Tuesday, February 7, 2017

मुरली 7 फरवरी 2017

07-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– सदा इसी नशे में रहो कि ज्ञान सागर बाप ने ज्ञान देकर हमें स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिकालदर्शी बनाया है, हम हैं ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण”
प्रश्न:
तुम बच्चे ब्राह्मण बनते ही पदमापदम भाग्यशाली बन जाते हो– कैसे?
उत्तर:
ब्राह्मण बनना अर्थात् सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करना। बाप का बच्चा बना और वर्से का अधिकार मिला। तो जीवनमुक्ति तुम्हारा हक है, इसलिए तुम पदमापदम भाग्यशाली हो। बाकी इस मृत्युलोक में तो कोई सौभाग्यशाली भी नहीं। अकाले मृत्यु होता रहता है। तुम बच्चे अभी काल पर जीत पाते हो। तुम्हें त्रिकालदर्शी-पने का भी ज्ञान है। शिवबाबा 21 जन्मों के लिए तुम्हारी झोली भर रहे हैं।
ओम् शान्ति।
बच्चे समझते हैं कि हम कांटों से फूल बन रहे हैं अर्थात् मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बच्चे जानते हैं यह कांटों का जंगल है। अब फिर फूलों के बगीचे में जाना है। ये देहली भी कोई समय परिस्तान थी। तुम बच्चे राज्य करते थे जबकि देवतायें थे। फिर कोई राजा, महाराजा के रूप में, कोई प्रजा के रूप में। यह तो सब जानते हैं कि बरोबर अब सृष्टि कब्रिस्तान होनी है। उन पर तुम परिस्तान बनायेंगे। तुम जानते हो यह सारी दुनिया ही नई बनती है। जमुना के कण्ठे पर राधे कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण थे। ऐसे नहीं राधे कृष्ण राज्य करते हैं। नहीं, राधे दूसरी राजधानी की थी, कृष्ण दूसरी राजधानी के थे। दोनों का फिर स्वयंवर हुआ। स्वयंवर के बाद फिर यही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं फिर इस परिस्तान में, जमुना के कण्ठे पर राज्य करते हैं। यह गद्दी बहुत पुरानी है। आदि सनातन देवी देवताओं की गद्दी बनती आई है। परन्तु इन बातों को सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। तुम ही अपना परिस्तान बना रहे हो। राजधानी स्थापन कर रहे हो। कैसे? योगबल से। देवी देवताओं की राजधानी लड़ाई से नहीं स्थापन हुई थी। तुम यहाँ सीखने आये हो राजयोग बल, जो 5 हजार वर्ष पहले सीखे थे। तुम कहेंगे हाँ बाबा कल्प पहले भी आज के ही दिन इसी समय हम बाबा से पढ़ना सीखे थे। यहाँ सिर्फ बच्चे ही आते हैं। बच्चों के बिना बाप और कोई से बात कर न सके। बाप कहते हैं मैं बच्चों को ही सिखलाता हूँ। तुमको कितना नशा होना चाहिए। ज्ञान का सागर बाप है, उनको ही ज्ञान ज्ञानेश्वर कहते हैं, इसका अर्थ है ईश्वर जो ज्ञान का सागर है, वह इस समय तुमको ज्ञान देते हैं। कौन सा ज्ञान? सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान। तुम बच्चे स्वदर्शन च् क्रधारी बनते हो। तुम ब्रह्मा वंशी हो। विष्णुवंशी जो राज्य करेंगे, वह स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिकालदर्शी नहीं हैं। तुम ब्रह्मा वंशी हो सो फिर देवता बनेंगे। हम सो सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी में गये फिर वैश्यवंशी, शूद्र वंशी बनें। अब फिर से हम ब्राह्मण वंशी बने हैं। तुम बरोबर जानते हो कि हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान हमारे में हैं। इनसे ही फिर चक्रवर्ती राजा रानी बनेंगे। यह नॉलेज सभी धर्म वालों के लिए है। शिवबाबा सबको कहते हैं– इन ब्रह्मा को भी कहते हैं, इनकी आत्मा भी अब सुन रही है। तुम अब ब्राह्मण हो। हर एक मनुष्य मात्र शिवबाबा का बच्चा भी है तो ब्रह्मा बाबा का बच्चा भी है। ब्रह्मा है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर, जिस्मानी और शिवबाबा है सबका रूहानी बाप। शिवबाबा को प्रजापिता नहीं कहेंगे। शिवबाबा आत्माओं का बाप है। बाप कहते हैं मैं भारतवासियों को राज्य भाग्य देता हूँ, हीरे जैसा सदा सुखी बनाता हूँ, 21 जन्मों के लिए वर्सा देता हूँ। फिर वह जब पूज्य से पुजारी बनते हैं तो मेरी ग्लानी करने लग पड़ते हैं। बाप कहते हैं– कितना ऊंचा मैं तुम्हारा बाप हूँ, मैं ही भारत को हेविन पैराडाइज बनाता हूँ। तुम फिर सर्वव्यापी कह ग्लानी करते हो। 