Thursday, October 6, 2016

मुरली 7 अक्टूबर 2016

07-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– अपनी बुद्धि को ज्ञान मंथन में बिजी रखो तो सब फिकरातों से फारिग हो जायेंगे, सदा खुशी बनी रहेगी”
प्रश्न:
जो अपने को शिवबाबा के यज्ञ का सर्वेन्ट समझते हैं उनकी निशानी सुनाओ?
उत्तर:
शिवबाबा इस ब्रह्मा मुख से जो कुछ बोलेंगे, उसे वह फौरन मान लेंगे। जो कहे– उसे मानना, इसको ही श्रीमत कहा जाता है। श्री-श्री शिवबाबा की मत पर चलने से ही तुम श्रेष्ठ बनते हो। श्रेष्ठ बनना माना विजय माला में आना।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए.....   
ओम् शान्ति।
सालिग्रामों प्रति शिव भगवानुवाच। रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। अभी तुम बच्चे जान गये हो कि हमको यहाँ आत्मा समझकर बैठना है। सारी दुनिया में एक भी ऐसा मनुष्य नहीं होगा जो अपने को आत्मा समझते हो। आत्मा क्या है, यही नहीं जानते तो परमात्मा को फिर कैसे जानेंगे। बाप द्वारा ही तुमको आत्मा की समझानी मिलती है कि मूल क्या चीज है। मनुष्यों को कुछ भी पता न होने के कारण कितना दु:खी हैं। तुम बच्चे जानते हो इस ड्रामा अथवा सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष की आयु 5 हजार वर्ष है। जैसे आम का बीज है, वह चैतन्य होता तो समझाता कि हम बीज हैं, हमसे यह झाड़ ऐसे निकला। परन्तु वह है जड़। चैतन्य झाड़ एक ही है। शुरू से लेकर अन्त तक इस सारे झाड़ का तुमको ज्ञान मिला हुआ है। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझ सकते हो। बाप कहते हैं मैं इस मनुष्य सृष्टि का बीज सत चित आनंद स्वरूप हूँ। मुझे ज्ञान का सागर कहा जाता है। यह निराकार के लिए महिमा है। तुम जानते हो बाप की यह महिमा सबसे न्यारी है। मनुष्य तो बाप की महिमा को बिल्कुल ही नहीं जानते। भल यह लक्ष्मी-नारायण आदि देवतायें हैं। उन्हों को भी यह नॉलेज नहीं है। यह ड्रामा का ज्ञान तुमको मिला है। तुम जानते हो यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है फिर देवता बनेंगे तो यह ज्ञान रहेगा नहीं। वन्डर है ना। तुम इस ड्रामा के एक्टर्स हो ना। तुमको रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। बाकी न शूद्र वर्ण को, न देवता वर्ण को यह ज्ञान है। ऐसे नहीं कि ज्ञान परम्परा चलता है। जैसे त्योहारों के लिए कहते हैं परम्परा से चलते आये हैं। अभी तुम समझते हो सतयुग में तो इन त्योहारों को कोई जानते ही नहीं। वहाँ कुछ भी याद नहीं रहेगा। वहाँ तो राज्य करते हैं। तुम हर एक की बुद्धि का ताला खुला हुआ है। मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, प्रिन्सीपल एक्टर को तुम जानते हो। तुमको कितनी अच्छी नॉलेज मिलती है, इस नॉलेज को जो नहीं जानते हैं, वह हैं बेसमझ। तुम भी बेसमझ थे। अब देवता बन रहे हो। यह नॉलेज जिसकी बुद्धि में टपकती रहेगी उनको अपार खुशी होगी। तुम्हारे सिवाए कोई नहीं जो यह नॉलेज समझ सकते। गॉड फादर को ही वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी, नॉलेजफुल कहा जाता है, नॉलेज किसकी है? सभी वेदों शास्त्रों, सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज उसको है। शास्त्रों में भी रचता और रचना की नॉलेज नहीं है, तब तो ऋषि मुनि आदि कहते आये हैं हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं। समझाने वाला एक ही है तो और कोई जानेंगे कैसे। यह नॉलेज सिवाए