Thursday, March 16, 2017

मुरली 17 मार्च 2017

17/03/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम बाप के बने हो इस दुनिया से मरने के लिए, ऐसी अवस्था पक्की करो जो अन्त में बाप के सिवाए कोई भी याद न आये”
प्रश्न:
सबसे तीखी आग कौन सी है जो सारी दुनिया को इस समय लगी हुई है, उसको बुझाने का तरीका सुनाओ?
उत्तर:
सारी दुनिया में इस समय “काम” की आग लगी हुई है, यह आग सबसे तीखी है। इस आग को बुझाने वाली रूहानी मिशन एक ही है, इसके लिए स्वयं को फायरब्रिगेड बनाना है। सिवाए योगबल के यह आग बुझ नहीं सकती। काम विकार ही सबकी सत्यानाश करता है इसलिए इस भूत को भगाने का पूरा पुरुषार्थ करो।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा.....  
ओम् शान्ति।
जो अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल बच्चे हैं, वह इस गीत के अर्थ को अच्छी रीति समझ जाते हैं। इस गीत को सुनने से सारे सृष्टि वा, रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जाना जाता है। गीत बजाया जाता है कि मनुष्य जान जायें। किस द्वारा? ज्ञान के सागर द्वारा। बच्चे जानते हैं कि हम बाप के बनते हैं इस पुरानी दुनिया से मरकर अपने परमधाम में जाने के लिए। यह पुरुषार्थ और कोई करा न सके सिवाए एक बाप के। बाप कहते हैं मेरा बनने से तुमको इस दुनिया से मरना होगा। पिछाड़ी में ऐसी अवस्था पक्की होनी चाहिए जो सिवाए एक बाप की याद के और किसकी भी याद न आये। तुम बच्चे जानते हो शमा आई है परवानों को साथ ले जाने के लिए। परवाने तो ढेरों के ढेर हैं। प्रदर्शनी में भी देखो कितने ढेर आते हैं। कई बच्चे तो प्रदर्शनी का अर्थ भी नहीं समझते होंगे। पुरानी दुनिया को फिर नई दुनिया बनाने की प्रदर्शनी। पुरानी दुनिया का विनाश हो नई दुनिया की फिर स्थापना कैसे होती है। यह संगम पर ही दिखाया जाता है। दोनों इकट्ठे तो हो न सकें। एक खत्म होनी है जरूर। तुम्हारे में भी जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं वह जानते हैं। रामराज्य अर्थात् नई दुनिया स्थापन हो रही है। रामराज्य स्थापन होने के बाद रावण राज्य खत्म हो जायेगा। जब तुम रामराज्य के भाती बनते हो तो तुम्हारे में कोई भी भूत नहीं होना चाहिए। भूतों को भगाने की कोशिश करनी चाहिए। पहले-पहले काम अग्नि को बुझाना है। अपने लिए फायर ब्रिगेड बनना है। यह आग सबसे तीखी और बिल्कुल गन्दी है, सिवाए योगबल के बुझा नहीं सकते। सो भी यही सवाल है सारी दुनिया का। सबको काम की आग लगी हुई है। इस आग को बुझाने वाली रूहानी मिशन एक ही है। उनको जरूर यहाँ आना पड़े। कहते भी हैं हे पतित-पावन आओ। पतित कामी को कहा जाता है। हे काम की आग (भूत) को भस्म करने वाले आओ। यहाँ मैजारटी तो पतित हैं। भल कोई पवित्र रहते हैं। तुमको युक्ति बताता हूँ इनको कैसे बुझाओ। यह काम अग्नि भी सतो, रजो, तमो में आती है। तमोप्रधान वह हैं जो बिल्कुल रह नहीं सकते। आग लगी रहती है। मनुष्य की सत्यानाश यह काम विकार करता है। सतयुग में कोई दुश्मन होता नहीं। वहाँ न रावण होता, न मनुष्य के दुश्मन होते। तुम समझाते हो भारत का सबसे बड़ा दुश्मन रावण है। खेल ही सारा भारत पर बना हुआ है। सतयुग में रामराज्य, कलियुग में रावणराज्य। कार्टून में भी दिखाया है - वह भी मनुष्य, यह भी मनुष्य। देवताओं के आगे हाथ जोड़कर जाकर कहते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न हो, हम पापी दु:खी हैं। यह भारत श्रेष्ठाचारी पावन था जरूर। जहाँ देवी देवतायें राज्य करते थे। लक्ष्मी-नारायण और राम सीता, दोनों का राज्य था। है उन्हों का घराना। प्रजा का चित्र तो नहीं बनायेंगे। अब बाप कितना सहज करके समझाते हैं। समझाकर फिर कहते हैं बुद्धि में धारणा होती है ना। जैसे मेरी बुद्धि में धारणा है, झाड़, ड्रामा की नॉलेज हमारे पास है इसलिए मुझे ज्ञान का सागर कहते हैं। सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान मेरे पास है। मुझे पवित्रता का भी सागर कहते हैं। पतित-पावन भी मुझे ही कहते हैं जो आकर सारे भारत को पावन बनाते हैं। यह है राजयोग और ज्ञान। बैरिस्टरी पढ़ते हैं उनको कहेंगे बैरिस्टरी योग क्योंकि उस पढ़ाई से ही बैरिस्टर बन जाते हैं। यह बाप कहते हैं तुम बच्चों को आकर राजयोग सिखाता हूँ। राजायें भी सब भगवान को याद करते हैं। भगवान से क्या मिलेगा? जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए।



