Friday, September 1, 2017

01-09-17 प्रात:मुरली

01-09-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हारा नम्बरवन दुश्मन रावण है, जिस पर ज्ञान और योगबल से जीत पानी है, तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर बनना है"
प्रश्न:
महीन ते महीन और गुह्य बात कौन सी है, जो तुम बच्चों ने अभी समझी है?
उत्तर:
सबसे महीन से महीन बात है कि यह बेहद का ड्रामा सेकण्ड बाई सेकण्ड शूट होता जाता है। फिर 5 हजार वर्ष बाद वही रिपीट होगा। जो कुछ होता है, कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा अनुसार होता है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जो कुछ होता है - नथिंगन्यु। सेकण्ड बाई सेकण्ड ड्रामा की रील फिरती रहती है। पुराना मिटता जाता, नया भरता जाता है। हम पार्ट बजाते जाते हैं वही फिर शूट होता जाता है। ऐसी गुह्य बातें और कोई समझ न सके।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए...  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि एक ही सहारा है दु:ख से छूटने का। गायन है ना सबका दु:ख हर्ता, सुख कर्ता एक ही भगवान है। तो जरूर एक ही ने आकर सबका दु:ख हरा है और बच्चों को सुख-शान्ति का वर्सा दिया है इसलिए गायन है। परन्तु कल्प को बहुत लम्बा-चौड़ा बताने कारण मनुष्य कुछ भी समझ नहीं सकते। तुम जानते हो कि बाप सुखधाम का वर्सा देते हैं और रावण दु:खधाम का वर्सा देते हैं। सतयुग में है सुख, कलियुग में है दु:ख। यह किसकी बुद्धि में नहीं है कि दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कौन है। समझते भी हैं कि जरूर परमपिता परमात्मा ही होगा। भारत सतयुग था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह कहते हुए भी जो शास्त्रों में सुना है कि वहाँ यह कंस जरासन्धी, रावण आदि थे इसलिए कोई बात में ठहरते नहीं हैं। तुम जानते हो यह सब खेल है। तुम्हारी बुद्धि में है कि हमारा दुश्मन पहले-पहले रावण बनता है। पहले तुम राज्य करते थे फिर वाम मार्ग में जाकर राजाई गँवा दी। इन बातों को तुम ब्राह्मण बच्चे ही जानते हो। तुम्हारा और किसी दुश्मन तरफ अटेन्शन नहीं है। तुम जिसको दुश्मन समझते हो - वह किसकी बुद्धि में नहीं होगा, तुमको इस रावण दुश्मन पर जीत पानी है। यही भारत का नम्बरवन दुश्मन है। शिवबाबा जन्म भी भारत में ही लेते हैं। यह है भी बरोबर परमपिता परमात्मा की जन्म भूमि। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। परन्तु शिव ने आकर क्या किया, वह किसको पता नहीं है। तुम जानते हो भारत ऊंच ते ऊंच खण्ड था। धनवान ते धनवान 100 परसेन्ट हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी थे। और कोई धर्म इतने हेल्दी हो न सकें।
बाप देखो किसको बैठ सुनाते हैं? अबलायें, कुब्जायें, साधारण। वह साहूकार लोग तो अपने धन की ही खुशी में हैं। तुम हो गरीब ते गरीब। नहीं तो इतनी ऊंच ते ऊंची पढ़ाई ऊंचे मनुष्यों को पढ़नी चाहिए। परन्तु नहीं। पढ़ते हैं गरीब साधारण। तुम कुछ भी शास्त्र आदि नहीं पढ़े हो तो बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं जो कुछ सुना है अथवा पढ़ा है, वह सब भूल जाओ। हम नई बात सुनाते हैं। सबसे नम्बरवन दुश्मन भी है रावण। जिस पर तुम बच्चे ज्ञान और योगबल से जीत पाते हो। बरोबर 5 हजार