Saturday, February 4, 2017

मुरली 4 फरवरी 2017

04-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– सिर पर विकर्मो का बोझा बहुत है, इसलिए अब तक शारीरिक बीमारियां आदि आती हैं, जब कर्मातीत बनेंगे तो कर्मभोग चुक्तू हो जायेंगे”
प्रश्न:
सभी का अटेन्शन खिंचवाने के लिए इस युनिवर्सिटी का कौन सा नाम होना चाहिए?
उत्तर:
सच्चा-सच्चा ज्ञान विज्ञान भवन, पाण्डव भवन। ज्ञान अर्थात् नॉलेज से वेल्थ और विज्ञान अर्थात् योग से हेल्थ मिलती है सो भी 21 जन्मों के लिए। तो तुम बच्चों को; मनुष्य को मुक्ति जीवनमुक्ति देने के लिए ज्ञान विज्ञान की प्रदर्शनी लगानी चाहिए। ज्ञान विज्ञान भवन नाम से सबका अटेन्शन जायेगा।
गीत:
हमारे तीर्थ न्यारे हैं...  
ओम् शान्ति।
इस गीत में एक लाइन आती है– चारों तरफ लगाये फेरे... तीर्थो पर मनुष्य चारों धामों का फेरा लगाते हैं। अब उनका फेरा क्यों लगाते हैं? (यह चक्र का फेरा है, सतयुग त्रेता आदि) यह फेरा है। जितना बाप को याद करेंगे, चक्र को फिरायेंगे उतना ही विकर्म विनाश होंगे। तो बाबा को बहुत याद करना पड़े क्योंकि विकर्मो का बोझा सिर पर बहुत है। शारीरिक बीमारियां तो अन्त तक चलनी हैं। कर्मभोग तो अन्त तक रहता है, यह निशानी है। जब तक कर्मातीत अवस्था को नहीं पहुँचते हैं तब तक कुछ न कुछ दु:ख लगता ही रहता है। पिछाड़ी में यह सब खत्म होंगे। अपना मुख्य है ज्ञान और योग। देहली में ज्ञान विज्ञान भवन है। सच्चा-सच्चा ज्ञान विज्ञान भवन तो यह है। ज्ञान माना नॉलेज, जीवनमुक्ति। विज्ञान माना मुक्ति। योग को विज्ञान कहा जाता है। विज्ञान से मुक्ति, ज्ञान से जीवन मुक्ति। तो ज्ञान विज्ञान भवन, यह उनको समझानी भी देनी पड़े। तो ज्ञान विज्ञान की प्रदर्शनी होनी चाहिए– उस ज्ञान विज्ञान भवन में, तो सभी मनुष्य और फॉरेनर्स आदि आकरके भारत का यह सहज योग और ज्ञान समझें। मनुष्य तो परमात्मा को सर्वव्यापी कहते हैं। जैसे हम लिखते हैं रीयल गीता वैसे लिखना पड़े ज्ञान विज्ञान भवन। बाबा डायरेक्शन देते हैं कि रीयल ज्ञान विज्ञान भवन, पाण्डव भवन नाम लगा दो, तो क्लीयर हो जायेगा। फिर साथ में यह भी लिखो कि ज्ञान से जीवन मुक्ति, एवरवेल्दी और विज्ञान अथवा योग से एवरहेल्दी कैसे बनते हैं सो आकर समझो। जब समझेंगे तब कहेंगे बरोबर प्रैक्टिकल में देवी-देवता पद सुख शान्ति का मिल रहा है। एक को समझाने की बात नहीं। इस पर प्रदर्शनी मेला करो तो हजारों आकर समझेंगे। बाबा युक्ति बताते हैं, झट कपड़े पर प्रिन्ट किया और लगा दिया। कुछ भी बनाने में देरी नहीं लगती है। चित्र हमारे बहुत अच्छे हैं। कोई भी देशी, चाहे विदेशी आकर समझे। बाबा कहते हैं सृष्टि चक्र का चित्र बहुत बड़ा बनाना चाहिए, उसके बाजू में फिर विराट रूप का चित्र हो। ऊपर में चोटी। सिर्फ शिव नहीं, त्रिमूर्ति तो जरूर हो क्योंकि सिद्ध करना है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। यह ब्राह्मण ही पुनर्जन्म में आने वाले हैं। ब्राहमण सो देवता, देवता सो क्षत्रिय... यह अच्छा चित्र बनाकर बाजू में रखना चाहिए। तो समझाने में सहज हो जाए। इस ज्ञान-योग से स्वर्ग कैसे बनता है, यह ब्राह्मण एडाप्टेड हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। सबको निमन्त्रण भेजना चाहिए। चित्रों पर समझाना तो बहुत सहज है। परमपिता परमात्मा द्वारा राजयोग सीख नई राजधानी स्थापन हो रही है। यह ब्रह्माकुमार कुमारियां कोटों में कोई बनते हैं। उनमें भी आश्चर्यवत पशन्ती, सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं। यहाँ गरीब भी हैं तो साहूकार भी हैं तो बीच वाले भी हैं। साहूकार जल्दी नहीं उठ सकते। बाबा ने तो समझा दिया है कि ज्ञान यज्ञ में अनेक प्रकार के विघ्न तो पड़ेंगे। बहुत अत्याचार होंगे। कामेशु, क्रोधेशु हैं ना। विष न मिलने के कारण मारते हैं। कन्याओं को भी शादी के लिए बहुत मारते हैं। बाबा तो कहते हैं जो श्रीमत पर चलेंगे वो श्रेष्ठाचारी बनेंगे। बाबा आते ही हैं पतित भ्रष्टाचारी दुनिया में। इस रावणराज्य में पहले काम महाशत्रु है। श्रेष्ठाचारी राज्य को तो कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। उनमें विकार होता ही नहीं। तब यह प्रश्न भी नहीं उठ सकता कि वहाँ पैदाइस कैसे होगी। अरे रामराज्य में विष होता ही नहीं। यह तो रावण राज्य है तब तो रावण को जलाते हैं। इस समय श्रेष्ठाचारी कोई हो न सके। श्रेष्ठाचारी बनाना– एक परमपिता परमात्मा का ही काम है। स्वर्ग तो है ही वाइसलेस वर्ल्ड। वहाँ विष होता ही नहीं क्योंकि रावणराज्य ही नहीं है। अभी तुम राज्य लेते हो– योगबल से। रावण का खात्मा अब होना ही है, अभी है संगम। अभी तुम सम्पूर्ण बन रहे हो। सतयुग की जब आदि होती है तब वहाँ एक भी विकारी हो न सके। संगम पर दोनों हैं ना। मैला पानी और सफेद पानी, उनका ही संगम कहा जाता है। मैला जब चला जायेगा तो फिर देखने में भी नहीं आयेगा। तो अभी दुनिया का भी संगम है। आत्मा और परमात्मा का यह संगम है। बाकी नदी और सागर का संगम तो परम्परा से चला ही आता है। नदी तो सागर में ही पड़ेगी। बाकी पानी का फर्क तो होता ही है। बाप के सिवाए कोई भी मनुष्य त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ बना नहीं सकता। त्रिकालदर्शी और त्रिलोकीनाथ तुम ही बनते हो। कृष्ण को भी नहीं कह सकते। त्रिलोकीनाथ, तीनों कालों को जानने वाला एक ही है। त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी सिवाए परमपिता परमात्मा के दूसरा कोई होता नहीं। लक्ष्मी-नारायण को तो तीनों लोकों अथवा तीनों कालों का ज्ञान ही नहीं है। आदि मध्य अन्त का भी ज्ञान नहीं है। अभी तो हमारे पास सारा ज्ञान है। त्रिलोकी का भी ज्ञान है, जो बाबा का टाइटल है वह ब्राह्मणों को भी मिल सकता है। देवताओं को भी यह ज्ञान नहीं। तुम बहुत ऊंच हो, जो बच्चे अपने को त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी समझते हैं वह तो दूसरों को आपसमान बनाने में बिजी होंगे। सबको निमन्त्रण देना चाहिए। हर धर्म वालों को लिखना चाहिए कि ज्ञान विज्ञान से हेल्थ वेल्थ कैसे मिलती है, आकर समझो। देहली में ज्ञान विज्ञान भवन में भी यह चीज हो तो कितने फॉरेनर्स आकर नॉलेज लेवें। आखिर अन्त में तो सबको समझना ही है। विनाश भी अवश्य होना ही है तो क्यों नहीं बाबा को याद करें तो विकर्म भी विनाश हों। और जितनीजितनी आत्मा शुद्ध होती जायेगी उतना पद भी ऊंच मिलेगा। सारा मदार है– ज्ञान और विज्ञान