Wednesday, June 1, 2016

मुरली 1 जून 2016

01-06-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– बाप के साथ-साथ तभी चल सकेंगे जब इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य होगा”   
प्रश्न:
भगवान समर्थ होते हुए भी उसके रचे हुए यज्ञ में विघ्न क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
क्योंकि रावण भगवान से भी तीखा है। जरूर जब उसका राज्य छीना जायेगा तो वह विघ्न डालेगा ही। शुरू से लेकर ड्रामा अनुसार इस यज्ञ में विघ्न पड़ते ही आये हैं, पड़ने ही हैं। हम पतित दुनिया से पावन दुनिया में ट्रांसफर हो रहे हैं तो जरूर पतित मनुष्य विघ्न डालेंगे।
गीत:-
ओ दूर के मुसाफिर...
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की लाइन सुनी। जैसे वेद शास्त्र आदि भक्ति मार्ग का रास्ता बताते हैं वैसे गीत भी थोड़ा रास्ता बताते हैं। वह तो कुछ समझते नहीं। शास्त्रों की कथायें आदि सुनना, वह जैसे है कनरस। अब बच्चे जानते हैं-दूरदेश का मुसाफिर किसको कहा जाता है। आत्मा जानती है-हम भी दूर के मुसाफिर हैं, हमारा घर शान्तिधाम है। मनुष्य इन बातों को नहीं समझे तो गोया कुछ नहीं समझे। बाप को न जानने से सृष्टि चक्र को कोई नहीं जानते हैं। यह आत्मा समझती है कि शिवबाबा कहते हैं- मैं टैम्प्रेरी जीव आत्मा बनता हूँ। तुम स्थाई जीव आत्मा हो। मैं सिर्फ संगम पर ही टैम्प्रेरी जीव आत्मा हूँ। सो भी तुम्हारे मुआिफक नहीं बनता। मैं इस जीव में प्रवेश करता हूँ, अपना परिचय देने। नहीं तो तुमको परिचय कैसे मिले? बाप ने समझाया है-रूहानी बाप एक ही है, जिसको शिवबाबा अथवा भगवान कहते हैं। दूसरा कोई नहीं जानते। इसमें पवित्रता का भी बन्धन है। बड़े ते बड़ा बन्धन है अपने को आत्मा समझना, जिस दूर के मुसाफिर पतित-पावन को भक्ति मार्ग में याद करते हैं। वह रूहानी बाप समझाते हैं कि मैं सबको ले चलूँगा। किसको भी छोड़ नहीं जाऊंगा, वापिस तो सबको जाना है। प्रलय भी नहीं होनी है। भारत खण्ड तो रहता ही है। भारत खण्ड का कभी विनाश नहीं होता है। सतयुग आदि में सिर्फ भारत खण्ड ही रहता है। कल्प के संगम पर जब बाप आते हैं तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करना होता है। बाकी सब धर्म विनाश होने हैं। तुम भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करने में मदद कर रहे हो। तो गीत सुना– कहते हैं बाबा हमको भी साथ ले चलो। बाप कहते हैं-ऐसे साथ में कोई चल न सके, जब तक पुरानी दुनिया से वैराग्य न आये। नया मकान बनता है तो पुराने से दिल टूट जाती है। तुम भी जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। अब नई दुनिया में चलना है। जब तक सतोप्रधान नहीं बनेंगे तब तक सतोप्रधान देवी-देवता बन नहीं सकेंगे इसलिए बाबा बार-बार समझाते हैं- अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो। सद्गति करने वाला दूर का मुसाफिर एक ही अया हुआ है, उनको दुनिया नहीं जानती। सर्वव्यापी कह दिया है। अभी तुम बच्चे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं। आते भी हैं तो समझते हैं हम बापदादा के पास जाते हैं, तो यह फैमली हो गई। यह है ईश्वरीय फैमली। किसको बहुत बच्चे होते हैं तो बड़ी पलटन हो जाती है। शिवबाबा के बच्चे जो इतने बी.के. भाई-बहिन हैं, यह भी बड़ी पलटन हो जाती है। ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ सब जानते हैं– हम बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं। शास्त्रों में दिखाते हैं पाण्डवों और कौरवों ने खेल खेला। राजाई दांव में रखी। अब राजाई न कौरवों की है, न पाण्डवों की हैं। ताज आदि कुछ भी नहीं है। दिखाते हैं उनको शहर निकाला मिला। हथियार आदि छिपाकर जाए रखा। यह सब हैं दन्त कथायें। न पाण्डव राज्य है, न कौरव राज्य है। न उन्हों की आपस में लड़ाई चली है। लड़ाई राजाओं की लगती है। यह तो भाई-भाई हैं। लड़ाई हुई है कौरवों और यौवनों की। बाकी भाई एक दो को कैसे खत्म करेंगे। दिखाते हैं पाण्डव, कौरव लड़े। बाकी 5 पाण्डव बचे और एक कुत्ता रहा। वह भी सब पहाड़ पर गल मरे। खेल ही खलास। राजयोग का अर्थ ही नहीं निकला।

अभी तुम बच्चे जानते हो बाप कल्प-कल्प आकर एक धर्म की स्थापना करते हैं। बुलाते भी हैं हे पतित-पावन बाबा आओ, आकर पतित से पावन बनाओ। सतयुग में सूर्यवंशी राजधानी ही होती है। ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना हो रही है। अब बाप आये हैं तो उनके डायरेक्शन पर चलना है। कमल पुष्प समान पवित्र रहना है। कन्याओं को तो नहीं कहेंगे कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहो। वह तो हैं ही पवित्र। यह गृहस्थियों के लिए कहा जाता है। कुमार और कुमारियों को तो शादी करनी ही नहीं चाहिए। नहीं तो वह भी गृहस्थी हो पड़ेंगे। कुछ गन्धर्वी विवाह का नाम भी है। कन्या पर मार पड़ती है तो लाचारी हालत में गन्धर्वी विवाह कराया जाता है। वास्तव में मार भी सहन करनी चाहिए, परन्तु अधरकुमारी नहीं बनना चाहिए। बाल ब्रह्मचारी का नाम बहुत होता है। शादी की तो हाफ पार्टनर हो गये। कुमारों को कहा जाता है– तुम तो पवित्र रहो। गृहस्थ व्यवहार वालों को कहा जाता है– गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल के समान बनो। उन्हों को ही मेहनत होती है। शादी न करने से बन्धन नहीं रहेगा। कन्या को तो पढ़ना है और ज्ञान में बहुत मजबूत रहना है। छोटी कुमारियां जो सगीर हैं, उनको तो हम ले नहीं सकते। वह अपने घर में रहकर पढ़ सकती हैं। माता-पिता ज्ञान में आये तो सगीर को ले सकते हैं। यह तो स्कूल का स्कूल है, घर का घर है और सतसंग का सतसंग। सत माना एक बाप, जिसके लिए ही कहते हैं ओ दूर के मुसाफिर। आत्मा गोरी बनती है। बाप कहते हैं-मैं मुसाफिर सदा गोरा रहता हूँ। प्योरिटी में रहने वाला हूँ। मैं आकर सभी आत्माओं को पवित्र गोरा बनाता हूँ और तो कोई ऐसे मुसाफिर हैं नहीं। बाप समझाते हैं– मैं आया हूँ रावण राज्य में। यह शरीर भी पराया है। तुम्हारी आत्मा कहेगी– यह हमारा शरीर है। बाबा कहेंगे यह हमारा शरीर नहीं है। यह इनका शरीर है। यह पतित शरीर हमारा नहीं है। आते ही हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में। जो नम्बरवन पावन था, वही नम्बर लास्ट अर्थात् अन्त में विकारी बनते हैं। पहला नम्बर 16 कला सम्पूर्ण था। अब कोई कला नहीं रही है। पतित तो सब हैं ही। तो बाप दूरदेश का मुसाफिर हुआ ना। तुम आत्मायें भी मुसाफिर हो। यहाँ आकर पार्ट बजाती हो। इस सृष्टि चक्र को कोई नहीं जानते हैं। भल कोई कितना भी शास्त्र आदि पढ़ा हो परन्तु यह ज्ञान कोई नहीं दे सकते। बाप समझाते हैं-मैं इस तन में प्रवेश कर इन आत्माओं को ज्ञान देता हूँ। वह तो मनुष्य, मनुष्य को शास्त्रों का ज्ञान देते हैं। वह हो गये भगत। सद्गति दाता तो एक ही है। वही ज्ञान का सागर है, उनको न जानने कारण देह-अभिमान आ जाता है। वह कोई यह तो समझाते नहीं हैं कि अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा पढ़ती है। यह कोई समझाते नहीं हैं क्योंकि देह-अभिमान है। अभी दूर का मुसाफिर तो शिवबाबा को ही कहेंगे। तुम जानते हो हम 84 जन्म का चक्र लगा चुके हैं।

