Friday, May 26, 2017

मुरली 26 मई 2017

26-05-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप आया है तुम्हारी सब शुद्ध कामनायें पूरी करने, रावण अशुद्ध कामना पूरी करता और बाप शुद्ध कामना पूरी करता”
प्रश्न:
जो बाप की श्रीमत का उल्लंघन करते हैं– उनकी अन्तिम गति क्या होगी?
उत्तर:
श्रीमत का उल्लंघन करने वालों को माया के भूत अन्त में राम-राम संग है... करके घर ले जायेंगे। फिर बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी। श्रीमत पर न चले तो यह मरे। धर्मराज पूरा हिसाब लेता है, इसलिए बाप बच्चों को अच्छी मत देते, बच्चे माया की बुरी मत से सावधान रहो। ऐसा न हो बाप का बनकर फिर कोई विकर्म हो जाए और 100 गुणा दण्ड भोगना पड़े। श्रीमत पर न चलना, पढ़ाई छोड़ना ही अपने ऊपर बददुआ, अकृपा करना है।
गीत:
ओम् नमो शिवाए...   
ओम् शान्ति।
यह परमपिता परमात्मा की महिमा भक्त लोग गाते हैं। कहते भी हैं हे भगवान हे शिवबाबा, यह किसने कहा? आत्मा ने अपने बाबा को याद किया क्योंकि आत्मा जानती है हमारा लौकिक बाप भी है और यह है पारलौकिक बाप, शिवबाबा। वह आते भी हैं भारत में और एक ही बार अवतार लेते हैं। गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ, भ्रष्टाचारी पतितों को श्रेष्ठाचारी पावन बनाने के लिए। परन्तु सब अपने को पतित भ्रष्टाचारी समझते नहीं हैं। सब एक किसम के भी नहीं होते हैं। हर एक का पद अपना-अपना होता है। हर एक के कर्मों की गति न्यारी होती है, एक न मिले दूसरे से। बाप बैठ समझाते हैं– तुम बाप को न जानने के कारण इतने आरफन पतित बन गये हो। कहते भी हैं पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता आप हो। फिर गीता वा गंगा पतित-पावनी कैसे हुई। तुमको इतना बेसमझ किसने बनाया है? इन पांच विकारों रूपी रावण ने। अभी सभी रावण राज्य अथवा शोक वाटिका में हैं। हेड जो हैं उन्हों को तो बहुत फिकरात रहती है। सब दु:खी हैं, इसलिए पुकारते हैं हे बाबा आप आओ, हमको स्वर्ग में ले चलो। सदैव निरोगी, बड़ी आयु वाले, शान्ति सम्पन्न, धनवान बनाओ। बाप तो सुख शान्ति का सागर है ना। मनुष्य की यह महिमा नहीं हो सकती। भल मनुष्य अपने को शिवोहम् भी कहलाते हैं, परन्तु हैं पतित। बाप समझाते हैं– तुम बाप को सर्वव्यापी कहते हो, इससे तो कोई भी बात ठहरती नहीं। भक्ति भी चल नहीं सकती क्योंकि भगत भगवान को याद करते हैं। भगवान एक है, भक्तियां अनेक हैं। जब सब मुझ भगवान को पत्थर ठिक्कर में ठोक खुद भी पत्थरबुद्धि बन जाते हैं, तब मुझे आना पड़ता है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा पावन दुनिया की स्थापना कराते हैं। यह प्रजापिता ब्रह्मा के एडाप्टेड बच्चे हैं, कितने ढेर बच्चे हैं। अभी भी वृद्धि को पायेंगे। जो ब्राह्मण बनेंगे वही फिर देवता बनेंगे। पहले तुम शूद्र थे। फिर ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बने फिर देवता क्षत्रिय बनेंगे। यह चक्र फिरता