Monday, August 10, 2015

मुरली 11 अगस्त 2015


“मीठे बच्चे - अपनी सेफ्टी के लिए विकारों रूपी माया के चम्बे से सदा बचकर रहना है, देह-अभिमान में कभी नहीं आना है”  

प्रश्न:

पुण्य आत्मा बनने के लिए बाप सभी बच्चों को कौन-सी मुख्य शिक्षा देते हैं?

उत्तर:

बाबा कहते - बच्चे, पुण्यात्मा बनना है तो 1. श्रीमत पर सदा चलते रहो। याद की यात्रा में गफ़लत नहीं करो। 2. आत्म-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ कर काम महाशत्रु पर जीत प्राप्त करो। यही समय है-पुण्यात्मा बन इस दु:खधाम से पार सुखधाम में जाने का।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) अपने घर और राजधानी को याद कर अपार खुशी में रहना है। सदा याद रहे-अब हमारी मुसाफ़िरी पूरी हुई, हम जाते हैं अपने घर, फिर राजधानी में आयेंगे।

2) हम शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा हैण्ड शेक करते हैं, वह बागवान हमें पतित से पावन बना रहे हैं। हम इस पढ़ाई से स्वर्ग की पटरानी बनते हैं-इसी आन्तरिक खुशी में रहना है।

वरदान:

एकरस स्थिति द्वारा सदा एक बाप को फालो करने वाले प्रसन्नचित भव!  

आप बच्चों के लिए ब्रह्मा बाप की जीवन एक्यूरेट कम्प्युटर है। जैसे आजकल कम्प्यूटर द्वारा हर एक प्रश्न का उत्तर पूछते हैं। ऐसे मन में जब भी कोई प्रश्न उठता है तो क्या, कैसे के बजाए ब्रह्मा बाप के जीवन रूपी कम्प्युटर से देखो। क्या और कैसे का क्वेश्चन ऐसे में बदल जायेगा। प्रश्नचित के बजाए प्रसन्नचित बन जायेंगे। प्रसन्नचित अर्थात् एकरस स्थिति में एक बाप को फालो करने वाले।

स्लोगन:

