Saturday, November 28, 2015

मुरली 29 नवंबर 2015

29-11-15 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:01-03-99 मधुबन

“होली मनाना अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र बनकर संस्कार मिलन मनाना”
आज बापदादा चारों ओर के अपने होलीएस्ट और हाइएस्ट बच्चों को देख रहे हैं। विश्व में सबसे हाइएस्ट ऊंचे ते ऊंचे श्रेष्ठ आत्मायें आप बच्चों के सिवाए और कोई है? क्योंकि आप सभी ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे हैं। सारे कल्प में चक्र लगाकर देखो तो सबसे ऊंचे मर्तबे वाले और कोई नज़र आते हैं? राज्य अधिकारी स्वरूप में भी आपसे ऊंचे राज्य अधिकारी बने हैं? फिर पूजन और गायन में देखो जितनी पूजा विधिपूर्वक आप आत्माओं की होती है उससे ज्यादा और किसी की है? वन्डरफुल राज़ ड्रामा का कितना श्रेष्ठ है जो आप स्वयं चैतन्य स्वरूप में, इस समय अपने पूज्य स्वरूप को नॉलेज के द्वारा जानते भी हो और देखते भी हो। एक तरफ आप चैतन्य आत्मायें हैं और दूसरे तरफ आपके जड़ चित्र पूज्य रूप में हैं। अपने पूज्य स्वरूप को देख रहे हो ना? जड़ रूप में भी हो और चैतन्य रूप में भी हो। तो वन्डरफुल खेल है ना! और राज्य के हिसाब से भी सारे कल्प में निर्विघ्न, अखण्ड-अटल राज्य एक आप आत्माओं का ही चलता है। राज़े तो बहुत बनते हैं लेकिन आप विश्वराज़न वा विश्वराजन की रॉयल फैमिली सबसे श्रेष्ठ है। तो राज्य में भी हाइएस्ट, पूज्य रूप में भी हाइएस्ट और अब संगम पर परमात्म वर्से के अधिकारी, परमात्म मिलन के अधिकारी, परमात्म प्यार के अधिकारी, परमात्म परिवार की आत्मायें और कोई बनती हैं? आप ही बने हो ना? बन गये हो या बन रहे हो? बन भी गये और अब तो वर्सा लेकर सम्पन्न बन बाप के साथ-साथ अपने घर में भी चलने वाले हैं। संगम का सुख, संगमयुग की प्राप्तियां, संगमयुग का समय सुहाना लगता है ना! बहुत प्यारा लगता है। राज्य के समय से भी संगम का समय प्यारा लगता है ना? प्यारा है या जल्दी जाने चाहते हो? फिर पूछते क्यों हो कि बाबा विनाश कब होगा? सोचते हो ना - पता नहीं विनाश कब होगा? क्या होगा? हम कहाँ होंगे? बापदादा कहते हैं जहाँ भी होंगे - याद में होंगे, बाप के साथ होंगे। साकार में या आकार में साथ होंगे तो कुछ नहीं होगा। साकार में कहानी सुनाई है ना। बिल्ली के पूंगरे भट्ठी में होते हुए भी सेफ रहे ना! या जल गये? सब सेफ रहे। तो आप परमात्म बच्चे जो साथ होंगे वह सेफ रहेंगे। अगर और कहाँ बुद्धि होगी तो कुछ न कुछ सेक लगेगा, कुछ न कुछ प्रभाव होगा। साथ में कम्बाइन्ड होंगे, एक सेकण्ड भी अकेले नहीं होंगे तो सेफ रहेंगे। कभी-कभी कामकाज या सेवा में अकेले अनुभव करते हो? क्या करें अकेले हैं, बहुत काम है! फिर थक भी जाते हैं। तो बाप को क्यों नहीं साथी बनाते! दो भुजा वालों को साथी बना देते, हजार भुजा वाले को क्यों नहीं साथी बनाते। कौन ज्यादा सहयोग देगा? हजार भुजा वाला या दो भुजा वाला?