तुम बच्चों के कोई दे न सके। तुमको देने वाला फिर है बाप। वह कितना बड़ा नॉलेजफुल है। कितना तुम मर्तबा पाते हो। कितनी खुशी होनी चाहिए। हम बेहद के बाप की सन्तान हैं। ज्ञान से बुद्धि भरपूर होनी चाहिए। ऐसी कोई चीज नहीं जिसको तुम नहीं जानते हो। अभी तुम मास्टर नॉलेजफुल बन रहे हो। जो आत्मा तमोप्रधान बनी है वह बाप को याद करते-करते सतोप्रधान बन जायेगी। नम्बरवार तो होते हैं ना। कोई की तमो से रजो बुद्धि बनी होगी, कोई की रजो से सतो बनी होगी। अभी सतोप्रधान बुद्धि किसकी है नहीं। सतोप्रधान जब बन जायेगी तब तुम्हारी कर्मातीत अवस्था हो जायेगी। फिर तो नई दुनिया चाहिए– राज्य करने के लिए। यह यज्ञ जब पूरा होता है तब इसमें सारी पुरानी दुनिया की आहुति पड़ जाती है। फिर पढ़ाई भी पूरी हो जाती है– नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। जैसे स्कूल में स्टूडेन्ट समझते हैं हम यह इम्तहान पास कर फिर उस क्लास में ट्रांसफर होंगे। तुम्हारी भी जब कर्मातीत अवस्था होगी तो इस मृत्युलोक से ट्रांसफर हो अमरपुरी में चले जायेंगे। तुम जानते हो– अभी यहाँ से ट्रॉसफर होने का है। पवित्र होकर अमरलोक में चले जायेंगे। असुल हम शान्तिधाम के रहवासी थे फिर पार्ट बजाते-बजाते अमरलोक से मृत्युलोक में आकर पहुँचे हैं। तो यह सारी नॉलेज बुद्धि में रहने से खुशी रहेगी। सिवाए नॉलेज के और कुछ सूझेगा ही नहीं। अभी हम पढ़कर नई दुनिया के मालिक बनेंगे, यह भी समझाना चाहिए। यहाँ हैं ही पतित। देवता तो कोई है नहीं। मनुष्य से देवता कौन बनायेगा? बाप ही बना सकते हैं। अभी तुम समझा सकते हो बरोबर स्वर्ग था, जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उसकी स्थापना किसने की? हेविनली गॉड फादर ने पैराडाइज स्थापन किया। जहाँ देवी-देवता राज्य करेंगे तो और कोई धर्म नहीं होगा। यह बड़ा बेहद का नाटक है। तुम चैतन्य हो ना। जानते हो इस झाड़ का बीज ऊपर में है। बाप भी इम्प्रैसिबुल अविनाशी है। तुम भी इम्प्रैसिबुल हो। अभी सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया है। इस समय सब मनुष्य काँटें मिसल बन गये हैं। काँटों का जंगल है ना। सब एक दो को दु:ख देने वाले हैं। बाप ही बागवान है, उनको खिवैया भी कहते हैं। तुम भी बोट चलाने सीख रहे हो। हर एक की नईया पार कैसे हो, सो तुमको बैठ समझाते हैं। नईया कोई शरीर नहीं है। नईया आत्मा और शरीर दो चीज की बनी हुई है। गाते भी हैं नईया मेरी पार लगाओ। अभी आत्मा भी पतित है तो शरीर भी पतित है। अब पार कैसे हो, और कहाँ जाये? अभी तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन ...सतयुग से लेकर कलियुग तक सब राजों को जान गये हो। फिर भी बुद्धि में यह क्यों नहीं रहता! तुम भूल क्यों जाते हो? सदैव बुद्धि में यह टपकता रहे तो तुम खुशी में रहेंगे, फिकर से फारिग हो जायेंगे। तुम जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको ले जाने। जो नॉलेज बाप में है वह हमको दे रहे हैं। यह हैं बिल्कुल नई बातें, जो बाप के सिवाए और कोई समझा नहीं सकते। निराकार बाप साकार द्वारा सुनाते हैं। तुम भी इस शरीर के द्वारा सुनते हो। तो बाप तुम बच्चों को भी आप समान बनाते हैं। जो बाप की महिमा वह तुम्हारी भी होनी चाहिए। कोई फर्क नहीं है। सिर्फ बाप कहते हैं– हम जन्म-मरण में नहीं आता हूँ, तुम जन्म-मरण में आते हो। तुम मुझे कहते हो ज्ञान का सागर, सुख का सागर... तो जरूर मैं तुमको ज्ञान