आत्मिक शक्ति के आधार पर सदा स्वस्थ रहने का अनुभव करो।


ओम् शांति ।

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11-08-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अपनी सेफ्टी के लिए विकारों रूपी माया के चम्बे से सदा बचकर रहना है, देह-अभिमान में कभी नहीं आना है”   
प्रश्न:
पुण्य आत्मा बनने के लिए बाप सभी बच्चों को कौन-सी मुख्य शिक्षा देते हैं?
उत्तर:
बाबा कहते - बच्चे, पुण्यात्मा बनना है तो 1. श्रीमत पर सदा चलते रहो। याद की यात्रा में गफ़लत नहीं करो। 2. आत्म-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ कर काम महाशत्रु पर जीत प्राप्त करो। यही समय है-पुण्यात्मा बन इस दु:खधाम से पार सुखधाम में जाने का।
ओम् शान्ति।
बाप ही रोज़ बच्चों से पूछते हैं। शिवबाबा के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि बचड़ेवाल है। आत्मायें तो अनादि हैं ही। बाप भी है। इस समय जबकि बाप और दादा दोनों हैं तब ही बच्चों की सम्भाल करनी होती है। कितने बच्चे हैं जिनकी सम्भाल करनी होती है। एक-एक का पोतामेल रखना होता है। जैसे लौकिक बाप को भी फुरना रहता है ना। समझते हैं-हमारा बच्चा भी इस ब्राह्मण कुल में आ जाए तो अच्छा है। हमारे बच्चे भी पवित्र बन पवित्र दुनिया में चलें। कहाँ इस पुराने माया के नाले में बह न जायें। बेहद के बाप को बच्चों का फुरना रहता है। कितने सेन्टर्स हैं, किस बच्चे को कहाँ भेजना है जो सेफ्टी में रहें। आजकल सेफ्टी भी मुश्किल है। दुनिया में कोई भी सेफ्टी नहीं है। स्वर्ग में तो हर एक की सेफ्टी है। यहाँ कोई की सेफ्टी नहीं है। कहाँ न कहाँ विकारों रूपी माया के चम्बे में फंस पड़ते हैं। अभी तुम आत्माओं को यहाँ पढ़ाई मिल रही है। सत का संग भी यहाँ है। यहाँ ही दु:खधाम से पार सुखधाम में जाना है क्योंकि अब बच्चों को पता पड़ा है दु:खधाम क्या है, सुखधाम क्या है। बरोबर अभी दु:खधाम है। हमने पाप बहुत किये हैं और वहाँ पुण्य आत्मायें ही रहती हैं। हमको अभी पुण्य आत्मा बनना है। अभी तुम हर एक अपने 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी जान गये हो। दुनिया में कोई भी 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी नहीं जानते। अभी बाप ने आकर सारी जीवन कहानी समझाई है। अभी तुम जानते हो हमें पूरा पुण्य आत्मा बनना है - याद की यात्रा से। इसमें ही बहुत धोखा खाते हैं गफलत करने से। बाप कहते हैं इस समय गफ़लत अच्छी नहीं है। श्रीमत पर चलना है। उसमें भी मुख्य बात कहते हैं एक तो याद की यात्रा में रहो, दूसरा काम महाशत्रु पर जीत पानी है। बाप को सब पुकारते हैं क्योंकि उनसे शान्ति और सुख का वर्सा मिलता है आत्माओं को। आगे देह-अभिमानी थे तो कुछ पता नहीं पड़ता था। अभी बच्चों को आत्म-अभिमानी बनाया जाता है। नये को पहले-पहले एक हद के, दूसरा बेहद के बाप का परिचय देना है। बेहद के बाप से स्वर्ग (बहिश्त) नसीब होता है। हद के बाप से दोज़क (नर्क) नसीब होता है। बच्चा जब बालिग बनता है तो प्रापर्टी का हकदार बनता है। जब समझ आती है फिर धीरे-धीरे माया के अधीन बन पड़ते हैं। वह सब है रावण राज्य (विकारी दुनिया) की रस्म रिवाज़। अभी तुम बच्चे जानते हो यह दुनिया बदल रही है। इस पुरानी दुनिया का विनाश हो रहा है। एक गीता में ही विनाश का वर्णन है और कोई शास्त्र में महाभारत महाभारी लड़ाई का वर्णन नहीं है। गीता का है ही यह पुरूषोत्तम संगमयुग। गीता का युग माना आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना। गीता है ही देवी-देवता धर्म का शास्त्र। तो यह गीता का युग है, जबकि नई दुनिया स्थापन हो रही है। मनुष्यों को भी बदलना है। मनुष्य से देवता बनना है। नई दुनिया में जरूर दैवी गुणों वाले मनुष्य चाहिए ना। इन बातों को दुनिया नहीं जानती। उन्हों ने कल्प की आयु का टाइम बहुत दे दिया है। अभी तुम बच्चों को बाप समझा रहे हैं-तुम समझते हो बरोबर बाबा हमको पढ़ाते हैं। कृष्ण को कभी बाप, टीचर या गुरू नहीं कह सकते। कृष्ण टीचर हो तो सीखा कहाँ से? उनको ज्ञान सागर नहीं कहा जा सकता।

