Friday, February 3, 2017

मुरली 3 फरवरी 2017

03-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– संगमयुग पर बाप आये हैं तुम बच्चों की दिल व जान से सेवा करने, अभी यह ड्रामा पूरा होता है– तुम सबको वापिस घर चलना है”
प्रश्न:
अभी तुम बच्चों की कर्मातीत अवस्था हो नहीं सकती, अन्त में ही होगी– क्यों?
उत्तर:
क्योंकि तुम आत्मा जब कर्मातीत बनो तो तुम्हें पावन तत्वों का बना हुआ शरीर चाहिए। अभी तो यह 5 तत्व पतित हैं। जब तत्व पावन बनें तब कर्मातीत अवस्था हो। तुम बच्चे जब पूरे पावन बन जायेंगे तो यहाँ रह भी नहीं सकेंगे। पावन बनें तो पावन दुनिया में पावन शरीर चाहिए इसलिए तुम अभी हाफ कास्ट हो, अन्त में तुम्हारा पूरा बुद्धियोग जम जायेगा, तुम पावन बन जायेंगे, तुम्हारे सब विकर्म विनाश हो जायेंगे और तुम्हारी कर्मातीत अवस्था हो जायेगी।
गीत:
दूरदेश का रहने वाला...  
ओम् शान्ति।
दूर के रहने वाले मुसाफिर, जिस मुसाफर को सभी मनुष्य मात्र अथवा जीव आत्मायें याद करती हैं जरूर। वास्तव में सभी जीव आत्मायें मुसाफिर हैं। जैसे बाप को परमधाम से आना पड़ता है वैसे तुम बच्चे भी परमधाम से आते हो– यह पार्ट बजाने। मुझे तो सारे कल्प में एक बार आना होता है। इस कारण मुझे कहते हैं– रीइनकारनेशन। तुम एक बार यहाँ आते हो फिर यहाँ ही पुनर्जन्म लेते रहते हो। मैं एक ही बार बच्चों के पास बच्चों की दिल व जान, सिक व प्रेम से सेवा करने आता हूँ। बाप को तो सब बच्चे प्यारे हैं ना। ऐसा कोई बाप नहीं, जिसको बच्चे प्यारे नहीं होंगे। बच्चों को ही बाप से वर्सा मिलता है। वह है हद का बाप, यह है बेहद का बाप। यह कोई नहीं जानता कि बाप कब आयेगा। बाप कहते हैं मीठे बच्चे, अब ड्रामा पूरा होता है, वापिस चलना है। रास्ता कोई भी जानते ही नहीं। सिर्फ कह देते हैं बैकुण्ठवासी हुआ, पार निर्वाण गया। अभी तुम जानते हो बीच में कोई भी वापिस जा नहीं सकता। जब सबका पार्ट पूरा हो तब बाप को आना पड़ता है। तुम जानते हो हम सब आत्मायें जब शरीर में हैं तो शरीर के नाते भाई-बहन हैं। हर एक को अपना-अपना पार्ट पूरा करना है। फिर सबको अपने-अपने समय पर पार्ट रिपीट करना पड़ेगा। बाप को सभी याद करते हैं कि हे पतित-पावन आओ, हे सीता के राम आओ। एक राम, एक सीता के लिए थोड़ेही आयेगा। सभी सीताओं का एक राम है। सब बच्चे याद करते हैं, भक्ति करते हैं। यह ड्रामा 5 हजार वर्ष का है। बाप कहते हैं– तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं जानता हूँ। लाखों वर्ष की बात तो कोई बता न सके। मुख्य पहली बात है कि गीता का भगवान कौन है। ड्रामा अनुसार भूलें, तब तो बाप आये। सिर्फ गीता पढ़ने से कुछ नहीं होता। बाप खुद ही आकर बच्चों को राजयोग सिखाते हैं। बाप कहते हैं यह नई-नई बातें जो मैं तुमको सुनाता हूँ, वह सब प्राय:लोप हो जायेंगी। यह परम्परा नहीं चलती। और जो आते हैं उन्हों का ज्ञान तो अन्त तक चलता है। एक दो को सुनाते आते हैं। यहाँ न सुनने वाले, न सुनाने वाले रहेंगे। सब चले जायेंगे। वहाँ तो यह भी नहीं जानते कि हम 16 कला सम्पूर्ण हैं। वह तो है ही प्रालब्ध। 