Sunday, March 18, 2018

19-03-18 प्रात:मुरली

19-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति" बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हारी याद अनकॉमन है, जिसे तुम इन आंखों से देखते नहीं, उसे याद करते हो और उसकी याद से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाते हैं"
प्रश्न:
किस एक आदत का त्याग करो तो सब गुण स्वत: आते जायेंगे?
उत्तर:
आधाकल्प से देह-अभिमान में आने की आदत जो पक्की हो गई है, अब इस आदत का त्याग करो। शिवबाबा जो मोस्ट बिलवेड है, उसे याद करो। कोई भी देहधारी की याद न रहे तो सब क्वालिफिकेशन आ जायेंगी, डिफेक्ट निकल जायेंगे। आत्मा पवित्रता का सागर बन जायेगी। खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। सब गुण स्वत: आते जायेंगे।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए...
ओम् शान्ति।
बच्चों ने अपने बेहद के बाप की महिमा सुनी और बच्चों के आगे वह बेहद का बाप सम्मुख बैठा है। हर एक बच्चे की बुद्धि में यह जरूर आना चाहिए कि हम उस शिवबाबा, जिसकी यह महिमा है, उसके सम्मुख बैठे हैं और उनसे हम 21 जन्मों के लिए सदा सुख का वर्सा ले रहे हैं। यह याद आने से ही खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। ऐसे नहीं, जिस समय सामने सुनते हो उस समय याद रहे और फिर भूल जाओ। नहीं, भूलना नहीं चाहिए। बच्चे जानते हैं हम फिर से अपना राज्य-भाग्य ले रहे हैं। तो बुद्धि चली जाती है उस निराकार बाप की तरफ। उनको बुद्धि से जाना जाता है। दिन-रात बुद्धि में यह याद रहना चाहिए - हम बेहद के बाप से भविष्य 21 जन्मों का वर्सा ले रहे हैं। निश्चय तो पक्का होता ही है। लौकिक माँ-बाप में निश्चय बैठा फिर उनमें संशय थोड़ेही हो सकता है। परन्तु यह नई बातें हैं। बुद्धि से बाप को जाना जाता है। बच्चे जानते हैं कि हम शिवबाबा के बने हैं उनसे ही वर्सा मिलना है। हम कल्प-कल्प उस बाप से वर्सा पाते हैं। बुद्धि में याद आता है। बाबा आप द्वारा हमको फिर से राजाई मिल रही है। हम हकदार हैं। जबकि हकदार हैं तो जरूर बाप को याद करना होगा। लौकिक बाप से वर्सा लेते हैं। वह तो बहुत याद पड़ जाता है। इसमें अनकॉमन बात यह है जो बाप को याद करने से हमारे पाप भस्म होंगे इसलिए बाप को याद करना पड़ता है। लौकिक बाप की याद तो आटोमेटिकली रहती है। इन आंखों से देखते हैं। बच्चा पैदा होता और मम्मा बाबा कहता रहता। यह बाप इन आंखों से दिखाई नहीं पड़ता। बुद्धि से याद करना है। हम शिवबाबा की ब्रह्मा द्वारा सन्तान बने हैं और 21 जन्मों का वर्सा पाने के लिए श्रीमत पर पुरुषार्थ करते रहते हैं। इसमें पहले-पहले मुख्य है पवित्रता। जितना याद करेंगे बुद्धि पवित्र होती जायेगी। ऐसे नहीं समझना हम तो बच्चे हैं ही हैं। बाप को याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। बहुत बच्चे समझते हैं हम तो बच्चे हैं और बाप को याद नहीं करते। कहते हैं ना - मुख से राम-राम कहो। परन्तु इस राम का (शिवबाबा का) चित्र तो है नहीं, इसलिए मनुष्यों का बुद्धियोग चला जाता है उस राम तरफ। सद्गति दाता शिव को तो सभी भूले हुए हैं।

अभी तुम जानते हो शिवबाबा आया हुआ है। पहले तो जरूर रचयिता शिवबाबा आया होगा तब ही स्वर्ग की रचना रची होगी। उनके बाद फिर राम का राज्य चला। अब तुम सतयुग त्रेता में राज्य करने के लिए बाप से वर्सा ले रहे हो। यह बुद्धि में चलना चाहिए। परमपिता परमात्मा शिव आते ही एक बार हैं। राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण आदि भी एक ही बार आते हैं। भल पुनर्जन्म लेते हैं परन्तु नाम, रूप, देश, काल सभी बदल जाता है। राम सीता भी प्रालब्ध भोगने लिए पुनर्जन्म लेते हैं। यह ज्ञान सारा बुद्धि में टपकना चाहिए तो खुशी रहेगी। कोई को भी समझाना बहुत सहज है। स्वर्ग के रचयिता बाप से तुमको इस समय वर्सा मिल सकता है। बेहद के बाप को याद तो सभी करते हैं। बाप नई सृष्टि रचता है तो सभी सुखी हो जाते हैं। इस समय तो सभी दु:खी हैं। यह ड्रामा ही सुख दु:ख का बना हुआ है। सुख में कौन राज्य करते हैं? लक्ष्मी-नारायण, फिर त्रेता में राम सीता.. तुम जानते हो इतने वर्ष इस घराने का राज्य चलता है। क्रिश्चियन समझेंगे हमारे क्राइस्ट ने राजाई रची। फिर एडवर्ड दी फर्स्ट, एडवर्ड दी सेकेण्ड राज्य करते आये। पास्ट होता जाता है ना। भारतवासियों को तो कुछ भी पता नहीं है। तुम बच्चे जानते हो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था जिसको ही हेविन स्वर्ग कहा जाता है, जो बाप ही स्थापन करते हैं। पतित दुनिया में आये तब तो पावन बनाये। यह याद रहना चाहिए। हम उस बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं श्रीमत पर और धारणा कर रहे हैं। यह भूलना नहीं चाहिए। बरोबर शिवबाबा कल्प पहले भी आया था, जिसका यादगार भी है। अब वह फिर से आया हुआ है। पहले आते हैं निराकार शिवबाबा, वह आकर तुमको देवी-देवता बनाते हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण प्रैक्टिकल में राज्य करेंगे। फिर भक्ति मार्ग में पुजारी बन चित्र आदि बनायेंगे। लक्ष्मी-नारायण का इस समय कोई एक्यूरेट चित्र तो नहीं है फिर प्रैक्टिकल में आयेंगे। अब शिवबाबा तुमको प्रैक्टिकल में पढ़ा रहे हैं ब्रह्मा द्वारा। कितनी सीधी बात है। और कोई भी स्कूल में ऐसे नहीं कहेंगे तुम्हारी आत्मा पढ़ती है, टीचर की आत्मा हमको पढ़ाती है। वह सब मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं। वास्तव में पढ़ाती आत्मा है। आत्मा ही आरगन्स द्वारा पढ़ती है। आत्मा कहती है मैं अब बैरिस्टर बन गया हूँ। नॉलेज से बैरिस्टर बनते हैं। यहाँ तो है वन्डरफुल बात। निराकार शिवबाबा निराकार आत्माओं से बात कर रहे हैं। आत्मा में संस्कार रहते हैं। मनुष्य यह भूल जाते हैं। निराकार बाप इन द्वारा समझाते हैं। उनका एक ही नाम शिव है। तुम भी कहते हो शिवबाबा, बुद्धि ऊपर चली जाती है। लौकिक बाप को याद करने से शरीर याद आ जायेगा। शिवबाबा का शरीर तो है नहीं। परमात्मा का मन्दिर ही निराकारी रूप का है। आकारी देवतायें हैं, साकारी मनुष्य हैं। वह है ही निराकार शिव, तुम्हारी आत्मा अब नॉलेजफुल बन रही है। बाप कहते हैं मैं निराकार हूँ। मेरे में सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज है। मैं तुमको पढ़ाता हूँ इस मुख द्वारा। तुम भी मेरे समान नॉलेजफुल बन जाओ। यह नॉलेज सिवाए निराकार बाप के कोई दे नहीं सकता। निराकार परमात्मा को ही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, पतित-पावन कहा जाता है। बाबा कहते हैं पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया मैं ही बनाता हूँ। जैसे मुझ निराकार में सारे झाड़ की नॉलेज है वैसे तुम आत्माओं को भी बनाता हूँ। तुम्हारी आत्मा भी ऐसी नॉलेजफुल बनती है, तुमको आप समान बनाता हूँ। इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुनने से तुम चक्रवर्ती राजा-रानी बनेंगे। मनुष्य, मनुष्य को देवता बना न सकें।

बाप है ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर। बच्चों को आप समान बनाते हैं तो सब गुण होने चाहिए। फिर तुम देवता बनेंगे तो क्वालिफिकेशन बदल जायेंगी। बाप की क्वालिफिकेशन अलग है, बाप ज्ञान का सागर है, तुमको भी बनना है। बाप पवित्रता का सागर है। हम आधाकल्प पवित्र रहते हैं। बाप कहते हैं ड्रामा अनुसार तुम पतित बनते हो फिर मैं आकर पावन बनाता हूँ 21 जन्म लिए। सिर्फ तुम श्रीमत पर चलो, एक मुझे याद करो, दूसरा न कोई। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। बाप को भूल और कोई की याद में रहेंगे तो डिफेक्टेड हो जायेंगे। शिवबाबा है मोस्ट बिलवेड, सबसे प्यारा बाप है। तुम्हारा नाम भी गाया हुआ है वन्दे मातरम्। तुम्हारी आत्मा पवित्र बनती है। तुम पवित्र बन भारत को स्वर्ग बनाते हो इसलिए तुम्हारा नाम बाला है शिव शक्ति पाण्डव सेना। तुम पाण्डव भी हो क्योंकि परमधाम की यात्रा पर युद्ध के मैदान में खड़े हो, माया पर जीत पाने लिए। बच्चे जानते हैं हमको बाप जैसा मास्टर ज्ञान सागर, पवित्रता का सागर बनना है। देह का अहंकार टूट जाना चाहिए। जन्म-जन्मान्तर देह धारण की है तो वह आदत पक्की हो गयी है। अब इस आदत का त्याग चाहिए। जैसे बाप निराकार है तो देह-अभिमान कहाँ से आया? तुमको भी इस पुरानी देह को छोड़ मेरे पास आना है। विनाश होता है तो कुछ कारण होगा ना। वर्थ नाट ए पेनी चीज़ का ही विनाश होता है। अब तुमको स्वर्ग चलने लायक बनाते हैं। वहाँ सदैव सुख ही सुख है। सुखधाम और शान्तिधाम, यह है दु:खधाम। अशान्त किया है रावण ने फिर शान्ति देने वाला है परमपिता परमात्मा। कोई कहते हैं मन की शान्ति चाहिए। बोलो, कैसी शान्ति चाहिए? यह तो है दु:खधाम, क्या तुमको सुखधाम चलना है? बाप को याद करो तो सुखधाम चलेंगे। अशान्त करने वाला है रावण-माया जो यहाँ हाज़िर है। मुक्ति-जीवनमुक्ति में अशान्त करने वाला रावण होता नहीं इसलिए अब चलो अपने घर वापिस। अगर सतयुग में चलना चाहते हो तो चलो। हर एक आत्मा जीवनमुक्ति जरूर चाहती है। ऐसे नहीं सब सतयुग में, जीवनमुक्ति में चलेंगे। वह तो सिर्फ तुम बच्चे ही जाते हो। बाकी जो आत्मायें ऊपर से आती हैं वह पहले जीवनमुक्ति में हैं। माया की परछाया नहीं लगती है। सतोप्रधान बन फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। माया के होते हुए भी आत्मा को सुख जरूर भोगना है। दु:ख नहीं हो सकता क्योंकि पवित्र है ना। फिर अपवित्र होने से दु:ख पायेंगे, ऐसे नहीं आने से ही दु:ख पाते हैं। यह सुख-दु:ख का खेल बना हुआ है।

बाबा के ख्यालात चलते रहते हैं - मनुष्यों को भीती देने के लिए बोर्ड लगाना चाहिए। सिर्फ चित्र देख मनुष्य मूंझते हैं। समझो शिवबाबा का चित्र रखते हैं और नीचे लिख देते हैं डीटी वर्ल्ड सावरन्टी इज़ योर गॉड फादरली बर्थ राइट। मनुष्य चित्र देख कहेंगे भगवान ऐसा थोड़ेही होता है। भगवान का रूप क्या है? फिर भी लिखा हुआ रहता है बहनों और भाइयों, आकर बेहद के बाप से 21 जन्म सदा सुख पाने का पुरुषार्थ करो। वह तो जब कोई सम्मुख आये तब समझाया जाए। निमंत्रण देते हैं। दिन-प्रतिदिन बहुत शॉर्ट बनाना होता है। पिछाड़ी में शॉर्ट होता जायेगा। मनमनाभव, बाप को याद करो और उनसे वर्सा लो। तो लिखना चाहिए बहनों-भाइयों सतयुग की राजाई 21 जन्मों के लिए बाप से आकर प्राप्त करो, इस होवनहार लड़ाई के पहले। इस लड़ाई से ही स्वर्ग के द्वार खुलते हैं। यह कोई दुनिया नहीं जानती। तुम जानते हो इस लड़ाई से ही भारत सुखधाम बनेगा। वह कोशिश करते हैं, लड़ाई न लगे। तुम जानते हो इस महाभारी महाभारत लड़ाई से ही महाविनाश होना है। सब आत्माओं को वापिस जरूर जाना है क्योंकि खेल पूरा हुआ फिर से पार्ट बजाने आयेंगे। तो युक्ति से लिखना चाहिए।

तुम हो रूहानी पण्डे, वह हैं जिस्मानी देहधारी पण्डे। तुम अपने को विदेही आत्मा देह से अलग समझते हो, तुम जानते हो बाप हम आत्माओं को ले जायेंगे। तो तुमको लिखना पड़े कि बेहद के बाप से आकर वर्सा लो। निराकार अक्षर जरूर लिखना है। तुम जानते हो बाबा आया हुआ है इस कर्मक्षेत्र पर। हम भी वहाँ से आते हैं। सभी आत्मायें जो एक्टर्स हैं, इम्पैरिसिबुल, इमार्टल आत्मायें हैं, कब मरती नहीं। यह अच्छी रीति निश्चय हो जाना चाहिए। हम शिवबाबा से अनेक बार वर्सा ले चुके हैं, फिर भी लेंगे। पुरुषार्थ से तुम जानते हो शिवबाबा हमको स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं, तो क्यों नहीं उनसे वर्सा लेते हो? बाप और वर्से को याद करेंगे तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। बाकी सिर्फ राम-राम कहने से मुक्ति थोड़ेही हो जायेगी। अखबार में डालते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ। उनसे पूछना चाहिए स्वर्ग किसको कहते हो? यह तो नर्क है, तो पुनर्जन्म भी नर्क में लेंगे। स्वर्ग है तो पुनर्जन्म भी स्वर्ग में लेंगे। अगर कोई शरीर छोड़ नर्क से स्वर्ग गया, वहाँ तो उनको बहुत वैभव मिलेंगे। फिर नर्क के वैभव खिलाने उनको स्वर्ग से नर्क में क्यों बुलाते हो? उनको नर्क का भोजन खिलायेंगे तो ऐसी बुद्धि हो जायेगी। जैसा अन्न वैसा मन हो जायेगा। स्वर्ग में तो दूध-घी की नदियां बहती हैं। तुम तो घासलेट का खाना खिलायेंगे। श्रीनाथ द्वारे में अच्छे घी का भोग लगता है क्योंकि वहाँ राधे-कृष्ण का चित्र है। तो उन्हों की याद में भोग भी अच्छे-अच्छे वैभव बनाकर लगाते हैं। ऐसा भोग और कहाँ नहीं लगता। जगत नाथ का भी मन्दिर है, वहाँ चावल का भोग लगाते हैं, वहाँ वैभव नहीं चढ़ाते। अब तो नर्क है तो दु:ख है। स्वर्ग में तो सुख था। बाप समझाते तो बहुत अच्छा हैं, परन्तु धारणा नम्बरवार होती है यह भी ड्रामा में नूंध है। ड्रामा अनुसार नौकर चाकर भी बनने हैं। थर्ड क्लास टिकेट भी कोई तो जरूर लेंगे ना। फर्स्टक्लास है सूर्यवंशी राजधानी, सेकेण्ड क्लास चन्द्रवंशी राजधानी, थर्डक्लास है प्रजा। उनमें भी नम्बरवार हैं। अब जिसको जो टिकेट चाहिए वह लेवे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर बनना है। विदेही बनने का अभ्यास करना है।
2) बाप की याद से बुद्धि को पवित्र बनाना है। सदा इसी नशे में रहना है कि बेहद के बाप से हम 21 जन्मों का वर्सा ले रहे हैं।
वरदान:
प्राप्तियों की इच्छा से इच्छा मात्रम् अविद्या बन सदा भरपूर रहने वाले निष्काम सेवाधारी भव!
जो निष्काम सेवाधारी हैं उनके सामने सर्व प्राप्तियां स्वत: आती हैं। लेकिन प्राप्ति आपके आगे भल आये, आप प्राप्तियों को स्वीकार नहीं करो। अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्तियां होते भी कमी महसूस होगी। सदा अपने को खाली समझेंगे। इसलिए इच्छा मात्रम अविद्या बन सर्व प्राप्तियों से भरपूर रहो। संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी अविनाशी प्राप्तियां हुई हैं, उन्हीं प्राप्तियों के झूले में सदा झूलते रहो तो कोई भी भूलें नहीं होंगी।
स्लोगन:
अपनी अव्यक्त स्थिति से अव्यक्त आनन्द, अव्यक्त स्नेह व अव्यक्त शक्ति प्राप्त कर सकते हो।