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। कल की बात है। तुम ही राज्य करते थे, सोझरा था, आज अन्धियारा है। परन्तु समझते हैं यही स्वर्ग है। भारतवासी गाते हैं नई दुनिया में नया भारत रामराज्य हो। मनुष्य फिर इसको ही नया समझ रहे हैं। यह तो ड्रामा है। इस समय माया का पिछाड़ी का पाम्प है। अब रावण राज्य मुर्दाबाद और रामराज्य जिंदाबाद होना है। रामराज्य कोई राम सीता के राज्य को नहीं कहा जाता है। सूर्यवंशी राज्य को ही रामराज्य कहा जाता है। तुम आये हो सूर्यवंशी राजा रानी बनने के लिए। यह राजयोग है। यह नॉलेज कोई ब्रह्मा या कृष्ण नहीं पढ़ाते। यह तो परमपिता परमात्मा ही पढ़ाते हैं। पतित-पावन वह बाप है, सारे विश्व को हेविन बनाने वाला, सुख-शान्ति देने वाला है। यह भारत पहले सुखधाम था। आते तो सब शान्तिधाम से हैं। अहम् आत्मा पहले शान्तिधाम में रहने वाली हैं। आत्मा सो परमात्मा नहीं है। अहम् आत्मा सूर्यवंशी थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें। अब फिर ब्राह्मण वंश में आये हैं। यह चक्र अर्थात् बाजोली का खेल है। पहलेपहले हैं चोटी ब्राह्मण फिर क्षत्रिय, टोटल 84 जन्म भोगने पड़ते हैं। बच्चे, इसमें मूंझने की कोई बात नहीं है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। बाप का बच्चा बना और वर्से का लायक हो गया। माँ के गर्भ से निकला और वर्सा लिया। यह भी सेकेण्ड की बात है। जनक को सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिली ना। तुम भी ईश्वर के बने तो जीवनमुक्ति तुम्हारा हक है। तुम अमरलोक के मालिक बनते हो, यह है मृत्युलोक। तुमसे सौभाग्यशाली और कोई है नहीं। यहाँ तो अकाले मृत्यु हो जाता है। अब तुम काल पर विजय पाते हो। बाप कालों का काल है, तो उस बाप से तुमको कितना वर्सा मिलता है। सन्यासी थोड़ेही जानते हैं। सभी धर्मो को भी जानना चाहिए इसलिए यह चित्र बनाये हैं। यह पाठशाला है। कौन पढ़ाते हैं? भगवानुवाच, कृष्ण नहीं पढ़ाते। ज्ञान का सागर कृष्ण नहीं है। वह तो परमपिता परमात्मा है, वही तुमको ज्ञान दे रहे हैं। तुम हो ज्ञान गंगायें। देवताओं में तो यह ज्ञान होता ही नहीं। तुम ब्राह्मणों में ही यह ज्ञान है, त्रिकालदर्शीपने का। तुम ही इस समय यह ज्ञान सीखकर वर्सा पाते हो। राजयोग सीख स्वर्ग के राजा रानी बनते हो। तुम जानते हो हम बाबा द्वारा काल पर जीत पायेगे। वहाँ तुमको साक्षात्कार होगा तो यह पुराना शरीर छोड़ जाकर छोटा बच्चा बनेंगे। सर्प का मिसाल... यह सब मिसाल तुम्हारे लिए ही हैं। यही भारत पहले शिवालय था। चैतन्य देवी देवताओं का राज्य था, जिनके मन्दिर बनाये हुए हैं। शिवबाबा आकर शिवालय बनाते हैं। रावण फिर वेश्यालय बनाते हैं। बड़े-बड़े विद्वान-पण्डित यह नहीं जानते कि रावण क्या चीज है। तुम जानते हो रावण का आधाकल्प राज्य चलता है। देहली पर पहले गॉड गॉडेज लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत हेविन था। परन्तु फिर भूल गये हैं। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। मुख मीठा कर देते हैं। जब भारत स्वर्ग था तो पुनर्जन्म भी स्वर्ग में होता था। अब भारत नर्क है तो पुनर्जन्म भी नर्क में लेते हैं। बाप कहते हैं बच्चे तुमको याद है ना– कल्प-कल्प मैं आकर तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। अब तुम पतित से पावन बन रहे हो। यह काम एक ही बाप का है। बच्चों की बुद्धि में है– ऊंचे ते ऊंचा शिवबाबा, इस ब्रह्मा द्वारा बैठ सभी वेद शास्त्रों का सार समझाते हैं। भक्ति मार्ग में तो मनुष्य खर्च करतेकरते कौड़ी मिसल बन गये हैं। बाप कहते हैं मैंने तुम बच्चों को हीरे जवाहरों के महल बनाकर दिये। फिर तो तुमको नीचे उतरना ही था। कला कमती होनी ही थी। उस समय कोई ऊपर चढ़ न सके क्योंकि है ही गिरती कला का समय। इस समय तुम सबसे ऊंच ईश्वरीय औलाद हो फिर देवता क्षत्रिय... बनना ही है। कितना भी कोई दान-पुण्य करे, भक्ति मार्ग में खर्च करते-करते कला उतरनी ही है। बाबा भी बच्चों से पूछते हैं मैंने तुमको इतना साहूकार बनाया, तुमने सारा धन कहाँ किया? बच्चे कहते बाबा आपके ही मन्दिर बनाये। अब फिर शिव भोलानाथ बाबा हमारी 21 जन्मों के लिए झोली भर रहे हैं। बाबा कहते हैं आई एम योर ओबीडियन्ट सर्वेन्ट... मोस्ट ओबीडियन्ट फादर। मोस्ट ओबीडियन्ट टीचर हूँ। पारलौकिक फादर, पारलैकिक टीचर और परलोक में रहने वाला मोस्ट ओबीडियन्ट सतगुरू भी हूँ। तुमको साथ ले जाऊंगा और कोई गुरू तुमको साथ नहीं ले जायेगा। इसमें डरने की कोई बात नहीं है। अब तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, इन नेत्रों से इस बाबा को देखते हो, शिवबाबा को तो बुद्धि के नेत्र से जाना जाता है। वर्सा शिवबाबा से मिलता है। इस ब्रह्मा को भी वर्सा शिवबाबा से मिल रहा है। ऊंचे ते ऊंचा है ही शिवबाबा फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर, फिर ब्रह्मा सरस्वती फिर लक्ष्मी-नारायण बस। उन्होंने कितने ढेर चित्र बनाये हैं। 6-8 भुजा वाला कोई है नहीं। यह सब है भक्ति मार्ग का खेल। वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ एनर्जी... वास्तव में सर्व शास्त्रो मई शिरोमणी है गीता। उनमें भी बाप के बदले बच्चे का नाम डाल एकज भूल कर दी है। यह भी ड्रामा है। सबका सद्गति दाता, पतित-पावन एक बाप ही है। फिर दूसरा बाप है प्रजापिता ब्रह्मा, तीसरा है लौकिक बाप। जन्म बाई जन्म दो बाप मिलते हैं। इस एक ही समय पर तीन बाप मिलते हैं। इसमें मूँझने की कोई बात ही नहीं। कहते हैं ज्ञान, भक्ति और वैराग्य। अब वैराग्य भी दो प्रकार का है। एक है हद का, दूसरा है बेहद का। सन्यासी तो घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। यहाँ तो तुम पुरानी दुनिया को ही बुद्धि से छोड़ते हो। वह है हठयोग, यह है राजयोग। हठयोगी कभी राजयोग सिखला नहीं सकते। बहुत अच्छी-अच्छी बातें समझने की हैं। तुम बच्चे ही इस समय कांटों से फूल बनते हो। पहले नम्बर में तो देह-अभिमान का बड़ा कांटा है। उनको बाप ही छुड़ा सकते हैं और कोई की ताकत ही नहीं है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूल बेहद का वैरागी बनना है। देह-अभिमान के भूत को निकाल देना है।
2) बाप समान ओबीडियन्ट बन सेवा करनी है। आप समान बनाना है। किसी भी बात में मूँझना नहीं है।
वरदान:
सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती कला की स्थिति का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव!
उमंग-उत्साह आप ब्राह्मणों के उड़ती कला के पंख हैं। अगर कार्य अर्थ नीचे भी आते हो तो उड़ती कला की स्थिति से, कर्मयोगी बन कर्म में आते हो। यह उमंग-उत्साह ब्राह्मणों के लिए बड़े से बड़ी शक्ति है। नीरस जीवन नहीं है। उमंग-उत्साह का रस है तो कभी दिलशिकस्त नहीं हो सकते, सदा दिलखुश। उत्साह, तूफान को भी तोहफा बना देता है। परीक्षा वा समस्या को मनोरंजन अनुभव कराता है।
स्लोगन:
जो अशरीरी स्थिति के अभ्यासी हैं उन्हें शरीर की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती।