Friday, October 21, 2016

मुरली 22 अक्टूबर 2016

22-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम बहुत ऊंच जाति के हो, तुम्हें ब्राह्मण से देवता बनना है इसलिए गन्दी विकारी आदतों को मिटा देना है”
प्रश्न:
किस बात का कनेक्शन इस पढ़ाई से नहीं है?
उत्तर:
ड्रेस आदि का कनेक्शन इस पढ़ाई से नहीं है, इसमें कोई ड्रेस बदलने की बात ही नहीं। बाप तो आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मा जानती है यह पुराना पतित शरीर है, इसको कैसा भी हल्का सल्का कपड़ा पहनाओ, हर्जा नहीं। शरीर और आत्मा दोनों ही काले हैं। बाप काले (सांवरे) को ही गोरा बनाते हैं।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप के सामने रूहानी बच्चे बैठे हैं, रूहानी पाठशाला में। यह जिस्मानी पाठशाला नहीं है। रूहानी पाठशाला में रूहानी बाप बैठ राजयोग सिखला रहे हैं, रूहानी बच्चों को। तुम बच्चे जानते हो हम फिर से नर से नारायण अथवा देवी-देवता पद प्राप्त करने के लिए रूहानी बाप के पास बैठे हैं। यह है नई बात। यह भी तुम जानते हो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, वे डबल सिरताज थे। लाइट का ताज और रतन जडि़त ताज दोनों थे। पहले-पहले होता है लाइट का ताज, जो होकर गये उनको सफेद लाइट दिखाते हैं। यह है पवित्रता की निशानी। अपवित्र को कभी लाइट नहीं दिखायेंगे। तुम्हारा फोटो निकालें तो लाइट नहीं दे सकते। यह पवित्रता की निशानी देते हैं। लाइट और डार्क। ब्रह्मा का दिन लाइट, ब्रह्मा की रात डार्क। डार्क अर्थात् उन पर लाइट नहीं है। तुम बच्चे जानते हो– बाप ही आकर, इतने जो पतित अर्थात् डार्क ही डार्क हैं, उनको पावन बनाते हैं। अब तो पवित्र राजधानी है नहीं। सतयुग में थे यथा राजा रानी तथा प्रजा, सब पवित्र थे। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। इस चित्र पर तुम बच्चों को बहुत अच्छी रीति समझाना है। यह है तुम्हारी एम आब्जेक्ट। समझाने के लिए और भी अच्छे चित्र हैं इसलिए इतने चित्र रखे जाते हैं। मनुष्य कोई फट से समझते नहीं हैं कि हम इस याद की यात्रा से तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे, फिर मुक्ति वा जीवनमुक्ति में चले जायेंगे। दुनिया में किसको पता नहीं कि जीवनमुक्ति किसको कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब था– यह भी किसको पता नहीं है। अब तुम जानते हो हम बाप से पवित्रता का दैवी स्वराज्य ले रहे हैं। चित्रों पर तुम अच्छी रीति समझा सकते हो। भारत में ही डबल सिरताज वालों की पूजा करते हैं। ऐसा चित्र भी सीढ़ी में है। वह ताज है परन्तु लाइट का ताज नहीं है। पवित्र की ही पूजा होती है। लाइट है पवित्रता की निशानी। बाकी ऐसे नहीं कि कोई तख्त पर बैठने से ही लाइट निकलती है। नहीं, यह पवित्रता की निशानी है। तुम अब पुरूषार्थी हो इसलिए तुम पर लाइट नहीं दे सकते हैं। देवी-देवताओं की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। यहाँ तो कोई का पवित्र शरीर है नहीं इसलिए लाइट दे नहीं सकते। तुम्हारे में कोई तो पूरा पवित्र रहते हैं। कोई फिर सेमी पवित्र रहते हैं। माया के तूफान बहुत आते हैं तो उनको सेमी पवित्र कहेंगे। कोई तो एकदम पतित बन पड़ते हैं। खुद भी समझते हैं हम पतित बन गये हैं। आत्मा ही पतित बनती है, उनको लाइट दे नहीं सकते। तुम बच्चों को यह भूलना नहीं चाहिए कि हम ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे हैं, तो कितनी रॉयल्टी होनी चाहिए। समझो कोई मेहतर है, वह एम.एल.ए. वा एम.पी. बन जाते हैं अथवा पढ़ाई करके कोई पोजीशन पा लेते हैं तो टिपटॉप हो जाते हैं। ऐसे बहुत हो गये हैं। जाति भल वही है– परन्तु पोजीशन मिलने से नशा चढ़ जाता है। फिर ड्रेस आदि भी ऐसी ही पहनेंगे। वैसे अब तुम भी पढ़ रहे हो, पतित से पावन बनने के लिए। वह भी पढ़ाई से डॉक्टर, बैरिस्टर आदि बनते हैं। परन्तु पतित तो हैं ना क्योंकि उन्हों की पढ़ाई कोई पावन बनने के लिए नहीं है। तुम तो जानते हो हम भविष्य में पवित्र देवी-देवता बनते हैं, तो शूद्रपने की आदतें मिटती जायेंगी। अन्दर में यह नशा रहना चाहिए कि हमको परमपिता परमात्मा डबल सिरताज बनाते हैं। हम शूद्र से ब्राह्मण बनते हैं फिर देवता बनेंगे तो फिर वह गन्दी विकारी आदतें मिट जाती हैं। आसुरी चीजें सब छोड़नी पड़ें। मेहतर से एम.पी. बन जाते हैं तो रहन-सहन मकान आदि सब फर्स्टक्लास बन जाते हैं। उन्हों का तो है इस समय के लिए। तुम तो जानते हो कि हम भविष्य में क्या बनने वाले हैं। अपने साथ ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए। हम क्या थे, हम अभी क्या बने हैं। तुम भी शूद्र जाति के थे, अब विश्व के मालिक बनते हो। जब कोई ऊंच पद पाता है तो फिर वह फखुर रहता है। तो तुम भी थे कौन? (पतित) छी-छी थे। अब तुमको भगवान पढ़ाकर बेहद का मालिक बनाते हैं। यह भी तुम समझते हो परमपिता परमात्मा जरूर यहाँ ही आकर राजयोग सिखलायेंगे। मूलवतन वा सूक्ष्मवतन में तो नहीं सिखलायेंगे। दूरदेश के रहने वाली आत्मायें तुम सब हो, यहाँ आकर पार्ट बजाती हो। 84 जन्मों का पार्ट बजाना ही है। वह तो कह देते हैं 84 लाख योनियाँ। कितना घोर अन्धियारे में हैं। अभी तुम समझते हो– 5 हजार वर्ष पहले हम देवीदेवता थे। अब तो पतित बन गये हैं। गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाओ। परन्तु समझते नहीं हैं। अभी बाप स्वयं पावन बनाने आये हैं। राजयोग सिखा रहे हैं। पढ़ाई बिगर कोई ऊंच पद पा नहीं सकते। तुम जानते हो बाबा हमको पढ़ाकर नर से नारायण बनाते हैं। एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है। प्रजा पद कोई एम आब्जेक्ट नहीं है। चित्र भी लक्ष्मी-नारायण का है। ऐसे चित्र कहाँ रख पढ़ाते होंगे? तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है। हम 84 जन्म ले पतित बने हैं। सीढ़ी का चित्र बड़ा अच्छा है। यह पतित दुनिया है ना, इसमें साधू सन्त सब आ जाते हैं। वह खुद भी गाते रहते हैं पतितपावन आओ। पतित दुनिया को पावन दुनिया नहीं कहेंगे। नई दुनिया है पावन दुनिया। पुरानी पतित दुनिया में कोई पावन रह न सके। तो तुम बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए। हम गॉड फादरली स्टूडेन्ट हैं, ईश्वर हमको पढ़ाते हैं। गरीबों को ही बाप आकर पढ़ाते हैं। गरीबों के कपड़े आदि मैले होते हैं ना। तुम्हारी आत्मा तो पढ़ती है ना। आत्मा जानती है यह पुराना शरीर है। इनको तो हल्का सल्का कोई भी कपड़ा पहनाया तो हर्जा नहीं है। इसमें कोई ड्रेस आदि बदलने की वा भभका करने की बात नहीं है। ड्रेस के साथ कोई कनेक्शन ही नहीं। बाप तो आत्माओं को पढ़ाते हैं। शरीर तो पतित है, इन पर कितना भी अच्छा कपड़ा पहनो। परन्तु आत्मा और शरीर पतित है ना। कृष्ण को सांवरा दिखाते हैं ना। उनकी आत्मा और शरीर दोनों काले थे। गांवड़े का छोरा था, तुम सब गांवड़े के छोरे थे। दुनिया में मनुष्य मात्र निधनके हैं। बाप को जानते ही नहीं। हद का बाप तो सबको है। बेहद का बाप तुम ब्राह्मणों को ही मिला है। अब बेहद का बाप तुमको राजयोग सिखला रहे हैं। भक्ति और ज्ञान। भक्ति का जब अन्त हो तब फिर बाप आकर ज्ञान दे। अभी है अन्त। सतयुग में यह कुछ भी होता नहीं। अभी पुरानी दुनिया का विनाश आकर पहुँचा है। पावन दुनिया को स्वर्ग कहा जाता है। चित्रों में कितना क्लीयर समझाया जाता है। राधे कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। यह भी किसको पता नहीं है। तुम जानते हो दोनों ही अलग-अलग राजधानी के थे। तुमने स्वर्ग का स्वयंवर भी देखा है। पाकिस्तान में तुम बच्चों को बहलाने के लिए सब साज थे, सब साक्षात्कार तुमको होते थे। अभी तुम जानते हो– हम राजयोग सीख रहे हैं, यह भूलना नहीं चाहिए। भल रसोई का काम करते हैं अथवा बर्तन मांजते हैं परन्तु पढ़ती तो सबकी आत्मा है ना। यहाँ सब आकर बैठते हैं इसलिए बड़े-बड़े आदमी आते नहीं हैं– समझते हैं यहाँ तो सब गरीब ही हैं, इसलिए लज्जा आती है। बाप तो है ही गरीब निवाज। कोई-कोई सेन्टर्स पर मेहतर भी आते हैं। कोई मुसलमान भी आते हैं। बाप कहते हैं- देह के सब धर्म छोड़ो। हम गुजराती हैं, हम फलाना हैं– यह सब देह-अभिमान है। यहाँ तो आत्माओं को परमात्मा पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं– मैं आया भी हूँ साधारण तन में। तो साधारण के पास साधारण ही आयेंगे। यह तो समझते हैं यह तो जौहरी था। बाप खुद रिमाइन्ड कराते हैं कि कल्प पहले भी हमने कहा था कि हम साधारण बूढ़े तन में आता हूँ। बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्तिम जन्म में मैं प्रवेश करता हूँ। इनको कहते हैं कि तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। सिर्फ एक अर्जुन को तो घोड़े गाड़ी के रथ में बैठ ज्ञान नहीं दिया ना, उसे पाठशाला नहीं कहा जायेगा। न युद्ध का मैदान है, यह पढ़ाई है। बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। हमको पूरा पढ़कर डबल सिरताज बनना है। अभी तो कोई ताज नहीं है। भविष्य में डबल ताजधारी बनना है। द्वापर से लाइट चली जाती है तो फिर सिंगल ताज रहता है। सिंगल ताज वाले डबल ताज वालों को पूजते हैं। यह भी निशानी जरूर होनी चाहिए। बाबा चित्रों के लिए डायरेक्शन देते रहते हैं तो चित्र बनाने वालों को तो मुरली पर बहुत अटेन्शन देना पड़े। चित्रों पर किसी को भी समझाना बड़ा सहज होता है। जैसे कॉलेज में नक्शे पर दिखायेंगे तो बुद्धि में आ जायेगा। यूरोप उस तरफ है, आइलैण्ड है, लण्डन उस तरफ है। नक्शा ही नहीं देखा होगा तो उनको क्या पता यूरोप कहाँ है। नक्शा देखने से झट बुद्धि में आ जायेगा। अब तुम जानते हो ऊपर में हैं पूज्य डबल सिरताज देवी-देवतायें। फिर नीचे आते हैं तो पुजारी बनते हैं। सीढ़ी उतरते हैं ना। यह सीढ़ी तो बड़ी सहज है। जो कोई भी समझ सकते। परन्तु कोई-कोई की बुद्धि में कुछ बैठता ही नहीं है। तकदीर ही ऐसी है। स्कूल में पास, नापास तो होते ही हैं। तकदीर में नहीं है तो पुरूषार्थ भी नहीं होता, बीमार पड़ जाते हैं। पढ़ न सके। कोई तो पूरा पढ़ते हैं। परन्तु फिर भी वह है जिस्मानी पढ़ाई, यह है रूहानी पढ़ाई। इसके लिए सोने की बुद्धि चाहिए। बाप सोना जो एवर प्योर है, उसको याद करने से तुम्हारी आत्मा सोनी बनती जायेगी। कहा जाता है कि यह तो जैसे एकदम ठिक्कर बुद्धि हैं। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे। वह तो स्वर्ग था। यह भूल गये हैं कि भारत स्वर्ग था। यह भी कहाँ प्रदशनी में समझा सकते हो, फिर रिपीट भी करा सकते हो। प्रोजेक्टर में यह नहीं हो सकता है। पहले-पहले तो यह त्रिमूर्ति, लक्ष्मी-नारायण और सीढ़ी का चित्र बहुत जरूरी है। यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र में सारा 84 जन्मों का नॉलेज आ जाता है। बच्चों का सारा दिन यही चिंतन चलना चाहिए। हर एक सेन्टर में मुख्य चित्र तो जरूर रखने हैं। चित्रों पर अच्छा समझ सकेंगे। ब्रह्मा द्वारा यह राजधानी स्थापन हो रही है। हम हैं प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। आगे हम शूद्र वर्ण के थे, अभी हम ब्राह्मण वर्ण के बने हैं फिर देवता बनना है। शिवबाबा हमको शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। हमारी एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे फिर यह सीढ़ी कैसे उतरे। क्या से क्या बन जाते हैं। एकदम जैसे बुद्धू बन जाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण भारत में राज्य करते थे। भारतवासियों को पता होना चाहिए ना। फिर क्या हुआ, कहाँ चले गये। क्या इन्हों पर कोई ने जीत पाई? उन्होंने लड़ाई में कोई को हराया? न कोई से जीता, न हारा। यह तो सारी माया की बात है। रावण राज्य शुरू हुआ और 5 विकारों में गिर राजाई गवाई, फिर 5 विकारों पर जीत पाने से वह बनते हैं। अभी है रावण राज्य का भभका। हम गुप्त रीति अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। तुम कितने साधारण हो। पढ़ाने वाला कितना ऊंच ते ऊंच है और निराकार बाप पतित शरीर में आकर बच्चों को ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनाते हैं। दूरदेश से पतित दुनिया पतित शरीर में आते हैं। सो भी अपने को लक्ष्मी-नारायण नहीं बनाते, तुम बच्चों को बनाते हैं। परन्तु पूरा पुरूषार्थ नहीं करते हो बनने के लिए। दिन-रात पढ़ना और पढ़ाना है। बाबा दिन प्रतिदिन बड़ी सहज युक्तियाँ समझाते रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण से ही शुरू करना चाहिए। उन्हों ने 84 जन्म कैसे लिये। फिर अन्तिम जन्म में पढ़ रहे हैं फिर उन्हों की डिनायस्टी बनती है। कितनी समझाने की बातें हैं। चित्रों के लिए बाबा डायरेक्शन देते हैं। कोई चित्र तैयार किया, झट बाबा के पास भाग आना चाहिए। बाबा करेक्शन कर सब डायरेक्शन दे देंगे। बाबा कहते मैं सांवलशाह हूँ, हुण्डी भर जायेगी। कोई बात की परवाह नहीं है। इतने ढेर बच्चे बैठे हैं। बाबा जानते हैं किससे हुण्डी भरा सकते हैं। बाबा का ख्याल है जयपुर को जोर से उठाना है। वहाँ ही हठयोगियों का म्युजियम है। तुम्हारा फिर राजयोग का म्युजियम ऐसा अच्छा बना हुआ हो जो कोई भी आकर देखे। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पवित्र ज्ञान को बुद्धि में धारण करने के लिए अपने बुद्धि रूपी बर्तन को सोने का बनाना है। याद से ही बर्तन सोने का होगा।
2) अभी ब्राह्मण बने हैं इसलिए शूद्रपने की सब आदतें मिटा देनी हैं। बहुत रॉयल्टी से रहना है। हम विश्व के मालिक बन रहे हैं– इस नशे में रहना है।
वरदान:
सर्व आत्माओं के प्रति स्नेह और शुभचिन्तक की भावना रखने वाले देही-अभिमानी भव
जैसे महिमा करने वाली आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, ऐसे ही जब कोई शिक्षा का इशारा देता है तो उसमें भी उस आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिंतन की भावना रहे-कि यह मेरे लिए बड़े से बड़े शुभचिन्तक हैं-ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी। अगर देही-अभिमानी नहीं हैं तो जरूर अभिमान है। अभिमान वाला कभी अपना अपमान सहन नहीं कर सकता।
स्लोगन:
सदा परमात्म प्यार में खोये रहो तो दु:खों की दुनिया भूल जायेगी।