बाप कहते हैं-5 हजार वर्ष पहले भी समझाया था कि बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। मैं जानता हूँ– गीता में आटे में लून मिसल कुछ है। वही गीता का एपीसोड, वही महाभारत की लड़ाई, वही मनमनाभव-मध्याजी भव का ज्ञान है। मामेकम् याद करो। लड़ाई भी बरोबर लगी है। पाण्डवों की विजय हुई। विजय माला विष्णु की गाई जाती है। शास्त्रों में तो दिखाया है पाण्डव गल मरे। फिर माला कहाँ से बनी। अब तुम समझते हो कि हम विष्णु की माला बनने यहाँ आये हैं। ऊपर में है पतित-पावन बाप। उनका यादगार चाहिए ना। भक्ति मार्ग में यादगार गाया जाता है। कोई 8 की माला, कोई 108 की माला, कोई 16108 की बनाई है। गाते हैं– चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला। अभी तुम जानते हो– हमारी चढ़ती कला है। हम चले जायेंगे अपने सुखधाम फिर हम वहाँ से नीचे कैसे उतरते हैं। 84 जन्म कैसे लेते हैं, यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। यह ज्ञान भूलना नहीं चाहिए। हमारे सब दु:ख दूर करने, श्राप मिटाए सुख का वर्सा देने बाप आया है। रावण के श्राप से सबको दु:ख होता है। तो अब बाप को और वर्से को याद करन् है। तुम जानते हो हम सूर्यवंशियों ने भारत में राज्य किया। भारत में ही शिवबाबा आते हैं। भारत ही स्वर्ग था, यह घड़ी-घड़ी बुद्धि में याद करना पड़े। जिसने 84 का चक्र नहीं खाया होगा, वह न धारणा करेंगे, न करायेंगे उसके लिए समझा जायेगा कि इसने 84 जन्म नहीं लिये हैं। यह देरी से आते हैं। स्वर्ग में नहीं आते हैं। पहले-पहले जाना तो अच्छा है ना। नये मकान में पहले खुद रहते हैं फिर किराये पर चढ़ाते हैं। तो वह फिर सेकेण्ड हैण्ड हुआ ना। सतयुग है नई दुनिया। त्रेता सेकेण्ड हैण्ड कहेंगे। तो अब बुद्धि में आता है हम स्वर्ग नई दुनिया में जायें। पुरूषार्थ करना है, प्रजा भी बनती जायेगी। तुमको मालूम पड़ता जायेगा कि माला में कौन-कौन पिरो सकते हैं। अगर किसको सीधा कहा जाए कि तुम नहीं आयेंगे तो हार्टफेल हो जाए इसलिए कहा जाता है कि पुरूषार्थ करो, अपनी जांच करो कि हमारा बुद्धियोग भटकता तो नहीं है! तुम्हारा शिवबाबा से कितना लव होता जाता है! कहते भी हैं हम बापदादा के पास जाते हैं। शिवबाबा से दादा द्वारा वर्सा लेने जाते हैं। ऐसे बाप के पास तो कई बार जायें। परन्तु गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है। भल बहुत धनवान हैं परन्तु इतनी फुर्सत नही। पूरा निश्चय नहीं। नहीं तो मास दो मास बाद आकर रिफ्रेश हो सकते हैं। उनको घड़ी-घड़ी कशिश होगी। सुई पर जंक चढ़ी हुई होती है तो चुम्बक इतना खींचता नहीं है। जिनका पूरा योग होगा उनको झट कशिश होगी, भाग आयेंगे। जितनी कट उतरती जायेगी, उतनी कशिश होगी। हम चुम्बक से मिलें। गीत है चाहे मारो, चाहे कुछ भी करो... हम दर से कभी नहीं निकलेंगे। परन्तु वह अवस्था तो पिछाड़ी में होगी। कट निकली हुई होगी तो वह अवस्था होगी। बाप कहते हैं- हे आत्मायें मनमनाभव, रहो भल अपने गृहस्थ व्यवहार में। ऐसे नहीं कि यहाँ भागकर आए बैठ जाना है। सागर पास बादलों को आना है– रिफ्रेश होने। फिर सर्विस पर जाना है। बन्धन जब खलास हो तो सर्विस पर जा सकें। माँ-बाप को अपने बच्चों को सम्भालना है। बाप की याद में रहना है। पवित्र बनना है।

