Tuesday, July 19, 2016

मुरली 19 जुलाई 2016

19-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– यह भारत भूमि निराकार बाप की जन्म-भूमि है, यहाँ ही बाप आते हैं तुम्हें राजयोग सिखलाकर राजाई देने, तुम्हारी सेवा करने”   
प्रश्न:
शिवबाबा अपने हर एक बच्चे से कौन सी प्रतिज्ञा कराते हैं?
उत्तर:
मीठे बच्चे– प्रतिज्ञा करो कि बाबा हम कोई भी विकर्म नहीं करेंगे। 5 विकारों का हम दान देते हैं। अन्दर में डर रहना चाहिए– अगर हम दान देकर फिर वापिस लेंगे तो बहुत पाप बन जायेगा, जिसकी कड़ी सजा खानी पड़ेगी। हरिश्चन्द्र की कहानी भी इसी पर बनी हुई है।
ओम् शान्ति।
यह बच्चों की है गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ। बच्चे जानते हैं कि हम उनके पास आये हैं। वही कल्प-कल्प भारतवासी बच्चों को आकर राज्य भाग्य देते हैं। भारत में ही आते हैं ना। यह भारत भूमि है। अपनी भूमि पर बहुत प्यार रिगॉर्ड होता है। जैसे कोई विलायत का बड़ा आदमी यहाँ मरता है तो उनको विलायत ले जाते हैं अथवा यहाँ का कोई बड़ा आदमी विलायत में मरता है तो उनको यहाँ ले आते हैं। अपनी भूमि का मान रखते हैं। भारत को कहा जाता है भगवान की जन्म भूमि। यह भी जानते हो जिसको भगवान अथवा अल्लाह, परमात्मा कहते हैं उनके सामने अभी तुम बैठे हो। नाम तो जरूर चाहिए ना। अल्लाह कहते हैं तो भी लिंग की पूजा करते हैं। ईश्वर अथवा खुदा कहते हैं तो जरूर उनकी निशानी चाहिए ना। लिंग को सब तरफ पूजते हैं। चित्रों में भी आजकल देवताओं के आगे परमपिता परमात्मा का चित्र लिंग दिखाते हैं। वह है सबसे ऊंच, उनको अपना शरीर नहीं है, इसलिए निराकार कहा जाता है। साकार नहीं है। अभी तुम बच्चे जानते हो हम उनके सामने कल्प-कल्प हाजर होते हैं– शिक्षा लेने के लिए। भगवानुवाच है तो जरूर राजयोग सिखलाते होंगे। स्टूडेन्ट को राजयोग सिखाया था और वह राजा रानी बने थे। लड़ाई आदि की तो बात है नहीं। इन लक्ष्मी-नारायण आदि ने लड़ाई से थोड़ेही बादशाही पाई है। बिल्कुल नहीं। दुनिया बिल्कुल नहीं जानती कि इन्होंने सतयुग में राज्य कैसे पाया। अभी तुम बच्चे समझते हो हम बाप से राज्य ले रहे हैं। हम उनके सम्मुख बैठे हैं। वही बाबा है, कृष्ण नहीं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह है रचना। अभी बरोबर कृष्ण अपना पद ले रहे हैं जो फिर भविष्य में कृष्ण कहलायेंगे। यह है सारी पढ़ाई की बात। तुम जानते हो बाबा हमको राजयोग सिखलाते हैं। जैसे मनुष्य, मनुष्य को बैरिस्टर, इन्जीनियर आदि बनाते हैं। हैं तो मनुष्य ना। तुम समझते हो हम भी मनुष्य हैं, परन्तु हम पतित हैं। अभी बाप पावन भी बनाते हैं और हमें वर्सा भी देते हैं। पावन दुनिया तो नई दुनिया ही होगी। नई दुनिया में है ही राजाई। अभी तुम बाप के सम्मुख बैठे हो। जैसे लौकिक बाप बच्चों को प्यार से बैठ समझाते हैं, यह है पारलौकिक विचित्र बाप। जिसके लिए तुम गाते आये हो त्वमेव माताश्च पिता.. इस समय तुम जानते हो यह अपना पार्ट बजाते हैं, जो भक्ति मार्ग में हम गायन करते हैं। तुम कहते हो हम शिवबाबा के पास आये हैं। चिठ्ठी भी लिखते हो– शिवबाबा केयरआफ ब्रह्मा। कोई को तुम पोस्ट दिखाओ तो वन्डर खायेंगे– शिवबाबा केयरआफ ब्रह्मा ऐसा तो कभी सुना नहीं है। शिवबाबा ब्रह्मा में आकर विष्णुपुरी की स्थापना कर रहे हैं, सामने खड़े हैं। ऊपर में है शिवबाबा। शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा स्थापना की थी, अब फिर से कर रहे हैं। यह है प्रवृत्ति मार्ग। राजविद्या में भी बैरिस्टर पढ़ाते हैं तो मेल फीमेल दोनों पढ़ते हैं। फीमेल भी जज, बैरिस्टर, डाक्टर आदि बनती हैं। यह भी प्रवृत्ति मार्ग है। सन्यासियों का है निवृत्ति मार्ग, वह अलग है। यह भी बाबा ने समझाया है– शंकराचार्य अगर नहीं आता तो पवित्रता का अंश नहीं रहता। भारत बिल्कुल ही जल मरता। यह नूँध है– भारत को थमाने लिए। भारत बहुत पवित्र था फिर अपवित्र बना है। अभी भारत कितना कंगाल है। कहते हैं सोने की लंका समुद्र के नीचे चली गई। अब लंका तो सोने की हो नहीं सकती। यह सब कहानियां बैठ लिखी हैं जिससे फायदा कुछ भी नहीं। तुम बच्चे जानते हो बरोबर बाबा हमको बिल्कुल सहज याद के बल से कितना ऊंच बनाते हैं। बाप प्रतिज्ञा करते हैं, अगर निरन्तर याद करने का पुरूषार्थ करेंगे तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। भक्ति मार्ग में भी याद करने का पुरूषार्थ किया है ना। क्यों याद करते हैं? कि हमको साक्षात्कार हो। ऐसे नहीं याद करते कि कृष्णपुरी में हमको बादशाही मिल जाये वा हम नर से नारायण बन जायें, नहीं। तुमको भी यह आश नहीं थी कि हम मनुष्य से देवता बनें। गाते भी हैं मनुष्य से देवता किये... तुम देखते हो बरोबर कलियुग के बाद सतयुग आयेगा। कलियुग में इतने मनुष्य हैं। सतयुग में एक धर्म होगा। अभी तुमको आत्मा और परमात्मा का भी ज्ञान मिला है, दुनिया में एक भी मनुष्य नहीं जिसको आत्मा का ज्ञान हो। आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट कैसे नूँधा हुआ है, यह कोई जानते नहीं। यह अक्षर भी कभी कोई से नहीं सुने हैं। बाप तो है ज्ञान का सागर, पतित-पावन, निराकार। तुम जानते हो हमारी आत्मा अब पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बन रही है। सतयुग में तो हैं सब पुण्य आत्मायें। यहाँ हैं पाप आत्मायें। ऐसे नहीं कि बहुत दान-पुण्य करने वालों को पुण्य आत्मा कहा जाता है। नहीं। पुण्य आत्मा होते ही हैं सतयुग में। यहाँ जो मनुष्य दान पुण्य करते हैं, उनको पुण्य आत्मा समझते हैं। वहाँ तुमको दान पुण्य आदि करने की दरकार नहीं रहती। वहाँ गरीब कोई होता ही नहीं। तुम वहाँ सदैव के लिए पुण्य आत्मा हो ही। तुम तन-मन-धन सब बेहद के बाप अर्थ देते हो, जिसको बलिहार जाना कहा जाता है। बाप कहते हैं पहले मैं बलिहार जाता हूँ वा तुम? बाबा कहते हैं– पहले तुम बलिहार जाते हो तब फिर 21 जन्मों के लिए बलिहारी मिलेगी। यह बातें अभी तुम अच्छी रीति समझते हो, डायरेक्ट सुनते हो। घर में रहते हो तो वहाँ मुरली आती है। दूर से सुनते हो। अभी तो बाप के सम्मुख बैठे हो। बाप कहते हैं- बच्चों, मैं तुम्हारा बाप भी हूँ। यहाँ अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। बाप भी है, टीचर भी है। बाप का बनने से वह शिक्षा देते हैं, तुम्हारी बुद्धि में अब सारा ज्ञान है। 84 का चक्र भी तुमको समझाया जाता है। जो 84 जन्म लेने वाले नहीं होंगे वह समझेंगे नहीं। तुम समझते हो बरोबर हम 84 का चक्र लगाकर अब वापिस जाते हैं। बाप कहते हैं- तुम आत्मा अशरीरी आई थी फिर अशरीरी होकर वापिस जाना है। तुम पवित्र आत्मायें होकर जाती हो। पवित्र बनने के लिए तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। योगबल अर्थात् यादबल से तुम पवित्र बन जायेंगे। योग अक्षर शास्त्रों का है। राइट अक्षर है याद। स्त्री को पति की अथवा पुरूष को पत्नी की याद रहती है ना। योग का अर्थ ही है याद। बाप भी कहते हैं- मामेकम् याद करो और संग बुद्धियोग तोड़ मुझ अपने बाप के साथ बुद्धि योग जोड़ो। याद करो। जितना याद करेंगे उतना तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बरोबर भारत को कल्प-कल्प वर्सा मिलता है। शिव जयन्ती भी मशहूर है। जैसे बुद्ध, क्राइस्ट आदि की जयन्ती है वैसे निराकार शिव की जयन्ती है। वह ऊंच ते ऊंच हो गया। कृष्ण जयन्ती भी मशहूर है। परन्तु वह क्या आकर करते हैं, यह किसको भी पता नहीं हैं। कृष्ण सतयुग का प्रिन्स था। जरूर उनको कोई ने ऐसा कर्म सिखाया होगा, जो सतयुग का प्रिन्स बना है। छोटा बच्चा तो पवित्र ही है। वहाँ विकार की बात नहीं होती। बच्चा शुद्ध रहता है। भगवान तो एक ही निराकार है, गॉड इज वन। बाकी सारी है रचना। रचना से कभी रचना को वर्सा नहीं मिल सकता है। वर्सा बाप से मिलेगा। भाई को भाई से वर्सा नहीं मिल सकता। तुम सब भाई-भाई हो। ब्रदरहुड कहते हैं ना। बाप तो एक ही है, वर्सा बाप से मिलेगा। सर्व भाईयों का सद्गति दाता एक बाप है। सभी आत्माओं को बाप से वर्सा मिल रहा है। बाप कहते हैं-मैं आत्माओं को आकर पढ़ाता हूँ, आत्माओं को सद्गति देता हूँ। बाप बैठ राजयोग सिखलाते हैं। इस पढ़ाई का पद तुमको यहाँ नहीं पाना है। वह बैरिस्टर आदि इस जन्म में बनते हैं, फिर दूसरा जन्म लेकर फिर से पढ़ेंगे। तुम जानते हो इस पढ़ाई से हम 21 जन्म के लिए प्रालब्ध पाते हैं। वहाँ सतयुग में डाक्टर आदि कोई होते नहीं। वहाँ बीमारी ही नहीं होती। वहाँ तुम गर्भ महल में रहते हो। यहाँ गर्भजेल में रहते हो जहाँ बहुत सजायें मिलती हैं, तब पुकारते हैं इस जेल से बाहर निकालो, हम फिर कोई भूल नहीं करेंगे। धर्मराज से प्रतिज्ञा करते हैं। यहाँ तुमको शिवबाबा से प्रतिज्ञा करनी है। बाबा हम कभी विकर्म नहीं करेंगे। 5 विकार हम आपको दे देते हैं। यह भी बाप जानते हैं कि विकार कोई ऐसे फट से नहीं छूटेंगे। अन्दर डर रहना चाहिए, हम विकारों का दान देकर फिर लेंगे तो बड़ा पाप हो जायेगा। जैसे राजा हरिश्चन्द्र का मिसाल है। बाप जानते हैं ऐसे नहीं कि 5 विकार झट से छूट जाते हैं। नहीं, टाइम लगता है। तुम्हारी कर्मातीत अवस्था होगी तब लड़ाई लगेगी। यह 5 विकार हैं बड़े दुश्मन। उसमें भी मुख्य एक है देह-अभिमान। उसका दान देना कितना मुश्किल है। घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं- अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। परन्तु यह होता नहीं है। देह-अभिमानी बनने से फिर काम की चोट लगती है। देह-अभिमान सबसे तीखा है। देही-अभिमानी बनने की मेहनत है। मुख्य देह-अभिमान आने से ही पाप हुए हैं। 5 विकार दान में देना पड़े, इसमें समय लगता है। साजन बिगर सजनियां तो जा न सकें। पहले साजन को जाना है फिर सजनियां। साजन को आकर सब आत्माओं को ले जाना है। जब तक कर्मातीत अवस्था हो तब तक पुरूषार्थ करना है। देह-अभिमान आने से ही फिर भूलें होती हैं। कहते हैं बाबा देह-अभिमान में आकर विकार में गिरे। तूफान तो बहुत आयेंगे। विकार का संकल्प आये परन्तु कर्मेन्द्रियों से कभी कोई पाप नहीं करना। माया को जीतने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। बाप कहते हैं- अगर शादी की हुई है तो पवित्र रहकर दिखाओ तो सन्यासी भी देखेंगे। तुमको आमदनी देखो कितनी भारी है। पवित्र रह दिखाया तो बहुत ऊंच पद पायेंगे। तुम पर तो सब कुर्बान जायेंगे। बाबा भी महिमा करते हैं। भल पवित्र भी रहे परन्तु फिर योग भी चाहिए। योग में ही घड़ी-घड़ी विघ्न पड़ते हैं। देह-अभिमान आ जाता है। पवित्र रहते हैं सो तो ठीक, पवित्रता से ही पवित्र दुनिया में वर्सा पायेंगे। परन्तु फिर माया भी जोर रखेगी, माया बहुत वार करती है। बाप समझाते हैं यह सब होगा। बहादुरी दिखलाते हैं परन्तु साथ-साथ निरन्तर याद भी रहे तब ही विकर्म विनाश होंगे। रूसतम जो बनते हैं उनको माया भी बहुत सताती है। याद में मुश्किल रह सकते हैं। जो रह सकते हैं उनसे अनुभव पूछना चाहिए। क्या समझते हैं, कैसे रहते हैं। याद में रहने से विकर्म विनाश होंगे। यह बात ही बिल्कुल न्यारी नई है। यहाँ बैठे हो तो नशा चढ़ा हुआ है। यह भी समझते हैं भगवान एक ही निराकार है, न कि कृष्ण। वास्तव में कृष्ण के लिए शास्त्रों में बातें लिख दी हैं– उखरी से बांधा, यह किया... वह कोई बातें हैं नहीं। यह भी उनकी ग्लानी करते हैं, इनसल्ट करते हैं। कृष्ण में तो कोई भी अवगुण नहीं था। चंचलता करना यह भी एक अवगुण है ना। कृष्ण तो बिल्कुल ही मर्यादा पुरूषोत्तम है। उनकी महिमा गाते हैं– सर्वगुण सम्पन्न... गाया जाता है गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु... बोलो गुरू तो हमारा है नहीं। हम इनको न तो गुरू, न ईश्वर मानते हैं। पतित-पावन तो एक ही निराकार है ना। साकार गुरू कोई पतित-पावन हो न सके। इस समय तुम परमपिता परमात्मा की सारी जीवन कहानी को जानते हो। 5 हजार वर्ष में शिवबाबा का क्या पार्ट बजता है– यह तुम जानते हो, बाप द्वारा। नॉलेजफुल तो बाप है ना। सुख-शान्ति, आनंद का सागर.... यह महिमा उनकी है। बाप के पास खजाना है तो जरूर बच्चों को भी देते होंगे ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने के लिए इन कर्मेन्द्रियों से कोई भी भूल नहीं करनी है। पवित्र रहने के साथ-साथ याद में भी मजबूत होना है।
2) सदा पुण्य आत्मा बनने के लिए तन-मन-धन से बाप पर बलिहार जाना है। एक बार बलिहार जाने से 21 जन्म के लिए पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
वरदान:
अपनी स्मृति, वृत्ति और दृष्टि को अलौकिक बनाने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव!   
कहा जाता है– “जैसे संकल्प वैसी सृष्टि” जो नई सृष्टि रचने के निमित्त विशेष आत्मायें हैं उनका एक-एक संकल्प श्रेष्ठ अर्थात् अलौकिक होना चाहिए। जब स्मृति-वृत्ति और दृष्टि सब अलौकिक हो जाती है तो इस लोक का कोई भी व्यक्ति वा कोई भी वस्तु अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती। अगर आकर्षित करती है तो जरूर अलौकिकता में कमी है। अलौकिक आत्मायें सर्व आकर्षणों से मुक्त होंगी।
स्लोगन:
दिल में परमात्म प्यार वा शक्तियां समाई हुई हों तो मन में उलझन आ नहीं सकती।