Sunday, July 17, 2016

मुरली 17 जुलाई 2016

17-07-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:19-10-81 मधुबन

“हर ब्राह्मण चैतन्य तारा मण्डल का श्रृंगार”
आज ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा अपने तारामण्डल को देखने आये हैं। सितारों के बीच ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा दोनों ही साथ में आये हैं। वैसे साकार सृष्टि में सूर्य, चन्द्रमा और साथ में सितारे इकठ्ठे नहीं होते हैं। लेकिन चैतन्य सितारे सूर्य और चांद के साथ हैं। यह सितारों का अलौकिक संगठन है। तो आज बापदादा भिन्न-भिन्न सितारों को देख रहे हैं। हर सितारे में अपनी-अपनी विशेषता है। छोटे-छोटे सितारे भी इस तारामण्डल को बहुत अच्छा शोभनिक बना रहे हैं। बड़े तो बड़े हैं ही लेकिन छोटों की चमक से संगठन की शोभा बढ़ रही है। बापदादा यही बात देख देख हर्षित हो रहे हैं कि हरेक सितारा कितना आवश्यक है। छोटे से छोटा सितारा भी अति आवश्यक है। महत्वपूर्ण कार्य करने वाला है, तो आज बापदादा हरेक के महत्व को देख रहे थे। जैसे हद के परिवार में माँ बाप हर बच्चे के गुणों की, कर्तव्यों की, चाल-चलन की बातें करते हैं वैसे बेहद के मां-बाप, ज्ञान सूर्य और चन्द्रमा बेहद के परिवार वा सर्व सितारों के विशेषताओं की बातें कर रहे थे। ब्रह्मा बाप वा चन्द्रमा आज चारों ओर विश्व के कोने-कोने में चमकते हुए अपने सितारों को देख-देख खुशी में विशेष झूम रहे थे। ज्ञान सूर्य बाप को हर सितारे की आवश्यकता और विशेषता सुनाते हुए इतना हर्षित हो रहे थे कि बात मत पूछो। उस समय का चित्र बुद्धियोग की कैमरा से खीच सकते हो? साकार में जिन्होंने अनुभव किया वह तो अच्छी तरह से जान सकते हैं। चेहरा सामने आ गया ना? क्या दिखाई दे रहा है? इतना हर्षित हो रहे हैं जो नयनों में मोती चमक रहे हैं। आज जैसे जौहरी हर रत्न के महत्व का वर्णन करते हैं, ऐसे चन्द्रमा हर रत्न की महिमा कर रहे थे। आप समझते हो कि आप सबकी महिमा क्या की होगी? अपने महानता की महिमा जानते हो?

सभी की विशेष एक बात की विशेषता वा महानता बहुत स्पष्ट है, जो कोई भी महारथी हो वा प्यादा हो, छोटा सितारा हो वा बड़ा सितारा हो, लेकिन बाप को जानने की विशेषता, बाप का बनने की विशेषता, यह तो सबमें है ना। बाप को बड़े-बड़े शास्त्रों की अथॉरिटी, धर्म के अथॉरिटी, विज्ञान के अथॉरिटी, राज्य के अथॉरिटी, बड़े-बड़े विनाशी टाइटल्स के अथॉरिटीज, उन्होंने नहीं जाना, लेकिन आप सबने जाना। वे अब तक आवाह्न ही कर रहे हैं। शास्त्रवादी तो अभी हिसाब ही लगा रहे हैं। विज्ञानी अपनी इन्वेन्शन में इतने लगे हुए हैं, जो बाप की बातें सुनने और समझने की फुर्सत नहीं है। अपने ही कार्य में मगन हैं। राज्य की अथॉरिटीज अपने राज्य की कुर्सा को सम्भालने में बिजी हैं। फुर्सत ही नहीं है। धर्मनेतायें अपने धर्म को सम्भालने में बिजी हैं कि कहाँ हमारा धर्म प्राय:लोप न हो जाए। इसी हमारे-हमारे में खूब बिजी है। लेकिन आप सब आवाह्न के बदले मिलन मनाने वाले हो। यह विशेषता वा महानता सभी की है। ऐसे तो नही समझते हो हमारे में क्या विशेषता है, वा हमारे में तो कोई गुण नहीं है। यह तो भक्तों के बोल हैं कि हमारे में कोई गुण नहीं। गुणों के सागर बाप के बच्चे बनना अर्थात् गुणवान बनना। तो हरेक में किसी न किसी गुण की विशेषता है। और बाप उसी विशेषता को देखते हैं। बाप जानते हैं– जैसे राज्य परिवार के हर व्यक्ति में इतनी सम्पन्नता जरूर होती है जो वह भिखारी नहीं हो सकता। ऐसे गुणों के सागर बाप के बच्चे कोई भी गुण की विशेषता के बिना बच्चा कहला नहीं सकते। तो सभी गुणवान हो, महान हो, विशेष आत्मायें हो, चैतन्य तारामण्डल का श्रृंगार हो। तो समझा आप सब कौन हो? निर्बल नहीं हो, बलवान हो क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिमान हो। ऐसा रूहानी नशा सदा रहता है? रूहानियत में अभिमान नहीं होता है। स्वमान होता है। स्वमान अर्थात् स्व-आत्मा का मान। स्वमान और अभिमान दोनों में अन्तर है। तो सदा स्वमान की सीट पर स्थित रहो। अभिमान की सीट छोड़ दो। अभिमान की सीट ऊपर से बड़ी सजी-सजाई है। देखने में आराम-पसन्द, दिल-पसन्द है लेकिन अन्दर कांटों की सीट है। यह अभिमान की सीट ऐसे ही समझो जैसे कहावत है– खाओ तो भी पछताओ और न खाओ तो भी पछताओ। एक दो को देख सोचते हैं कि हम भी टेस्ट कर लें। फलाने-फलाने ने अनुभव किया हम भी क्यों नहीं करें। तो छोड़ भी नहीं सकते और जब बैठते हैं तो कांटे तो लगने ही हैं। तो ऐसे बाहर से दिखावटी, धोखा देने वाली अभिमान की सीट पर कभी भी बैठने का प्रयत्न नहीं करो। स्वमान की सीट पर सदा सुखी, सदा श्रेष्ठ, सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करो। अपनी विशेषता बाप को जानने और मिलन मनाने की इसी को स्मृति में रख सदा हर्षित रहो। जैसे सुनाया कि चन्द्रमा सितारों को देख हर्षित हो रहे थे, ऐसे फालो फादर। अच्छा।

