Wednesday, January 17, 2018

18/01/18 प्रात:मुरली

18/01/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर सुनाने के लिए बापदादा के मधुर महावाक्य"
मीठे बच्चे - अपना स्वभाव बहुत ही मीठा और शांत बनाओ, बोलचाल ऐसा हो जो सब कहें यह तो जैसे देवता हैं।
प्रश्न:
हृदय को शुद्ध बनाने के लिए कौन सा शौक होना चाहिए?
उत्तर:
हृदय को शुद्ध बनाना है तो योगी बनने बनाने का शौक होना चाहिए। योग की स्थिति से ही हृदय शुद्ध बनता है। अगर देह में मोह है, देह अभिमान रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत कच्ची है। देही-अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड बनते हैं इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो। बाप को याद करो।
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं अभी भगवान सम्मुख बैठकर हमको ज्ञान के गीत सुनाते हैं वा ज्ञान की डांस कराते हैं। इस ज्ञान डांस से तुम देवताओं मुआफिक सदा सुखी और हर्षित रहेंगे। भगवान को ही बेहद का बाप वा विश्व का रचयिता कहा जाता है। आत्मा समझती है बाबा हमारे लिए स्वर्ग की सौगात लाये हैं। वही रचयिता है। स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए राजयोग सिखाते हैं। कहते हैं बाप को और विश्व के मालिकपने को याद करो। बाप बेहद का मालिक है तो जरूर बेहद की बड़ी दुनिया ही रचेंगे। तुम बच्चों के लिए सारी विश्व ही घर है अर्थात् पार्ट बजाने का स्थान है। बेहद का बाप आकरके बेहद का विश्व अथवा घर बनाते हैं, वह है स्वर्ग। तो ऐसे बाप का बच्चों को कितना शुक्रिया मानना चाहिए। विश्व का रचता बाप डायरेक्ट समझा रहे हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ तो तुम्हारा स्वभाव बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। तुम्हारी चलन ऐसी होनी चाहिए जो सब कहें कि यह तो जैसे देवता है। देवतायें नामीग्रामी हैं। कहते हैं इनका स्वभाव एकदम देवताई है। बिल्कुल मीठे शान्त स्वभाव के हैं। तो ऐसे बच्चों को बाप भी देख खुश होते हैं। बाबा स्वर्ग का मालिक बनाने आते हैं तो तुम्हें कितना मददगार बनना चाहिए। सर्विस में आपेही लग जाना चाहिए। ऐसे नहीं मैं थक गया हूँ, फुर्सत नहीं है। समय पर सब काम करने में कल्याण है। यज्ञ सर्विस का इज़ाफा शिवबाबा देते हैं। बाबा बच्चों की दैवी चलन देखते हैं तो कुर्बान जाते हैं।

मीठे बच्चे, तुम जानते हो हमको पढ़ाने वाला कौन है! इस चैतन्य डिब्बी में चैतन्य हीरा बैठा है, वही सत-चित आनन्द स्वरूप है। सत बाप तुम्हें सच्ची-सच्ची श्रीमत देते हैं। बाप के बने हो तो कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। चुप रहना है और पढ़ना है, एक बाप को याद करना है। घड़ी-घड़ी इस बैज को देखते रहो तो बाप और वर्से की याद आयेगी। याद से ही तुम जैसे सारे विश्व को शान्ति का दान देते हो। हर एक बच्चे को अपनी प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाने हैं। मुरली कोई भी मिस नहीं करनी चाहिए। बाबा बहुत प्यार से समझाते हैं - मीठे बच्चे अपने पर रहम करो, कोई अवज्ञा नहीं करो।

बाप की दिल अन्दर बच्चों को सदा सुखी बनाने की कितनी फर्स्टक्लास आश रहती है कि बच्चे लायक बन स्वर्ग के मालिक बनें। जो खुशबूदार फूल हैं वह खींचते हैं। जो जैसा है ऐसी सर्चलाइट लेने की कशिश करते हैं। खुशबूदार, गुणवान बच्चों को देख प्यार में खुशी में नयन गीले हो जाते हैं। कुछ तकलीफ होती है तो बाबा सर्चलाइट देते हैं।