तुम सबसे पूछते हो कि परमपिता परमात्मा का परिचय है? वह बाप रचयिता है तो जरूर स्वर्ग रचता होगा और स्वर्ग की राजाई देते हैं, जो हम बच्चों को मिली थी। अब नहीं है फिर ले रहे हैं। जैसे कल्प पहले भारतवासियों ने ली थी। अब फिर से भारतवासियों को लेनी है। (नारद का मिसाल) तुम बच्चे भी पूछते हो चलेंगे वैकुण्ठ? भगवान से नई दुनिया का वर्सा लेंगे? भारत को ही वर्सा मिला था, अब नहीं है और कोई को तो मिल न सके क्योंकि भारत ही भगवान की जन्म भूमि है। तो चैरिटी बिगन्स एट होम। यहाँ वालों को ही देंगे। परन्तु बहुत बच्चियां समझा नहीं सकती हैं। बहुत बच्चों को साक्षात्कार भी कराते हैं। दिखाते हैं तुम वैकुण्ठ के प्रिन्स प्रिन्सेज बनते हो। यह है ही मनुष्य से प्रिन्स बनने की पाठशाला। प्रिन्स बनना वा राजा बनना एक ही बात है। यह साक्षात्कार होता है कि पुरुषार्थ कर ऐसा बनो। बाप की श्रीमत पर चल पुरुषार्थ करो। सिर्फ कृष्ण को देखा यह कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसे तो आगे बहुत देखते थे, फिर चले गये। साक्षात्कार हुआ फिर पढ़ते नहीं हैं, ऐसा बनते नहीं हैं। इतना पुरुषार्थ नहीं करते क्योंकि भूतों का वार है। देह-अभिमान का कड़ा भूत है। बुद्धि में रहना चाहिए कि खेल पूरा होता है। हमने 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया, अब हम यह पुराना चोला छोड़ता हूँ। यह भी सिर्फ याद पड़ जाये तो अहो भाग्य, खुशी का पारा चढ़ा रहे। अब हम जाते हैं वापिस मुक्तिधाम में। यह किसकी भी बुद्धि में नहीं बैठ सकता। भल सन्यासी हैं वह कहते हैं हम शरीर छोड़ ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। परन्तु तत्व को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे तो जा कैसे सकते हैं। ले जाने वाला है ही एक राम, सभी बच्चों को ले जायेगा। आपेही तो कोई जा नहीं सकता। पुरुषार्थ करते हैं क्योंकि इस दुनिया में रहना अच्छा नहीं लगता। कोई फिर कहते हैं हम इस नाटक में आये ही नहीं, अनेक मत-मतान्तर हैं। गुरू गोसाई आदि करोड़ों की अन्दाज में हैं। सबकी अपनी-अपनी मत है। भल कहते हैं आपका ज्ञान बहुत अच्छा है। बाहर गये और खलास। आते तो बहुत हैं परन्तु उनकी तकदीर में नहीं है। इतना मर्तबा छोड़कर आवें, यह नहीं हो सकता है, इसलिए गरीब ही उठाते हैं। यहाँ तो आकर बच्चा बनना पड़े। कोई सन्यासी गुरू इतने सब फालोअर्स को छोड़ आवे, बड़ा मुश्किल है। सो भी यह प्रवृत्ति मार्ग, मेल फीमेल दोनों को इक्ट्ठा रहना पड़े। निश्चयबुद्धि वालों की झट परीक्षा ली जाती है। देखें गुरूपना छोड़ते हैं। बाबा का बनना पड़ता है ना। बाबा किसको भी समझाने का सहज उपाय भी समझाते हैं। सिर्फ पूछना है परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? वह जरूर मुक्ति जीवनमुक्ति देंगे। मनुष्य, मनुष्य को दे न सकें। बाबा से वर्सा लेने के लिए, आकर सीखना पड़े, श्रीमत जो कहेगी सो करेंगे। पहले-पहले निश्चयबुद्धि चाहिए, फिर श्रीमत जो मिले। पहले-पहले परिचय ही बाप का देना है। ढेरों के ढेर आते हैं। कहते हैं यह बहुत अच्छी चीज़ है। परन्तु खुद थोड़ेही खड़े होते हैं, सिर्फ अपनी राय देकर चले जाते हैं। यह मालूम नहीं पड़ता कि यह किसकी मत पर चल रहे हैं। कहते हैं ऐसी प्रदर्शनी तो जगह-जगह होनी चाहिए। मत देने लग पड़ते हैं। अरे ईश्वर को थोड़ेही मत दी जाती है। परन्तु प्रैक्टिस पड़ी हुई है मत देने की। बाकी खुद बैठ समझें, यह नहीं। यहाँ कोई मत देनी नहीं है, श्रीमत पर चलना है। पहले बाप का बनना है फिर वह जो श्रीमत दे कि ऐसे कोई को समझाओ। फिर जब किसको समझावें वह लिखकर दे कि मुझे तो श्रीमत पर चलना है, तब समझें कि कुछ ठीक समझा है। आते तो ढेर हैं परन्तु अच्छी तरह समझते नहीं हैं। ज्ञान के मतवाले बनते नहीं। इस समय सब हैं भक्ति के मतवाले। जप, तप, पाठ आदि सब भक्ति के लिए करते हैं। भगवान कहते हैं आधाकल्प तुमने भक्ति की है - भगवान से मिलने के लिए। सब भगत ठहरे। भगवान तो एक ही है। एक को ही कहते हैं पतित-पावन। तो खुद भी सब पतित ठहरे। यह है रावणराज्य। इस कल्प के संगम का ही गायन है। कल्प के संगमयुगे युगे बाप आते हैं।



