Tuesday, January 3, 2017

मुरली 4 जनवरी 2017

04-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– तुम्हें इस कांटों के जंगल को दैवी फूलों का बगीचा बनाना है, नई दुनिया का निर्माण करना है”
प्रश्न:
तुम बच्चे बाप के साथ कौन सी सेवा करते हो जो कोई भी नहीं करता?
उत्तर:
सारे विश्व में सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी की स्थापना करने की सेवा तुम बच्चे ही बाप के साथ-साथ करते हो जो कोई भी नहीं कर सकता। तुम अभी नई दुनिया का फाउन्डेशन लगा रहे हो तो जरूर इस पुरानी दुनिया का विनाश होगा। दैवी फूलों का बगीचा बनाना, कांटों के जंगल को खत्म करना– यह बाप का ही काम है।
गीत:–
ओम् नमो शिवाए...
ओम् शान्ति।
जब कोई साधू सन्त या विद्वान लोग भाषण करते हैं तो पहले कोई न कोई को नमस्ते करते हैं। कोई शिवाए नम: कहते, कोई कृष्ण नम: कहते, कोई गणेश नम: भी कहते हैं। परन्तु नमस्ते तो ऊंचे ते ऊंचे एक बाप को ही करना चाहिए। बच्चे जानते हैं ऊंचे ते ऊंचा एक भगवान है, उसका नाम शिव है। गाते भी हैं शिवाए नम:। शिव को हमेशा बाबा कहते हैं। शिवबाबा पहले-पहले रचना रचते हैं। रचयिता एक है, रचना भी वास्तव में एक है। रचता बाप को और रचना दुनिया को कहा जाता है। बाप जो दुनिया क्रियेट करते हैं सो जरूर नई ही क्रियेट करेंगे। परन्तु बाप जरूर पुरानी दुनिया में ही आयेंगे, इसलिए बाप को पतित-पावन कहा जाता है। सारी दुनिया के मनुष्य मात्र उसमें भी खास भारतवासी बाप को याद करते हैं कि पतित-पावन आओ। जब सब दु:खी और पतित हो जाते हैं तब ही बाप को पुकारते हैं। परन्तु दु:खी कब हुए और याद कब से करते हैं, यह नहीं जानते। बाप बैठ समझाते हैं– आगे भी समझाया था कि हे बच्चे तुम अपने दु:ख-सुख के जन्मों को नहीं जानते हो। मैं जो ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल हूँ वह बैठ तुमको समझाता हूँ। शिवबाबा कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप भी हूँ, मुझे पतित-पावन भी वहते हैं तो जरूर पतित दुनिया भी है, पावन दुनिया भी है। पावन दुनिया को हेविन अथवा गार्डन कहा जाता है फिर जब दुनिया पतित होती है तो कांटो का जंगल कहा जाता है। बेशुमार मनुष्य हो जाते हैं। माया का राज्य शुरू हो जाता है। किसको भी समझाना है कि आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत गार्डन आफ गॉड था। मनुष्य बहुत सुखी थे। नई दुनिया में सिर्फ भारत ही था। कोई भी खण्ड का नाम निशान भी नहीं था। नये भारत में फिर नई देहली भी थी, जिसको परिस्तान भी कहा जाता था। भारत हीरे जैसा था, उसको ही सुखधाम भी कहते थे। अब तो भारत पुराना है, उनको ही दु:खधाम कहते हैं। अब बाबा समझाते हैं आजकल देहली में विश्व नव निर्माण प्रदर्शनी कर रहे हैं, मनुष्यों को समझाने के लिए कि यह विश्व नया कैसे होता है। चित्र सामने रखकर और कोई समझा न सके, न कोई ऐसी विश्व नव निर्माण प्रदर्शनी खोल सके। यह पहला बार ही है जो ब्रह्माकुमार कुमारियां बैठ समझाते हैं। भारत नया था तब ही सुखी थे। लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। विष्णुपुरी नई दुनिया थी। नई दुनिया का निर्माण यानी फाउन्डेशन लगाना– यह परमपिता परमात्मा का ही काम है। भारतवासी जो खुद ही अपने को पतित भ्रष्टाचारी कहते हैं वे नये विश्व का निर्माण कर न सकें। तुम जानते हो– वो लोग क्या-क्या फाउन्डेशन लगाते हैं। बाप कहते हैं मैं स्वर्ग नई दुनिया का फाउन्डेशन लगाता हूँ। पुरानी दुनिया का विनाश होना है। यह है कांटो की दुनिया। मनुष्य जैसे कांटे हैं। एक दो को दु:ख देते रहते हैं। भारत गार्डन आफ अल्लाह था। गॉड ने स्थापन किया था। शिवाए नम: भी कहते हैं। शिवबाबा ने कैसे स्थापन किया? बरोबर ब्रह्मा द्वारा गार्डन आफ अल्लाह वा दैवी फूलों का बगीचा स्थापन कर रहे हैं। कांटो के जंगल को बदल दैवी स्वराज्य स्थापन करेंगे। बच्चों को निमंत्रण देते हैं। यहाँ भी बच्चों ने निमंत्रण दिया कि बाबा आकर देखो कि हम चित्रों पर कैसे समझाते हैं कि नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश कैसे हो रहा है। आप आकर देखो और श्रीमत दो। बुला रहे हैं। अब इन चित्रों पर किसको समझाना तो बहुत सहज है। ऊपर में परमपिता परमात्मा का चित्र है। शिवाए नम: सबसे ऊंच है। वह फिर नई दुनिया रचते हैं। नये भारत में इन देवी-देवता, लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य था। तो ऊंचे ते ऊंचा परमपिता परमात्मा, वह फिर से सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी की स्थापना करते हैं– ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियों द्वारा, वह सतयुग आदि में थे तो स्थापना जरूर कलियुग अन्त में ही की होगी। सो अब फिर संगमयुग पर कर रहे हैं। वास्तव में सभी आत्मायें शिव की सन्तान हैं और प्रजापिता ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। हर एक आत्मा में पार्ट सारा नूंधा हुआ है। पहले पार्टधारी यह हैं– जिसको पूरे 84 जन्म लेने हैं। पुनर्जन्म लेने का रसम तो शुरू से चलता आया है। सतोप्रधान फिर सतो रजो तमो बने हैं। सतोप्रधान जब थे तो सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, 16 कला सम्पूर्ण थे। फिर 14 कला बने। इन दो युगों को गार्डन ऑफ फ्लावर कहा जाता है। वह था सुखधाम। यह चित्रों पर समझाना बड़ा सहज है। ऊपर में शिवबाबा, जिस द्वारा विश्व नव-निर्माण हो रहा है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर... उनको रचने वाला यह शिवबाबा है। यह बच्चों को समझाना है कि नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश होता है। अब इतने सब धर्म हैं– सिर्फ एक देवी-देवता धर्म नहीं है। वह प्राय: लोप है। जो देवी-देवता धर्म वाले थे वह अपने को हिन्दू कहला रहे हैं क्योंकि सतयुग में सब पावन थे, अब सब पतित हैं। बाबा का नाम ही है पतित-पावन। अब पतित बनाने वाला कौन है? यह बाप ही समझाते हैं। बच्चे फिर और भाई बहनों को समझाते हैं। पतित बनाने वाला है रावण, जिसको वर्ष-वर्ष जलाते हैं, रावण का कोई रूप नहीं है। वह है गुप्त। 