Monday, August 24, 2015

मुरली 25 अगस्त 2015

“मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर अब तुम्हें फकीर से अमीर बनना है, तुम आत्मा हो रूप-बसन्त”

प्रश्न:

कौन-सी शुभ भावना रख पुरूषार्थ में सदा तत्पर रहना है?

उत्तर:

सदा यही शुभ भावना रखनी है कि हम आत्मा सतोप्रधान थी, हमने ही बाप से शक्ति का वर्सा लिया था अब फिर से ले रहे हैं। इसी शुभ भावना से पुरूषार्थ कर सतोप्रधान बनना है। ऐसे नहीं सोचना कि सब सतोप्रधान थोड़ेही बनेंगे। नहीं, याद की यात्रा पर रहने का पुरूषार्थ करते रहना है, सर्विस से ताकत लेनी है।

गीतः

इस पाप की दुनिया से........

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) रूहानी सेवाधारी बन आत्माओं को जगाने की सेवा करनी है। तन-मन-धन से सेवा कर श्रीमत पर रामराज्य की स्थापना के निमित्त बनना है।

2) स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुद्धि में फिराना है। एक बाप को ही याद करना है। दूसरे कोई की याद न रहे। कभी किसी बात से तंग हो पढ़ाई नहीं छोड़नी है।

वरदान:

सेवा करते हुए याद के अनुभवों की रेस करने वाले सदा लवलीन आत्मा भव!

याद में रहते हो लेकिन याद द्वारा जो प्राप्तियां होती हैं, उस प्राप्ति की अनुभूति को आगे बढ़ाते जाओ, इसके लिए अभी विशेष समय और अटेन्शन दो जिससे मालूम पड़े कि यह अनुभवों के सागर में खोई हुई लवलीन आत्मा है। जैसे पवित्रता, शान्ति के वातावरण की भासना आती है वैसे श्रेष्ठ योगी, लगन में मगन रहने वाले हैं - यह अनुभव हो। नॉलेज का प्रभाव है लेकिन योग के सिद्धि स्वरूप का प्रभाव हो। सेवा करते हुए याद के अनुभवों में डूबे हुए रहो, याद की यात्रा के अनुभवों की रेस करो।

स्लोगन:

सिद्धि को स्वीकार कर लेना अर्थात् भविष्य प्रालब्ध को यहाँ ही समाप्त कर देना।

ओम् शांति ।

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25-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर अब तुम्हें फकीर से अमीर बनना है, तुम आत्मा हो रूप-बसन्त”   
प्रश्न:
कौन-सी शुभ भावना रख पुरूषार्थ में सदा तत्पर रहना है?
उत्तर:
सदा यही शुभ भावना रखनी है कि हम आत्मा सतोप्रधान थी, हमने ही बाप से शक्ति का वर्सा लिया था अब फिर से ले रहे हैं। इसी शुभ भावना से पुरूषार्थ कर सतोप्रधान बनना है। ऐसे नहीं सोचना कि सब सतोप्रधान थोड़ेही बनेंगे। नहीं, याद की यात्रा पर रहने का पुरूषार्थ करते रहना है, सर्विस से ताकत लेनी है।
गीतः
इस पाप की दुनिया से........  
ओम् शान्ति।
यह है पढ़ाई। हर एक बात समझनी है और जो भी सतसंग आदि हैं, वह सब हैं भक्ति के। भक्ति करते- करते बेगर बन गये हैं। वह बेगर्स फकीर और हैं, तुम और किसम के बेगर्स हो। तुम अमीर थे, अभी फकीर बने हो। यह किसको भी पता नहीं कि हम अमीर थे, तुम ब्राह्मण जानते हो-हम विश्व के मालिक अमीर थे। अमीरचन्द से फकीरचन्द बने हैं। अब यह है पढ़ाई, जिसको अच्छी रीति पढ़ना है, धारण करना है और धारण कराने की कोशिश करनी है। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण करने हैं। आत्मा रूप बसन्त है ना। आत्मा ही धारण करती है, शरीर तो विनाशी है। काम की जो चीज़ नहीं होती है, उनको जलाया जाता है। शरीर भी काम का नहीं रहता है तो उनको आग में जलाते हैं। आत्मा को तो नहीं जलाते। हम आत्मा हैं, जबसे रावण राज्य हुआ है तो मनुष्य देह-अभिमान में आ गये हैं। मैं शरीर हूँ, यह पक्का हो जाता है। आत्मा तो अमर है। अमरनाथ बाप आकर आत्माओं को अमर बनाते हैं। वहाँ तो अपने समय पर अपनी मर्जी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं क्योंकि आत्मा मालिक है। जब चाहे शरीर छोड़े। वहाँ शरीर की आयु बड़ी होती है। सर्प का मिसाल है। अभी तुम जानते हो यह तुम्हारे बहुत जन्मों के अन्त के जन्म की पुरानी खाल है। 84 जन्म पूरे लिए हैं। कोई के 60-70 जन्म भी हैं, कोई के 50 हैं, त्रेता में जरूर आयु कुछ न कुछ कम हो जाती है। सतयुग में फुल आयु होती है। अब पुरूषार्थ करना है कि हम पहले-पहले सतयुग में आयें। वहाँ ताकत रहती है तो अकाले मृत्यु नहीं होती। ताकत कम होती है तो फिर आयु भी कम हो जाती है। अब जैसे बाप सर्व शक्तिमान् है, तुम्हारी आत्मा को भी शक्तिवान बनाते हैं। एक तो पवित्र बनना है और याद में रहना है तब शक्ति मिलती है। बाप से शक्ति का वर्सा लेते हो। पाप आत्मा तो शक्ति ले न सके। पुण्य आत्मा बनते हैं तो शक्ति मिलती है। यह ख्याल करो-हमारी आत्मा सतोप्रधान थी। हमेशा शुभ भावना रखनी चाहिए। ऐसे नहीं कि सब थोड़ेही सतोप्रधान होंगे। कोई तो सतो भी होंगे ना। नहीं, अपने को समझना चाहिए हम पहले-पहले सतोप्रधान थे। निश्चय से ही सतोप्रधान बनेंगे। ऐसे नहीं कि हम कैसे सतोप्रधान बन सकेंगे। फिर खिसक जाते हैं। याद की यात्रा पर नहीं रहते। जितना हो सके पुरूषार्थ करना चाहिए। अपने को आत्मा समझ सतोप्रधान बनना है। इस समय सब मनुष्य मात्र तमोप्रधान हैं। तुम्हारी आत्मा भी तमोप्रधान है। आत्मा को अब सतोप्रधान बनाना है बाप की याद से। साथ-साथ सर्विस भी करेंगे तो ताकत मिलेगी। समझो कोई सेन्टर खोलते हैं तो बहुतों की आशीर्वाद उन्हों के सिर पर आयेगी। मनुष्य धर्मशाला बनाते हैं कि कोई भी आए विश्राम पाये। आत्मा खुश होगी ना। रहने वालों को आराम मिलता है तो उसका आशीर्वाद बनाने वाले को मिलता है। फिर परिणाम क्या होगा? दूसरे जन्म में वह सुखी रहेगा। मकान अच्छा मिलेगा। मकान का सुख मिलेगा। ऐसे नहीं कि कभी बीमार नहीं होंगे। सिर्फ मकान अच्छा मिलेगा। हॉस्पिटल खोली होगी तो तन्दुरूस्ती अच्छी रहेगी। युनिवर्सिटी खोली होगी तो पढ़ाई अच्छी रहेगी। स्वर्ग में तो यह हॉस्पिटल आदि होती नहीं। यहाँ तुम पुरूषार्थ से 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध बनाते हो। बाकी वहाँ हॉस्पिटल, कोर्ट, पुलिस आदि कुछ नहीं होगा। अभी तुम चलते हो सुखधाम में। वहाँ वजीर भी होता नहीं। ऊंच ते ऊंच खुद महाराजा-महारानी, वह वजीर की राय थोड़ेही लेंगे। राय तब मिलती है जब बेअक्ल बनते हैं, जब विकारों में गिरते हैं। रावण राज्य में बिल्कुल ही बेअक्ल तुच्छ बुद्धि बन जाते हैं इसलिए विनाश का रास्ता ढूँढते रहते हैं। खुद समझते हैं हम विश्व को बहुत ऊंच बनाते हैं परन्तु यह और ही नीचे गिरते जाते हैं। अब विनाश सामने खड़ा है। तुम बच्चे जानते हो हमको घर जाना है। हम भारत की सेवा कर दैवी राज्य स्थापन करते हैं। फिर हम राज्य करेंगे। गाया भी जाता है फालो फादर। फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर। बच्चे जानते हैं-इस समय शिवबाबा ब्रह्मा के तन में आकर