सतयुग है कल्याणकारी स्वर्ग, कलियुग है अकल्याणकारी नर्क। रावण है अकल्याणकारी, राम है कल्याणकारी। यह नॉलेज बच्चों की बुद्धि में टपकनी चाहिए। ओना रहना चाहिए कि जाकर बिचारों का कल्याण करें। कोई-कोई में ऐसी खामी है जो उनसे सब हैरान हो जाते हैं। कहते हैं बाबा फलाने में यह अवगुण है। बहुत समाचार आते हैं। बाबा का कहना है - समाचार दो तो सावधानी मिले। कोई अवगुण होगा तो सर्विस कम करेंगे। आजकल पढ़े लिखे - विद्वान, पण्डित तो बहुत हैं, वह बहुत तीखे हैं। कच्चे बच्चों का तो माथा ही खराब कर दें इसलिए तीखे-तीखे बच्चों को बुलाते हैं। समझते हैं यह हमारे से होशियार हैं। प्रदर्शनी से भी बाबा समाचार मंगाते रहते हैं। कौन-कौन अच्छी सर्विस करते हैं, इसमें बड़े होशियार चाहिए। कोई बोले तुम शास्त्र आदि पढ़ते हो? बोलो, यह तो हम जानते हैं - यह वेद शास्त्र, जन्म-जन्मान्तर सब पढ़ते आये हैं। अभी हमको बाबा का डायरेक्शन है कि कुछ नहीं पढ़ो। मैं जो सुनाऊं वह सुनो। मेरी मत पर चलो, मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। अभी मौत सामने खड़ा है। मैं आया हूँ तुमको लेने लिए, मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुमको मुक्ति जीवनमुक्ति दूँगा। हर एक को ड्रामा अनुसार पहले मुक्ति में जाना है फिर जीवनमुक्ति, सतोप्रधान में आते हैं इसलिए कहा जाता है सर्व के सद्गति दाता, सर्वोदया। सर्व में सारी दुनिया आ जाती है। सर्व माना सारी दुनिया का बाप समझाते हैं, वह सब हैं अल्पकाल हद की सर्विस करने वाले। बेहद का सर्वोदया लीडर तो एक ही है। सारी विश्व पर दया कर विश्व को बदलने वाला है। तुम जानते हो बाबा हमको विश्व का मालिक बनाने आये हैं। एवरहेल्दी, वेल्दी बन जायेंगे। परन्तु इतना भी किसको बुद्धि में नहीं बैठता। दो अक्षर भी बैठे तो अच्छा है। हम भगवान बाप के बच्चे हैं। भगवान से स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। मिला हुआ था, अब नहीं है फिर मिल रहा है। बाप कहते हैं मुझे याद करो, वर्से को याद करो। एक दो को यही मंत्र दो मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ। धर्म स्थापना के लिए धक्के तो खाने पड़ते हैं। बुद्धि में यह रहना चाहिए कि अब नाटक पूरा होता है। बाकी थोड़ा समय है, जाना है अपने घर फिर हमारा नयेसिर पार्ट शुरू होगा। यह बुद्धि में रहे तो बहुत अच्छा।