5 विकार स्त्री के, 5 विकार पुरूष के। भारत का बड़े ते बड़ा दुश्मन है ही रावण, जिसने भारत को कौड़ी मिसल बनाया है। अब इस रावण पर जीत पहनो मेरी मत द्वारा। इस समय सब पतित बन गये हैं। इस कारण परमपिता परमात्मा की ही श्रीमत चाहिए। श्रीमत है भगवान की। भगवानुवाच, हे बच्चों अथवा आत्मायें, तुम सारा समय देह-अभिमानी रहे हो। अब देही-अभिमानी बनो। तुम आत्मा अमर हो। तुम ही शरीर छोड़ती और लेती हो। बाप कहते हैं– हे ब्रह्मा तुम अपने को नहीं जानते हो। तुम्हारे लिए ही गाते हैं– आधाकल्प ब्रह्मा का दिन, आधाकल्प ब्रह्मा की रात। तुम बच्चे इन बातों को समझे हुए हो तब तो प्रदर्शनी खोली है। अब इन चित्रों द्वारा समझाओ। अब यह ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियां परमपिता परमात्मा द्वारा अपना वर्सा ले रहे हैं। गाया जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश... उस सूर्य की बात नहीं। मैं ज्ञान सूर्य इस समय ज्ञान वर्षा कर रहा हूँ, जिससे तुम पतित से पावन बन रहे हो। बरसात का पानी कोई को पावन नहीं बनायेगा। मुझे पतित-पावन कहते हैं– मेरे पास ही नॉलेज है कि पतित से पावन और फिर पावन से पतित कैसे बनते हैं। पावन नई दुनिया और पतित पुरानी दुनिया को कहा जाता है। पतित बनाता है रावण। रावण को शैतान और राम को भगवान कहा जाता है। वह राम सीता वाला नहीं। तुम बच्चों को यह स्थापना और विनाश का राज भी समझाना है। इसके लिए यह विश्व नव निर्माण प्रदर्शनी है। कोई भी शास्त्र में यह नहीं है कि परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा सुखधाम की स्थापना करते हैं। रावण फिर दु:खधाम बनाते हैं। बाप आकर सुखधाम बनाते हैं। आधाकल्प सुख, आधाकल्प दु:ख। सतयुग त्रेता दिन, द्वापर कलियुग रात। रात में ठोकरें खाते हैं। भगवान को ढूंढने के लिए धक्का खाते हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। आधाकल्प ज्ञान, आधाकल्प भक्ति। ज्ञान का सागर अथवा ज्ञान सूर्य परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। भारत में ही शिव जयन्ती मनाते हैं। इससे सिद्ध है कि भारत ही शिव की जन्मभूमि है। मुझे आना भी पतित दुनिया में पड़े, तब तो आकर पतितों को पावन बनाऊं। जो पूज्य-लक्ष्मी नारायण थे, वही पुजारी बने हैं। आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। वही लक्ष्मी-नारायण की आत्मा जिनको 84 जन्म भोगने हैं तो भिन्न-नाम रूप में भोगने हैं। तो यह ब्रह्मा जो स्थापना करते हैं, वही फिर पालना करते हैं। अभी वह आत्मा पतित बनी है तो फिर उनके ही शरीर में आकर उनका नाम ब्रह्मा रखता हूँ। पहले-पहले तो यह बात समझानी है कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? जरूर कहेंगे बाप है। वह तो सब आत्माओं का बाप हुआ। शिवबाबा के तुम सब बच्चे हो। इस समय भगत हो, भगवान को सब याद करते हैं। भगत कहते हैं हे भगवान हमको भक्ति का फल दो, हम दु:खी हैं, जीवनमुक्ति दो। साधु लोग भी साधना करते हैं कि हमें मुक्ति-जीवनमुक्ति दो। इस समय सब पुकारते हैं कि आकर पतितों को पावन