोलो, अपने को देखो लायक हो? पवित्र सर्वगुण सम्पन्न... हो? यह तो विकारी पतित दुनिया है। बाप आये हैं उनसे निकाल पावन बनाने। पावन बनो तब तो लक्ष्मी को वरने के लायक बन सकेंगे। यहाँ बाबा के पास आते हैं, प्रतिज्ञा करते फिर घर में जाकर विकार में गिरते हैं। ऐसे-ऐसे समाचार आते हैं। बाबा कहते हैं ऐसे-ऐसे को जो ब्राह्मणी ले आती है उनके ऊपर भी असर पड़ जाता है। इन्द्र सभा की कहानी भी है ना। तो ले आने वाले पर भी दण्ड पड़ जाता है। बाबा ब्राह्मणियों को हमेशा कहते हैं कच्चे-कच्चे को मत ले आओ। तुम्हारी अवस्था भी गिर पड़ेगी क्योंकि बेकायदे ले आये। वास्तव में ब्राह्मणी बनना है बहुत सहज। 10-15 दिन में बन सकती है। बाबा किसको भी समझाने की बहुत सहज युक्ति बताते हैं। तुम भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे, स्वर्गवासी थे। अब नर्कवासी हो फिर स्वर्गवासी बनना है तो यह विकार छोड़ो। सिर्फ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। कितना सहज है। परन्तु कोई बिल्कुल समझते नहीं हैं। खुद ही नहीं समझते तो औरों को क्या समझायेंगे। वानप्रस्थ अवस्था में भी मोह की रग जाती रहती है। आजकल वानप्रस्थ अवस्था में इतने नहीं जाते हैं। तमोप्रधान हैं ना। यहाँ ही फंसे रहते हैं। आगे वानप्रस्थियों के बड़े-बड़े आश्रम थे। आजकल इतने नहीं हैं। 80-90 वर्ष के हो जाते तो भी घर को नहीं छोड़ते। समझते ही नहीं कि वाणी से परे जाना है। अब ईश्वर को याद करना है। भगवान कौन है, यह सब नहीं जानते। सर्वव्यापी कह देते तो याद किसको करें। यह भी नहीं समझते कि हम पुजारी हैं। बाप तो तुमको पुजारी से पूज्य बनाते हैं सो भी 21 जन्मों के लिए। इसके लिए पुरूषार्थ तो करना पड़ेगा।

बाबा ने समझाया है यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी है। अभी हमको जाना है घर-बस यही तात रहे। वहाँ क्रिमिनल बात होती ही नहीं। बाप आकर उस पवित्र दुनिया के लिए तैयारी कराते हैं। सर्विसएबुल लाडले बच्चों को तो नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं। तो अधमों का उद्धार करने के लिए बहादुरी चाहिए, उस गवर्मेन्ट में तो बड़े-बड़े झुण्ड होते हैं। टिपटॉप हो जाते हैं पढ़े-लिखे। यहाँ तो कई गरीब साधारण हैं। उनको बाप बैठ इतना ऊंच उठाते हैं। चलन भी बड़ी रॉयल चाहिए। भगवान पढ़ाते हैं। उस पढ़ाई में कोई बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो कितना टिपटॉप हो जाते हैं। यहाँ तो बाप गरीब निवाज़ हैं। गरीब ही कुछ-न-कुछ भेज देते हैं। एक-दो रूपये का भी मनीऑर्डर भेज देते हैं। बाप कहते हैं तुम तो महान् भाग्यशाली हो। रिटर्न में बहुत मिल जाता है। यह भी कोई नई बात नहीं। साक्षी हो ड्रामा देखते हैं। बाप कहते हैं बच्चे अच्छी रीति पढ़ो। यह ईश्वरीय यज्ञ है जो चाहे सो लो। लेकिन यहाँ लेंगे तो वहाँ कम हो जायेगा। स्वर्ग में तो सब कुछ मिलना है। बाबा को तो सर्विस में बड़े फुर्त बच्चे चाहिए। सुदेश जैसी, मोहिनी जैसी, जिनको सर्विस का उमंग हो। तुम्हारा नाम बहुत बाला हो जायेगा। फिर तुमको