संगमयुग पर ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं हो सकते। सिर्फ जब सेवा में, कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते हो ना तो साथ भी भूल जाते हो और फिर थक जाते हो। फिर कहते हो थक गये, अभी क्या करें! थको नहीं, जब बापदादा आपको सदा साथ देने के लिए आये हैं, परमधाम छोड़कर क्यों आये हैं? सोते, जागते, कर्म करते, सेवा करते, साथ देने के लिए ही तो आये हैं। ब्रह्मा बाप भी आप सबको सहयोग देने के लिए अव्यक्त बनें। व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ्तार बहुत तीव्र है, इसलिए ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज कर दिया। तो शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय आप सबको सहयोग देने के लिए सदा हाज़िर हैं। आपने सोचा बाबा और सहयोग अनुभव करेंगे। अगर सेवा, सेवा, सेवा सिर्फ वही याद है, बाप को किनारे बैठ देखने के लिए अलग कर देते हो, तो बाप भी साक्षी होकर देखते हैं, देखें कहाँ तक अकेले करते हैं। फिर भी आने तो यहाँ ही हैं। तो साथ नहीं छोड़ो। अपने अधिकार और प्रेम की सूक्ष्म रस्सी से बांधकर रखो। ढीला छोड़ देते हो। स्नेह को ढीला कर देते हो, अधिकार को थोड़ा सा स्मृति से किनारा कर देते हो। तो ऐसे नहीं करना। जब सर्वशक्तिवान साथ का आफर कर रहा है तो ऐसी आफर सारे कल्प में मिलेगी? नहीं मिलेगी ना? तो बापदादा भी साक्षी होकर देखते हैं, अच्छा देखें कहाँ तक अकेले करते हैं!

तो संगमयुग के सुख और सुहेज़ों को इमर्ज रखो। बुद्धि बिजी रहती है ना तो बिजी होने के कारण स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सोचो सारे दिन में किसी से भी पूछें कि बाप याद रहता है या बाप की याद भूलती है? तो क्या कहेंगे? नहीं। यह तो राइट है कि याद रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहता है या मर्ज रहता है? स्थिति क्या होती है? इमर्ज रूप की स्थिति या मर्ज रूप की स्थिति, इसमें क्या अन्तर है? इमर्ज रूप में याद क्यों नहीं रखते? इमर्ज रूप का नशा शक्ति, सहयोग, सफलता बहुत बड़ी है। याद तो भूल नहीं सकते क्योंकि एक जन्म का नाता नहीं है, चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होगा लेकिन नाता तो यही रहेगा ना! भूल नहीं सकता है, यह राइट है। हाँ कोई विघ्न के वश हो जाते हो तो भूल भी जाता है लेकिन वैसे जब नेचरल रूप में रहते हो तो भूलता नहीं है लेकिन मर्ज रहता है। इसलिए बापदादा कहते हैं - बार-बार चेक करो कि साथ का अनुभव मर्ज रूप में है या इमर्ज रूप में? प्यार तो है ही। प्यार टूट सकता है? नहीं टूट सकता है ना? तो प्यार जब टूट नहीं सकता तो प्यार का फ़ायदा तो उठाओ। फ़ायदा उठाने का तरीका सीखो।

बापदादा देखते हैं प्यार ने ही बाप का बनाया है। प्यार ही मधुबन निवासी बनाता है। चाहे अपने स्थान पर कैसे भी रहें, कितना भी मेहनत करें लेकिन फिर भी मधुबन में पहुंच जाते हैं। बापदादा जानते हैं, देखते हैं, कई बच्चों को कलियुगी सरकमस्टांश होने के कारण टिकेट लेना भी मुश्किल है परन्तु प्यार पहुंचा ही देता है। ऐसे है ना? प्यार में पहुंच जाते हैं लेकिन सरकमस्टांश तो दिनप्रतिदिन बढ़ते ही जाते हैं। सच्ची दिल पर साहेब राज़ी तो होता ही है। लेकिन स्थूल सहयोग भी कहाँ न कहाँ कैसे भी मिल जाता है। चाहे डबल फारेनर्स हों, चाहे भारतवासी, सबको यह बाप का प्यार सरकमस्टांश की दीवार पार करा लेता है। ऐसे है ना? अपने-अपने सेन्टर्स पर देखो तो ऐसे बच्चे भी हैं जो यहाँ से जाते हैं, सोचते हैं पता नहीं दूसरे वर्ष आ सकेंगे या नहीं आ सकेंगे लेकिन फिर भी पहुंच जाते हैं। यह है प्यार का सबूत। अच्छा।

