Wednesday, March 1, 2017

मुरली 1 मार्च 2017

01-03-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– ज्ञान के तीसरे नेत्र से बाप को दखो, बाप को ही याद करो, इस शरीर को देखते हुए भी नहीं देखो”
प्रश्न:
इस पुरानी दुनिया में रहते तुम बच्चों को कौन सा डायरेक्शन मिला हुआ है?
उत्तर:
मीठे बच्चे– यह पुरानी दुनिया, जिसमें तुम रहते हो यह कब्रिस्तान होनी है, इस पर रावण का राज्य है, इनसे दिल नहीं लगाओ। यहाँ रहते बुद्धि की आसक्ति नई दुनिया में जानी चाहिए। गृहस्थ व्यवहार में भल रहो परन्तु कमल फूल समान रहो, सबसे तोड़ निभाओ। बुद्धियोग एक बाप से लगा रहे। ज्ञान योग में पक्के बनो। किसी भी हालत में खुशी का पारा कम न हो। धीरज रख कर्मबन्धन को काटते जाओ।
गीत:
धीरज धर मनुवा....   
ओम् शान्ति।
मनुष्य, मनुष्य को धीरज धरने के लिए तब कहते हैं जब कि वह दु:खी बीमार होते हैं। यहाँ तो तुम मनुष्य मत पर नहीं चलते। तुम ईश्वरीय मत पर चल रहे हो। सो भी सब नहीं चलते। ईश्वर जिसको सत्य बाप, सत्य टीचर, सतगुरू कहा जाता है- उनकी मत तो नामीग्रामी है। भगवान ने ही श्रीमत दी थी। मनुष्य से देवता बनने की अथवा दैवी दुनिया के मालिक बनने की। इतनी ऊंची मत और कोई दे न सके क्योंकि मनुष्य मात्र सब पतित भ्रष्टाचारी हैं। तो वह मत भी ऐसी ही देंगे। तुम बच्चे ही जानते हो कि हमको शिवबाबा मत दे रहे हैं। ऊंचे ते ऊंचे बाप की ऊंचे ते ऊंची मत है। उनको तो कोई भ्रष्टाचारी पतित नहीं कहेंगे। पतित ही उस निराकार बाप को बुलाते हैं- साकार की तो बात नहीं इसलिए कहा जाता है मनुष्य की मत, मत सुनो। हियर नो ईविल, सी नो ईविल.. भल यह आंखें मनुष्यों को तो देखती हैं परन्तु तुमको तीसरा नेत्र मिला हुआ है, जिससे उनको देखना है। और उस बाप को ही याद करना है। दूसरा कोई नहीं जिसको तीसरा नेत्र हो, जिससे वह बाप को देख सके। तुम समझो बाप को देखने जायेंगे, बुद्धि में है यह तो आत्मा है ना। तुम आत्मा को देखते हो। जीवात्मा कहना चाहिए। सिर्फ बहन कहने से आत्मा को भूल जाते हैं। यहाँ समझाया जाता है तुम इस शरीर को भूल जाओ। अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। उनको देखो दिव्य चक्षु से। तुम्हारी आत्मा को अब सोझरा मिला है– कि हमारा बाप कौन है! कहाँ रहते हैं! उनसे हमको क्या मिलना है! तुम्हारे मिसल दुनिया में कोई भी नहीं जो बाप से वर्सा लेने का पुरूषार्थ करते हो। जब तक कोई बच्चा ही न बनें तो बाप से वर्सा कैसे ले सकते हैं। बाप का वर्सा तो बेशुमार है। ऊंचे ते ऊंचा है सूर्यवंशी राजा रानी बनना। बैरिस्टरी भल पास करते हैं परन्तु उनमें भी नम्बरवार होते हैं। कोई तो बहुत कमाते, कोई तो पेट भी मुश्किल भरते। अब तुम जानते हो हम ईश्वर से राजाई प्राप्त कर रहे हैं। कोई भी मनुष्य को, कोई कब कह न सके कि यह सत्य बाप, सत्य टीचर, सतगुरू है और सब गुरू लोग हैं। सतगुरू सत्य बोलने वाला एक ही है। बाकी सब हैं झूठ बोलने वाले। वह सच्ची सद्गति किसको दे नहीं