वर्ष पहले भी बाप ने राजयोग सिखाया था, जिससे राजाई प्राप्त की थी। अब फिर माया पर जीत पाने के लिए बाप राजयोग सिखला रहे हैं, इनको ज्ञान और योगबल कहा जाता है। आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो। भगवान तो है ही निराकार। उनको राजयोग सिखाने जरूर आना पड़े। ब्रह्मा भी बूढ़ा है। बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में हैं। भारत में गीता आदि सुनाने वाले तो ढेर हैं। परन्तु यह तुमको कोई नहीं कहेंगे कि विकारों रूपी रावण पर तुम्हें जीत पानी है, मामेकम् याद करो। यह भी कोई नहीं कह सकते। यह तो बाप ही आकर आत्माओं को कहते हैं - आत्म-अभिमानी बनो। जितना बनेंगे उतना बाप को याद कर सकेंगे। उतना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। तुम जानते हो हम सतोप्रधान देवी-देवता थे। अब हम आसुरी बने हैं। 84 जन्म पूरे हुए हैं। अब यह है अन्तिम जन्म।
तुम बच्चे जानते हो बाप हमें समझा रहे हैं। वही ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर है। इस समय तुमको भी आप समान बनाते हैं। सतयुग में यह ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा। ऐसे भी नहीं समझेंगे कि यह राज्य हमको परमपिता परमात्मा ने दिया है। अज्ञान काल में भी मनुष्य कहते हैं सब कुछ ईश्वर ने दिया है। वहाँ ऐसे भी नहीं समझते। प्रालब्ध भोगने लग पड़ते हैं। ईश्वर का नाम याद रहे तो यह भी सिमरें कि बाबा आपने तो बहुत अच्छी बादशाही दी है। परन्तु कब दी, क्या हुआ कुछ भी बता नहीं सकते। वहाँ धन भी बहुत रहता है। ऐरोप्लेन आदि तो होते ही हैं - फुलप्रूफ।
अब तुम बच्चे किस धुन में हो? दुनिया किस धुन में है? यह भी तुम जानते हो - उन्हों का है बाहुबल, तुम्हारा है योगबल। जिससे दुश्मन पर तुम जीत पाते हो। यह राजयोग सिवाए बाप के कोई सिखला न सके। बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में इनमें ही आकर प्रवेश करता हूँ, जिसमें कल्प पहले भी प्रवेश किया था, इनका नाम ब्रह्मा रखा था। तुम सब बच्चों के नाम भी आये थे ना। कितने फर्स्टक्लास नाम रखे थे। बाबा तो इतने नाम भी याद नहीं कर सकते। तो देखो दुनिया में कितना हंगामा मचाते रहते हैं। तुमको यहाँ शान्ति में बैठ बाप को याद करना है। यह है मोस्ट बिलवेड मात-पिता, जो कहते हैं बच्चे इस काम पर पहले तुम जीत पहनो, इसलिए रक्षाबंधन का त्योहार चला आता है। यह पवित्रता की राखी भी तुम बांधते हो। सतयुग त्रेता में यह त्योहार आदि नहीं मनायेंगे। फिर भक्ति मार्ग में शुरू होंगे। बाप इस समय प्रतिज्ञा कराते हैं - पवित्र दुनिया का मालिक बनना है तो पवित्र भी जरूर बनना है। मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से पाप दग्ध होंगे। तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। कोई तो नापास भी हो जाते हैं, जिसकी निशानी भी राम को दिखाई है। बाकी कोई हिंसा आदि की बात नहीं। तुम भी क्षत्रिय हो, माया पर जीत पाने वाले, जीत न पाने वाले नापास हो पड़ते। 