बाप ने समझाया है– अनेक प्रकार के विघ्न ज्ञान यज्ञ में पड़ते हैं। कहते हैं ईश्वर तो समर्थ है फिर विघ्न क्यों? मनुष्यों को पता ही नहीं है, रावण भगवान से भी तीखा है। उनकी राजाई छीनी जाती है तो अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते रहते हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार फिर भी विघ्न पड़ेंगे। शुरूआत से लेकर पतितों के विघ्न पड़ते हैं। शास्त्रों में भी लिख दिया है– कृष्ण को 16108 पटरानियां थी। सर्प ने डसा। राम की सीता चुराई गई। अब रावण स्वर्ग में कहाँ से आये। झूठ तो बहुत है। कहते हैं विकार बिगर बच्चे कैसे होंगे। उनको पता ही नहीं– जो वर्सा लेने वाले होंगे वही आकर समझेंगे। तो इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न पड़ते हैं। पतित को असुर कहा जाता है। है ही रावण सम्प्रदाय। अभी तुम संगम पर हो। रावण राज्य से किनारा कर लिया है फिर भी कुछ लैस आती है। यह बुद्धि में ज्ञान है कि हम जा रहे हैं। बैठे तो यहाँ ही हैं। बुद्धि में ज्ञान है। बैठे यहाँ हो परन्तु उनसे जैसे तुमको वैराग्य है। यह छी-छी दुनिया कब्रिस्तान बननी है। भिन्न-भिन्न प्वाइन्ट्स से समझाया जाता है। वास्तव में तो एक ही प्वाइन्ट है मनमनाभव। कितनों की चिठ्ठियां आती हैं– बाबा हम बांधेली हैं। एक द्रोपदी तो नहीं हैं, हजारों हो जायेंगी। अभी तुम पतित दुनिया से पावन दुनिया में ट्रांसफर हो रहे हो। जो कल्प पहले फूल बने होंगे वही निकलेंगे। गॉर्डन ऑफ अल्लाह की यहाँ स्थापना होगी। कोई-कोई तो ऐसे अच्छे-अच्छे फूल होते हैं जो देखने से ही आराम आ जाता है। नाम ही है किंग ऑफ फ्लावर्स। 5 रोज से रखा हो तो भी खिला रहेगा। खुशबू फैलती रहेगी। यहाँ भी जो बाप को याद करते और याद दिलाते हैं उनकी खुशबू फैलती है। सदैव खुश रहते हैं। ऐसे मीठे-मीठे बच्चों को देख बाप हर्षित होते हैं। उन्हों के आगे बाबा की ज्ञान डांस अच्छी होती है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान और योग में मजबूत बनना है। अगर कोई बन्धन नहीं है तो बन्धनों में जानबूझकर फँसना नहीं है। बाल ब्रह्मचारी होकर रहना है।
2) अभी हमारी चढ़ती कला है, बाबा हमारे सब दु:ख दूर करने, श्राप मिटाए वर्सा देने आये हैं। बाप और वर्से को याद कर अपार खुशी में रहना है। जांच करनी है कि हमारा बुद्धियोग कहाँ भटकता तो नहीं है।
वरदान:
एकाग्रता के अभ्यास द्वारा अनेक आत्माओं की चाहनाओं को पूर्ण करने वाले विश्व कल्याणकारी भव!   
सर्व आत्माओं की चाहना है कि भटकती हुई बुद्धि वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए। तो उनकी इस चाहना को पूर्ण करने के लिए पहले आप स्वयं अपने संकल्पों को एकाग्र करने का अभ्यास बढ़ाओ, निरन्तर एकरस स्थिति में वा एक बाप दूसरा न कोई....इस स्थिति में स्थित रहो, व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तन करो तब विश्व कल्याणकारी भव का वरदान प्राप्त होगा।
स्लोगन:
ब्रह्मा बाप समान गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप और याद स्वरूप बनने वाले ही सच्चे ब्राह्मण हैं।