16 कला से फिर 14 कला बनेंगे– यह पता रहे तो राजाई की खुशी ही चली जाये। बाप समझाते हैं– ऊंचे से ऊंचा धर्म शास्त्रो पहले होना चाहिए। देवी-देवता धर्म स्थापन करने वाले को भूल गये हैं। जितनी गीता की महिमा है, उनसे जास्ती ज्ञान सुनाने वाले की महिमा है। और कोई धर्म स्थापन करने वाले को भगवान नहीं कहेंगे। भगवान तो एक ही निराकार है, बाकी सब हैं साकार। गाया भी हुआ है– श्रीमत भगवत गीता। वह सबका सद्गति दाता है। इस समय सब तमोप्रधान, कब्रदाखिल हैं। फिर बाबा आकर सबको जगाते हैं। यह पुरानी दुनिया तो खत्म हो जाने वाली है। सरसों मुआिफक सब पीस जाते हैं। सतयुग में बहुत छोटा दैवी झाड़ होगा। भगवान को सब याद करते हैं हे भगवान, हे सचखण्ड स्थापन करने वाला.. परन्तु वह कब आयेगा। शास्त्रों में तो लाखों वर्ष लिख देते हैं। इसको ही अन्धियारा कहा जाता है। अभी तुम जानते हो हमारा बाबा ज्ञान का सागर है। दूसरा कोई ज्ञान सागर हो नहीं सकता। ज्ञान सागर बाप दूरदेश से हम बच्चों के पास आते हैं। हम सब अन्धियारे में पड़े थे। जानते नहीं थे कि ड्रामा में हम सब एक्टर्स हैं। ऊंचे ते ऊंचे कौन हैं, यह मालूम होना चाहिए। सिर्फ सर्वव्यापी है, यह ज्ञान हो गया क्या! अगर सर्वव्यापी है फिर तो भक्ति भी नहीं कर सकते। इसको कहा जाता है अज्ञान। अभी तुम जानते हो सबका सद्गति दाता बाप है। उनका नाम ही है परमपिता परमात्मा शिव। वह पिताओं का भी पिता है। जन्म बाई जन्म लौकिक पितायें मिलते आये। ऊंचे ते ऊंचा बाप है फिर नम्बरवार आते हैं। पहले-पहले देवी-देवता सिजरे के उतरेंगे। अब वह रचना बाप रच रहे हैं। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कैसे रचे। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं। बच्चे कहते हैं बाबा हम आपके ही थे, अब आप के ही हैं। पहले-पहले हम सतयुग में आये थे। इस समय तुम हाफ कास्ट हो। शुद्र से ब्राह्मण बन रहे हो। पूरा पवित्र, कर्मातीत पिछाड़ी में बनेंगे। पिछाड़ी में बुद्धियोग पूरा जम जायेगा और विकर्म सब भस्म हो जायेंगे। फिर भी यहाँ तुमको पावन नहीं कहेंगे क्योंकि शरीर पतित हैं। अभी पतित से पावन बन रहे हो। फिर सतयुग में शरीर भी पावन मिलेगा। पूरा पावन बन जायेंगे फिर यहाँ रह नहीं सकेंगे। जब आत्मा पवित्र हो जायेगी। फिर तो 5 तत्व भी पवित्र हो जायेंगे। अभी तुम बच्चे संगम पर हो। सच्चा-सच्चा कुम्भ का मेला यह है। पानी के गंगा पर जाना– यह है भक्ति मार्ग। सन्यासी लोग स्नान करने जाते हैं– फिर भी कह देते आत्मा निर्लेप है। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में तुमने बहुत कुछ सुना। अब जज करो राइट क्या है। यह है अमर कथा जिससे तुम अमरपुरी के मालिक बन जाते हो, तुमको कभी काल खा नहीं सकता। वहाँ कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि फलाना मर गया। यहाँ कितना डर रहता है मौत का। वहाँ तो सिर्फ चोला बदलते हैं। भारत की महिमा बहुत भारी है। जितनी बाप की महिमा उतनी भारत की महिमा है। भारत में लक्ष्मी-नारायण के अब तक भी मन्दिर बनते रहते हैं। परन्तु बाप को नहीं जानते तो वह कब आये थे। बरोबर सतयुग में देवी-देवतायें थे। जब सतयुग को लाखों वर्ष देते हैं तो उनकी संख्या अनगिनत होनी चाहिए। कोई भी बुद्धि से काम नहीं लेते। कहते हैं गऊ के मुख से गंगा निकली है। है सारी ज्ञान की बात। फिर सूक्ष्मवतन में बैल आदि कहाँ से आया। यह शास्त्रो आधाकल्प से लेकर चलते ही आये हैं। यह सब बातें मोस्ट बिलवेड बाप चिल्ड्रेन को समझाते हैं। हैं तो सब मेरे बच्चे। परन्तु तुम मोस्ट बिलवेड बनते हो। लक्ष्मी-नारायण का पता नहीं कि कब राज्य करके गये। राधे कृष्ण का बर्थ डे मनाते हैं। लक्ष्मी-नारायण का कुछ पता नहीं। राम को त्रेता में दिखाते हैं। कृष्ण को द्वापर में। राधे कृष्ण हैं सतयुग के। यह सब तुम ही जानते हो। सब धर्म कैसे रिपीट होंगे, फलाना धर्म स्थापक कब आयेगा। वह समझते हैं धर्म स्थापन कर वापिस चले जाते हैं। अरे तब फिर पालना कौन करेंगे! हर एक मनुष्य रचना रचते हैं फिर पालना भी करते हैं। विनाश नहीं करते। हद की रचना करने वाला बाप अल्पकाल क्षण भंगुर सुख दे सकते हैं। कोई को बच्चा नहीं होगा तो कहेंगे हमारे कुल की वृद्धि कैसे होगी। बाप कहते हैं इस समय सब पतित भ्रष्टाचारी हैं। एक गीत है– कहते हैं भारत का क्या हाल हो गया है। फिर दूसरे गीत में है कि हमारा भारत सबसे ऊंचा है। क्या अभी ऊंचा है? नहीं। अब तो बिल्कुल ही पतित है। बाप कहते हैं बच्चे धीरज धरो, यह भी खेल है। अभी दु:ख के दिन पूरे होकर सुख के दिन आ रहे हैं। इस नर्क को स्वर्ग बनाने परमधाम के रहने वाले बाप देश पराये आये हैं। बाप कहते हैं मेरा यह जन्म स्थान है। नहीं तो कोई बताये, निराकार बाबा कहाँ आया, किस शरीर में आया? कब आया? क्या करने आया? कोई भी बता न सके। तुम बच्चे जानते हो परमपिता परमात्मा कैसे आकर पतितों को पावन बनाते हैं। बाप कहते हैं बच्चे और कोई मेरे पास इलाज नहीं है। लाडले बच्चे, तुम मुझे ही पतित-पावन कहते हो, सर्व शक्तिमान् कहते हो। अब तुमको शक्ति चाहिए 5 विकारों पर जीत पाने के लिए। हिंसक लड़ाई की यहाँ बात नहीं। यह है गुप्त। सिर्फ मुझे याद करो। इसको कहा जाता है अजपाजाप। अभी सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, सबको वापिस जाना है। वह है शान्तिधाम। वहाँ से फिर आटोमेटिकली तुम सुखधाम में आ जायेंगे। शान्ति तो तुम्हारा स्वधर्म है। यूँ तो इस रावण राज्य में शान्ति मिल नहीं सकती। बाकी थोड़े समय के लिए चाहते हो तो अशरीरी होकर बैठ जाओ। शान्ति तो सबको चाहिए। अगर 101 करोड़ भी शान्ति में बैठ जाएं तो भी शान्ति हो न सके। यह है ही अशान्ति की दुनिया। शान्ति के लिए कोई राय नहीं निकल सकती है। यह तो गॉड फादर की ही जवाबदारी है। तुम जानते हो देवी-देवताओं का राज्य था, जिसको वैकुण्ठ कहा जाता है। अब कलियुग का अन्त दु:खधाम है। वह है शान्तिधाम, स्वीट होम। स्वीट फादर भी वहाँ रहते हैं। वह है सुखधाम, यह है दु:खधाम। बीच में और-और धर्म निकलते