ऐसे सदा स्वमान की सीट पर स्थित रहने वाले, सदा अपने को विशेष आत्मा समझ विशेषता द्वारा औरों को भी विशेष आत्मा बनाने वाले, चन्द्रमा और ज्ञान सूर्य को सदा फालो करने वाले, ऐसे वफादार, फरमानबरदार, सपूत बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जी से:- आपने भी सबकी विशेषतायें देखी ना। चक्कर में क्या देखा? छोटों की भी विशेषता, बड़े की भी विशेषता देखी ना। तो विशेषता वर्णन करने में, सुनने में सब कितना हर्षित होते हैं। सब हर्षित होकर सुन रहे थे ना।

(दादी जी ने अम्बाला और फिरोजाबाद मेले का समाचार क्लास में सुनाया था) ऐसे ही सदा सभी विशेषता का ही वर्णन करें तो क्या हो जायेगा? सदा जैसे विशेष कार्य में खुशी के बाजे बजते हैं ऐसे ब्राह्मण परिवार में चारों ओर खुशी के ही साज बजते रहेंगे वा बाजे बजते रहेंगे। शार्ट और स्वीट सफर रहा। खुशियों की खान ले सबको खुशियों से मालामाल करके आई। हर स्थान की हिम्मत, उल्लास, एक दो से श्रेष्ठ है। बाप भी बच्चों की हिम्मत और उल्लास पर हर बच्चे की महिमा के गुणों के पुष्प बरसाते हैं। अच्छा!

पार्टियों के साथ:- हरेक अपनी श्रेष्ठ तकदीर को जानते हो ना? कितनी श्रेष्ठ तकदीर श्रेष्ठ कर्मों द्वारा बना रहे हो। जितने श्रेष्ठ कर्म उतनी तकदीर की लकीर लम्बी और स्पष्ट। जैसे हाथों द्वारा तकदीर देखते हैं तो क्या देखते हैं? लकीर लम्बी है, बीच-बीच में कट तो नहीं है। ऐसे यहाँ भी ऐसा ही है। अगर सदा श्रेष्ठ कर्म वाले हैं तो तकदीर की लकीर भी लम्बी और सदा के लिए स्पष्ट और श्रेष्ठ है। अगर कभी-कभी श्रेष्ठ, कभी साधारण तो लकीर में भी बीच-बीच में कट होता रहेगा। अविनाशी नहीं होगा। कभी रूकेंगे, कभी आगे चलेंगे, इसीलिए सदा श्रेष्ठ कर्मधारी। बाप ने तकदीर बनाने का साधन दे ही दिया है– श्रेष्ठ कर्म। कितना सहज है तकदीर बनाना। श्रेष्ठ कर्म करो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। श्रेष्ठ कर्म का आधार है– श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहना अर्थात् श्रेष्ठ कर्म होना। ऐसे तकदीरवान हो ना? तकदीरवान तो सभी हैं लेकिन श्रेष्ठ हैं या साधारण, इसमें नम्बर हैं। तो सदा के तकदीर की लकीर खींच ली है या छोटी-सी खींच ली है? लम्बी है ना, अविनाशी है ना। बीच-बीच में खत्म होने वाली नहीं, सदा चलने वाली। ऐसे तकदीरवान। अब के भी तकदीरवान और अनेक जन्मों के भी तकदीरवान।

2. सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर बाप के साथ स्नेही और सहयोगी आत्मायें हैं, ऐसा समझकर चलते हो? हम आत्माओं को इतना श्रेष्ठ भाग्य मिला है, यह आक्यूपेशन सदा याद रहता है? जैसे लौकिक आक्यूपेशन वाली आत्मा के साथ भी कार्य करने वाले को कितना ऊंचा समझते हैं लेकिन आपका पार्ट, आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है। तो कितना श्रेष्ठ पार्ट हो गया। ऐसे समझते हो? पहले त् सिर्फ पुकारते थे कि थोड़ी घड़ी के लिए दर्शन मिल जाए। यही इच्छा रखते थे ना। अधिकारी बनने की इच्छा वा संकल्प तो सोच भी नहीं सकते थे, असम्भव समझते थे। लेकिन अभी जो असम्भव बात थी वह सम्भव और साकार हो गई। तो यह स्मृति रहती है? सदा रहती है वा कभी-कभी? अगर कभीकभी रहती है तो प्राप्ति क्या करेंगे? कभी-कभी राज्य मिलेगा। कभी राजा बनेंगे कभी प्रजा बनेंगे। जो सदा के सहयोगी हैं वही सदा के राजे हैं। अधिकार तो अविनाशी और सदाकाल का है। जितना समय बाप ने गैरन्टी दी है, आधाकल्प उसमें सदाकाल राज्य पद की प्राप्ति कर सकते हो। लेकिन राजयोगी नहीं तो राज्य भी नहीं। जब चाँस सदा का है तो थोड़े समय का क्यों लेते हो। अच्छा!

3. संगमयुग को नवयुग भी कह सकते हैं क्योंकि सब कुछ नया हो जाता है। नवयुग वालों की हर समय की हर चाल नई। उठना भी नया, बोलना भी नया, चलना भी नया। नया अर्थात् अलौकिक। नई तात, नई बात, सब नया हो गया ना। स्मृति में ही नवीनता आ गई। जैसी स्मृति वैसी स्थिति हो गई। बातें भी नई, मिलना भी नया, सब नया। देखेंगे तो भी आत्मा, आत्मा को देखेंगे! पहले शरीर को देखते थे अब आत्मा को देखते हैं। पहले सम्पर्क में आते थे तो कई विकारी भावना से आते थे। अभी भाई-भाई की दृष्टि से सम्पर्क में आते हो। अभी बाप के साथी बन गये। पहले लौकिक साथी थे। ब्राह्मणों की भाषा भी नई। आपकी भाषा दुनिया वाले नहीं समझ सकते। सिर्फ यह बात भी बोलते हो कि भगवान आया है तो भी आश्चर्य खाते हैं, समझते नहीं। कहते हैं यह क्या बोलते हो! तो आपकी सब बातें नई हैं इसलिए हर सेकेण्ड अपने में भी नवीनता लाओ। जो एक सेकेण्ड पहले अवस्था थी वह दूसरे सेकेण्ड नहीं, उससे आगे। इसी को कहा जाता फास्ट पुरूषार्थ। जो कभी चढ़ती कला में, कभी रूकती कला में, उनको नम्बरवन पुरूषार्थी नहीं कहेंगे। नम्बरवन पुरूषार्थ की निशानी है हर सेकेण्ड, हर संकल्प चढ़ती कला। अभी 80 प्रतिशत है तो सेकेण्ड के बाद 81 प्रतिशत ऐसे नहीं 80 का 80 रहे। चढ़ती कला अर्थात् सदा आगे बढ़ते रहना। ब्राह्मण जीवन का कार्य ही है बढ़ना और बढ़ाना। आपकी चढ़ती कला में सर्व का भला है। इतनी जिम्मेवारी है आप सबके ऊपर। अच्छा, ओम् शान्ति।
वरदान:
व्यर्थ की लीकेज को समाप्त कर समर्थ बनने वाले कम खर्च बालानशीन भव!   
संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी खजाने मिले हैं उन सर्व खजानों को व्यर्थ जाने से बचाओ तो कम खर्च बालानशीन बन जायेंगे। व्यर्थ से बचाव करना अर्थात् समर्थ बनना। जहाँ समर्था है वहाँ व्यर्थ जाये-यह हो नहीं सकता। अगर व्यर्थ की लीकेज है तो कितना भी पुरूषार्थ करो, मेहनत करो लेकिन शक्तिशाली बन नहीं सकते इसलिए लीकेज को चेक कर समाप्त करो तो व्यर्थ से समर्थ हो जायेंगे।
स्लोगन:
प्रवृत्ति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना-यही योगी व ज्ञानी तू आत्मा की चैलेन्ज है।