Monday, January 9, 2017

मुरली 9 जनवरी 2017

09-01-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– कार्य व्यवहार करते बुद्धियोग एक बाप से लगा रहे, यही है सच्ची यात्रा, इस यात्रा में कभी भी थकना नहीं”
प्रश्न:
ब्राह्मण जीवन में उन्नति के लिए किस बात का बल चाहिए?
उत्तर:
अनेक आत्माओं की आशीर्वाद का बल ही उन्नति का साधन है। जितना अनेकों का कल्याण करेंगे, जो ज्ञान-रत्न बाप से मिले हैं, उनका दान करेंगे उतना अनेक आत्माओं की आशीर्वाद मिलेगी। बाबा बच्चों को राय देते हैं बच्चे पैसा है तो सेन्टर खोलते जाओ। हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोलो। उसमें जिसका भी कल्याण होगा उसकी आशीर्वाद मिल जायेगी।
गीत:–
रात के राही थक मत जाना...
ओम् शान्ति।
गीत का अर्थ तो बच्चों को आपेही बुद्धि में आना चाहिए। अभी हम सब हैं रूहानी राही। भगवान बाप के पास आत्माओं को जाना है। ऐसे नहीं कहेंगे कि जीव आत्माओं को जाना है। जीव आत्माओं को शरीर छोड़कर वापस जाना है। मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं फलाना वैकुण्ठवासी हुआ। परन्तु तुम जानते हो– अच्छे वा बुरे संस्कारों अनुसार पुनर्जन्म लेना पड़ता है। बुरे संस्कारों के कारण तुम्हारे सिर पर पापों का बोझ चढ़ा हुआ है। चाहे इस जन्म का वा जन्मजन्मान्तर का चढ़ा हुआ है। वह अब तुमको योगबल से भस्म करना है। बाप को याद करना– इसको ही योग अग्नि कहा जाता है। काम चिता पर बैठने से पाप आत्मा बनते हैं और इस योग अग्नि से फिर चढ़े हुए पाप भस्म होते हैं। तो ब्राह्मण बच्चे जानते हैं कि हम राही हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते, धंधा आदि करते हमारा बुद्धियोग बाप के साथ है तो जैसेकि हम यात्रा पर हैं। इसमें थकना नहीं है, बहुत पुरूषार्थ चाहिए। ज्ञान तो बहुत सहज है। प्राचीन भारत के योग की बहुत महिमा है। परन्तु वह गीता सुनाने वाले कभी भी ऐसा नहीं कहते कि शिवबाबा ने योग सिखाया। गीता में दिखाया है एक अर्जुन को ही बैठ कृष्ण सुनाते हैं। ऐसी तो बात है नहीं। यह तो मनुष्य से देवता बनना है और पाण्डव सेना है जरूर, पाण्डवों की सेना को ही नॉलेज मिलती है और पाण्डवपति ही देते हैं। मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है। आगे चलकर बहुत लोग कहेंगे बरोबर गीता के भगवान ने 5 हजार वर्ष पहले ज्ञान दिया था। परन्तु यह पता नहीं है कि किसने दिया था। कल्प की आयु का भी पता नहीं है। अपनी-अपनी मत देते रहते हैं– गांधी गीता, टैगोर गीता अन्दर में नाम यही डालते हैं, कृष्ण भगवानुवाच अर्जुन प्रति। लड़ाई भी दिखाते हैं। परन्तु लड़ाई की बात है नहीं। यहाँ तुम्हारी है योगबल की बात। उन्होंने नाम लगा दिया है लड़ाई का। जैसे चन्द्रवंशी राम को बाण आदि दिये हैं। वास्तव में ज्ञान बाण की बात है। वह नापास हुआ इसलिए निशानी दे दी है। तो त्रेतायुगी राम-सीता का भी चित्र देना पड़े। घराने होते हैं ना। सूर्यवंशी घराना, चन्द्रवंशी घराना। गीता में तो ऐसी बात