आज होली मनाई? मना ली होली? बापदादा तो होली मनाने वाले होलीहंसों को देख रहे हैं। सभी बच्चों का एक ही टाइटल है होलीएस्ट। द्वापर से लेकर किसी भी धर्मात्मा या महात्मा ने सर्व को होलीएस्ट नहीं बनाया है। स्वयं बनते हैं लेकिन अपने फालोअर्स को, साथियों को होलीएस्ट, पवित्र नहीं बनाते और यहाँ पवित्रता ब्राह्मण जीवन का मुख्य आधार है। पढ़ाई भी क्या है? आपका स्लोगन भी है “पवित्र बनो-योगी बनो”। स्लोगन है ना? पवित्रता ही महानता है। पवित्रता ही योगी जीवन का आधार है। कभी-कभी बच्चे अनुभव करते हैं कि अगर चलते-चलते मन्सा में भी अपवित्रता अर्थात् वेस्ट वा निगेटिव, परचिन्तन के संकल्प चलते हैं तो कितना भी योग पावरफुल चाहते हैं, लेकिन होता नहीं है क्योंकि जरा भी अंशमात्र संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता है तो जहाँ अपवित्रता का अंश है वहाँ पवित्र बाप की याद जो है, जैसा है वैसे नहीं आ सकती। जैसे दिन और रात इकट्ठा नहीं होता। इसीलिए बापदादा वर्तमान समय पवित्रता के ऊपर बार-बार अटेन्शन दिलाते हैं। कुछ समय पहले बापदादा सिर्फ कर्म में अपवित्रता के लिए इशारा देते थे लेकिन अभी समय सम्पूर्णता के समीप आ रहा है इसलिए मन्सा में भी अपवित्रता का अंश धोखा दे देगा। तो मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता अति आवश्यक है। मन्सा को हल्का नहीं करना क्योंकि मन्सा बाहर से दिखाई नहीं देती है लेकिन मन्सा धोखा बहुत देती है। ब्राह्मण जीवन का जो आन्तरिक वर्सा सदा सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप, मन की सन्तुष्टता है, उसका अनुभव करने के लिए मन्सा की पवित्रता चाहिए। बाहर के साधनों द्वारा या सेवा द्वारा अपने आपको खुश करना - यह भी अपने को धोखा देना है।

बापदादा देखते हैं कभी-कभी बच्चे अपने को इसी आधार पर अच्छा समझ, खुश समझ धोखा दे देते हैं, दे भी रहे हैं। दे देते हैं और दे भी रहे हैं। यह भी एक गुह्य राज़ है। क्या होता है, बाप दाता है, दाता के बच्चे हैं, तो सेवा युक्तियुक्त नहीं भी है, मिक्स है, कुछ याद और कुछ बाहर के साधनों वा खुशी के आधार पर है, दिल के आधार पर नहीं लेकिन दिमाग के आधार पर सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्ष फल उन्हों को भी मिलता है; क्योंकि बाप दाता है और वह उसी में ही खुश रहते हैं कि वाह हमको तो फल मिल गया, हमारी अच्छी सेवा है। लेकिन वह मन की सन्तुष्टता सदाकाल नहीं रहती और आत्मा योगयुक्त पावरफुल याद का अनुभव नहीं कर सकती, उससे वंचित रह जाते। बाकी कुछ भी नहीं मिलता हो, ऐसा नहीं है। कुछ न कुछ मिलता है लेकिन जमा नहीं होता। कमाया, खाया और खत्म। इसलिए यह भी अटेन्शन रखना। सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं, फल भी अच्छा मिल गया, तो खाया और खत्म। जमा क्या हुआ? अच्छी सेवा की, अच्छी रिजल्ट निकली, लेकिन वह सेवा का फल मिला, जमा नहीं होता। इसलिए जमा करने की विधि है - मन्सा-वाचा- कर्मणा पवित्रता। फाउन्डेशन पवित्रता है। सेवा में भी फाउन्डेशन पवित्रता है। स्वच्छ हो, साफ हो। और कोई भी भाव मिक्स नहीं हो। भाव में भी पवित्रता, भावना में भी पवित्रता। होली का अर्थ ही है - पवित्रता। अपवित्रता को जलाना। इसीलिए पहले जलाते हैं फिर मनाते हैं और फिर पवित्र बन संस्कार मिलन मनाते हैं। तो होली का अर्थ ही है - जलाना, मनाना। बाहर वाले तो गले मिलते हैं लेकिन यहाँ संस्कार मिलन, यही मंगल मिलन है। तो ऐसी होली मनाई या सिर्फ डांस कर ली? गुलाबजल डाल दिया? वह भी अच्छा है खूब मनाओ। बापदादा खुश होते हैं गुलाबजल भले डालो, डांस भले करो लेकिन सदा डांस करो। सिर्फ 5-10 मिनट की डांस नहीं। एक दो में गुणों का वायब्रेशन फैलाना - यह गुलाबजल डालना है। और जलाने को तो आप जानते ही हो, क्या जलाना है! अभी तक भी जलाते रहते हो। हर वर्ष हाथ उठाकर जाते हैं, बस दृढ़ संकल्प हो गया। बापदादा खुश होते हैं, हिम्मत तो रखते हैं। तो हिम्मत पर बापदादा मुबारक भी देते हैं। हिम्मत रखना भी पहला कदम है। लेकिन बापदादा की शुभ आशा क्या है? समय की डेट नहीं देखो। 2 हजार में होगा, 2001 में होगा, 2005 में होगा, यह नहीं सोचो। चलो एवररेडी नहीं भी बनो इसको भी बापदादा छोड़ देते हैं, लेकिन सोचो बहुतकाल के संस्कार तो चाहिए ना! आप लोग ही सुनाते हो कि बहुतकाल का पुरूषार्थ, बहुतकाल के राज्य अधिकारी बनाता है। अगर समय आने पर दृढ़ संकल्प किया, तो वह बहुतकाल हुआ या अल्पकाल हुआ? किसमें गिनती होगा? अल्पकाल में होगा ना! तो अविनाशी बाप से वर्सा क्या लिया? अल्पकाल का। यह अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना! तो बहुतकाल का अभ्यास चाहिए, कितना काल है वह नहीं सोचो, जितना बहुतकाल का अभ्यास होगा, उतना अन्त में भी धोखा नहीं खायेंगे। बहुतकाल का अभ्यास नहीं तो अभी के बहुतकाल के सुख, बहुतकाल की श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव से भी वंचित हो जाते हैं। इसलिए क्या करना है? बहुतकाल करना है? अगर किसी के भी बुद्धि में डेट का इन्तजार हो तो इन्तजार नहीं करना, इन्तजाम करो। बहुतकाल का इन्तजाम करो। डेट को भी आपको लाना है। समय तो अभी भी एवररेडी है, कल भी हो सकता है लेकिन समय आपके लिए रूका हुआ है। आप सम्पन्न बनो तो समय का पर्दा अवश्य हटना ही है। आपके रोकने से रूका हुआ है। राज्य अधिकारी तो तैयार हो ना? तख्त तो खाली नहीं रहना चाहिए ना! क्या अकेला विश्वराजन तख्त पर बैठेगा! इससे शोभा होगी क्या? रॉयल फैमिली चाहिए, प्रजा चाहिए, सब चाहिए। सिर्फ विश्वराजन तख्त पर बैठ जाए, देखता रहे कहाँ गई मेरी रॉयल फैमिली। इसलिए बापदादा की एक ही शुभ आशा है कि सब बच्चे चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, जो भी अपने को ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार कहलाते हैं, चाहे मधुबन निवासी, चाहे विदेश निवासी, चाहे भारत निवासी - हर एक बच्चा बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनें। कभी- कभी के नहीं। पसन्द है? एक हाथ की ताली बजाओ। पीछे वाले होशियार हैं, अटेन्शन से सुन रहे हैं। बापदादा पीछे वालों को अपने आगे देख रहा है। आगे वाले तो हैं ही आगे। (मेडीटेशन हाल में बैठकर मुरली सुन रहे हैं) नीचे वाले बापदादा के सिर के ताज होकर बैठे हैं। वह भी ताली बजा रहे हैं। नीचे वालों को त्याग का भाग्य तो मिलना ही है। आपको सम्मुख बैठने का भाग्य है और उन्हों के त्याग का भाग्य जमा हो रहा है। अच्छा बापदादा की एक आश सुनी! पसन्द है ना! अभी अगले वर्ष क्या देखेंगे? ऐसे ही फिर भी हाथ उठायेंगे! हाथ भले उठाओ, दो-दो उठाओ परन्तु मन का हाथ भी उठाओ। दृढ़ संकल्प का हाथ सदा के लिए उठाओ।

बापदादा एक-एक बच्चे के मस्तक में सम्पूर्ण पवित्रता की चमकती हुई मणी देखने चाहते हैं। नयनों में पवित्रता की झलक, पवित्रता के दो नयनों के तारे, रूहानियत से चमकते हुए देखने चाहते हैं। बोल में मधुरता, विशेषता, अमूल्य बोल सुनने चाहते हैं। कर्म में सन्तुष्टता, निर्माणता सदा देखने चाहते हैं। भावना में - सदा शुभ भावना और भाव में सदा आत्मिक भाव, भाई-भाई का भाव। सदा आपके मस्तक से लाइट का, फरिश्ते पन का ताज दिखाई दे। दिखाई देने का मतलब है अनुभव हो। ऐसे सजे सजाये मूर्त देखने चाहते हैं। और ऐसी मूर्त ही श्रेष्ठ पूज्य बनेगी। वह तो आपके जड़ चित्र बनायेंगे लेकिन बाप चैतन्य चित्र देखने चाहते हैं। अच्छा -

चारों ओर के सदा बापदादा के साथ रहने वाले, समीप के सदा के साथी, सदा बहुतकाल के पुरूषार्थ द्वारा बहुतकाल का संगमयुगी अधिकार और भविष्य राज्य अधिकार प्राप्त करने वाले अति सेन्सीबुल आत्मायें, सदा अपने को शक्तियों, गुणों से सजे-सजाये रखने वाले, बाप की आशाओं के दीपक आत्मायें, सदा स्वयं को होलीएस्ट और हाइएस्ट स्थिति में स्थित रखने वाले बाप समान अति स्नेही आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:
कर्मभोग रूपी परिस्थिति की आकर्षण को भी समाप्त करने वाले सम्पूर्ण नष्टोमोष्टा भव!  
अभी तक प्रकृति द्वारा बनी हुई परिस्थितियां अवस्था को अपनी तरफ कुछ-न-कुछ आकर्षित करती हैं। सबसे ज्यादा अपनी देह के हिसाब-किताब, रहे हुए कर्मभोग के रूप में आने वाली परिस्थिति अपने तरफ आकर्षित करती है-जब यह भी आकर्षण समाप्त हो जाए तब कहेंगे सम्पूर्ण नष्टोमोहा। कोई भी देह की वा देह के दुनिया की परिस्थिति स्थिति को हिला नहीं सके-यही सम्पूर्ण स्टेज है। जब ऐसी स्टेज तक पहुंच जायेंगे तब सेकण्ड में अपने मास्टर सर्वशक्तिमान् स्वरूप में सहज स्थित हो सकेंगे।
स्लोगन:
पवित्रता का व्रत सबसे श्रेष्ठ सत्यनारायण का व्रत है-इसमें ही अतीन्द्रिय सुख समाया हुआ है।