16 कला के बदले 14 कला बन पड़ते हैं। कोई सतोप्रधान, कोई फिर रजो भी बनते हैं। वैसे फिर राजधानी में भी नम्बरवार पद होगा, जो ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हैं वही वर्से के हकदार बनते हैं। फिर इसमें जो पुरूषार्थ करेंगे और करायेंगे। बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस की है। तुमको इस अन्तिम जन्म में ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह है रूहानी भट्ठी। वह जो कराची में तुम्हारी भट्ठी बनी वह और बात थी। यह योग की भट्ठी और है। यह है योगबल की भट्ठी, जिसमें किचड़ा सब निकल जाता है। वहाँ तो तुम अपनी भट्ठी में थे, कोई से मिलना नहीं होता था। यह है योग की भट्ठी, अपने लिए मेहनत करनी होती है। आत्मा ही समझती है, आत्मा ही ज्ञान सुनती है आरगन्स द्वारा। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। जैसे बाबा लड़ाई वालों का मिसाल देते हैं। संस्कार ले जाते हैं ना। दूसरे जन्म में फिर लड़ाई में ही चले जाते हैं। वैसे तुम बच्चे भी संस्कार ले जाते हो। वह जिस्मानी मिलेट्री में चले जाते हैं। तुम्हारे में से भी कोई शरीर छोड़ते हैं तो इस रूहानी मिलेट्री में आ जाते हैं। कर्मों का हिसाब-किताब बीच में चुक्तू करने जाते हैं। ऐसे बहुत होंगे। एक-एक के लिए बाप से थोड़ेही पूछना है। बाप कहेंगे इससे तुम्हारा क्या फायदा? तुम अपने धन्धे में रहो। पापों को भस्म करने का ख्याल करो। यह भोग आदि जो लगाते हैं, यह भी ड्रामा में है। जो सेकण्ड बाई सेकण्ड होता है, ड्रामा शूट होता जाता है। फिर 5 हजार वर्ष बाद वही रिपीट होगा। जो कुछ होता है, कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा अनुसार होता है, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। जो कुछ होता है-नथिंगन्यु। सेकण्ड बाई सेकण्ड ड्रामा की रील फिरती रहती है। पुराना मिटता जाता, नया भरता जाता है। हम पार्ट बजाते जाते हैं वही फिर शूट होता जाता है। यह महीन बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। तुम बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय करना है कि बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। बरोबर भारत को बाप से स्वर्ग का वर्सा मिला था फिर कैसे गॅवाया, यह समझाना पड़े। हार-जीत का खेल है। माया ते हारे हार है। मनुष्य माया धन को समझ लेते हैं। वास्तव में माया 5 विकारों को कहा जाता है। कोई के पास धन होगा तो कहेंगे इनके पास माया बहुत है। यह भी किसको पता नहीं है। अब कहाँ प्रकृति, कहाँ माया, अलग-अलग अर्थ है।
मैगजीन में भी लिख सकते हो कि भारतवासियों का नम्बरवन दुश्मन यह रावण है, जिसने दुर्गति को पहुँचाया है। रावणराज्य शुरू होने से ही भक्ति शुरू हो जाती है। ब्रह्मा की रात में, भक्ति मार्ग में धक्के ही खाने पड़ते हैं। ब्रह्मा का दिन चढ़ती कला, ब्रह्मा की रात उतरती कला। अब बाप कहते हैं - इस माया रावण पर जीत पानी है। बाप श्रीमत देते हैं श्रेष्ठ बनने लिए - लाडले बच्चे मुझ बाप को याद करो। विकर्माजीत बनने का और कोई उपाय है नहीं। तुम बच्चों को भक्तिमार्ग के धक्कों से छुड़ाते हैं। अब रात पूरी हो प्रभात होती है। दिन माना सुख, रात माना दु:ख। यह सुख दु:ख का खेल है। बाप यह सब राज़ बताकर तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अब जो जितना पुरूषार्थ करे। बीज और झाड़ को जानना है। बाप कहते हैं बच्चे अब टाइम थोड़ा है। गाया भी जाता है एक घड़ी आधी घड़ी.... तुम बाप को याद करने लग जाओ और फिर चार्ट को बढ़ाते जाओ। देखना है कि हम श्रीमत पर बाबा को कितना याद करते हैं। बाप