सकते। सतगुरू की महिमा हम तुम भी नहीं जानते थे। कोई की भी बुद्धि में नहीं आयेगा कि वह सत बाप, सत टीचर, सतगुरू कैसे है। वो तो सर्वव्यापी कह बात खत्म कर देते हैं। वह परमात्मा को अलग समझते नहीं कि वह बाप है, हम बच्चे हैं। कह देते सब बाप ही बाप हैं। इनसे भी नीचे ठिक्कर भित्तर में परमात्मा को ठोक दिया। बाप समझाते हैं, ऐसे है नहीं। तुम बच्चों को अब निश्चय हुआ कि बरोबर बाप सत बाप, सत टीचर, सतगुरू एक ही है। उनको कोई जानते नहीं। अगर जानते हों तो वहाँ जा भी सकें। किसको जाना जाता है तो उनके नाम, रूप, देश, काल सबको जाना जा सकता है। नहीं तो जानने से फायदा ही क्या! मनुष्य सब दु:खी हैं इसलिए शान्ति चाहते हैं। उनको यह पता ही नहीं कि हम असुल शान्तिधाम के रहने वाले हैं। वहाँ से हम आते हैं। हम आत्मा का स्वधर्म शान्ति है। बाबा गुरूओं के लिए समझाते हैं वह किसको सद्गति दे नहीं सकते। वह डराते हैं, कहते हैं गुरू का निंदक ठौर न पावे। वास्तव में यह सब बातें बेहद के बाप के लिए हैं कि अगर तुम मेरी निंदा करायेंगे तो सतयुग में ऊंच ठौर नहीं पायेंगे। सन्यासी तो यह बात कह न सके कि तुम मेरी निंदा करने से ठौर नहीं पायेंगे। कौन सा ठौर? ठौर का तो कुछ पता ही नहीं। साधना करते रहते परन्तु साधना करने से सद्गति को पा न सके। यह बाप ही आकर धीरज देते हैं। तुम जानते हो बरोबर 84 जन्मों का चक्र लगाया है, हम बहुत दु:खी हैं। जब तक सुखधाम का साक्षात्कार न हो तो दु:खधाम समझें कैसे! अभी तुम जानते हो यह दु:खधाम है– अल्पकाल का सुख है। इस अल्पकाल की राजाई में कितनी खुशी होती है। समझते हैं गांधी ने राम राज्य स्थापन किया। परन्तु नहीं, यह तो और ही तीखा रावण का राज्य बन गया। सब कहते हैं पतित भ्रष्टाचारी है। आगे सिर्फ पतित थे अब तो भ्रष्टाचारी भी कहते हैं। यह है कलियुग की अन्त। कितनी रिश्वत है। बाप आकर सारी दुनिया के मनुष्य मात्र को कहते हैं अब धैर्य धरो। परन्तु सुनते नहीं हैं। पिछाड़ी में सबको मालूम पड़ेगा। प्रदर्शनी में भी यही दिखाते हैं कि कैसे दु:ख की दुनिया को हटाए सुख की दुनिया बना रहे हैं। आखरीन सब सुनेंगे तो सही ना। एक तरफ माया सबके गले घुटती रहती है। दूसरी तरफ बाप अपनी पहचान देते रहते हैं। अब तो ढेर मनुष्यों को आवाज पहुँचाना है। जितनी जितनी महिमा निकलेगी तो फिर अखबारों में भी जोर से पड़ेगा। फिर बहुत आयेंगे। यह मेहनत है। धर्म अथवा मठ आदि स्थापन करना तो बहुत सहज है। बौद्धी धर्म की एक स्पीच की, 60-70 हजार बौद्धी बना लिये। यहाँ तो मेहनत है। माया बड़ा जोर से सामना करती है। वहाँ तो माया के साथ युद्ध की बात ही नहीं। यहाँ माया से युद्ध करने में मेहनत है। मुख्य बात है पवित्रता की। और कोई जगह पवित्रता की बात नहीं। वह तो घर से वैराग्य आता है या कुछ चोरी पाप आदि करते हैं तो सन्यास धारण कर लेते हैं इसलिए चोरों को पकड़ने के लिए भी गवर्मेन्ट को सन्यासी सी. आई. डी. आदि रखने पड़ते हैं। दलालों के रूप में, व्यापारियों के रूप में भी सी.