बाबा समझाते हैं मीठे बच्चे, तुम्हें इस पुरानी दुनिया में कोई भी आशा नहीं रखनी है। अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है कि हम तो चलें सुखधाम। कहाँ भी ठहरना नहीं है। देखना नहीं है। आगे बढ़ते जाना है। एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल-अडोल स्थिर अवस्था रहेगी। अब यह दुनिया खत्म होनी ही है, इसकी बहुत सीरियस हालत है। इस समय सबसे अधिक गुस्सा प्रकृति को आता है इसलिए सब खलास कर देती है। तुम जानते हो यह प्रकृति अभी अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी। सारी पुरानी दुनिया को डुबो देगी। अर्थक्वेक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे। अनेक प्रकार से मौत होंगे। यह सब ड्रामा का प्लैन बना हुआ है। इसमें दोष किसी का भी नहीं है। विनाश तो होना ही है इसलिए तुम्हें इससे बुद्धि का योग हटा देना है। तुमने तो अपना सब कुछ इन्श्योर कर दिया है इसलिए तुम्हें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं। तुम्हारा सब कुछ सफल हो रहा है।

अब तुम कहेंगे वाह सतगुरू वाह! जिसने हमको यह रास्ता बताया है। वाह तकदीर वाह! वाह ड्रामा वाह! तुम्हारे दिल से निकलता - शुक्रिया बाबा आपका जो हमारे दो मुट्ठी चावल लेकर हमें सेफ्टी से भविष्य में सौगुणा रिटर्न देते हो। परन्तु इसमें भी बच्चों की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बच्चों को अथाह ज्ञान धन का खजाना मिलता रहता तो अपार खुशी होनी चाहिए ना। जितना हृदय शुद्ध होगा तो औरों को भी शुद्ध बनायेंगे। योग की स्थिति से ही हृदय शुद्ध बनता है। तुम बच्चों को योगी बनने बनाने का शौक होना चाहिए। अगर देह में मोह है, देह-अभिमान रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत कच्ची है। देही-अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड बनते हैं इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो। बाप को याद करो। बाबा अक्षर सबसे बहुत मीठा है। बाप बड़े प्यार से बच्चों को पलकों पर बिठाकर साथ ले जायेंगे। ऐसे बाप की याद के नशे में चकनाचूर होना चाहिए। बाप को याद करते-करते खुशी में ठण्डे ठार हो जाना चाहिए। जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं - तुम भी फालो फादर करो। सुखदाई बनो।

तुम बच्चे इस पढ़ाई से कितनी ऊंची कमाई करते हो। तुम पदमापदम पति बनते हो। बाबा तुम्हें कितना धनवान बनाते हैं। बाप तुमको अखुट खजाने में ऐसा वज़न करते हैं जो 21 जन्म साथ रहेगा। वहाँ दु:ख का नाम नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होगा। मौत से कभी डरेंगे नहीं। यहाँ कितना डरते हैं, रोते हैं। तुमको तो खुशी है - यह पुराना शरीर छोड़ जाए नई दुनिया में प्रिन्स बनेंगे। तुम इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाते रहो, इस देह को भी भूलते जाओ। हम आत्मा इन्डिपिडेंट हैं। बस एक बाप के सिवाए और किसी की याद न आये। जीते जी जैसेकि मौत की अवस्था में रहना है। इस दुनिया से मर गये। कहते भी हैं ना - आप मुये मर गई दुनिया। शरीर के भान को उड़ाते रहो। एकान्त में बैठ यह अभ्यास करो - बाबा बस अभी हम आपकी गोद में आये कि आये। एक की याद में शरीर का अन्त हो - इसको कहा जाता है एकान्त।

तुम बच्चे अभी ड्रामा के राज़ को भी जानते हो - बाप तुम्हें निराकारी, आकारी और साकारी दुनिया का सब समाचार सुनाते हैं। आत्मा कहती है अभी हम पुरुषार्थ कर रहे हैं, नई दुनिया में जाने के लिए। हम स्वर्ग में चलने लायक जरूर बनेंगे। अपना और दूसरों का कल्याण करेंगे। अच्छा-बाप मीठे बच्चों को समझाते हैं, बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो बच्चों को भी सबको सुख देना है। बाप का राइट हैण्ड बनना है। ऐसे बच्चे ही बाप को प्रिय लगते हैं। शुभ कार्य में राइट हाथ को ही लगाते हैं। तो बाप कहते हर बात में राइटियस बनो, एक बाप को याद करो तो फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो। यह तो कब्रिस्तान है। धन्धाधोरी बच्चों आदि के चिन्तन में मरे तो मुफ्त अपनी बरबादी कर देंगे। शिवबाबा को याद करने से तुम बहुत आबाद होंगे। देह-अभिमान में आने से बरबादी हो जाती है। देही-अभिमानी बनने से आबादी होती है। धन की भी बहुत लालच नहीं रखनी चाहिए। उसी फिकरात में शिवबाबा को भी भूल जाते हैं। बाबा देखते हैं सब कुछ बाप को अर्पण कर फिर हमारी श्रीमत पर कहाँ तक चलते हैं। शुरू-शुरू में बाप ने भी ट्रस्टी हो दिखाया ना। सब कुछ ईश्वर अर्पण कर खुद ट्रस्टी बन गया। बस ईश्वर के काम में ही लगाना है। विघ्नों से कभी डरना नहीं चाहिए। जहाँ तक हो सके सर्विस में अपना सब कुछ सफल करना है। ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बन रहना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

सृष्टि परिवर्तन का आधार - संगठित रूप में सभी का एक संकल्प

(अव्यक्त महावाक्य -1975)

संगठित रुप से सर्व ब्राह्मणों के अन्दर रहम की भावना, विश्व-कल्याण की भावना, सर्व-आत्माओं को दु:खों से छुड़ाने की शुभ कामनाएं जब तक हर एक के दिल से उत्पन्न नहीं होंगी तब तक विश्व-परिवर्तन का कार्य रुका हुआ है। अब संगठित रुप में एक संकल्प को अपनाओ अर्थात् दृढ़ संकल्प की इक्ट्ठी अंगुली सभी मिलकर दो, तब इस कलियुगी पर्वत को परिवर्तन कर गोल्डन वर्ल्ड ला सकेंगे।

तो चेक करो हमारा यह संगठन एक संकल्प वाला कहाँ तक बना है? शास्त्रों में गायन है कि ब्रह्मा को संकल्प उठा कि सृष्टि रचें तो सृष्टि रची गई। यहाँ अकेले ब्रह्मा की तो बात नहीं है, लेकिन ब्रह्मा सहित सब ब्राह्मणों का भी जब एक साथ यह संकल्प उठे कि अब हम सब एवररेडी हैं और नई दुनिया की स्थापना होनी ही चाहिए या होगी ही-ऐसा दृढ संकल्प जब ब्राह्मणों के अन्दर उत्पन्न हो तब ही सृष्टि का परिवर्तन हो अर्थात् नई सृष्टि की रचना प्रैक्टिकल में दिखाई दे। इसमें भी संगठन का बल चाहिए। एक दो का व सिर्फ आठ का नहीं, लेकिन सारे संगठन का एक संकल्प चाहिये। संकल्प से सृष्टि रचना, इसका रहस्य इस प्रकार से है। जब सबके अन्दर संकल्प उत्पन्न होगा तो सेकेण्ड में समाप्ति का नगाड़ा बजना शुरु हो जायेगा।

एक तरफ समाप्ति का नगाड़ा, दूसरी तरफ नई दुनिया का नज़ारा साथ-साथ दिखाई देगा। वहाँ ही विनाश की अति होगी और वहाँ ही जलमई के बीच चारों ओर विनाश में एक हिस्सा धरती और बाकी तीन हिस्सा जलमई। यह जो सभी पीछे-पीछे अनेक धर्मो के कारण अनेक खण्ड बने हैं, वह सब समाप्त होंगे। कुछ देश एक सैरगाह के रुप में जल के बीच एक टापू के मुआफिक हो जायेंगे। तो एक तरफ विनाश की अति के नगाड़े होंगे, दूसरी तरफ फर्स्ट प्रिन्स (श्रीकृष्ण) के जन्म का आवाज बुलन्द होगा, वह पत्ते पर नहीं आयेगा। दिखाते हैं ना जलमई के बाद पत्ते पर श्रीकृष्ण आया। इसका भी रहस्य है। भारत जब परिस्तान बनता है तो तीन हिस्सा जलमई होने के कारण उसको जलमई दिखा दिया है। ऐसे जलमई के बीच पहला पत्ता जो फर्स्ट आत्मा है, उसके जन्म का चारों और आवाज प्रसिद्ध होगा कि फर्स्ट प्रिन्स प्रत्यक्ष हो चुका है, जन्म हो चुका है। तो वह भी अति में होगा अर्थात् जलमई के तीन हिस्से का नज़ारा होगा और एक हिस्सा भारत-परिस्तान के रुप में प्रगट होगा। जो दिखाते हैं कि सोने की द्वारिका पानी से निकल आयी। लेकिन पानी से नहीं, तीन हिस्से पानी में होंगे और उस पानी के बीच सोनी द्वारिका दिखाई देगी इसलिये कहते हैं कि सोने की द्वारिका पानी से निकल आयी। उसी समय पर फर्स्ट आत्मा के जन्म की जयजयकार होगी। ऐसे नज़ारे सामने आते हैं? तो पुरानी दुनिया के महाविनाश का नगाड़ा और नये फर्स्ट प्रिन्स के जन्म का नज़ारा साथ-साथ दिखाई देगा। जैसे नगाड़ा बजाने से पहले नगाड़े को गर्म किया जाता है तब आवाज बुलन्द होती है। तो यह भी योग अग्नि से नगाड़ा बजने के पहले तैयारी चाहिए, तब नगाड़े में आवाज़ बुलन्द होगी। इस इन्तज़ाम में लगे हुए हो ना! इन्तज़ार करने वालों को भी इन्तज़ाम में लगाओ तब जयजयकार हो जायेगी।

जब शरीर को चलाना आ जायेगा तब राज्य चलाना भी आ जायेगा। शरीर को चलाना अर्थात् राज्य करना। तो राज्य करने के संस्कार भरने हैं ना! नॉलेजफुल कहा जाता है, तो फुल नॉलेज में तन, मन, धन और जन सब आ जाता है। अगर एक की भी नॉलेज कम है तो नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। समझा? सदा सफलतामूर्त बनने का आधार भी नॉलेजफुल है। नॉलेज नहीं तो सफलतामूर्त भी नहीं हो सकते। समय के प्रमाण पुरुषार्थ की गति भी तीव्र होनी चाहिए। समय की रफ्तार तेज है और चलने वालों की रफ्तार ढीली है तो समय पर कैसे पहुँचेंगे! एक बल, एक भरोसा, यह है मुख्य सब्जेक्ट। हर समय एक की ही याद में एकरस रहना। इसी पुरुषार्थ में ही सदा सफल हो तो मंजिल पर पहुँच जायेंगे। जो अटूट स्नेह में रहते हैं उनको सहयोग भी स्वत: प्राप्त होता है।

मुरली है लाठी, इस लाठी के आधार से कोई कमी भी होगी तो वह भर जायेगी। यह आधार ही अपने घर तक और अपने राज्य तक पहुँचायेगा लेकिन लक्ष्य से, नियमपूर्वक नहीं, लेकिन लगन से। तो लगन से मुरली पढ़ना व सुनना अर्थात् मुरलीधर की लगन में रहना। मुरलीधर से स्नेह की निशानी मुरली है। जितना मुरली से स्नेह है उतना ही समझो मुरलीधर से भी स्नेह है। सच्चे ब्राह्मण की परख मुरली से होगी। मुरली से लगन अर्थात् सच्चा ब्राह्मण। मुरली से लगन कम अर्थात् हाफ कास्ट ब्राह्मण। अच्छा!
वरदान:
अपने मस्तक बीच सदा बाप की स्मृति इमर्ज रखने वाले मस्तकमणि भव!
मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप की याद रहे, इसी को ही ऊंची स्टेज कहा जाता है। अपने को सदा ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा समझ आगे बढ़ते रहो। जो इस ऊंची स्टेज पर रहते हैं वह नीचे की अनेक प्रकार की बातों को सहज पार कर लेते हैं। समस्यायें नीचे रह जाती हैं और स्वयं ऊपर हो जाते। मस्तकमणि का स्थान ही ऊंचा मस्तक है इसलिए नीचे नहीं आना, सदा ऊपर रहो।
स्लोगन:
बेफिक्र बादशाह की स्थिति का अनुभव करना है तो मेरे को तेरे में परिवर्तन कर दो।