तो है सिखलाने वाला। पुरूषार्थ हमको करना है। बाप तो है पुरूषार्थ कराने वाला। बाप का तो लव है ही। बच्चे-बच्चे कहते रहते हैं। उनके तो सब आत्मायें बच्चे ही ठहरे। फिर ब्रह्माकुमार-कुमारी भाई-बहन हो गये। वर्सा तो दादे से मिलता है। ईश्वरीय औलाद फिर प्रजापिता ब्रह्मा मुख द्वारा तुम ब्राह्मण बने हो। फिर देवता वर्ण में जायेंगे। क्लीयर है ना। आत्मा समझती है शिवबाबा हमारा बाप है। मैं स्टार हूँ तो हमारा बाप भी स्टार ही होगा। आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है। बाबा भी स्टार है परन्तु वह सुप्रीम है, हम बच्चे उनको फादर कहते हैं। इतनी छोटी सी आत्मा में सारा ज्ञान है। बाकी ऐसे नहीं ईश्वर में कोई ऐसी शक्ति है, जो दीवार तोड़ देंगे। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको फिर से राजयोग सिखलाने लिए। बाप बच्चों का ओबीडियन्ट है। लौकिक में भी बाप बच्चों पर बलि चढ़ते हैं ना, तो बड़ा कौन हुआ? बाप वा बच्चे? बाप सब कुछ बच्चे को देते हैं फिर भी बच्चा छोटा है इसलिए रिगार्ड रखना होता है। यहाँ भी तुम बच्चों पर बाप बलि चढ़ते हैं, वर्सा देते हैं तो बड़ा बच्चा हुआ ना। परन्तु बाप का फिर भी रिगार्ड रखना होता है। बाप के आगे पहले बच्चों को बलि चढ़ना है तब बाप 21 बार बलि चढ़ेंगे। कुछ न कुछ बलि चढ़ते हैं। भक्ति मार्ग में भी ईश्वर अर्थ कुछ न कुछ देते हैं। उनकी एवज में फिर बाबा दे देते हैं। यहाँ तो है ही फिर बेहद की बात। कहते भी हैं आप जब आयेंगे तुम पर बलिहार जायेंगे। अभी वह समय आ गया है इसलिए बाबा यह प्रश्न पूछते हैं - तुमको कितने बच्चे हैं? फिर ख्याल में आता है तो एक शिवबाबा भी बालक है। अब बताओ तुम्हारा कल्याण कौन सा बालक करेगा? (शिवबाबा) तो उनको वारिस बनाना चाहिए ना। यह समय ऐसा आ रहा है जो कोई किसका क्रियाक्रम करने वाला ही नहीं रहेगा इसलिए बाप कहते हैं देह सहित सब कुछ त्याग, ट्रस्टी हो श्रीमत पर चलते जाओ। डायरेक्शन देते रहेंगे। तुम्हारी सेवा करते हैं, तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने। हम तो निष्कामी हैं। सर्व का सद्गति दाता एक बाप ही निष्कामी है ना। वह एवर पावन है। बाप कहते हैं - बच्चे मददगार बनो। हमारा मददगार गोया अपना मददगार बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सदा अपनी धुन में रहना है। अपने पापों को भस्म करने का ख्याल करना है। दूसरी बातों के प्रश्नों में नहीं जाना है। अपने संस्कारों को परिवर्तन करने के लिए योग की भट्ठी में रहना है।
2) देह सहित सब कुछ त्याग पूरा ट्रस्टी हो श्रीमत पर चलना है। बाप का पूरा रिगार्ड रखना है, मददगार बनना है।
वरदान:
बिन्दु रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट भव
सदा स्मृति में रखो कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दु ही समा सकता है। आंखों में देखने की विशेषता भी बिन्दु की है। तो बिन्दु रूप में रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है। बिन्दु बन हर कर्म करो तो लाइट रहेंगे। कोई भी बोझ उठाने की आदत न हो। मेरा के बजाए तेरा कहो तो डबल लाइट बन जायेंगे। स्व उन्नति वा विश्व सेवा के कार्य का भी बोझ अनुभव नहीं होगा।
स्लोगन:
विश्व परिवर्तक वह है जो निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर दे।