लिखी हुई नहीं है कि भगवान ने गीता सुनाकर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन की। यह तो जरूर है कि गीता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र, वह हिन्दू कह देते हैं। अपने को देवी-देवता धर्म का कह नहीं सकते क्योंकि अपवित्र हैं। यह जो कहते हैं झूठी माया, झूठी काया... सो तो बिल्कुल ठीक है। झूठ खण्ड में झूठे ही रहेंगे। सचखण्ड में हैं सच। सचखण्ड स्थापन करने वाला सच बतलाते हैं। भारत जो पूज्य था वही अब पुजारी बन गया है। पूज्य जो होकर गये हैं, उन्हों की पूजा कर रहे हैं। जो पूज्य घराना था वह अभी पुजारी है इसलिए गाया जाता है आपेही पूज्य आपेही पुजारी। पूज्य डिनायस्टी थी, अभी कलियुग में हैं पुजारी, शूद्र डिनायस्टी। सूर्यवंशी कुल, चन्द्रवंशी कुल। तुम बच्चों को समझाना है कि भारत ऐसा था। चित्र तो हैं ना। सतयुग में भारत मालामाल था। यह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई भी नहीं जानते हैं। यह वर्ण भी समझाने के लिए जरूरी हैं। हम ब्राह्मण हैं ऊंचे ते ऊंचे, इसको कहेंगे नया ऊंच वर्ण। जब शादी करते हैं तो भी कुल को देखते हैं ना। तो तुम्हारा कुल बहुत ऊंचा है। भल ब्राह्मण तो दुनिया में वह भी बहुत हैं परन्तु संगम पर ब्रह्मा की सन्तान ब्राह्मण कुल होता है। वह यह नहीं जानते, यह नई बात है ना। मनुष्य समझते हैं इन्हों की शायद अपनी नई गीता बनी हुई है। यह तो तुम बच्चे जानते हो बाप राजयोग सिखा रहे हैं। हम सो देवता बन रहे हैं। हम राजाई स्थापन कर रहे हैं, ऐसा और कोई कह न सके। वे तो जो पास्ट हो गये हैं उन्हों की कथायें बैठ सुनाते हैं। यहाँ हम महिमा तो गीता की ही करते हैं। तो मनुष्य समझते हैं यह गीता को मानते हैं। तुम जानते हो वह है भक्ति मार्ग की गीता। परन्तु जिसने गीता सुनाई, उनसे तुम अब डायरेक्ट सुन रहे हो। बन्दर सेना भी मशहूर है। चित्र भी दिखाते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल... अब बन्दर को तो यह नहीं कहेंगे। जरूर मनुष्य के लिए होगा। भल सूरत मनुष्य की है परन्तु सीरत बन्दर की है इसलिए ह्यूमन बन्दरों को कहा जाता है– बुरा मत सुनो, कान बन्द कर दो। तुम बच्चे जानते हो यह है पुराना शरीर इसे कुछ न कुछ होता रहता है। कोई की स्त्री मरती है तो कहते हैं पुरानी जुत्ती गई, फिर नई खरीद लेंगे। शिवबाबा को तो चाहिए भी पुरानी जुत्ती। नई जुत्ती अर्थात् नया शरीर उसमें तो आना नहीं है। जो नये ते नया था वही अब पुराना हुआ है। बाबा कहते हैं नम्बर वन में 84 जन्म इसने लिए हैं। जो नम्बर वन पावन, सर्वगुण सम्पन्न है... उनको भी पतित बनना पड़े, तब फिर पावन बनें। 