अभी तुम बच्चों को बड़ो-बड़ों को समझाना है, आपस में मिलकर राय करनी है कि सर्विस की वृद्धि कैसे हो। विहंग मार्ग की सर्विस कैसे हो। ब्रह्माकुमारियों के लिए जो इतना हंगामा करते हैं फिर समझेंगे यह तो सच्चे हैं। बाकी दुनिया तो है झूठी, इसलिए सच की नईया को हिलाते रहेंगे। तूफान तो आते हैं ना। तुम नईया हो जो पार जाती हो। तुम जानते हो हमको इस मायावी दुनिया से पार जाना है। सबसे पहले नम्बर में तूफान आता है देह-अभिमान का। वह है सबसे बुरा। इसने ही सबको पतित बनाया है। तब तो बाप कहते हैं काम महाशत्रु है। यह जैसे बहुत तेज़ तूफान है। कोई तो इन पर जीत पाये हुए भी हैं। गृहस्थ व्यवहार में गये हुए हैं फिर कोशिश करते हैं बचने की। कुमार-कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है इसलिए नाम भी गाया हुआ है कन्हैया। इतनी कन्यायें जरूर शिवबाबा की होगी। देहधारी कृष्ण की तो इतनी कन्यायें हो न सकें। अभी तुम इस पढ़ाई से पटरानी बन रहे हो, इसमें पवित्रता भी मुख्य चाहिए। अपने आपको देखना है कि याद का चार्ट ठीक है? बाबा के पास कोई का 5 घण्टे का, कोई का 2-3 घण्टे का भी चार्ट आता है। कोई तो लिखते ही नहीं हैं। बहुत कम याद करते हैं। सबकी यात्रा एकरस हो न सके। अजुन ढेर बच्चे वृद्धि को पायेंगे। हर एक को अपना चार्ट देखना है-मैं कहाँ तक पद पा सकूँगा? कहाँ तक खुशी है? हमको सदैव खुशी क्यों नहीं होनी चाहिए। जबकि ऊंच ते ऊंच बाप के बने हैं। ड्रामा अनुसार तुमने भक्ति बहुत की है। भक्तों को फल देने के लिए ही बाप आया है। रावण राज्य में तो विकर्म होते ही हैं। तुम पुरूषार्थ करते हो - सतोप्रधान दुनिया में जाने का। जो पूरा पुरूषार्थ नहीं करेंगे तो सतो में आयेंगे। सब थोड़ेही इतना ज्ञान लेंगे। सन्देश जरूर सुनेंगे। फिर कहाँ भी होंगे इसलिए कोने-कोने में जाना चाहिए। विलायत में भी मिशन जानी चाहिए। जैसे बौद्धियों की, क्रिश्चियन्स की यहाँ मिशन है ना। दूसरे धर्म वालों को अपने धर्म में लाने की मिशन होती है। तुम समझाते हो कि हम असुल में देवी-देवता धर्म के थे। अब हिन्दू धर्म के बन गये हैं। तुम्हारे पास बहुत करके हिन्दू धर्म वाले ही आयेंगे। उनमें भी जो शिव के, देवताओं के पुजारी होंगे वह आयेंगे। जैसे बाबा ने कहा-राजाओं की सेवा करो। वह अक्सर करके देवताओं के पुजारी होते हैं। उन्हों के घर में मन्दिर रहते हैं। उन्हों का भी कल्याण करना है। तुम भी समझो हम बाप के साथ दूरदेश से आये हैं। बाप आये ही हैं नई दुनिया स्थापन करने। तुम भी कर रहे हो। जो स्थापना करेंगे वह पालना भी करेंगे। अन्दर में नशा रहना चाहिए-हम शिवबाबा के साथ आये हैं दैवी राज्य स्थापन करने, सारे विश्व को स्वर्ग बनाने। आश्चर्य लगता है इस देश में क्या-क्या करते रहते हैं। पूजा कैसे करते हैं। नवरात्रि में देवियों की पूजा होती है ना। रात्रि है तो दिन भी है। तुम्हारा एक गीत भी है ना-क्या कौतक देखा...... मिट्टी का पुतला बनाए, श्रृंगार कर उसकी पूजा करते