आई.डी. होते हैं। पुलिस का गुप्त काम बहुत चलता है। दोस्ती के बहाने भी सोने के व्यापारियों से मिल जाते हैं, फिर सब कुछ मालूम पड़ जाता है। धन्धे वाले,धन्धा भी करते तो सी.आई.डी. भी करते। दुनिया बहुत मुसीबतों में फँसी हुई है। तुम बहुत भाग्यशाली हो जो इन सब मुसीबतों से दूर निकल आये हो। दुनिया में तो मुसीबत पर मुसीबत है। तुम्हारे लिए बहुत प्राप्ति है। वह तो दु:खी होकर मरते हैं। तुम बैठे हो यह शरीर छोड़ने के लिए। कहाँ पुराना शरीर खत्म हो तो हम वापिस बाबा के पास जायें। दिल लगी बाप के साथ और नई दुनिया के साथ तो पुरानी दुनिया क्या काम की। यह तो पुराना कपड़ा है। इससे वैराग्य आ जाता है। सन्यासियों को वैराग्य आता है– घरबार से। स्त्री को नागिन समझते हैं। तुम्हारा तो सच्चा-सच्चा वैराग्य है। गाया भी जाता है– ज्ञान, भक्ति और वैराग्य। ज्ञान मिलता है कि पुरानी दुनिया से वैराग्य करो। यह कब्रिस्तान बनना है। वह है हद का सन्यास, उन्हों को यह मालूम नहीं है कि यह पुरानी दुनिया खत्म होने वाली है। वह कहते हैं हम घर में इकठ्ठा रह नहीं सकते तो उन्हों को घर से वैराग्य होता है और वह जंगल में चले जाते हैं। तुम्हारा यह है बेहद का वैराग्य। परन्तु इनका किसको पता ही नहीं। तुम कहेंगे हमको तो सारी पुरानी दुनिया से, कब्रिस्तान से वैराग्य है। यह रावणराज्य है। ऐसा कौन मूर्ख होगा जो पुरानी दुनिया से दिल लगायेगा। जब तक पूरी तैयारी हो जाये। सतयुग आने का समय भी हो तब तो लड़ाई लगेगी। कई लिखते हैं कि भल बैठे घर में हैं परन्तु मूँझते हैं कि क्या करें। ममत्व अगर नहीं रखें तो सम्भाल कैसे हो। बाप कहते हैं बच्चे रहना तो यहॉ ही है। परन्तु बुद्धि की आसक्ति अब नई दुनिया में जानी चाहिए। सच्चा लव उसमें जाना चाहिए। इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है। देह से भी वैराग्य। तो बाकी क्या रहा। बहुत पूछते हैं– बाबा आप कहते हो दोनों तरफ तोड़ निभाना है। सो तो जरूर करना है। अगर तोड़ नहीं निभायेंगे तो सन्यासियों के मिसल हो जायेंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहो। देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करो तो बुद्धियोग बाप से लग जायेगा। मैं आत्मा हूँ, बाप के पास जाना है। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो। ज्ञान और योग नहीं होगा तो लटक पड़ेंगे। हर एक की जन्म पत्री अलग अलग है। हर एक के लिए युक्ति भी अलग-अलग मिलती है। कोई तकलीफ हो तो पूछो। कोई भी हालत में खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। हम घर जाते हैं फिर आयेंगे नई राजधानी में। बाकी थोड़ा समय है। पार्ट बजाना है। ममत्व तोड़ते जाना है। हर एक का कर्मबन्धन अलग अलग है। कोई-का हल्का, कोई का भारी है। बाबा से युक्ति लेकर धैर्यता से कर्मबन्धन को काटते जाना है। इसमें गुप्त मेहनत चाहिए। बुद्धि को यात्रा में ले जाने की मेहनत है। घड़ी घड़ी बुद्धियोग