है। यह बाप ही समझाते हैं। यह मनुष्य सृष्टि है, सूक्ष्मवतन में हैं फरिश्ते। वहाँ कोई झाड़ नहीं है। यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ यहाँ है। तो बाप आकर इस ज्ञान अमृत का कलष माताओं के सिर पर रखते हैं। वास्तव में कोई अमृत नहीं है। यह है नॉलेज। बाप आकर सहज राजयोग की शिक्षा देते हैं। बाप कहते हैं मैं तो निराकार हूँ, नम्बरवन मनुष्य के तन में प्रवेश करता हूँ। खुद कहते हैं जब मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश करूँ तब तो ब्राह्मण सम्प्रदाय हो। ब्रह्मा यहाँ ही चाहिए। वह सूक्ष्मवतन वासी तो अव्यक्त ब्रह्मा है। मैं इस व्यक्त में प्रवेश करता हूँ, इनको फरिश्ता बनाने के लिए। तुम भी अन्त में फरिश्ते बन जाते हो। तुम ब्राह्मणों को यहाँ ही पवित्र बनना है। फिर पवित्र दुनिया में जाकर जन्म लेंगे। तुम दोनों हिंसा नहीं करते हो। काम कटारी चलाना सबसे तीखी हिंसा है, जिससे मनुष्य आदि मध्य अन्त दु:ख पाते हैं। द्वापर से लेकर काम कटारी चलाते आये हैं, तब ही गिरना शुरू होता है। मनुष्य के पास है भक्ति की नॉलेज। वेद शास्त्र पढ़ना, भक्ति करना। गाते भी हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। भक्ति के बाद ही बाबा सारी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं क्योंकि इस पतित दुनिया का विनाश होना है इसलिए देह सहित देह के सभी सम्बन्धियों आदि को भूल जाओ। मुझ एक के साथ बुद्धियोग लगाओ। ऐसी प्रैक्टिस हो जो अन्त समय कोई भी याद न पड़े। इस पुरानी दुनिया का त्याग कराया जाता है। बेहद का सन्यास बेहद का बाप ही कराते हैं। पुनर्जन्म तो सबको लेना है, नहीं तो इतनी वृद्धि कैसे होती। हद के सन्यासियों द्वारा पवित्रता का बल भारतवासियों को मिलता है। भारत जैसा पवित्र खण्ड और कोई होता नहीं, बाप की यह बर्थ प्लेस है। परन्तु मनुष्य जानते नहीं, बाप कैसे अवतार लेते हैं, क्या करते हैं। कुछ भी जानते नहीं। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात भी कहते हैं। दिन अर्थात् स्वर्ग, रात अर्थात् नर्क। जानते नहीं। ब्रह्मा की रात तो तुम बच्चों की भी रात। ब्रह्मा का दिन तो तुम बच्चों का भी दिन हो जाता है। रावण राज्य में सब दुर्गति को पाये हुए हैं। अभी तुम बच्चे बाप द्वारा सद्गति को पा रहे हो। तुम इस समय हो ईश्वरीय औलाद। परमपिता परमात्मा का बच्चा ब्रह्मा उनके तुम एडाप्टेड बच्चे, तो शिवबाबा के पोत्रे ठहरे। यह पुत्र ब्रह्मा भी सुनते तो तुम पोत्रे पोत्रियां भी सुनते हो। अभी फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जायेगा। यह राजयोग बाप ही आकर सिखलाते हैं। सन्यासियों का पार्ट ही अलग है और तुम आदि सनातन देवी-देवता धर्म वालों का पार्ट ही अलग है। वहाँ देवताओं की आयु भी बड़ी रहती है। अकाले मृत्यु नहीं होती है। वहाँ देवतायें आत्म-अभिमानी होते हैं। परमात्म-अभिमानी नहीं। फिर माया की प्रवेशता होने से देह-अभिमानी बन जाते हैं। इस समय तुम आत्म-अभिमानी भी हो तो परमात्म-अभिमानी भी हो। इस समय तुम जानते हो हम परमात्मा की सन्तान हैं, परमात्मा के आक्यूपेशन को जानते हैं। यह शुद्ध अभिमान हुआ। अपने को शिवोहम् या परमात्मा कहना यह अशुद्ध अभिमान है। तुम अभी अपने को भी और परमात्मा को भी जान गये परमात्मा द्वारा। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा कल्प-कल्प आते हैं। भक्ति मार्ग में भी अल्पकाल का सुख वह देते हैं। बाकी वह चित्र तो जड़ हैं। तुम जिस मनोकामना से पूजा आदि करते हो तो मैं तुम्हारी सब शुद्ध कामनायें पूरी करता हूँ। अशुद्ध कामना तो रावण पूरी करता है। बहुत रिद्धि सिद्धि आदि सीखते हैं। वह है रावण मत। मैं हूँ ही सुख दाता। मैं किसको दु:ख नहीं देता हूँ। कहते हैं दु:ख सुख ईश्वर ही देते हैं। यह भी मेरे ऊपर कलंक लगाते हैं। अगर ऐसा है तो बुलाते ही क्यों हो। परमात्मा रहम करो, क्षमा करो। जानते हैं, धर्मराज के द्वारा बहुत दण्ड खिलायेंगे। बाप समझाते हैं बच्चे भक्ति मार्ग के इन शास्त्रों आदि में कोई सार नहीं है। अभी तुमको भक्ति अच्छी नहीं लगती। ऐसे भी नहीं कहते हो कि हे भगवान। आत्मा दिल अन्दर याद करती है। बस यह है अजपाजाप। आत्माओं से निराकार बाप बात करते हैं। आत्मा सुनती है। अगर कहे सर्वव्यापी है फिर तो सब परमात्मा हो गये। बाप कहते हैं कितने पत्थरबुद्धि बन गये हैं। मनुष्यों को तो बड़ा डर रहता है, कहाँ गुरू बद्दुआ न दे। बाप तो है सुखदाता। बद्दुआ अथवा अकृपा तो बाप बच्चों के ऊपर करते ही नहीं। बच्चे श्रीमत पर नहीं चलते, पढ़ते नहीं तो अकृपा अपने ऊपर करते हैं। बाप कहते हैं बच्चे मुझ एक बाप को याद करो। सतयुग त्रेता में भक्ति होती नहीं। अब रात है तो मनुष्य धक्का खाते रहते हैं, तब कहा जाता है सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा। सतगुरू ही आकर सारे चक्र का राज समझाते हैं कि तुम देवता थे फिर क्षत्रिय बने, फिर वैश्य शूद्र बनें। ऐसे 84 जन्म पूरे किये। 8 पुनर्जन्म सतयुग में, 12 पुनर्जन्म त्रेता में, फिर 63 जन्म द्वापर कलियुग में। चक्र को फिरना ही है। यह बातें मनुष्य नहीं जानते। यही भारत विश्व का मालिक था और कोई खण्ड नहीं था। जब झूठ खण्ड शुरू होता है तो फिर और-और खण्ड भी होते हैं। अब तो देखो लड़ाई झगड़ा कितना है। यह है ही आरफन्स की दुनिया, बाप को नहीं जानते। रडि़याँ मारते रहते हैं हे परमात्मा... बाप कहते हैं मैं एक ही बार आता हूँ, पतित दुनिया को पावन बनाने। बापू के लिए समझते थे कि रामराज्य स्थापना करते हैं, उनको बहुत पैसे देते थे। परन्तु वह पैसा कभी अपने काम में नहीं लगाते थे। फिर भी रामराज्य तो हुआ नहीं। यह तो है शिवबाबा, दाता है ना। सिर्फ समझाते हैं विनाश तो होना ही है, इससे तुम पैसे को सफल करो। यह सेन्टर आदि खोलो। बोर्ड लगा दो एक बाप से आकर स्वर्ग का वर्सा ले लो सेकेण्ड में। बाप कहते हैं मेरी याद से ही तुम पावन बनेंगे। तुम्हारी बुद्धि में यह चक्र फिरना चाहिए। ब्राह्मण ही यज्ञ के रक्षक बनते हैं। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ, कृष्ण का यज्ञ नहीं। सतयुग में यज्ञ होते नहीं। यह है ज्ञान यज्ञ। बाकी सब हैं भक्ति के यज्ञ। अनेक प्रकार के शास्त्र यज्ञ में रखते हैं। चौं-चौं का मुरब्बा बना देते हैं, उसको ज्ञान यज्ञ नहीं कहेंगे। बाबा कहते हैं मुझ, रूद्र का ज्ञान यज्ञ रचा हुआ है। जो मेरी मत पर चलेंगे उनको बड़ा इनाम मिलेगा, विश्व की बादशाही। तुम बच्चों को मुक्ति, जीवन मुक्ति की सौगात देता हूँ। बाबा कहते हैं मनुष्यों की तो 84 लाख योनियां रखी, और मुझे तो कण-कण में डाल दिया है फिर भी मैं पर-उपकारी सेवाधारी हूँ। तुम रावण की मत पर मुझे गाली देते आये हो। यह भी ड्रामा बना हुआ है। अभी तुम बच्चों को कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। बाप अच्छी मत देंगे, माया बुरी मत देगी इसलिए खबरदार रहना। मेरा बनकर फिर कोई विकर्म किया तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। योगबल से फिर शरीर भी पवित्र मिलेगा। सन्यासी लोग तो कह देते हैं आत्मा निर्लेप है बाकी शरीर पतित है इसलिए गंगा स्नान करते हैं। अरे आत्मा सच्चा सोना नहीं होगी तो जेवर सच्चे सोने का कैसे बनेगा। इस समय 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। यह तुम्हारी रूहानी गवर्मेन्ट बड़े ते बड़ी है, परन्तु देखो तुमको सर्विस करने के लिए 3 पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते हैं, फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। विश्व की बादशाही ऐसी देता हूँ जो वहाँ कोई खिटपिट नहीं कर सकते। आसमान, सागर आदि सबके मालिक बन जाते हो। कोई भी हद नहीं रहती। अभी तो बिल्कुल कंगाल बन पड़े हैं। अभी फिर तुम विश्व के मालिक बन रहे हो तो श्रीमत पर चलना पड़े। श्रीमत पर न चला तो यह मरा। माया के भूत राम-राम संग है करके घर ले जायेंगे। सजा बड़ी कड़ी खायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यज्ञ की प्यार से सेवा कर, कदम-कदम पर श्रीमत पर चलते बाप से मन-इच्छित फल अर्थात् विश्व की बादशाही लेनी है।
2) विनाश तो होना ही है– इसलिए अपना सब कुछ सफल कर लेना है। पैसा है तो सेन्टर खोल अनेको के कल्याण के निमित्त बनना है।
वरदान:
परमात्म प्यार में धरती की आकर्षण से ऊपर उड़ने वाले मायाप्रूफ भव
परमात्म प्यार धरनी की आकर्षण से ऊपर उड़ने का साधन है। जो धरनी अर्थात् देह-अभिमान की आकर्षण से ऊपर रहते हैं उन्हें माया अपनी ओर खींच नहीं सकती। कितना भी कोई आकर्षित रूप हो लेकिन माया की आकर्षण आप उड़ती कला वालों के पास पहुंच नहीं सकती। जैसे राकेट धरनी की आकर्षण से परे हो जाता है। ऐसे आप भी परे हो जाओ, इसकी विधि है न्यारा बनना वा एक बाप के प्यार में समाये रहना-इससे मायाप्रूफ बन जायेंगे।
स्लोगन:
स्व स्थिति को ऐसा शक्तिशाली बनाओ जो परिस्थितियां उसे नीचे ऊपर न कर सकें।