हमको पढ़ाते हैं। समझाना भी ऐसे है। हम ब्रह्मा को भगवान वा देवता आदि नहीं मानते। यह तो पतित थे, बाप ने पतित शरीर में प्रवेश किया है। झाड़ में देखो ऊपर चोटी में खड़ा है ना। पतित हैं फिर नीचे पावन बनने के लिए तपस्या कर फिर देवता बनते हैं। तपस्या करने वाले हैं ब्राह्मण। तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ सब राजयोग सीख रहे हो। कितना क्लीयर है। इसमें योग बड़ा अच्छा चाहिए। याद में नहीं रहेंगे तो मुरली में भी वह ताकत नहीं रहेगी। ताकत मिलती है शिवबाबा की याद में। याद से ही सतोप्रधान बनेंगे नहीं तो सज़ायें खाकर फिर कम पद पा लेंगे। मूल बात है याद की, जिसको ही भारत का प्राचीन योग कहा जाता है। नॉलेज का किसको पता नहीं है। आगे के ऋषि-मुनि कहते थे-रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को हम नहीं जानते। तुम भी आगे कुछ नहीं जानते थे। इन 5 विकारों ने ही तुमको बिल्कुल वर्थ नाट ए पेनी बनाया है। अभी यह पुरानी दुनिया जलकर बिल्कुल खत्म हो जानी है। कुछ भी रहने का नहीं है। तुम सब नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार भारत को स्वर्ग बनाने की तन-मन-धन से सेवा करते हो। प्रदर्शनी में भी तुमसे पूछते हैं तो बोलो हम बी.के. अपने ही तन-मन-धन से श्रीमत पर सेवा कर रामराज्य स्थापन कर रहे हैं। गांधी जी तो ऐसे नहीं कहते थे कि श्रीमत पर हम रामराज्य स्थापन करते हैं। यहाँ तो इसमें श्री श्री 108, बाप बैठे हैं। 108 की माला भी बनाते हैं। माला तो बड़ी बनती है। उसमें 8-108 अच्छी मेहनत करते हैं। नम्बरवार तो बहुत हैं, जो अच्छी मेहनत करते हैं। रूद्र यज्ञ होता है तो सालिग्रामों की भी पूजा होती है। जरूर कुछ सर्विस की है तब तो पूजा होती है। तुम ब्राह्मण रूहानी सेवाधारी हो। सबकी आत्माओं को जगाने वाले हो। मैं आत्मा हूँ, यह भूलने से देह-अभिमान आ जाता है। समझते हैं मैं फलाना हूँ। किसको भी यह पता थोड़ेही है-मैं आत्मा हूँ, फलाना नाम तो इस शरीर का है। हम आत्मा कहाँ से आती है-यह ज़रा भी कोई को ख्याल नहीं। यहाँ पार्ट बजाते-बजाते शरीर का भान पक्का हो गया है। बाप समझाते हैं-बच्चे, अब गफ़लत छोड़ो। माया बड़ी जबरदस्त है, तुम युद्ध के मैदान में हो। तुम आत्म-अभिमानी बनो। आत्माओं और परमात्मा का यह मेला है। गायन है आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल। इनका भी अर्थ वह नहीं जानते। तुम अभी जानते हो-हम आत्मायें बाप के साथ रहने वाली हैं। वह आत्माओं का घर है ना। बाप भी वहाँ है, उनका नाम है शिव। शिव जयन्ती भी गाई जाती है, दूसरा कोई नाम देना ही नहीं चाहिए। बाप कहते हैं-मेरा असली नाम है कल्याणकारी शिव। कल्याणकारी रूद्र नहीं कहेंगे। कल्याणकारी शिव कहते हैं। काशी में भी शिव का मन्दिर है ना। वहाँ जाकर साधू लोग मन्त्र जपते हैं। शिव काशी विश्वनाथ गंगा। अब बाप समझाते हैं शिव जो काशी के मन्दिर में बिठाया है, उनको कहते हैं - विश्वनाथ। अब मैं तो विश्व-नाथ हूँ नहीं। विश्व के नाथ तुम बनते हो। मैं बनता ही नहीं हूँ। ब्रह्म तत्व के नाथ भी तुम बनते हो। तुम्हारा वह घर है। वह राजधानी है। मेरा घर तो एक ही ब्रह्म तत्व है। मैं स्वर्ग में आता नहीं हूँ। न मैं नाथ बनता हूँ। मेरे को कहते ही हैं शिवबाबा। मेरा पार्ट ही है पतितों को पावन बनाने का। सिक्ख लोग भी कहते हैं मूत पलीती कपड़ धोए...... परन्तु अर्थ नहीं समझते। महिमा भी गाते हैं एकोअंकार...... अजोनि यानी जन्म-मरण रहित। मैं तो 84 जन्म लेता नहीं हूँ। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। इनकी आत्मा जानती है-बाबा मेरे साथ इकट्ठा बैठा हुआ है तो भी घड़ी-घड़ी याद भूल जाती है। इस दादा की आत्मा कहती है मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे नहीं कि मेरे साथ बैठा है तो याद अच्छी रहती है। नहीं। एकदम इकट्ठा है। जानता हूँ मेरे पास है। इस शरीर का जैसे वह मालिक है। फिर भी भूल जाता हूँ। बाबा को यह (शरीर) मकान दिया है रहने के लिए। बाकी एक कोने में मैं बैठा हूँ। बड़ा आदमी हुआ ना। विचार करता हूँ, बाजू में मालिक बैठा है। यह रथ उनका है। वह इनकी सम्भाल करते हैं। मुझे शिवबाबा खिलाते भी हैं। मैं उनका रथ हूँ। कुछ तो खातिरी करेंगे। इस खुशी में खाता हूँ। दो-चार मिनट बाद भूल जाता हूँ, तब समझता हूँ बच्चों को कितनी मेहनत होगी इसलिए बाबा समझाते रहते हैं-जितना हो सके बाप को याद करो। बहुत-बहुत फायदा है। यहाँ तो थोड़ी बात में तंग हो पड़ते हैं फिर पढ़ाई को छोड़ देते हैं। बाबा-बाबा कह फारकती दे देते हैं। बाप को अपना बनावन्ती, ज्ञान सुनावन्ती, पशन्ती, दिव्य दृष्टि से स्वर्ग देखन्ती, रास करन्ती, अहो मम माया मुझे फारकती देवन्ती, भागन्ती। जो विश्व का मालिक बनाते उनको फारकती दे देते हैं। बड़े-बड़े नामीग्रामी भी फारकती दे देते हैं।

अभी तुमको रास्ता बताया जाता है। ऐसे नहीं कि हाथ से पकड़कर ले जायेंगे। इन आंखों से तो अन्धे नहीं हैं। हाँ ज्ञान का तीसरा नेत्र तुमको मिलता है। तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। यह 84 का चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। तुम्हारा नाम है स्वदर्शन चक्रधारी। एक बाप को ही याद करना है। दूसरे कोई की याद न रहे। पिछाड़ी में यह अवस्था रहे। जैसे स्त्री का पुरूष से लव रहता है। उनका है जिस्मानी लव, यहाँ तुम्हारा है रूहानी लव। तुम्हें उठते-बैठते, पतियों के पति, बापों के बाप को याद करना है। दुनिया में ऐसे बहुत घर हैं जहाँ स्त्री-पुरूष तथा परिवार आपस में बहुत प्यार से रहते हैं। घर में जैसे स्वर्ग लगा रहता है। 5-6 बच्चे इकट्ठे रहते, सुबह को जल्दी उठ पूजा में बैठते, कोई झगड़ा आदि घर में नहीं। एकरस रहते हैं। कहाँ तो फिर एक ही घर में कोई राधास्वामी के शिष्य होंगे तो कोई फिर धर्म को ही नहीं मानते। थोड़ी बात पर नाराज़ हो पड़ते। तो बाप कहते हैं-इस अन्तिम जन्म में पूरा पुरूषार्थ करना है। अपना पैसा भी सफल कर अपना कल्याण करो। तो भारत का भी कल्याण होगा। तुम जानते हो-हम अपनी राजधानी श्रीमत पर फिर से स्थापन करते हैं। याद की यात्रा से और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानने से ही हम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे फिर उतरना शुरू होगा। फिर अन्त में बाबा के पास आ जायेंगे। श्रीमत पर चलने से ही ऊंच पद पायेंगे। बाप कोई फाँसी पर नहीं चढ़ाते हैं। एक तो कहते हैं पवित्र बनो और बाप को याद करो। सतयुग में पतित कोई होता नहीं। देवी-देवतायें भी बहुत थोड़े ही रहते हैं। फिर आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि होती है। देवताओं का है छोटा झाड़। फिर कितनी वृद्धि हो जाती है। आत्मायें सब आती रहती हैं, यह बना-बनाया खेल है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रूहानी सेवाधारी बन आत्माओं को जगाने की सेवा करनी है। तन-मन-धन से सेवा कर श्रीमत पर रामराज्य की स्थापना के निमित्त बनना है।
2) स्वदर्शन चक्रधारी बन 84 का चक्र बुद्धि में फिराना है। एक बाप को ही याद करना है। दूसरे कोई की याद न रहे। कभी किसी बात से तंग हो पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
वरदान:
सेवा करते हुए याद के अनुभवों की रेस करने वाले सदा लवलीन आत्मा भव!   
याद में रहते हो लेकिन याद द्वारा जो प्राप्तियां होती हैं, उस प्राप्ति की अनुभूति को आगे बढ़ाते जाओ, इसके लिए अभी विशेष समय और अटेन्शन दो जिससे मालूम पड़े कि यह अनुभवों के सागर में खोई हुई लवलीन आत्मा है। जैसे पवित्रता, शान्ति के वातावरण की भासना आती है वैसे श्रेष्ठ योगी, लगन में मगन रहने वाले हैं - यह अनुभव हो। नॉलेज का प्रभाव है लेकिन योग के सिद्धि स्वरूप का प्रभाव हो। सेवा करते हुए याद के अनुभवों में डूबे हुए रहो, याद की यात्रा के अनुभवों की रेस करो।
स्लोगन:
सिद्धि को स्वीकार कर लेना अर्थात् भविष्य प्रालब्ध को यहाँ ही समाप्त कर देना।