पर। मुक्तिधाम में रहने वाले योग ही पसन्द करेंगे। उन्हों की आत्मा में पार्ट ही ऐसा है और देवी-देवता धर्म वाले नॉलेज को ही पसन्द करेंगे। तुम बच्चों की दिन-प्रतिदिन उन्नति होती जाती है। तुम ऊपर जाते रहते हो वह नीचे गिरते रहते हैं। तुम्हारी है चढ़ती कला और सबकी है उतरती कला। सबको वापिस जाना है। वह तो कॉमन बात है। बाकी वर्सा लेना है। यह भी समझते हैं कल्प पहले जो जिसने पद पाया है, जिस प्रकार से पाया है वह सब साक्षी होकर देखते रहते हैं। आयेंगे तो बहुत। दिन-प्रतिदिन युक्तियां भी अच्छी-अच्छी निकलती रहती हैं। ज्ञान विज्ञान भवन नाम हो और अच्छे-अच्छे चित्र हों। दुनिया में तो बहुत फालतू चित्र हैं कोई टेढ़े बांके कृष्ण के ऐसे आर्ट के चित्र बना देते हैं, तुम्हें उसकी दरकार ही नहीं है। वहाँ देवतायें डांस करते हैं, वह तो खुशी में खेलपाल करते हैं। यह आर्ट आदि तो यहाँ का रिवाज है। वहाँ तो प्रिन्स प्रिन्सेज खेलते हैं। बाइसकोप आदि वहाँ कुछ भी नहीं है। इन सब बातों को तुम यहाँ ही जानते हो। बाप को भी तुम ही पहचानते हो। मनुष्यों की बुद्धि में थोड़ेही बैठता है कि यह कौन है! क्योंकि नाम सुना है, श्रीकृष्ण का। चित्र भी फर्स्टक्लास हैं। नाम ही है श्याम सुन्दर। काम चिता पर बैठते हैं तो श्याम बन जाते हैं। ज्ञान चिता पर बैठने से फिर आधाकल्प गोरे बन जाते हैं। बुद्धि में आना चाहिए तो सतयुग में 21 जन्म सुन्दर थे। फिर काम चिता पर बैठ भिन्न नाम रूप में आकर श्याम बने हैं। वो लोग समझ नहीं सकते तो काला क्यों किया है। तुम तो जानते हो अब कैसे समझायें, किसका चित्र दें। श्याम और सुन्दर इनको ही कहें। ऐसे नहीं रामचन्द्र को भी श्याम सुन्दर कहते हैं। उनको काला क्यों किया है, यह समझते नहीं हैं। इस समय सब काले ही काले हैं। यह समझने की बातें तो बहुत अच्छी हैं। परन्तु जब अच्छी रीति कोई समझे। प्रदर्शनी में सीखने का चांस बहुत अच्छा है, हो सकता है अच्छी-अच्छी बच्चियां मैदान में आ जायें। बाकी दूसरे सीखते रहें। निमन्त्रण तो सबको देना है। भल कोई गाली दे, गालियां तो संगम पर खानी ही हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर चलकर श्रेष्ठाचारी बनना है। काम महाशत्रु पर विजयी बन सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। अत्याचारों से डरना नहीं है।
2) योगबल से आत्मा को शुद्ध बनाना है। त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ बन दूसरों को आप समान बनाने की सेवा में बिजी रहना है। सब धर्म वालों को सन्देश जरूर देना है।
वरदान:
मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी भव!
दुनिया वाले समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ हैं लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हैं। ऐसा कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त कर लेगा। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। लेकिन कर्म के साथ योग है माना मन और बुद्धि की एकाग्रता है तो सफलता बंधी हुई है। कर्मयोगी आत्मा को बाप की मदद भी स्वत: मिलती है।
स्लोगन:
बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए अन्दर से अनासक्त व मनमनाभव रहो।