हैं। वृद्धि होती रहती है। उन्होने तो कल्प की आयु लाखों वर्ष कह दी है, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा, सतयुग है घोर सोझरा। मूलवतन में है अपार शान्ति। यहाँ हम पार्ट बजाने आये हैं। बाप कहते हैं– हे आत्मायें सुनती हो– अपने कान रूपी आरगन्स से? तुमको याद है– यह ड्रामा का चक्र कैसे फिरता है। तुम इस समय त्रिकालदर्शी हो। तुम ब्राह्मणों के सिवाए कोई त्रिकालदर्शी नहीं है। ऋषि-मुनि कहते थे हम ईश्वर को नहीं जानते हैं, नास्तिक हैं। अब तुम आस्तिक बने हो। बाप और सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुमको तीनों लोकों की नॉलेज मिली है। सिवाए तुम्हारे कोई को भी यह नॉलेज नहीं है। लक्ष्मी-नारायण को न त्रिलोकीनाथ, न त्रिकालदर्शी कहेंगे। त्रिलोकीनाथ मनुष्य नहीं हो सकते हैं। तुम तीनों लोकों और तीनों कालों को जानने वाले हो। लक्ष्मी-नारायण को भी त्रिलोकी का ज्ञान नहीं है। विष्णु को स्वदर्शन चक्रधारी दिखाते हैं। अब विष्णु के दो रूप हैं लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। इस समय कितने अच्छे यादगार मंदिर बनाये हैं। परन्तु इनकी बायोग्राफी को तो जानना चाहिए। ऊंचे ते ऊंचा भगवान एक है, उनका नाम है शिव। रूद्र भी कहते हैं। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ, कृष्ण ज्ञान यज्ञ होता ही नहीं। कृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स है। वह क्या यज्ञ रचेंगे। रूद्र यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होती है। सतयुग में यज्ञ रचने की दरकार नहीं है। इस ज्ञान यज्ञ के सिवाए बाकी सब हैं मैटेरियल यज्ञ। बाप ने समझाया है इनको यज्ञ क्यों कहते हैं। यह जो पुरानी दुनिया की सामग्री है, वह सब इसमें स्वाहा होने वाली है इसलिए कहा जाता है– परमपिता परमात्मा ने यज्ञ रचा है, जिससे मनुष्य देवता बनते हैं। देवताओं के पैर पुरानी दुनिया में नहीं आते हैं। तुमको तो बाप ने सब कुछ साक्षात्कार करा दिया है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपने शान्त स्वधर्म में सदा रहना है। यह वानप्रस्थ अवस्था है, वापस घर जाना है इसलिए बाप की याद अजपाजाप चलती रहे।
2) कर्मातीत बनने के लिए सम्पूर्ण पावन बनना है। जो भी विकर्मो का बोझ है उसे याद की यात्रा में रहकर उतार देना है। याद की शक्ति से विकारों पर जीत पानी है।
वरदान:
बाप की मदद द्वारा उमंग-उत्साह और अथकपन का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव!
कर्मयोगी बच्चों को कर्म में बाप का साथ होने के कारण एकस्ट्रा मदद मिलती है। कोई भी काम भल कितना भी मुश्किल हो लेकिन बाप की मदद– उमंग-उत्साह, हिम्मत और अथकपन की शक्ति देने वाली है। जिस कार्य में उमंग-उत्साह होता है वह सफल अवश्य होता है। बाप अपने हाथ से काम नहीं करते लेकिन मदद देने का काम जरूर करते हैं। तो आप और बाप– ऐसी कर्मयोगी स्थिति है तो कभी भी थकावट फील नहीं होगी।
स्लोगन:
मेरे में ही आकर्षण होती है इसलिए मेरे को तेरे में परिवर्तन करो।