हैं, उनसे फिर दिल इतनी लग जाती है जो जब डुबोने जाते हैं तो रो पड़ते हैं। मनुष्य जब मरते हैं तो अर्थी को भी ले जाते हैं। हरीबोल, हरीबोल कर डुबो देते हैं। जाते तो बहुत हैं ना। नदी तो सदैव है। तुम जानते हो यह जमुना का कण्ठा था, जहाँ रास विलास आदि करते थे। वहाँ तो बड़े-बड़े महल होते हैं। तुमको ही जाकर बनाने हैं। जब कोई बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो उनकी बुद्धि में चलता है-पास होकर फिर यह करेंगे, मकान बनायेंगे। तुम बच्चों को भी ख्याल रखना है-हम देवता बनते हैं। अब हम अपने घर जायेंगे। घर को याद कर खुश होना चाहिए। मनुष्य मुसाफ़िरी कर घर लौटते हैं तो खुशी होती है। हम अब घर जाते हैं। जहाँ जन्म हुआ था। हम आत्माओं का भी घर है मूलवतन। कितनी खुशी होती है। मनुष्य इतनी भक्ति करते ही हैं मुक्ति के लिए। परन्तु ड्रामा में पार्ट ऐसा है जो वापिस जाने का कोई को मिलता नहीं है। तुम जानते हो उन्हों को आधाकल्प पार्ट जरूर बजाना है। हमारे अब 84 जन्म पूरे होते हैं। अब वापिस जाना है और फिर राजधानी में आयेंगे। बस घर और राजधानी याद है। यहाँ बैठे भी कोई- कोई को अपने कारखाने आदि याद रहते हैं। जैसे देखो बिड़ला है, कितने उनके कारखाने आदि हैं। सारा दिन उनको ख्यालात रहती होगी। उनको कहें बाबा को याद करो तो कितनी उनको अटक पड़ेगी। घड़ी-घड़ी धन्धा याद आता रहेगा। सबसे सहज है माताओं को, उनसे भी कन्याओं को। जीते जी मरना है, सारी दुनिया को भूल जाना है। तुम अपने को आत्मा समझ शिवबाबा के बनते हो, इसको जीते जी मरना कहा जाता है। देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझ शिवबाबा का बन जाना है। शिवबाबा को ही याद करते रहना है क्योंकि पापों का बोझा सिर पर बहुत है। दिल तो सबकी होती है, हम जीते जी मरकर शिवबाबा का बन जायें। शरीर का भान न रहे। हम अशरीरी आये थे फिर अशरीरी बनकर जाना है। बाप के बने हैं तो बाप के सिवाए दूसरा कोई याद न रहे। ऐसा जल्दी हो जाए तो फिर लड़ाई भी जल्दी लगे। बाबा कितना समझाते हैं हम तो शिवबाबा के हैं ना। हम वहाँ के रहने वाले हैं। यहाँ तो कितना दु:ख है। अभी यह अन्तिम जन्म है। बाप ने बताया है तुम सतोप्रधान थे तो और कोई नहीं था। तुम कितने साहूकार थे। भल इस समय पैसे कौड़ी हैं परन्तु यह तो कुछ है नहीं। कौड़ियां हैं। यह सब अल्पकाल सुख के लिए है। बाप ने समझाया है-पास्ट में दान- पुण्य किया है तो पैसा भी बहुत मिलता है। फिर दान करते हैं। परन्तु यह है एक जन्म की बात। यहाँ तो जन्म-जन्मान्तर के लिए साहूकार बनते हैं। जितना बड़ा कहावना, उतना बड़ा दु:ख पाना। जिनको बहुत धन है वह फिर बहुत फंसे हुए हैं। कभी ठहर न सकें। कोई साधारण गरीब ही सरेन्डर होंगे। साहूकार कभी नहीं होंगे। वह कमाते ही हैं पुत्र-पोत्रों के लिए कि हमारा कुल चलता रहे। खुद उस घर में नहीं आने वाले हैं। पुत्र पोत्रे आयें, जिन्होंने अच्छे कर्म किये हैं। जैसे बहुत दान जो करते हैं तो वह राजा