Thursday, February 9, 2017

मुरली 9 फरवरी 2017

09-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– तुम सबको सच्ची गीता सुनाकर सुख देने वाले सच्चे-सच्चे व्यास हो, तुम्हें अच्छी तरह पढ़कर सबको पढ़ाना है, सुख देना है”
प्रश्न:
सबसे ऊंची मंजिल कौन सी है, जिस पर पहुंचने का तुम पुरूषार्थ करते हो?
उत्तर:
अपने को अशरीरी समझना, इस देह-अभिमान पर जीत पाना– यही ऊंची मंजिल है क्योंकि सबसे बड़ा दुश्मन है देह-अभिमान। ऐसा पुरूषार्थ करना है जो अन्त में बाप के सिवाए कोई याद न आये। शरीर छोड़ बाप के पास जाना है। यह शरीर भी याद न रहे। यही मेहनत करनी है।
गीत:
इस पाप की दुनिया से....  
ओम् शान्ति।
जीव आत्मायें या बच्चे समझते हैं दिल में कि अभी हमको बाबा कहाँ ले चलते हैं। बरोबर जहाँ से हम आये हैं वहाँ ही ले चलेंगे। फिर हमको पुण्य आत्माओं की सृष्टि, जीव आत्माओं की दुनिया में भेज देंगे। श्रेष्ठ और भ्रष्ट अक्षर निकले हैं, जरूर जीव आत्माओं को ही कहेंगे। सुख वा दु:ख जब शरीर में है तब ही भोगा जाता है। बच्चे जानते हैं कि अब बाबा आया है। बाबा का नाम हमेशा शिव है। हमारा नाम सालिग्राम है। शिव के मन्दिर में सालिग्रामों की भी पूजा होती है, बाबा ने समझाया था– एक है रूद्र ज्ञान यज्ञ, दूसरा है रूद्र यज्ञ। उसमें खास बनारस के ब्राह्मणों, पण्डितों को बुलाते हैं– रूद्र यज्ञ की पूजा के लिए। बनारस में ही शिव के रहने के अनेक मन्दिर हैं। शिव-काशी कहते हैं, असल नाम काशी था। फिर अंग्रेजों ने बनारस नाम रखा। वाराणसी नाम अभी रखा है। भक्ति मार्ग में आत्मा परमात्मा का ज्ञान तो है नहीं। पूजा दोनों की अलग-अलग करते हैं। एक बड़ा शिवालिंग बनाते हैं बाकी छोटे-छोटे सालिग्राम अनेक बनाते हैं। तुम जानते हो– हम आत्माओं का नाम है सालिग्राम और हमारे बाबा का नाम है शिव। सालिग्राम सब एक साइज के बनाते हैं तो बरोबर बाप और बेटे का सम्बन्ध है। आत्मा याद करती रहती है हे परमपिता परमात्मा। हम परमात्मा नहीं हैं। परमात्मा हमारा बाबा है, यह समझाने की मत तुमको दी गई है। दिन-प्रतिदिन तुमको श्रीमत मिलती रहती है कि कोई को भी पहले बाप का परिचय दे वर्सा दिलाना है। पहले तुमको सिद्ध करके समझाना है कि वह निराकार बाप है। यह प्रजापिता साकार है। वर्सा निराकार से मिलता है। अब बाप समझाते हैं– मेरा एक ही शिव नाम है। दूसरा कोई मेरा नाम नहीं। सभी आत्माओं के शरीर के नाम अनेक हैं। मेरा कोई शरीर है नहीं। मैं सुप्रीम सोल हूँ। बाबा पूछते हैं बच्चे, तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है? जो सयाने होंगे वह कहेंगे देह-अभिमान सबसे बड़ा दुश्मन है जिससे ही काम की उत्पत्ति होती है। देह-अभिमान को जीतने में बड़ी मुश्किलात होती है। देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। जन्म-जन्मान्तर तुम देह के सम्बन्ध में चले हो। अब जानते हो बरोबर मैं आत्मा अविनाशी हूँ, जिसके आधार से यह शरीर चलता है। रिलीजस माइन्डेड जो भी हैं वह समझते हैं कि हम आत्मा हैं, देह नहीं हैं। आत्मा का नाम एक ही रहता है। देह के नाम बदलते हैं। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। हमको बाप कहते हैं तुमको चलना है पुण्य आत्माओं की दुनिया में। यह है पाप आत्माओं की दुनिया। भ्रष्टाचारी रावण बनाते हैं। 10 शीश वाला कोई मनुष्य नहीं होता परन्तु इस बात को कोई नहीं जानते। सभी रामलीला आदि में पार्ट लेते रहते हैं। सब एक मत भी नहीं हैं। कोई-कोई इन सब बातों को कल्पना समझते हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि रावण भ्रष्टाचारी को कहा जाता है। पराई स्त्री को चुराना यह भ्रष्टाचार है ना। इस समय सब भ्रष्टाचारी हैं क्योंकि विकार में जाते हैं। जो विकार में न जायें उनको निर्विकारी कहा जाता है, वह है रामराज्य। यह है रावण राज्य। भारत में ही रामराज्य था। भारत सबसे प्राचीन था। पहले नम्बर में सृष्टि पर सूर्यवंशी देवी देवताओं का झण्डा बुलन्द था। उस समय चन्द्रवंशी भी नहीं थे। अभी तुम बच्चों का यह सूर्यवंशी झण्डा है। तुमको मंजिल का पता लगा है फिर भूल जाते हो। स्कूल में बच्चा कभी एम आब्जेक्ट को भूल नहीं सकता। स्टूडेन्ट टीचर को वा पढ़ाई को कभी भूल नहीं सकते। यहाँ फिर भूल जाते हैं। कितनी बड़ी पढ़ाई है, 21 जन्मों के लिए राज्यभाग्य पाते हो। ऐसे स्कूल में कितना अच्छा और रोजाना पढ़ना चाहिए। इस कल्प अगर नापास हुए तो कल्प-कल्प नापास होते ही रहेंगे। फिर कभी भी पास नहीं होना है। तो कितना पुरूषार्थ करना चाहिए। श्रीमत पर चलना चाहिए। श्रीमत कहती है अच्छी रीति धारणा करो और कराओ। अगर ईश्वरीय डायरेक्शन पर नहीं चलेंगे तो ऊंच पद भी नहीं पायेंगे। अपनी दिल से पूछो– हम श्रीमत पर चल रहे हैं। अपने को मिया मिठ्ठू नहीं समझना है। अब अपने से पूछो तो जैसे यह ब्रह्मा सरस्वती श्रीमत पर चलते, हम ऐसे चल रहे हैं? पढ़कर और पढ़ाते हैं? क्योंकि तुम सच्ची-सच्ची गीता सुनाने वाले व्यास हो। वह व्यास नहीं जिसने गीता लिखी है। तुम इस समय सुखदेव के बच्चे सुख देने वाले व्यास हो। सुखदेव शिवबाबा गीता का भगवान है। तुम उनके बच्चे व्यास हो कथा सुनाने वाले। यह स्कूल है, स्कूल में बच्चे की पढ़ाई से नम्बर का मालूम पड़ जाता है। वह है प्रत्यक्ष, यह है गुप्त। यह फिर बुद्धि से जाना जाता है कि हम किस लायक हैं! किसको पढ़ाने का सबूत मिला है। बच्चे लिखते हैं बाबा फलाने ने हमको ऐसा तीर लगाया जो हम आपके बन गये। कोई तो सामने आते भी कह नहीं सकते कि बाबा हम तो आपके बन गये। कई बच्चियां पवित्रता के कारण मार भी खाती रहती हैं। कोई तो बच्चे बन फिर टूट भी पड़ते हैं क्योंकि अच्छी तरह से पढ़ते नहीं। नहीं तो बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं कि बच्चे सिर्फ मुझे याद करो और पढ़ो इस नॉलेज से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। घर के बाहर भी लिख दो– एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है– जनक मिसल, 21 जन्मों के लिए। एक सेकेण्ड में तुम विश्व के मालिक बन सकते हो। विश्व के मालिव तो जरूर देवतायें ही बनेंगे ना। सो भी नई विश्व, नया भारत। जो भारत नया था सो अब पुराना हो गया है। सिवाए भारत के और