Sunday, May 1, 2016

मुरली 2 मई 2016

02-05-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– सदा इसी खुशी में रहो कि स्वयं भगवान हमें टीचर बनकर पढ़ाते हैं, हम उनसे राजयोग सीख रहे हैं, प्रजा योग नहीं”   
प्रश्न:
इस पढ़ाई की खूबी कौन सी है? तुम्हें कब तक पुरूषार्थ करना है?
उत्तर:
यह पढ़ाई जो बहुत समय से करते आ रहे हैं, उनसे नये बच्चे तीखे चले जाते हैं। यह भी खूबी है जो 3 मास के तीखी बुद्धि वाले (तीव्र पुरूषार्थी) नये बच्चे पुरानों से भी आगे जा सकते हैं। तुम्हें पुरूषार्थ तब तक करना है जब तक पूरे पास न हो, कर्मातीत अवस्था न हो, सब हिसाब-किताब छूट न जायें।
ओम् शान्ति।
बच्चे कहाँ बैठे हैं? बेहद के बाप के स्कूल में। बहुत ही ऊंचा नशा होना चाहिए बच्चों को। किसके बच्चों को? बेहद के बाप के बच्चों को अथवा रूहानी बच्चों को। बाप रूहों को ही पढ़ाते हैं। गुजराती वा मराठी को नहीं पढ़ाते हैं। वह तो नाम-रूप हो गया। बाप पढ़ाते ही हैं रूहों को। तुम बच्चे भी समझते हो हमारा बेहद का बाप वही है, जिसको भगवान कहते हैं। भगवानुवाच भी है जरूर परन्तु भगवान किसको कहा जाता है-यह समझते नहीं हैं। कहते भी हैं शिव परमात्मा नम:। परमात्मा तो एक ही है। वह है ऊंच ते ऊंच निराकार। तुमको कृष्ण भगवान नहीं पढ़ाते। न पढ़ाया था। तुम जानते हो हम आत्माओं का बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। भगवान तो निराकार ही ठहरा। शिव के मन्दिर मे जाते हैं, उनकी पूजा भी करते हैं तो जरूर कोई चीज है। नाम-रूप से न्यारी कोई चीज थोड़ेही होती है। यह भी तुम अब समझते हो। सारी दुनिया में कोई भी नहीं जानते हैं। तुम भी अभी जानने लग पड़े हो। बहुत समय से जानते आये हो। ऐसे भी नहीं बहुत समय से आने वालों से नये तीखे नहीं जा सकते हैं। यह भी खूबी है। 3 मास के नये बच्चे भी बहुत तीखे हो सकते हैं। कहते हैं, बाबा इस आत्मा की बुद्धि बहुत तीखी है। नये जब सुनते हैं तो बड़े गद-गद होते हैं। हैं तो सब गॉडली स्टूडेन्ट। निराकार बाप ज्ञान का सागर पढ़ा रहे हैं। भगवानुवाच भी गाया हुआ है। परन्तु कब? वह भूल गये हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो- ऐसे भी कोई होते हैं, जिनका बाप टीचर होता है। परन्तु वह सिर्फ एक ही सब्जेक्ट पढ़ायेंगे, दूसरी सब्जेक्ट लिए दूसरा टीचर पढ़ायेंगे। यहाँ तो बाप सब बच्चों का टीचर है। यह वन्डरफुल बात है। ढेर बच्चे हैं, जिनको निश्चय है शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण को बाबा कह नहीं सकते। कृष्ण को ऐसे टीचर, गुरू भी नहीं समझते। यह तो प्रैक्टिकल पढ़ा रहे हैं। तुम भिन्न-भिन्न प्रकार के स्टूडेन्ट्स बैठे हो। बाबा टीचर पढ़ाते हैं, जब तक तुम पास हो जाओ। कर्मातीत अवस्था को पा लो तब तक पुरूषार्थ करना है। कर्मो के हिसाब-किताब से छूटना है। तुम्हें अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए-बाबा हमको ऐसी दुनिया में ले जाते हैं और कोई ऐसे स्कूल होते नहीं जो बच्चे बैठे हों और समझें परमधाम निवासी बाबा आकर हमें पढ़ायेंगे। अभी तुम यहाँ बैठते हो तो समझते हो हमारा बेहद का बाबा हमको पढ़ाने के लिए आते हैं। तो अन्दर में बड़ी खुशी होनी चाहिए। बाबा हमको राजयोग सिखा रहे हैं। यह प्रजा योग नहीं, यह है