बनते हैं। परन्तु एवरहेल्दी तो नहीं हैं। राजाई की तो क्या हुआ, अविनाशी सुख नहीं है। यहाँ कदम-कदम पर अनेक प्रकार के दु:ख होते हैं। वहाँ यह सब दु:ख दूर हो जाते हैं। बाप को पुकारते हैं कि हमारे दु:ख दूर करो। तुम समझते हो दु:ख दूर सब होने हैं। सिर्फ बाप को याद करते रहें। सिवाए एक बाप के और कोई से वर्सा मिल नहीं सकता। बाप सारे विश्व का दु:ख दूर करते हैं। इस समय तो जानवर आदि भी कितना दु:खी हैं। यह है ही दु:खधाम। दु:ख बढ़ता जाता है, तमोप्रधान बनते जाते हैं। अभी हम संगमयुग पर बैठे हैं। वह सब कलियुग में हैं। यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। बाबा हमको पुरूषोत्तम बना रहे हैं। यह याद रहे तो भी खुशी रहे। भगवान पढ़ाते हैं, विश्व का मालिक बनाते हैं। यह भला याद करो। उनके बच्चे भगवान-भगवती होने चाहिए ना पढ़ाई से। भगवान तो सुख देने वाला है फिर दु:ख कैसे मिलता है? वह भी बाप बैठ समझाते हैं। भगवान के बच्चे फिर दु:ख में क्यों हैं, भगवान दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो जरूर दु:ख में आते हैं तब तो गाते हैं। तुम जानते हो बाप हमको राजयोग सिखा रहे हैं। हम पुरूषार्थ कर रहे हैं। इसमें संशय थोड़ेही हो सकता है। हम बी.के. राजयोग सीख रहे हैं। झूठ थोड़ेही बोलेंगे। कोई को यह संशय आये तो समझाना चाहिए, यह तो पढ़ाई है। विनाश सामने खड़ा है। हम हैं संगमयुगी ब्राह्मण चोटी। प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर ब्राह्मण भी होने चाहिए। तुमको भी समझाया है तब तो निश्चय किया है। बाकी मुख्य बात है याद की यात्रा, इसमें ही विघ्न पड़ते हैं। अपना चार्ट देखते रहो-कहाँ तक बाबा को याद करते हैं, कहाँ तक खुशी का पारा चढ़ता है? यह आन्तरिक खुशी रहनी चाहिए कि हमको बागवान-पतित पावन का हाथ मिला है, हम शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा हैण्ड-शेक करते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपने घर और राजधानी को याद कर अपार खुशी में रहना है। सदा याद रहे-अब हमारी मुसाफ़िरी पूरी हुई, हम जाते हैं अपने घर, फिर राजधानी में आयेंगे।
2) हम शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा हैण्ड शेक करते हैं, वह बागवान हमें पतित से पावन बना रहे हैं। हम इस पढ़ाई से स्वर्ग की पटरानी बनते हैं-इसी आन्तरिक खुशी में रहना है।
वरदान:
एकरस स्थिति द्वारा सदा एक बाप को फालो करने वाले प्रसन्नचित भव!   
आप बच्चों के लिए ब्रह्मा बाप की जीवन एक्यूरेट कम्प्युटर है। जैसे आजकल कम्प्यूटर द्वारा हर एक प्रश्न का उत्तर पूछते हैं। ऐसे मन में जब भी कोई प्रश्न उठता है तो क्या, कैसे के बजाए ब्रह्मा बाप के जीवन रूपी कम्प्युटर से देखो। क्या और कैसे का क्वेश्चन ऐसे में बदल जायेगा। प्रश्नचित के बजाए प्रसन्नचित बन जायेंगे। प्रसन्नचित अर्थात् एकरस स्थिति में एक बाप को फालो करने वाले।
स्लोगन:
आत्मिक शक्ति के आधार पर सदा स्वस्थ रहने का अनुभव करो।