कोई खण्ड को नया नहीं कहेंगे। अगर नया कहेंगे तो फिर पुराना भी कहना पड़ेगा। हम फुल नये भारत खण्ड में जाते हैं। भारत ही 16 कला सम्पूर्ण बनता है और कोई खण्ड फुल मून हो न सके। वह तो शुरू ही आधा से होता है। कितने अच्छे-अच्छे राज हैं। हमारा भारत ही सचखण्ड कहलाया जाता है। सच के पीछे फिर झूठ भी है। भारत पहले फुल मून होता है। पीछे तो अन्धियारा हो जाता है। पहला झण्डा है हेविन का। गाते भी हैं पैराडाइज था... हम अच्छी तरह से समझा सकते हैं क्योंकि हमको सारा अनुभव है। सतयुग त्रेता में हमने कैसे राज्य किया फिर द्वापर कलियुग में क्या हुआ, यह सब बुद्धि में आने से कितनी खुशी आनी चाहिए। सतयुग को सोझरा, कलियुग को अन्धियारा कहा जाता है, तब कहते हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया... बाबा ने कैसे आकर तुम अबलाओं, माताओं को जगाया है। साहूकार तो कोई मुश्किल ही खड़ा होता है। इस समय सचमुच बाबा गरीब निवाज है। गरीब ही स्वर्ग के मालिक बनते हैं, साहूकार नहीं। इसका भी गुप्त कारण है। यहाँ तो बलिहार जाना पड़ता है। गरीबों को बलिहार जाने में देरी नहीं लगती इसलिए सुदामा का मिसाल गाया हुआ है। तुम बच्चों को अब रोशनी मिली है, परन्तु तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। और सबकी ज्योत उझाई हुई है। इतनी छोटी सी आत्मा में अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है। वन्डर है ना। यह कोई साइंस की शक्ति नहीं है। तुमको अब बाबा से शक्ति मिलती है, बरोबर यह अविनाशी चक्र है जो फिरता रहता है, इनका कोई आदि अन्त नहीं है। नया कोई यह बातें सुने तो चकरी में आ जाये। यहाँ 10-20 वर्ष वालों को भी पूरा समझ में नहीं आता है, न किसको समझा सकते हैं। तुमको पिछाड़ी में सब पता पड़ जायेगा कि फलाना, फलाने के पास जन्म लेगा, यह होगा... जो महावीर होंगे उन्हों को आगे चलकर सब साक्षात्कार होते रहेंगे। पिछाड़ी में तुमको सतयुग के झाड़ बहुत नजदीक दिखाई पड़ेंगे। महावीरों की ही माला है ना। पहले 8 महावीर फिर हैं 108 महावीर। पिछाड़ी में बहुत फर्स्टक्लास साक्षात्कार होंगे। गाया भी हुआ है– परमपिता परमात्मा ने बाण मरवाये। नाटक में बहुत बातें बनाई हैं। वास्तव में यह स्थूल बाणों की बात नहीं। कन्यायें, मातायें बाणों से क्या जानें। वास्तव में यह हैं ज्ञान बाण और इन्हों को ज्ञान देने वाला बरोबर परमपिता परमात्मा है। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। परन्तु बच्चों को एक ही मुख्य बात घड़ी- घड़ी भूल जाती है। सबसे कड़े ते कड़ी भूल होती है जो देह-अभिमान में आकर अपने को आत्मा निश्चय नहीं करते। सच कोई नहीं बतलाते। सच तो कोई आधा घण्टा, घण्टा भी सारे दिन में मुश्किल याद में रह सकते हैं। कोई को समझ में भी नहीं आता कि योग किसको कहा जाता है। मंजिल भी बहुत ऊंची है। अपने को अशरीरी समझना है, जितना हो सके उतना पुरूषार्थ करना है, जो पिछाड़ी के समय कोई भी याद न पड़े। कोई तत्व ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी अच्छे होते हैं तो गद्दी पर बैठे-बैठे समझते