राजयोग। इस याद से ही बच्चों को खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। कितना बड़ा इम्तहान है और तुम बैठे कितने साधारण हो। जैसे मुसलमान लोग बच्चों को दरी पर बैठ पढ़ाते हैं। तुम इस निश्चय से यहाँ आते हो। अब बाप के सम्मुख बैठे हो। बाबा भी कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ। मैं कल्प-कल्प आकर राजयोग सिखाता हूँ। कृष्ण के 84 जन्म कहो वा ब्रह्मा के 84 जन्म कहो, बात एक ही है। ब्रह्मा सो श्रीकृष्ण है। यह बुद्धि में अच्छी रीति धारण करना है। बाप के साथ बड़ा लव रहना चाहिए। हम आत्मायें उस बाप के बच्चे हैं, परमपिता परमात्मा आकर हमको पढ़ाते हैं। कृष्ण तो हो न सके। ऐसे थोड़ेही कृष्ण ने पढ़ाया होगा। ताज आदि उतार कर आया होगा। अब पढ़ाने वाला तो बुजुर्ग चाहिए। बाप कहते हैं मैंने बुजुर्ग तन लिया है, यह फिक्स है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ही पढ़ाते हैं।

कहते भी हैं बरोबर परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं। अब ब्रह्मा कहाँ से आया, यह समझते नहीं हैं। बाप बैठ घड़ी-घड़ी बच्चों को सुजाग करते हैं। माया फिर सुला देती है। अब तुम सम्मुख बैठे हो, समझते हो कि मैं तुम्हारा रूहानी बाप हूँ। मुझे जानते हो ना। गाते भी हैं परमपिता परमात्मा ज्ञान के सागर हैं, पतित-पावन, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता हैं। कृष्ण के लिए यह कभी नहीं कहेंगे। सबको इकठ्ठा तो पढ़ा नहीं सकते। मधुबन में मुरली चलती है, वह फिर सब सेन्टर्स पर जाती है। तुम अभी सम्मुख हो। जानते हो कल्प पहले भी बाबा ने ऐसे पढ़ाया था। यही समय था जो पास्ट हो गया। वह फिर अभी प्रेजेन्ट होना है। भक्तिमार्ग की बातें तो अब छोड़ देनी हैं। अभी तुम्हारी ज्ञान से प्रीत, पढ़ाने वाले से प्रीत है। कोई-कोई जब टीचर से पढ़ते हैं तो उनको सौगात देते हैं। यह बाबा तो खुद ही सौगात देते हैं। यहाँ आकर साकार में बच्चों को देखते हैं, यह हमारे बच्चे हैं। यह भी बच्चों को ज्ञान है-सब 84 जन्म नहीं लेते हैं। कोई का एक जन्म तो भी उसमें सुख-दु:ख पास करेंगे। अभी तुम इन सब बातों को समझ गये हो। यह मनुष्य सृष्टि का सिजरा है। पहले नम्बर में हैं ब्रह्मा-सरस्वती, आदि देव, आदि देवी। पीछे फिर अनेक धर्म होते जाते हैं। वह है सर्व आत्माओं का बीज। बाकी सब हैं पत्ते। प्रजापिता ब्रह्मा सबका बाप है। इस समय प्रजापिता हाजर है। यह बैठ शूद्र से कनवर्ट कर ब्राह्मण बनाते हैं। ऐसे कोई कर न सके। बाप ही तुमको शूद्र से ब्राह्मण बनाए फिर देवता बनाने लिए पढ़ा रहे हैं। यह है ही सहज राजयोग की पढ़ाई। राजा जनक ने भी सेकण्ड में जीवनमुक्ति को पाया अर्थात् स्वर्गवासी बन गया। मनुष्य गाते तो रहते हैं परन्तु फिर भी समझा नहीं सकते। अब बाप कहते हैं बच्चे देही- अभिमानी बनो। तुम अशरीरी आये थे, फिर शरीर लेकर पार्ट बजाया। बरोबर 84 जन्म लिए हैं। बाप जो ट्रुथ है, वह सत्य ही बतायेंगे। राजधानी हुई ना। राजयोग एक थोड़ेही सीखेंगे। तुम सब अभी कांटों से फूल बन रहे हो। कांटा और फूल किसको कहते हैं-यह भी अब तुम समझ रहे हो। यह है ही छी-छी कांटों की दुनिया। हम 84 जन्मों का चक्र लगाए नर्कवासी हुए हैं। फिर से वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट करेंगे। हम फिर से जरूर स्वर्गवासी बनेंगे। कल्प-कल्प हम बनते हैं। घड़ी-घड़ी यह याद करना है और नॉलेज समझानी है। यह लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी थे। क्राइस्ट आया उनके पहले बहुत थोड़े थे, राजधानी नहीं थी। अब बाप आकर सतयुगी राजधानी स्थापन करते हैं। स्थापना होती ही है संगम पर। अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि यह है- सच्चा-सच्चा कुम्भ का मेला। आत्मायें अनेक हैं, परमात्मा एक है। परमात्मा बाप बच्चों के पास आते हैं पावन बनाने। इसको ही संगमयुग का, कुम्भ का मेला कहा जाता है। अभी तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। बाप आकर स्वर्गवासी बनाते हैं फिर नर्क पुरानी दुनिया का विनाश जरूर होना चाहिए। कल्प-कल्प विनाश होता ही है। नई सो पुरानी, पुरानी सो नई होती है। यह तो जरूर होगा। नई को स्वर्ग, पुरानी को नर्क कहा जाता है। अभी तो कितनी मनुष्यों की वृद्धि होती जाती है। अनाज नहीं मिलता है तो समझते हैं हम बहुत अनाज पैदा करेंगे, परन्तु बच्चे कितने पैदा होते रहते हैं। अनाज कहाँ से लायेंगे। अभी तुम बच्चों को यह खातिरी है कि ये सारी पुरानी दुनिया खत्म होनी है। मनुष्यों को यह ज्ञान अच्छा भी लगता है परन्तु बुद्धि में कुछ भी बैठता नहीं है। तुम्हारी बुद्धि में है नर्क के बाद स्वर्ग आयेगा। सतयुग के देवी-देवता होकर गये हैं। यह लक्ष्मी-नारायण भारत के मालिक थे, चित्र हैं। सतयुग में है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। अभी अपने को देवता धर्म के कहलाते नहीं हैं, उसके बदले हिन्दू कह देते हैं। बच्चे अच्छी तरह जानते हैं कि हम यह (देवी-देवता) बन रहे हैं। बाबा हमको पढ़ा रहे हैं, इन आरगन्स द्वारा। बाबा कहते हैं-नहीं तो मैं तुमको पढ़ाऊं कैसे। आत्माओं को ही पढ़ाते हैं क्योंकि आत्मा में ही खाद पड़ती है। अभी तुमको सच्चा सोना बनना है, गोल्डन एज से सिलवर एज में आये अर्थात् चाँदी की खाद पड़ने से तुम चन्द्रवंशी बन जाते हो। सतयुग में गोल्डन एज में थे, वही फिर नीचे उतरते हैं फिर वृद्धि भी हो जाती है। अभी तुम्हारी बुद्धि में है– हम गोल्डन, सिलवर, कॉपर, आइरन में 84 का चक्र लगाकर आये हैं। अनेक बार यह पार्ट बजाया है, इस पार्ट से कोई भी छूट नहीं सकता है। वो कहते हैं, हमको मोक्ष चाहिए लेकिन वास्तव में तंग तो तुमको होना चाहिए। 84 का चक्र तो तुमने लगाया है। मनुष्य तो समझते हैं आना और जाना होता ही रहता है, इनसे क्यों न हम छूटें। परन्तु यह तो हो न सके। गुरू लोग भी कह देते हैं-तुम मोक्ष को पायेंगे। ब्रह्म को याद करो तो ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। अनेक मत-मतान्तर भारत में ही हैं और कोई खण्ड में इतने नहीं हैं। ढेर की ढेर मत हैं, एक न मिले दूसरे से। रिद्धि-सिद्धि भी बहुत सीखते हैं। कोई केसर निकालते, कोई क्या... इसमें मनुष्य बहुत खुश होते हैं। यह तो है स्प्रीचुअल नॉलेज। तुम जानते हो-स्प्रीचुअल फादर है, हम आत्माओं का बाप। रूहानी बाबा रूहों से बात करते हैं। सत्य नारायण की कथा आकर सुनाते हैं वा अमरकथा सुनाते हैं, जिससे अमरलोक का मालिक बनाते हैं, नर से नारायण बनाते हैं। फिर कौड़ी मिसल बन पड़ते हैं। अभी तुमको हीरे जैसा अनमोल जन्म मिला है फिर