Saturday, July 23, 2016

मुरली 23 जुलाई 2016

23-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– अभी तक तुम सुनी सुनाई बातों पर चलते आये, अब बाप तुम्हें डायरेक्ट सुनाकर आपसमान नॉलेजफुल बनाते हैं”   
प्रश्न:
अच्छे पुरूषार्थी बच्चों की निशानी तथा उनकी अवस्था का गायन क्या है?
उत्तर:
अच्छे पुरूषार्थी बच्चे– मदर, फादर को पूरा-पूरा फालो करेंगे। अपनी जीवन पर तरस खायेंगे। पूरापूरा अटेन्शन रखेंगे। थोड़ा भी समय निकाल बाबा की याद में जरूर बैठेंगे। उनकी अवस्था का गायन है-अचल, अडोल, स्थिर। उन्हें ही महावीर कहा जाता है।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला...   
ओम् शान्ति।
भक्ति मार्ग में दुनिया सिर्फ गाती है। तुम बच्चे अभी समझते हो– भक्ति मार्ग में हम भी गाते थे। अब वही भोलानाथ सम्मुख है, भोलानाथ अक्षर भक्ति मार्ग का है। ज्ञान मार्ग का अक्षर है शिवबाबा। तुम समझते हो अनादि बने बनाये ड्रामा-प्लैन अनुसार अब संगमयुग पर बाप को आकर हमसे यह पुरूषार्थ कराना ही है। कल्प-कल्प पुरूषार्थ कराते आये हैं। कितना समय तुम बच्चों ने भक्ति की है, यह भी सिद्धकर बतलाते हैं। जिन्होंने पहले-पहले भक्ति शुरू की है वही आकर ज्ञान लेंगे और फिर सूर्यवंशी बनेंगे। सतयुग में सिर्फ एक लक्ष्मी-नारायण तो नहीं आते। उनकी डिनायस्टी भी है ना। उसको कहा जाता है दैवी वर्ण। भारत में दैवी वर्ण था। अब आसुरी वर्ण है। यह है संगम। अब आसुरी से दैवी वर्ण में जाना है। बरोबर यह महाभारत लड़ाई भी वही है जो गाई हुई है। सिर्फ नाम शिव के बदले कृष्ण का डाल दिया है। एक गीता खण्डन हुई तो सब शास्त्र खण्डन हो जाते हैं। मूल बात गीता की है। गीता पाठशालायें वा गीता भवन कितने हैं! गीता ज्ञान सुनने की पाठशाला। खुद सुनाने वाला है नहीं। जो होकर जाते हैं वह फिर गायन चलता है। बच्चों को तो रोज बाप बहुत प्यार से समझाते हैं। बच्चे जानते हैं– बाबा प्यार का सागर है। सबको प्यार से सिखलाते हैं। बाबा कभी गुस्सा नहीं करते, सदैव प्यार से समझाते हैं। बच्चे तुम सतोप्रधान थे फिर पुनर्जन्म लेते आये हो। तुम भारतवासी ही असुल देवी-देवता धर्म के हो। यह भी बतलाते हैं। पहले-पहले वर्सा लेने कौन आयेंगे? जिन्होंने कल्प पहले लिया है, वही कहेंगे बाबा आपके सिवाए हमारा सहायक और कोई नहीं। बाप क्षमा भी तब करेंगे जब संगमयुग होगा। यह तो बच्चे जानते हैं कि रावण राज्य और रामराज्य यहाँ ही होता है। रावणराज्य है तब तो रामराज्य चाहते हैं। तुम जब शिवबाबा कहते हो तो बुद्धि निराकार तरफ ही जाती है। निराकार ही याद आता है। आत्मा ही बाप को पुकारती है। ऐसे भी नहीं कि परमात्मा कोई बैठ सुनते हैं। बाप समझाते हैं ड्रामा प्लैन अनुसार पतितों को पावन बनाने के लिए तो मैं शरीर में आता हूँ। ऐसे नहीं कि पुकार सुनकर आता हूँ। भक्ति जब पूरी होती है तब मुझे आना ही है। यह समझने की बातें हैं। वह समय आता है, बच्चे पुकारने लगते हैं। यह तो कहाँ लिखा हुआ नहीं है कि कब आयेंगे? उन्होंने कल्प की आयु रांग लिख दी है। यह चित्र घर-घर में होने चाहिए। जो रोज देखें और याद करें कि यह बाबा, यह दादा, यह वर्सा। बाप कहते हैं बच्चे सतोप्रधान बनने के लिए मुझे याद करो तो खाद निकल जायेगी। यह युक्ति बाप ही समझाते हैं। यह