हैं हम तत्व में लीन हो जायेंगे। शरीर का भान नहीं रहता है। फिर जब उनका शरीर छूटता है तो आसपास सन्नाटा हो जाता है। समझते हैं कोई महान आत्मा ने शरीर छोड़ा है। तुम बच्चे याद में रहेंगे तो कितनी शान्ति फैलायेंगे। यह अनुभव उन्हों को होगा जो तुम्हारे कुल के होंगे। बाकी तो मच्छरों सदृश्य मरने वाले हैं। तुम्हारी प्रैक्टिस हो जायेगी अशरीरी होने की। यह प्रैक्टिस तुम यहाँ ही करते हो। वहाँ सतयुग में तो आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। यहाँ तो तुम जानते हो यह शरीर छोड़ बाबा के पास जाना है। परन्तु पिछाड़ी में कोई याद न आये। शरीर ही याद न रहे तो बाकी क्या रहा। मेहनत है इसमें। मेहनत करते-करते पिछाड़ी में पास होकर निकलते हो। पुरूषार्थ वालों का भी पता तो पड़ता है ना, उनका शो निकलता रहेगा। बांधेली गोपिकायें पत्र ऐसे लिखती हैं, जो कभी छुटेली भी नहीं लिखती। उन्हों को फुर्सत ही नहीं। बांधेलियां समझती हैं शिवबाबा ने इन हाथों का लोन लिया है तो शिवबाबा का पत्र आयेगा। ऐसा पत्र तो फिर 5 हजार वर्ष के बाद आयेगा। क्यों नहीं बाबा को पत्र रोज लिखें। नयनों से काजल निकालकर भी लिखें। ऐसे-ऐसे ख्यालात आयेंगे। और लिखती हैं बाबा मैं वही कल्प पहले वाली गोपिका हूँ। हम आपसे मिलेंगे भी जरूर, वर्सा भी जरूर लेंगे। योगबल है तो अपने को बंधन से छुड़ाती रहती हैं। फिर मोह भी किसमें न रहे। चतुराई से समझाना है। अपने को बचाना है, तोड़ निभाने के लिए बड़ी कोशिश करनी है। मातायें समझती हैं हम पति को भी साथ ले चलें। हमारा फर्ज है उन्हों को समझाना। पवित्रता तो बहुत अच्छी है। बाबा खुद कहते हैं काम महाशत्रु है, इनको जीतो। मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा। ऐसी बच्चियां हैं जो पति को समझाकर ले आती हैं। बांधेलियों का भी पार्ट है। अबलाओं पर अत्याचार तो होते ही हैं। यह शास्त्रों में भी गायन है– कामेशु, क्रोधेशु... कोई नई बात नहीं है। तुमको तो 21 जन्मों का वर्सा मिलता है, इसलिए थोड़ा कुछ सहन तो करना ही पड़ता है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) योगबल से अपने सब बन्धनों को काट बंधनमुक्त होना है, किसी में भी मोह नहीं रखना है।
2) जो भी ईश्वरीय डायरेक्शन मिलते हैं उन पर पूरा-पूरा चलना है। अच्छी तरह से पढ़ना और पढ़ाना है। मियाँ मिटठू नहीं बनना है।
वरदान:
त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूंझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन करने वाले कर्मयोगी भव!
जो बच्चे त्रिकालदर्शी हैं वे कभी किसी बात में मूंझ नहीं सकते क्योंकि उनके सामने तीनों काल क्लीयर हैं। जब मंजिल और रास्ता क्लीयर होता है तो कोई मूंझता नहीं। त्रिकालदर्शी आत्मायें कभी कोई बात में सिवाए मौज के और कोई अनुभव नहीं करती। चाहे परिस्थिति मुंझाने की हो लेकिन ब्राह्मण आत्मा उसे भी मौज में बदल देगी क्योंकि अनगिनत बार वह पार्ट बजाया है। यह स्मृति कर्मयोगी बना देती है। वह हर काम मौज से करते हैं।
स्लोगन:
सर्व का सम्मान प्राप्त करना है तो हर एक को सम्मान दो।