दूँगा, कल्प-कल्प देता हूँ। तुम समझ गये हो बरोबर 84 का चक्र खाए अभी हम अन्त में हैं। फिर बाप हमको पहला नम्बर में ले जाते हैं। यह नॉलेज है ना। नॉलेज है सोर्स आफ इनकम। जो जितना-जितना पढ़ता है, उनकी इनकम वैसी होती है। यह नॉलेज भी है, धन्धा भी है। तुम कूड़ा-किचड़ा देते हो बाबा को। जब कोई मरता है तो करनीघोर को देते हैं ना। यहाँ तुमको जीते जी देना है। वास्तव में बात अभी की है। बाप कहते हैं– तुम्हारे पास जो कुछ है, मरने से पहले दे दो। तुम ट्रस्टी बन जाओ। नहीं तो तुम्हारे पास जो पड़ा होगा वह अन्त में याद आयेगा। जैसे कोई साहूकार आदमी है, वह ज्ञान नहीं लेंगे। उनकी साहूकारी भी एक जन्म के लिए है ना। शरीर तो छोड़ ही देंगे, पता नहीं कर्मो अनुसार कहाँ जाकर जन्म लेंगे। तुम तो जानते हो हम अभी जितना पुरूषार्थ करेंगे उतना प्रालब्ध पायेंगे। इस समय हैं सब जिस्मानी सर्विस करने वाले। रूहानी सर्विस को कोई जानते ही नहीं। सुप्रीम रूह आकर तुमको नॉलेज समझाते हैं। वह है सुख का सागर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता। उनकी शिव जयन्ती भी मनाते हैं, परन्तु बुद्धि में नहीं आता है। अभी तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान है कि बाबा हमको फिर 5 हजार वर्ष बाद आकर सुनायेंगे। सतयुग में यह ज्ञान नहीं होगा तो कलियुग में फिर कहाँ से आयेगा। दुनिया में यह कोई नहीं जानते कि लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर हम क्यों बनाते हैं। यह कौन थे, इन्हों को यह राज्य किसने दिया? यह कर्मो का फल है ना। बाप बैठ अभी तुमको कर्म, अकर्म, विकर्म की गति समझाते हैं। भगवानुवाच है ना। गीता से ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। वहाँ मनुष्य थोड़े होते हैं। बाकी सब जरूर मुक्ति को पाते होंगे। महाभारत लड़ाई भी लिखी हुई है, बहुत आफतें आयेंगी। नेचुरल कैलेमिटीज आयेगी। पुरानी दुनिया खत्म होगी। यह वही बाम्बस, मिसाइल्स हैं, यह वही विनाश का समय है जबकि भगवान ने आकर रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा था, जिससे विनाश ज्वाला निकली। भगवान यज्ञ रचते हैं सुख-शान्ति के लिए। बाकी दु:ख अशान्ति का जरूर विनाश होना चाहिए। इस ईश्वरीय ज्ञान यज्ञ में सारी सृष्टि स्वाहा हो जायेगी। यह बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं। हम ब्राह्मण हैं। इस शिवबाबा के यज्ञ में हम ब्राह्मण सर्वेन्ट हैं। हम हैं सच्चे-सच्चे मुख वंशावली ब्राह्मण। तुम बच्चों को बाप जो मुख से कहे वह मानना चाहिए। श्रीमत पर ही हमको चलना है। यह भी तुम जानते हो श्री-श्री शिवबाबा की मत पर हम श्रेष्ठ बनकर माला के दाने बनेंगे। माला के दाने कहा जाता है सिजरे को। सिजरा होता है ना फिर वह बढ़ता जाता है। बाबा ने खुद सिजरा बनाया है, यह भी सिजरा है। ऊपर में है निराकारी शिवबाबा, फिर हैं आत्मायें। निराकारी सिजरा फिर साकारी होता है। पहले-पहले नम्बर में है प्रजापिता, वह जिस्मानी वह रूहानी। रूहानी बाप आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचते हैं। कहते भी हैं पतित दुनिया को आकर पावन बनाओ। प्रलय तो कभी होती नहीं। वर्ल्ड की हिस्ट्री जॉग्राफी रिपीट होती है। पुरानी दुनिया सो फिर नई बनती है। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो नई दुनिया के लिए। यह बेहद की नॉलेज बेहद का बाप ही देते हैं। हद का वर्सा होते भी बेहद के बाप को याद करते हैं। हे भगवान कहते हैं ना। जब कोई मरते हैं तो कहते हैं– गॉड फादर को याद करो तो दो फादर सिद्ध होते हैं ना। सभी आत्मायें ब्रदर्स हैं। आत्मा ही पुकारती है हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता, हे लिबरेटर आओ, हमको घर जाने के लिए गाइड करो। हमको घर याद है परन्तु जा नहीं सकते क्योंकि माया ने पंख तोड़ डाले हैं। कोई घर वापिस जा नहीं सकते। अभी तुमको अपनी ज्योत को आपेही जगाना है। बाप को याद करने से घृत पड़ जायेगा। ज्योत एकदम बुझ नहीं सकती। कोई मरता है तो दीवा जगाते हैं। खास वहाँ एक मुकरर रखते हैं कि इसमें घृत डालते जाओ, नहीं तो अन्धियारा हो जाए। अभी तो तुमको योगबल से घृत डालना है तो घोर अन्धियारे से सोझरा, दीप माला हो जायेगी। दीपमाला सतयुग में होगी। यहाँ नहीं। उत्सव जो भी मनाये जाते हैं, उनका भी रहस्य तुमने समझा है। वह तो कुछ भी समझते नहीं। फिर भी समझाया जाता है यह राखी आदि है पवित्रता में रहने के लिए। मनुष्यों को ज्ञान का इन्जेक्शन ऐसी युक्ति से लगाना चाहिए जो फील करें कि बरोबर हम तो भ्रष्टाचारी हैं। श्रेष्ठाचारी बाप ही बनाते हैं। बाप कहते हैं– मनमनाभव– तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। युक्ति से तीर लगाना चाहिए, बात करने की ताकत चाहिए। अभी तुम सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति पाए माया पर जीत पाते हो। फिर तुम्हें राज्य-भाग्य मिल सकता है, सिवाए बाप के और कोई जीत पहना न सके। बाप कहते हैं देखो– बच्चे तुमको क्या से क्या बनाता हूँ। अब ऐसे बाप को निरन्तर याद जरूर करना है तो विकर्म विनाश होंगे। बाप कहते हैं– मामेकम् याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। जैसा चिंतन किया जाता है वैसा बन जाते हैं, तो बाप कहते हैं मुझे याद करते-करते तुम भी बन जायेंगे। याद से विकर्म भी विनाश होंगे और अपने घर वापिस चले जायेंगे। यह नॉलेज सोर्स आफ इनकम है। हेल्थ वेल्थ है तो हैप्पी भी है। वहाँ कितनी बड़ी आयु होती है। योगेश्वर कृष्ण को नहीं कहेंगे। योगेश्वर तुम हो। ईश्वर तुमको योग सिखा रहे हैं। यह राजयोग है। योग लगाकर तुम राज्यभाग्य पाते हो। ईश्वर तुमको योग सिखाए राजाई का वर्सा देते हैं। तुमको राज्य किसने दिया? बाप ने। बाप कहते हैं- अल्फ को याद करो। बाप और वर्से को याद करो तो पाप कटते जायेंगे। यह तो बहुत सहज है। तुम्हारी बुद्धि में कितना ज्ञान है। भगवान के बच्चे मास्टर गॉड ठहरे। बाप के पास बैठ थोड़ेही जाना है। हमको तो पार्ट बजाना है, इसमें देही-अभिमानी बनना है। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप जो ज्ञान देते हैं, उसका ही सदैव मंथन करना है। युक्ति से बातें करनी है। बहुत प्यार से समझाना है।
2) अपने पास जो कुछ है वह जीते जी बाप को देकर ट्रस्टी बन एक बाप को याद करना है।
वरदान:
ड्रामा की प्वाइंट के अनुभव द्वारा सदा साक्षीपन की स्टेज पर रहने वाले अचल अडोल भव
ड्रामा की प्वाइंट के जो अनुभवी हैं वे सदा साक्षीपन की स्टेज पर स्थित रह एकरस, अचल-अडोल स्थिति का अनुभव करते हैं। ड्रामा के प्वाइंट की अनुभवी आत्मा कभी भी बुरे में बुराई को न देख अच्छाई ही देखेगी अर्थात् स्व-कल्याण का रास्ता दिखाई देगा। अकल्याण का खाता खत्म हुआ। कल्याणकारी बाप के बच्चे हैं, कल्याणकारी युग है-इस नॉलेज और अनुभव की अथॉरिटी से अचल- अडोल बनो।
स्लोगन:
जो समय को अमूल्य समझकर सफल करते हैं, वह समय पर धोखा नहीं खाते।