बहुत मान देंगे। बाबा सब डायरेक्शन देते रहते हैं। बाबा तो कहते हैं यहाँ बच्चों को जितना समय मिले, याद में रहो। इम्तहान के दिन नज़दीक होते हैं तो एकान्त में जाकर पढ़ते हैं। प्राइवेट टीचर भी रखते हैं। हमारे पास टीचर तो बहुत हैं, सिर्फ पढ़ने का शौक चाहिए। बाप तो बहुत सहज समझाते हैं। सिर्फ अपने को आत्मा निश्चय करो। यह शरीर तो विनाशी है। तुम आत्मा अविनाशी हो। यह ज्ञान एक ही बार मिलता है फिर सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक किसको मिलता ही नहीं। तुमको ही मिलता है। हम आत्मा हैं यह तो पक्का निश्चय कर लो। बाप से हमको वर्सा मिलता है। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे। बस। यह अन्दर रटते रहें तो भी बहुत कल्याण हो सकता है। परन्तु चार्ट रखते ही नहीं। लिखते-लिखते फिर थक जाते हैं। बाबा बहुत सहज कर बतलाते हैं। हम आत्मा सतोप्रधान थी, अब तमोप्रधान बनी हूँ। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। कितना सहज है फिर भी भूल जाते हैं। जितना समय बैठो अपने को आत्मा समझो। मैं आत्मा बाबा का बच्चा हूँ। बाप को याद करने से स्वर्ग की बादशाही मिलेगी। बाप को याद करने से आधाकल्प के पाप भस्म हो जायेंगे। कितना सहज युक्ति बतलाते हैं। सब बच्चे सुन रहे हैं। यह बाबा खुद भी प्रैक्टिस करते हैं तब तो सिखाते हैं ना। मैं बाबा का रथ हूँ, बाबा मुझे खिलाते हैं। तुम बच्चे भी ऐसे समझो। शिवबाबा को याद करते रहो तो कितना फायदा हो जाए। परन्तु भूल जाते हैं। बहुत सहज है। धन्धे में कोई ग्राहक नहीं है तो याद में बैठ जाओ। मैं आत्मा हूँ, बाबा को याद करना है। बीमारी में भी याद कर सकते हो। बांधेली हो तो वहाँ बैठ तुम याद करती रहो तो 10-20 वर्ष वालों से भी ऊंच पद पा सकती हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
सर्विस में बहुत-बहुत फुर्त बनना है। जितना समय मिले एकान्त में बैठ बाप को याद करना है। पढ़ाई का शौक रखना है। पढ़ाई से रूठना नहीं है।
अपनी चलन बहुत-बहुत रॉयल रखनी है, बस अब घर जाना है, पुरानी दुनिया खत्म होनी है इसलिए मोह की रगें तोड़ देनी हैं। वानप्रस्थ (वाणी से परे) अवस्था में रहने का अभ्यास करना है। अधमों का भी उद्धार करने की सेवा करनी है।
वरदान:
पास विद आनर बनने के लिए पुरूषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल रखने वाले यथार्थ योगी भव!   
वर्तमान समय के प्रमाण पुरूषार्थ की गति तीव्र और ब्रेक पावरफुल चाहिए तब अन्त में पास विद आनर बन सकेंगे क्योंकि उस समय की परिस्थितियां बुद्धि में अनेक संकल्प लाने वाली होंगी, उस समय सब संकल्पों से परे एक संकल्प में स्थित होने का अभ्यास चाहिए। जिस समय विस्तार में बिखरी हुई बुद्धि हो उस समय स्टॉप करने की प्रैक्टिस चाहिए। स्टॉप करना और होना। जितना समय चाहें उतना समय बुद्धि को एक संकल्प में स्थित कर लें-यही है यथार्थ योग।
स्लोगन:
आप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट हो इसलिए अलमस्त नहीं हो सकते। सर्वेन्ट माना सदा सेवा पर उपस्थित।