टूट पड़ता है। अब परिपक्व बन जावें तो कर्मातीत अवस्था आ जाये। अभी तो अनेक प्रकारों के विकल्पों के ही तूफान लग पड़ते हैं। एकदम नींद ही फिट जाती है। विकल्पों को ही तूफान कहते हैं और सतसंगों में यह बातें नहीं होती। वहाँ तो है कनरस, फायदा कुछ भी नहीं। यहाँ तो यह पढ़ाई है, आमदनी के लिए। पढ़ाई को कनरस नहीं कहेंगे। तो बाप समझाते हैं यह अन्तिम जन्म है, पुरानी दुनिया खत्म हो जाने वाली है। क्यों न श्रीमत पर चल ऊंच पद पायें! जब तक इसमें होशियार हो जाओ तब तक शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना है फिर इस ईश्वरीय सर्विस में लग जाना। सारी दुनिया को सैलवेज करना है। तुम हो सैलवेशन आर्मा। नर्क से निकाल स्वर्ग में ले जाते हो। वह सैलवेशन आर्मा यह नहीं जानते कि विश्व का बेड़ा डूबा हुआ है। सब रावण की जंजीरों में फँसे हुए हैं। सारी विश्व को अब सैलवेज करना है, इसमें तो बाप की मदद चाहिए। तुम रूहानी ईश्वरीय सैलवेशन आर्मा हो। मनुष्य मात्र को रावण के पंजे से छुडाना है। इतना नशा चाहिए। वह जिस्मानी सोशल वर्कर तो ढेर हैं। तुम कितने थोड़े हो। यहाँ तो मनुष्य भी ढेर, सतयुग में मनुष्य बहुत थोड़े होते हैं। तुम थोड़े बच्चे ही रूहानी बाप से वर्सा लेते हो। यह अन्तिम जन्म जो कौड़ी जैसा है उनको हीरे जैसा बनना है। एक आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश। बाप ही एक धर्म की स्थापना करते और कराते हैं। सैपलिंग लगाने अथवा स्थापना करने में बहुत मेहनत लगती है। जब तक किसको बाप समान नहीं बनाया है तब तक खुशी का पारा नहीं चढ़ेगा। खुशी का पारा तब चढ़ेगा जब दान करेंगे। जिसके पास धन हो और दान न करें तो उनको मनहूस कहा जाता है। यहाँ फिर ऐसे नहीं है। जिनके पास है वह तो देते रहेंगे। नहीं तो समझेंगे इनके पास धन ही नहीं है। अच्छा!

मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ईश्वरीय सैलवेशन आर्मा बन विश्व के डूबे हुए बेडे को पार लगाना है। मनुष्यों को कौड़ी तुल्य से हीरे जैसा बनाना है। ज्ञान धन दान करने में कन्जूस नहीं बनना है।
2) अपनी दिल बाप और नई दुनिया से लगानी है। इस पुरानी देह से बेहद का वैरागी बनना है।
वरदान:
पूर्वजपन की स्मृति द्वारा सर्व की पालना करने वाले शुभ वृत्ति वा मंसा शक्ति सम्पन्न भव
किसी भी धर्म की आत्माओं को मिलते वा देखते हो तो यह स्मृति रहे कि यह सब आत्मायें हमारे ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर की वंशावली हैं। हम ब्राह्मण आत्मायें पूर्वज हैं। पूर्वज सभी की पालना करते हैं। आपकी अलौकिक पालना का स्वरूप है बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियां अन्य आत्माओं में भरना। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसकी उस शक्ति द्वारा पालना करना। इसके लिए अपनी वृत्ति बहुत शुद्ध और मन्सा शक्ति सम्पन्न होनी चाहिए।
स्लोगन:
जिसके पास ज्ञान का अविनाशी धन है-वही दुनिया में सबसे बड़ा सम्पत्तिवान है।