बनाओ। बाबा डायरेक्शन देते हैं कि ऐसे-ऐसे समझाओ। हम आत्मा शान्तिधाम में रहने वाली हैं। अब एक शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट जरूर बजाना है। वर्णों से भी पास होना होता है। यह ड्रामा अविनाशी बना हुआ है। चक्र फिरता ही रहता है, इसको भी जानना चाहिए कि कैसे फिरता है। पतित-पावन एक, रचता एक, दुनिया भी एक। पूछते हैं पावन से पतित कैसे बनें? रावण की आसुरी मत पर चलने से 5 विकार आ जाते हैं। 5 विकारों को ही रावण मत कहा जाता है, इसलिए रावण को जलाते हैं। परन्तु रावण जलता ही नहीं। अब बाप कहते हैं बच्चे तुमको इस रावण पर जीत पानी है, जो जीतेंगे वही रामराज्य के मालिक बनेंगे। यह है अन्तिम जन्म अर्थात् सृष्टि का अन्त है। सृष्टि का आदि भी बाप करते हैं। अन्त का विनाश भी बाप करते हैं। बाप कहते हैं मैं नई दुनिया का फाउन्डेशन भी लगाता हूँ और पुरानी दुनिया का विनाश भी कराता हूँ। गाया हुआ है– ब्रह्मा द्वारा स्थापना, अब ब्रह्मा अकेला तो नहीं होगा। ब्रह्माकुमार और कुमारियों द्वारा भारत को गार्डन आफ दैवी फ्लावर बनाता हूँ। यह तो है कांटों का जंगल। इनको अब आग लगनी है। तुम अब जागे हो, मनुष्य तो सोये हुए हैं। यहाँ तो दु:ख अशान्ति है। बच्चों को हमेशा अपने शान्तिधाम, स्वीटहोम को याद करना है। तो स्वीट बादशाही वर्से में मिलेगी। इस रावण राज्य को भूलते जाओ। भारत जो परिस्तान था सो अब कब्रिस्तान बना है फिर परिस्तान बनेगा। यह चक्र है। विश्व नई तैयार हो जायेगी तो पुरानी को जरूर आग लगेगी। अब तुमको नई दुनिया के लिए तैयार होना है। फिर वहाँ चलकर हीरे जवाहरों के महल बनायेंगे। अब तो झोपडि़यां हैं। कल्प-कल्प पतित दुनिया सो पावन बनती है। पावन सो पतित बनती है। पतित धीरे-धीरे बनते हैं। मकान नया जल्दी बनता है, पुराना होने में टाइम लगता है। ज्ञान से तुम नये विश्व के मालिक बन जायेंगे। अब तुम 16 कला बनते हो फिर 14 कला फिर धीरे-धीरे कला कमती होती जाती है। अब कलियुग में है नो कला। भारत पावन था, अब पतित बना है। यह खेल भारत पर ही है। रावण से हारे हार... अब तुम श्रीमत पर जीत पाते हो। अच्छा– मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर भारत को पावन बनाने की सेवा करनी है। रावण की मत को छोड़ एक बाप की श्रीमत पर चलना है।
2) इस दु:खधाम को भूल अपने स्वीट होम, शान्तिधाम को याद करना है। स्वयं को नई दुनिया में चलने के लिए तैयार करना है।
वरदान:
यथार्थ याद और सेवा के डबल लाक द्वारा निर्विघ्न रहने वाले फीलिंगप्रूफ भव !
माया के आने के जो भी दरवाजे हैं उन्हें याद और सेवा का डबल लॉक लगाओ। यदि याद में रहते और सेवा करते भी माया आती है तो जरूर याद अथवा सेवा में कोई कमी है। यथार्थ सेवा वह है जिसमें कोई भी स्वार्थ न हो। अगर नि:स्वार्थ सेवा नहीं तो लॉक ढीला है और याद भी शक्तिशाली चाहिए। ऐसा डबल लाक हो तो निर्विघ्न बन जायेंगे। फिर क्यों, क्या की व्यर्थ फीलिंग से परे फीलिंग प्रूफ आत्मा रहेंगे।
स्लोगन:
स्नेह और शक्ति का बैलेन्स ही सफलता की अनुभूति कराता है।