बाप भी कहते हैं मैं भी पुरूषार्थ करता हूँ। बच्चे एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है। यह चित्रों की समझानी बहुत अच्छी है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं। सामने महाभारी महाभारत लड़ाई खड़ी है। इतने अनेक धर्म विनाश होंगे, उसके लिए लड़ाई जरूर चाहिए। यह बातें बच्चों को भूलनी नहीं चाहिए। बरोबर अब कलियुग घोर अन्धियारा है। कितने ढेर मनुष्य हैं, जरूर विनाश होना है। सतयुग में एक धर्म होगा। जरूर 84 जन्म का चक्र भी उन्होंने ही लगाया है। यह तो सहज है। बाकी इतने सब धर्मो का जरूर विनाश होगा। फिर एक धर्म की स्थापना बरोबर हो रही है। सर्व का सद्गति दाता बाप है। बाप से ही बच्चों को वर्सा मिलता है। बच्चे जानते हैं– हम जो यह पढ़ाई पढ़ते हैं वह भविष्य 21 जन्मों के लिए पढ़ते हैं। भगवानुवाच– मैं तुमको पढ़ाकर 21 जन्मों के लिए स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी घराने की बरोबर स्थापना होती है। जो जितना पुरूषार्थ करेगा, उतना ऊंच पद पायेगा, तो शिवबाबा कहते हैं इन मदर-फादर को फालो करो। इन्हों को सूक्ष्मवतन, वैकुण्ठ में भी देखते हो। अपने को भी देखते हो, हम भी महाराजा, महारानी बनते हैं। वैकुण्ठ का भी साक्षात्कार होता है। मानते भी हैं बरोबर भारत वैकुण्ठ था, श्रीकृष्णपुरी थी। आज कंसपुरी है, कल कृष्णपुरी होगी। रात बदल दिन होना है। यह है आधाकल्प बेहद का दिन और आधाकल्प बेहद की रात। अन्धियारे में ठोकरें ही खाते रहते हैं। ब्रह्मा की रात सो ब्राह्मणों की रात। फिर तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो। सतयुग में ब्राह्मण होते नहीं, देवता होते हैं। यह भी बच्चे जानते हैं भारत पवित्र राजस्थान था फिर अपवित्र राजस्थान बना है। भारत सदैव राजस्थान रहा है। राजाई चलती आती है और धर्म वालों की शुरू से ही राजाई नहीं चलती है। भगवान ही राजाई स्थापन करते हैं। भगवान ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। वह है निराकार ज्ञान का सागर, सुख का सागर... तुम जानते हो बाबा से हमको वर्सा मिल रहा है। जरूर हमारे पुरूषार्थ की देरी है। जितना जो पुरूषार्थ करेंगे, जितना रास्ता बतायेंगे। बाप कहते हैं-मुझ बाप को याद करो तो तुम पतित से पावन बन पावन दुनिया के मालिक बन जायेंगे, कितना सहज है। लौकिक माँ बाप ज्ञान में अगर हैं तो बच्चों को भी आप समान बनाना पड़े। मां बाप सच्ची कमाई करते हैं तो बच्चों को सच्ची कमाई करानी चाहिए। कोई-कोई बच्चे अच्छे होते हैं। कहते हैं हम रूहानी पढ़ाई पढ़कर घर-घर में यह पैगाम देते रहेंगे। बाप भी कहते हैं कि पैगम्बर और मैसेन्जर मैं हूँ, तुमको मैसेज देता हूँ कि घर चलो और धर्म स्थापक तो सिर्फ आकर अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं। मैं सबको मैसेज देता हूँ कि अब वापिस चलना है। यह दुनिया अब रहने के लायक नहीं है। मुझे याद करो तो पावन बन जायेंगे। तुम पावन थे फिर रावण ने पतित बनाया है। मैं फिर पावन बनाने आया हूँ। थोड़े समय में ही यह बाम्बस आदि चलेंगे तो समझेंगे यह वही महाभारत लड़ाई है। तो जरूर भगवान भी होगा। परन्तु वह समझते हैं गीता का भगवान कृष्ण है। कितनी मूँझ है। मूँझे नहीं होते तो भगवान को आने की क्या दरकार। भक्ति मार्ग को भूल-भुलैया का खेल कहा जाता है। अब बाप कहते हैं मुझे याद करने से सब भूलें खत्म हो जायेंगी। आगे अपने को देह समझते थे। अब अपने को देही समझते हो। यह सावधानी बाप ही देते हैं कि बच्चों देही-अभिमानी बनो। यहाँ तुम बाप के सम्मुख बैठे हो। वहाँ सेन्टर्स पर बच्चियाँ बैठ समझायेंगी कि शिवबाबा ऐसे कहते हैं। यहाँ तो डायरेक्ट बाप कहते हैं मैं आत्माओं से बैठ बात करता हूँ। तुम बच्चे जानते हो बाबा इन द्वारा हमको समझा रहे हैं। यह बड़ा कल्याणकारी मेला है। बाप कहते हैं निरन्तर मुझे याद करो। बाबा से हमको स्वर्ग का वर्सा लेना है। बाप और स्वर्ग को याद करना है। कोई भी विकर्म नहीं करना है। अगर विकर्म करेंगे तो सौगुणा बन जायेगा। विकर्म कराने वाली है माया, उस पर जीत पानी है इसलिए हनुमान महावीर की कथा है। तुम हनुमान महावीर हो ना। हम तो बाबा के बन गये। माया से हार नहीं सकते। तो बाबा को याद करते-करते सतोप्रधान, विकर्माजीत बन जायेंगे। नहीं बनेंगे तो अपना पद भ्रष्ट करेंगे। पुरूषार्थी बच्चे जो होते हैं वह अपनी जीवन पर तरस खाते हैं। कुछ भी हो जाए, याद की यात्रा में रहेंगे, अचल-अडोल-स्थिर रहेंगे। विनाश तो होना ही है। सबके काका, चाचा, मामा, गुरू, गोसाई आदि सब खत्म हो जाते हैं। सतगुरू कहते हैं मैं तुमको साथ ले जाने वाला हूँ। मनुष्य तो बिल्कुल अन्धियारे में है, तुम जानते हो शिवबाबा हमको साथ ले जायेंगे। कहते हैं ना– काल खा गया। परन्तु मैं तो तुमको शान्तिधाम में ले जाता हूँ। आत्मा शरीर छोड़ चली जाती है। काल नहीं ले जाते हैं, आत्मा को निकलना होता है। अब तो मैं खुद आया हूँ– तुमको वापिस ले जाने। बाबा कोई मारने आया है क्या? नहीं। तुमको पुराना शरीर छोड़ना है। आत्मा तमोप्रधान से सतोप्रधान होनी है। अब 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं, इसलिए शरीर भी ऐसे बनते हैं। वहाँ सतोप्रधान तत्वों से तुम्हारे शरीर भी गोरे बनेंगे। बाप कहते हैं मैं फिर से सतयुगी आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करता हूँ। तुमने ही 84 जन्म भोगे हैं। तुम अपने धर्म को भूल गये हो और कोई अपने धर्म को भूले नहीं हैं। तुम अभी जानते हो हम असुल में देवी-देवता धर्म वाले इतने ऊंच से फिर नीच कैसे बने हैं। बाप बैठ कल्प-कल्प तुमको ही समझाते हैं। तुम फिर औरों को समझाते रहेंगे। अब 84 का चक्र पूरा होता है, विनाश सामने खड़ा है। स्वर्ग का मालिक बनने के लिए अपने को लायक बनाना है। वह बनना है याद से। सुबह को उठ बाबा को याद करो। बाबा वन्डर है– आप कैसे आते हो। गीता में कृष्ण का नाम दे दिया है परन्तु यह तो अब जानते हैं– आप सम्मुख बात कर रहे हो। वह है सुनी सुनाई भक्ति मार्ग की बातें। अब तो हम आत्माओं को आप बाप मिले हो, आत्मा को बाप मिलता है तो उस प्यार में आकर मिलते हैं। बच्चे बाप के साथ बहुत प्यार से मिलते हैं। यहाँ तो वह निराकार बाप है गुप्त इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं इनसे मिलते हो तो शिवबाबा को याद कर मिलो। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते हैं। तुम्हारे में भी जो कोई जानते हैं, मेरा बनकर फिर भूल जाते हैं। देह- अभिमान में आ जाते हैं। प्रतिज्ञा भी करते हैं– बाबा मैं आपका हो चुका हूँ। मेल, चाहे फीमेल, दोनों की आत्मा कहती है। परन्तु शरीर में है तो मेल कहता है– आपका बन चुका हूँ। फीमेल कहेगी– मैं बन चुकी हूँ। बाबा हम आपसे पूरा वर्सा लेंगे। पूरा याद करेंगे। याद बिगर कट निकल नहीं सकती, तमोप्रधान से सतोप्रधान बन नहीं सकते। सतयुग में तुमको अखण्ड अटल, सुख-शान्ति, सम्पत्ति का 21 जन्म राज्य मिलता है। स्वर्ग का रचयिता बाप जरूर अपना वर्सा देंगे। गाते भी हैं परवाह है पार ब्रह्म में रहने वाले परमपिता परमात्मा की। वह तो एक ही बार आते हैं। यह भी समझने की बातें हैं ना। कई तो समझते ही नहीं, आगे चल आंख खुलेगी। थोड़ी बड़ी लड़ाई लगे। वास्तव में यह यज्ञ रचा हुआ है। लड़ाई भी है। इस यज्ञ का किसको पता ही नहीं है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा ही था कि विनाश हो। वह फिर यज्ञ रचते हैं कि विनाश न हो, शान्ति हो जाए। यह यज्ञ फिर भी रचेंगे। उनको यह पता नहीं है कि विनाश होगा फिर क्या रहेगा? अभी तुम बच्चे सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। सबकी बेहद की जन्म कहानी को जानते हो। ऐसे कोई नहीं, जो कहे कि परमपिता परमात्मा की हम जीवन कहानी बताते हैं। परमात्मा को ही सब बुलाते हैं ना। घड़ी-घड़ी याद करते हैं। कहते हैं ना– भगवान ने यह बच्चा दिया, यह किया। कोई-कोई यह समझते हैं– जिसकी वस्तु थी, उसने ले ली। ऐसे भी कोई समझदार पुरूष होते हैं। अनेक प्रकार के मनुष्य हैं। अब तुमको बाप मिला है तो बाप को ही याद करना है। याद से ही कमाई होती है। तुम विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे। तुम सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक सारे चक्र को जानते हो। तुम्हारी बुद्धि में हूबहू ऐसा है, जैसे बाप की बुद्धि में है इसलिए उनको ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल कहा जाता है। अभी तुम बाप से वर्सा ले रहे हो। तुम बच्चों को अचल स्थिर रहना चाहिए। ऐसे नहीं कि माया घड़ी-घड़ी आकर डोलायमान करे। शर्मबूटी (छुईमुई) नहीं बनना चाहिए। बाप को याद नहीं करने से मुरझा जाते हैं। बाप को याद करने का पुरूषार्थ तुम कर रहे हो। समय नजदीक आयेगा, फिर तुम देखेंगे हमारा पुरूषार्थ अब पूरा हुआ। अन्त आ गई। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रूहानी पढ़ाई पढ़कर सच्ची कमाई करनी और करानी है। घर चलने का मैसेज सबको देना है। अब कोई भी विकर्म नहीं करना है।
2) सवेरे उठकर प्यार से बाप को याद करना है। छोटी-मोटी बातों में छुईमुई नहीं बनना है। अवस्था को अचल-अडोल बनाना है।
वरदान:
मन्सा के महादान द्वारा हर संकल्प की सिद्धि प्राप्त करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान भव!   
जो बच्चे मन्सा द्वारा शक्तियों का दान करते हैं उन्हें मास्टर सर्वशक्तिवान का वरदान प्राप्त हो जाता है क्योंकि मन्सा द्वारा शक्तियों का दान करने से संकल्प में इतनी शक्ति जमा हो जाती है जो हर संकल्प की सिद्धि प्राप्त होती है। वे अपने संकल्पों को जहाँ चाहें वहाँ एक सेकण्ड में टिका सकते हैं, संकल्प उनके वश होते हैं। वे अपने संकल्पों पर विजयी होने के कारण चंचल संकल्प वाले को भी थोड़े समय के लिए अचल वा शान्त बना सकते हैं।
स्लोगन:
निरन्तर एक बाप के संग में रहो तो संगदोष से बच जायेंगे।