अच्छा - मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।



तुम बच्चों के कदम-कदम में पदम भरे हुए हैं। बड़ी जबरदस्त कमाई है। खुद भगवान कमाई करने की राय देते हैं। राय पर चलने से स्वर्ग में तो पहुँच जाते हैं। परन्तु स्वर्ग में भी फिर ऊंच पद पाना चाहिए। यह कमाई है चुपचाप करने की। कर्मेन्द्रियों से कर्म करो परन्तु दिल साज़न की तरफ हो, बस बेड़ा पार है। बड़ी जबरदस्त कमाई है। बाप की सर्विस में रहने से आटोमेटिकली बहुत आमदनी होती है। अच्छा !



मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अब यह नाटक पूरा हुआ, हमें वापिस मुक्तिधाम में जाना है। इस खुशी में रह पुरानी देह का अभिमान छोड़ देना है।
2) एक बाप की मत पर चलना है। बाप को अपनी मत नहीं देनी है। निश्चयबुद्धि बन बाप की जो श्रीमत मिली है, उस पर चलते रहना है।
वरदान:
आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा हलचल में भी अचल रहने वाले बाप समान भव
जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही मैं आकारी फरिश्ता हूँ और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ-यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हो क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। अगर दोनों से प्यार है तो समान बनो। साकार में रहते अभ्यास करो - अभी-अभी आकारी और अभी-अभी निराकारी। तो यह अभ्यास ही हलचल में अचल बना देगा।
स्लोगन:
दिव्य गुणों की प्राप्ति होना ही सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है।