कौडि़यों पिछाड़ी क्यों गँवाते हो। यह दुनिया ही बाकी कितने वर्ष होगी! कितने लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं, सब खत्म हो जायेंगे। मौत सामने खड़ा है फिर इतने लाख, करोड़ कौन बैठ खायेंगे। क्यों नहीं इनको सफल करना चाहिए! यह रूहानी कॉलेज खोलने से मनुष्य एवरहेल्दी, वेल्दी, हैपी बन जाते हैं। सो भी यह कम्बाइन्ड है– हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी। हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस तो है ही। बरोबर योग से आयु भी बड़ी मिलती है। कितने तुम हेल्दी बनते हो। कारून का खजाना मिलता है। अल्लाह अवलदीन का नाटक भी दिखाते हैं। तुम जानते हो अल्लाह जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं, उसमें बहुत सुख है। नाम ही है स्वर्ग। तुम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर तुम पहले-पहले सुखधाम में आये फिर 84 जन्म लेते नीचे गिरते आये हो। कल्प-कल्प हम तुम बच्चों को ऐसे बैठ समझाते हैं। तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको बताता हूँ। तुमने 84 जन्म लिए हैं, यह चोला पतित है। आत्मा भी तमोप्रधान हो गई है। बाबा राइट कहते हैं। बाबा कभी रांग कहेंगे नहीं। वह है ही ट्रुथ। सतयुग है ही वाइसलेस वर्ल्ड, राइटियस दुनिया। फिर रावण अन-राइटियस बनाते हैं। यह है ही झूठ खण्ड। गाते भी हैं झूठी माया, झूठी काया... कौन सा संसार? यह सारा पुराना संसार झूठा है। सतयुग में सच्चा संसार था। दुनिया एक ही है, दो दुनिया नहीं हैं। नई दुनिया से फिर पुरानी होती है। नये मकान, पुराने मकान में फर्क तो होता है। नया बनकर तैयार होता है तो समझते हैं नये में बैठेंगे। यहाँ भी बच्चों के लिए नया मकान बनाते हैं, बहुत बच्चे होते जायेंगे। तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं मुझ ज्ञान सागर के बच्चे सब काम-चिता पर बैठ बिचारे एकदम जल गये हैं। अब फिर उनको ज्ञान चिता पर बिठाते हैं। ज्ञान-चिता पर बिठाए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। काम-चिता पर बैठने से बिल्कुल ही काले बन गये हैं। कृष्ण को श्याम-सुन्दर नाम दिया है। परन्तु अर्थ कोई समझ नहीं सकते। अब तुम क्या से क्या बनते हो! बाप कौड़ी से हीरे मिसल बनाते हैं तो फिर इतना अटेन्शन देना चाहिए। बाप को याद करना चाहिए। याद से ही तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस हीरे तुल्य अनमोल जीवन को कौडि़यों के पीछे नहीं गँवाना है। मौत सामने खड़ा है इसलिए अपना सब कुछ रूहानी सेवा में सफल करना है।
2) पढ़ाई और पढ़ाने वाले से सच्ची प्रीत रखनी है। भगवान हमको पढ़ाने आते हैं, इस खुशी में रहना है।
वरदान:
सदा देह-अभिमान व देह की बदबू से दूर रहने वाले इन्द्रप्रस्थ निवासी भव   
कहते हैं इन्द्रप्रस्थ में सिवाए परियों के और कोई भी मनुष्य निवास नहीं कर सकते। मनुष्य अर्थात् जो अपने को आत्मा न समझ देह समझते हैं। तो देह-अभिमान और देह की पुरानी दुनिया, पुराने संबंधों से सदा ऊपर उड़ते रहो, जरा भी मनुष्य-पन की बदबू न हो। देही-अभिमानी स्थिति में रहो, ज्ञान और योग के पंख मजबूत हों तब कहेंगे इन्द्रप्रस्थ निवासी।
स्लोगन:
अपने तन, मन, धन को सफल करने वा सर्व खजानों को बढ़ाने वाले ही समझदार हैं।