84 जन्मों का हिसाब है ना। आपे ही पूज्य... वही श्री नारायण जब खुद पुजारी बनते हैं तो नारायण की बैठ पूजा करते हैं। वन्डर है ना। पिछाड़ी के जन्म में भी लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते थे। परन्तु देखा लक्ष्मी दासी बन पांव दबा रही है तो वह अच्छा नहीं लगा। तो लक्ष्मी का चित्र उड़ाकर सिर्फ नारायण का रख दिया। वही आत्मा फिर पुजारी से पूज्य बनती है, ततत्वम्। सिर्फ एक तो नहीं होगा ना। सतयुग में बच्चे पैदा होंगे तो वह भी प्रिन्स प्रिन्सेज होंगे ना। अब तुम बच्चों का बाप श्रृंगार कर रहे हैं वापस ले चलने के लिए। जानते हो कि हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं। पुनर्जन्म सतयुग में मिलेगा। अब स्थापना हो रही है। तुम जानते हो कि बरोबर ऐसा अटल-अखण्ड, सुख-शान्ति का राज्य था। तुम कोई को भी यह समझा सकते हो कि हम राजयोग प्रैक्टिकल में सीख रहे हैं। कोई कहते हैं कि फलाने सन्त के पास गये, हमको बहुत शान्ति मिली परन्तु ये तो हुई अल्पकाल क्षणभंगुर की शान्ति। करके 10-20 को मिलेगी। यहाँ तो दुनिया का सवाल है। सच्ची-सच्ची शान्ति तो सतयुग में ही रहती है। जो सयाने बच्चे हैं वह कल्प पहले मुआिफक अपना पुरूषार्थ कर रहे हैं। कई नई-नई गोपिकाओं को घर बैठे एक बार ज्ञान मिलता है तो खुशी का पारा चढ़ जाता है। कल एक युगल बाबा के पास आया, बाबा ने समझाया– बच्चे तुम बाप से बेहद का वर्सा नहीं लेंगे। आधाकल्प नर्क में गोते खाकर दु:खी हुए हो, अब एक जन्म विष छोड़ नहीं सकते हो? स्वर्ग का मालिक बनने के लिए पवित्र नहीं बनेंगे। बोला– है तो डिफीकल्ट। बाबा ने कहा काम चिता पर बैठने लिए जिस्मानी ब्राह्मण ने तुम्हारा हथियाला बांधा, अब तुम ज्ञान चिता पर बैठ स्वर्ग के महाराजा महारानी बनो। तो कहा आपको सहायता देनी पड़ेगी। बाबा ने कहा– शिवबाबा को याद करते रहेंगे तो जरूर सहायता मिलेगी। बोला हाँ याद करूँगा। झट बाप से हथियाला बांधा, अंगूठी भी पहनी। यह बापदादा है ना। बेहद का बाप कहते हैं बच्चे तुम पवित्र नहीं बन्ंगे तो स्वर्ग में भी नहीं चल सकोगे। यह अन्तिम जन्म पवित्र नहीं बनने से तुम राजाई खो बैठेंगे। इतना थोड़ा समय भी तुम पवित्र नहीं बन सकते हो! बाबा तुम्हारा ज्ञान-योग से श्रृंगार कर रहे हैं। तुम ऐसे लक्ष्मी-नारायण बन जाते हो। अगर बाप का नहीं माना तो समझेंगे इन जैसा महामूर्ख दुनिया में कोई नहीं है। एक होते हैं हद के मूर्ख, दूसरे होते हैं बेहद के मूर्ख। यहाँ पर ऐसे नहीं बैठ सकते हैं, जो वायुमण्डल को खराब करें। हंस मण्डली में मलेच्छ बैठ न सकें। बाप कितना श्रृंगार कर लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाते हैं और माया फिर बिल्कुल कंगाल वर्थ नाट पेनी बना देती है। भल कोई के पास 50 करोड़ हैं तो भी वर्थ नाट पेनी है क्योंकि यह सब तो भस्म होना है। साथ में तो सच्ची कमाई ही चलेगी। बाबा राय देते हैं बच्चे सेन्टर्स खोलते जाओ। मनुष्यों का बैठ श्रृंगार करो। परन्तु युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल खोलने वाला भी अच्छा हो, जो किसको समझा सके या दूसरे को खोलकर दे तो वह बैठ समझावे। तो उनकी आशीर्वाद से भी भरपूर हो जायेंगे। बल तो मिलता है ना। 21 जन्म के लिए फायदा है। ऐसा कोई होगा जो बाप की श्रीमत पर न चले। कदम-कदम पर बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। विघ्न तो पड़ेंगे ही। बांधेली गोपिकाओं पर कितने सितम होते हैं, इसमें निर्भय होना होता है। बाप की महिमा है– निर्भय, निवzर... हमारा कोई से वैर नहीं। बाप श्रृंगार कराते हैं तो उनकी सर्विस स्वीकार करनी चाहिए। बाबा क्यों नहीं हम आपकी श्रीमत पर चलेंगे! हमारा तो इसमें बहुत कल्याण है। हमारे पीछे बच्चों आदि का भी कल्याण है। हर एक को सच्ची यात्रा पर चलने का रास्ता बताना चाहिए। झगड़ा होगा, अबलाओं को सहन करना पड़ता है। नहीं मानते हैं तो समझो हमारे कुल का नहीं है। मेहनत करनी पड़ती है। कहाँ से हमारे कुल का निकल पड़े फिर भल प्रजा लायक भी बने। औरों को भी प्रजा लायक बनावे, यह भी अच्छा। प्रजा भी तो बनानी है ना। मनुष्य से देवता बनाना, यह कार्य बाप के सिवाए कोई कर नहीं सकता। तुम ब्राह्मण हो ऊंच ते ऊंच। वह है नीच ते नीच, तुम हंस वह बगुले। तो जरूर झगड़ा होगा। अत्याचार होंगे। माया रावण ने सबको बरबाद कर दिया है, बाप आकर आबाद करते हैं। सालवेन्ट बनाते हैं। पिछाड़ी में बादशाही तुम्हारी होगी। लड़ाई के बाद भारत मालामाल बनता है, वह तो जानते नहीं कि इस महाभारी लड़ाई के बाद ही भारत स्वर्ग बनता है। तो अब बच्चों को बहुत अच्छा पुरूषार्थ करना है। भाषण भी रिफाइन करना चाहिए। शंख ध्वनि करनी है। नहीं तो कहेंगे इनके पास शंख नहीं है। भल कमल फूल समान है, चक्र भी है परन्तु शंख नहीं है। बाबा कहते ज्ञानी तू आत्मा ही मुझे प्रिय है। गोपियां भी मुरली पर मस्त होती थी। कृष्ण ने तो मुरली नहीं सुनाई। यह है श्रीकृष्ण की आत्मा का अन्तिम जन्म। जो चक्र लगाकर आई, अब इनको नॉलेज मिली है। तुम जानते हो यह है पुरानी दुनिया, इनको फारकती देनी है। अब तुम नई दुनिया के मालिक बन रहे हो। विनाश से पहले पुरानी दुनिया को फारकती देते हो। अगर फारकती नहीं देंगे तो नई दुनिया से योग भी नहीं लगेगा। रावणपुरी में 63 जन्म दु:ख भोगते हैं। अब इसको फारकती दे दो। देह सहित जो कुछ भी है इन सभी को फारकती दो फिर तुम अकेली आत्मा बन मेरे पास आ जायेंगे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञानी तू आत्मा बन शंख-ध्वनि करनी है। हर एक को सच्ची यात्रा सिखलानी है। अपनी प्रजा तैयार करनी है।
2) बुद्धि से पुरानी दुनिया को फारकती देना है, नई दुनिया से बुद्धियोग लगाना है। निर्भय, निर-वैर बनना है।
वरदान:
हर कर्म में बाप का साथ साथी रूप में अनुभव करने वाले सिद्धि स्वरूप भव !
सबसे सहज और निरन्तर याद का साधन है-सदा बाप के साथ का अनुभव हो। साथ की अनुभूति याद करने की मेहनत से छुड़ा देती है। जब साथ है तो याद रहेगी ही लेकिन ऐसा साथ नहीं कि सिर्फ साथ में बैठा है लेकिन साथी अर्थात् मददगार है। साथ वाला कभी भूल भी सकता है लेकिन साथी नहीं भूलता। तो हर कर्म में बाप ऐसा साथी है जो मुश्किल को भी सहज करने वाला है। ऐसे साथी के साथ का सदा अनुभव होता रहे तो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।
स्लोगन:
विशेष आत्मा बनना है तो विशेषता को ही देखो और विशेषता का ही वर्णन करो।